Tash ka aashiyana - 27 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | ताश का आशियाना - भाग 27

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ताश का आशियाना - भाग 27

(यह कहानी शुरू करने से पहले, इस कहानी में भारत माता मंदिर पर कोई डिस्क्रिप्शन नही दिया गया है। जिससे कर कहानी में रुकावट ना हो और कहानी में अनावश्यक डायलॉग ना आए। यह काफी लंबा अध्याय है।)


तुषार को पहले ही खबर हो गई थी सुबह घमासान युद्ध की घोषणा होने वाली है तो वो पहले ही रागिनी को लेने भाग गया।
सिद्धार्थ ने तुषार के "सुबह ही कही निकल गया है।" यह बात डाइनिंग टेबल पर जैसे ही गंगा से सुनी वो बौखला गया।
"कहा जा रहा है?"
"आज फिल्म का लास्ट डे है।"
"अरे नाश्ता तो करके जा।"
" नही साइट पर खा लूंगा।"
"अरे पर!"
सिद्धार्थ अपने कमरे में गया अपनी गाड़ी की चाबी ली। उसी समय उसकी नजर वहा रखे गोलीयो की डब्बियो पर गई पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वहा से चला गया।
तुषार जब रागिनी के घर पहुंचा तो उसने रागिनी को मैसेज डाला, " तयार हो गई आप?"
तुषार ने रागिनी से सवाल पूछा।
"हा बस 10 मिनिट।"
10 मिनिट बाद, सिद्धार्थ भी आ चुका था।
सिद्धार्थ और तुषार के बीच आंखो ही आंखो में युद्ध छिड़ चुका था।
दस मिनिट का बोल आधे घंटे बाद रागिनी बाहर आई, उफ्फ लड़किया!
रागिनी के साथ पीछे–पीछे सैंडल ठीक करते हुए प्रतीक्षा भी आई।
फिर वो कल ही का युद्ध छिड़ा रागिनी को कोन लेकर जायेगा।
लेकिन आखिरकार रागिनी फिर से एक बार तुषार के साथ जाने के लिए मान गई।
सिद्धार्थ अपने उखड़े स्वभाव के साथ प्रतीक्षा को लेकर और रागिनी अपनी विक्ट्री की भावना मन में लेकर तुषार के साथ डेस्टिनेशन की और चल दिए।

सुबह के दस बजे थे। पहले सबने डिसाइड किया की वो कुछ पेट–पूजा करने अस्सी घाट पर जायेगे।
खाना होने के कुछ आधे घंटे बाद चारो मल्लयो खाने निकले।
क्योंकि वो सिर्फ 11 बजे तक ही मिलने की अवधि तय थी।
सिद्धार्थ का मुंह उखड़ा हुआ था।
रागिनी की नजदीकिया जो बढ़ रही थी समय के साथ लेकिन इस बात से तुषार काफी असहज महसूस कर रहा था।

मर्द औरत के स्पर्श के लिए सदा से ही बैचेन होता है यह लोगो का माइंडसेट हों चुका है। और लोग यह दृष्टिकोण बदलने के लिए तयार नही, दुनिया में एक आधे व्यक्ति के लिए थोड़ी ना नियम–कायदे बदले जाते है।
तुषार अनकंफर्टेबल हो कर भी कुछ नही बोल सकता था वरना प्लेन यही धरा का धरा रह जाता। इसलिए वो go with flow कर रहा था।

लेकिन वही दूसरी तरफ सिद्धार्थ अपनी भावनाओं से जूझ रहा था।
एक तरफ अपनी बीमारी के चलते उसे रागिनी से कोई वास्ता नहीं रखना था। वही दूसरी तरफ मन फट पड़ रहा था और कितने तो भी बार कल्पना में ही सही सिद्धार्थ ने तुषार को बड़ी बेरहमी से मार डाला था।

आखिरकार चारो मल्लयो खाने की जगह पर पहुंचे।
चारो ने मल्लयो ऑर्डर किया।
प्रतिक्षा मल्लयो चखते ही एक अलग दुनिया में पहुच गई। तुषार का अनुभव भी कुछ ऐसा ही था।

"Wow it's super tasty." प्रतिक्षा ने तारीफ करते हुए कहा। "Its hard to find in banglore." (यह बंगलौर में मिलना कठिन है।)

तुषार और प्रतीक्षा की ट्यूनिंग एक साथ जम पड़ी थी। दोनो को इस बात से काफी खुशी थी।

