Gagan - 4 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 4

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

Categories
Share

गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 4

और लड़की देखने जाने की बात पक्की हो गयी।भाई बांदीकुई चला गया।मुझसे कह गया,"कल आ जाना।"
अगले दिन में जाने के लिए तैयार हो गया।ताऊजी ने एक पत्र मुझे लिखकर दिया।पत्र क्या था?
एक कॉपी का पेज जिस पर चार लाइन लिखी थी--
मैं लड़के को भेज रहा हूँ।मैं चाहता हूँ रिश्ते से पहले लड़का लड़की एक दूसरे को देख ले।आप लड़की दिखा देना।
यह खुला पत्र था।किसी लिफाफे में नही रखा था,न बन्द था।
मैं बसवा से बांदीकुई गया।उन दिनों रेवाड़ी से बांदीकुई तक 11 बजे पैसेंजर ट्रेन आती थी।इस ट्रेन से मुझे बांदीकुई जाना था।
मैं उस दिन उस ट्रेन से ताऊजी की चिट्ठी लेकर बांदीकुई आ गया।जगदीश भाई का घर स्टेशन के पास ही है लेकिन मैं उसके घर नही गया।स्टेशन पर ही उसका इन्तजार करता रहा।आगरा से बाड़मेर जाने वाली ट्रेन जो बांदीकुई एक बजे आ जाती थी।फिर यहाँ से ये ट्रेन दो बजे बाद चलती थी।इस ट्रेन का खान भांकरी स्टेशन पर ठहराव था।ट्रेन स्टार्ट होने से पहले जगदीश भाई स्टेशन पर आया था।मैं ताऊजी की चिट्ठी उसे देते हुए बोला,"गुरु तुम्हारे साथ चल रहा हूँ।करना तुम्हे ही है।मैं पता नही करूंगा"
और हम ट्रेन में बैठ गए थे।बांदीकुई से खान भांकरी चौथा स्टेशन था और दौसा से पहले पड़ता था।
ट्रेन हर स्टेशन पर रुकते हुए करीब एक घण्टे बाद खान भांकरी पहुंची थी।यह छोटा सा स्टेशन था।इस स्टेशन पर मुश्किल से 15 या 20 यात्री ट्रेन से उतरते और इतने ही चढ़ते थे।ट्रेन जाने के बाद स्टेशन सुनसान हो जाता।उतरने वाले यात्री ट्रेन से उतरते ही अपने गांव चले जाते।केवल रेलवे स्टाफ ही रह जाता।ट्रेन से उतरते ही मैं प्लेटफॉर्म पर लगी बेंच पर बैठ गया।
ट्रेन जाने के बाद जगदीश भाई बोला,"आओ।"
"गुरु मैं तो यहाँ बैठा हूँ।तुम पता कर आओ।"
के एल शर्मा स्टेशन मास्टर थे।भाई आफिस गया था।रॉड साइड स्टेशन पर स्टेशन मास्टर की सुबह की ड्यूटी रहती है।वहा से पता चला वह घर चले गए है।एक पॉइंट मेन बोला,"चलिए।मैं क्वाटर पर ले चलता हूं।"
हम दोनों उसके साथ आ गए थे।क्वाटर के बाहर एक लड़की खाट पर बैठी कड़ाई कर रही थी।पॉइंट मेन बोला,"बड़े बाबू से मिलना है।"
वह हमें छोड़कर चला गया था।
भाई ताऊजी की चिट्ठी उस लड़की को देते हुए बोला,"बाऊजी को दे देना।"
"वह चिट्टी लेकर चली गयी।और चिट्टी को पढ़ते ही वह तुरंत बाहर चले आये।और हमे अंदर ले गए थे।
(पत्नी ने जो मुझे बाद में बताया उसके अनुसार ।हमारी चिट्टी अपने पापा को देते हुए बोली।यह तो वो ही लड़का है जो हमे कल ट्रेन में मिला था।जैसा पहले बताया बांदीकुई से बसवा जाते समय हमारे सामने वाली सीट पर ये लोग बैठे थे।मैं तो उसे नही पहचाना पर वह मुझे पहचान गयी थी)
हमे तो मालूम था।हम लड़की देखने आए है।पर उसे नही।भाई ने चिट्ठी भी उसी के हाथ मे दी थी।चिट्टी खुली हुई थी लेकिन उसने बिना पढ़े अपने पापा को दे दिया था।वह समझ रही थी।हम उसके पापा से मिलने आये है।इसलिए वह बेफिक्र जैसे घर मे रहते है,वैसे ही हमारे सामबे कमरे में बार बार आ रही थी।जब वह चाय नाश्ता लेकर आई तब उसके पापा कुछ देर को अंदर चले गए थे।तब भाई ने उससे उसका नाम और किस क्लास में पढ़ रही हैं।पूछा था।