तुषार के मन में प्रतीक्षा के लिए सॉफ्ट कॉर्नर था ही और प्रतीक्षा के मन में अटेंशन पा लेने की खुशी।
क्योंकि उसे भी पता था सिद्धार्थ और रागिनी के युद्ध के बारे में। बस उसे तुषार की तरह गहरी जानकारी नहीं थी।
पर एक औरत के नजर से वो बस इतना जान पाई थी की सिद्धार्थ रागिनी को पसंद करता है और उसे उसमे कोई इंटरेस्ट नहीं, यह बात तकलीफ और आक्रोश से भर देने वाली थी।
लेकिन दो दिन में वो वैसे भी यहां से चली जायेगी यही बात कोई पश्चाताप भरा काम करने से रोकती थी उसे।
और यही कुछ वजहें थी की तुषार और प्रतीक्षा दोनो अपनी अपनी भावनाओ में जिंदा थे। एक दूसरे के प्रति एक दूसरे के मन में जगह बनाने का काम कर रहे थे।


सिद्धार्थ रागिनी को घूरे जा रहा था।
रागिनी मुंह टेढ़ा बना मल्लयो का मजा ले रही थी।
उसे सिद्धार्थ के गुस्से पर हंसी आ रही थी पर अभी हंस देती तो शायद वो अपनी भावनाएं उजागर कर देती और औरत कभी नही चाहती की रिश्ते में पहले वो कन्फेस करे।

रागिनी बस सिद्धार्थ के मुंह से सुनना चाहती थी की वो उससे कितना प्यार करता है। चाहे वो किसी भी तरीके से समझाए बोले या बिना बोले, वो सब भाषाये समझ जाएगी।

चारो मलय्यो खाने के बाद भारत माता मंदिर पहुंचे।
वहा पहुंचते ही शूटिंग चालू हो गई।

शूटिंग करते करते प्रतीक्षा और सिद्धार्थ की डिस्कशन से फिर से एक बार रागिनी अपने जेलेसी मोड़ में थी।
"आप ज्यादा ही possessive type की लड़की हो।"
"हा!" रागिनी चौक गई।
"भाई और आप में क्या रिश्ता है?"
"यह तुम क्या.... कुछ भी नही।" रागिनी थोड़ा बचते बचाते बोली।
"गंगा आंटी ने मुझे सब बताया।"
रागिनी यह बात सुन थोड़ा सा बिथर ( extreme shock) चुकी थी।
"आंटी पर.."
" मैं भी आपके प्लान में शामिल हु, इसलिए पूछ रहा हु। कबसे जानती है आप भाई को?"
"तुषार!" सिद्धार्थ ने जोर से आवाज लगाई।
"यह देख तो सही शॉर्ट आया की नही?"
तुषार वहा पर चला गया।
"हा सही है भाई, हम कल एडिटिंग में संभाल लेंगे।"
"फिर भी देख ज्यादा समय थोड़ी ना बचा है।" सिद्धार्थ ने बाते बढ़ाते हुए कहा।
तुषार ने कुछ प्वाइंट को हाईलाइट किया।
"यह सब कट करना होंगा लेकिन अभी टूल्स नही है, देखते है कल।" इतना कह कर वो वहा से चला गया।
रागिनी अभिभी सुन्न पड़ी हुई थी।
"रागिनीजी! रागिनीजी!"
"हा!" रागिनी विचारो से बाहर आ गई।
"क्या हुआ? मैने तो बस आपसे सवाल पूछा।"
"आप कबसे भाई को जानती है?"
रागिनी ने एक घड़ी लंबी सास लेते हुए," जबसे में उसे अस्सी घाट पर मिली हु तबसे।"
तुषार सोच में पड़ गया फिर कुछ सोच कर बोला

"आंटी ने मुझे जितना बताया, उससे मुझे यही पता चल रहा है की आपकी और भाई की मुलाकात सिर्फ चन दिनों की है।
और आप उनका इलाज करने में मदद कर रहीं है पर आपके बर्ताव से यह नही लगता। लगता है आप भाई से प्यार करने लगी है।"

"मैं आपके बर्ताव से काफी कन्फ्यूज हो रहा हु। आप जिसे ढंग से जानती भी नही उसके लिए इतनी possesiveness."

"तुषार!" सिद्धार्थ एक बार फ़िर जोर से चिल्लाया।
"हा क्या हुआ भाई!" तुषार ने पूछा।
"जरा यहां आ जरा, देख तो इसमें कोनसे सीन काटने है?"
"कल हम दोनो यही काम करने वाले है तो आज क्या जरूरत?" तुषार ने सवाल दागते ही सिद्धार्थ के लिए, दाँतों तले उँगली दबाने वाला क्षण था।
"तू देख तो सही।"
तुषार ने करेक्शन करते ही वो अपने जगह पर जाकर बैठ गया।

"मुझे नहीं लगता, भाई हमे बातचीत करने देंगे, चलिए।"
"कहा?"
"घबराइऐ मत! बस छोटी–मोटी बाते करनी है।"
जैसे ही तुषार ने बहाना बनाया की, रागिनी की तबियत खराब है और वो उसे घर छोड़ देगा सिद्धार्थ का मन पहली बार सिहर उठा।
"क्या हुआ रागिनी को?" वहा खड़े सभी लोगो ने वो चिंता भाप ली। प्रतिक्षा से लेकर रागिनी तक। तुषार के सारे सवालों का मानो एकाएक जवाब मिल गया।
"कुछ नहीं बस चक्कर आ रहे हैं।"

सिद्धार्थ कुछ बोलने जाएगा उससे पहले, "चलिए रागिनीजी मैं आपको घर छोड़ देता हूं।''
"मैं घर छोड़ देता हूँ?" सिद्धार्थ झट से बोला।

रागिनी बस उन दोनों के बीच देख रही थी।
"चलो रागिनी।" सिद्धार्थ ने उसे उठने का इशारा दिया।
तुषार ने ना में सर हिलाया।
रागिनी ने तुषार की बॉडी लैंग्वेज समझते हुए, "नही मैं तुषार के साथ जाऊंगी।"
यह बात सुनते ही सिद्धार्थ पीछे हट गया।
"ध्यान न देते हुए चलिए प्रतीक्षा। आज लास्ट डेट है।"
प्रतीक्षा काफी कंफ्यूज थी सिद्धार्थ के इस बरताव से।
कुछ देर पहले उमड़ा हुआ प्यार मानो अचानक गायब हो गया था। वो सिर्फ सिद्धार्थ के ऑर्डर फॉलो कर रही थी।

रागिनी बस सिद्धार्थ को खुद से दूर जाते हुए देख रही थी।
सिद्धार्थ को उसके लिए भावना है या नहीं, यह जानना हो पाना मुश्किल था
पर तुषार ने इस मामले में क्लियर था।
सिद्धार्थ रागिनी से लगाव रखने लगा है।
लेकिन उसमें इंसानियत का कोई हाथ नहीं है।
रागिनी के हालात का हवाला (हालत) जानते हुए
प्यार उसकी आँखों से और बातों से झलक रहा था। पर अगर रागिनी सिर्फ यह काम इलाज के लिए कर रही थी तो सिद्धार्थ का दिल एक बार फिर टूट जाएगा यह बात तय थी।
और तुषार यह नही चाहता था।



भाग 2

"क्या चल रहा है?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा है आप क्या कह रहे हैं।"

गंगा आंटी ने कहा आप उनकी मदद कर रही हैं;भाई को ये एहसास दिलाने के लिए कि उसकी बीमारी से बाहर भी एक दुनिया है।
आंटी आपको अपने घर की बहु बनाना चाहती है और उसके लिए आपको आंटी ने मेरे जैसा इमोशनल ब्लैकमेलिंग भी किया होगा, पर आप क्यों मान गई?

"मैं गंगा आंटी की बस मदद करना चाहती हूँ। उनका बेटा जिस बीमारी से गुजर रहा है वही उसकी दुनिया थोड़ी है।"

"मुझे तो ऐसा नहीं लगता मैं पहले दिन से देख रहा हूं। आप दोनों मुझे कुछ तो ऐसा है जो छुपा हुआ है जो गंगा आंटी को भी नहीं पता।"

"क्या आप एक दूसरे को पहले से जानते हो?"

"नहीं हमारी सिर्फ 4-5 दिन पहले मुलाकात हुई।"

"4-5 दिन के मुलाक़ात में इतना लगाव, इतनी jealousy(ईर्ष्या) "

"मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूं.."


"ये देखिये रागिनी जी मुझे नहीं पता आप भाई को कैसे ठीक कर रही हैं।
पर अगर आप प्यार काफी सुंदर चीज है, लड़कियों के साथ एक बार कुछ कर के देखना चाहिए।

मैं उसके मन में लड़कियों के लिए इमोशन जगाऊंगी तो ये बकचोदी छोड़ दीजिए।"

आंटी का भूत एक ना एक दिन उतर जायेगा.
लेकीन अगर ये सब आप बिना भावना के या सिर्फ इंडिया मे टाइमपास के लिए, कर रही होगी तो छोड़ दीजिये भाई को किसी उपचार की जरुरत नही।


"चित्रा के वक्त उनका हाल जैसा हुआ था; उससे भी बत्तर होगा, अगर आपने कुछ ऐसा-वैसा करना की कोशिष की।"

"मर्द को दर्द नहीं होता वाला तत्वज्ञान ना सिर्फ सुने के लिए अच्छा लगता है; असलियत कोई नहीं देखना चाहता।"

"चित्रा के कारण ही आज वो सिजोफ्रेनिया जैसी बिमारी का शिकार हुए है।"

तुषार अपनी भड़ास निकाल बस इधर–उधर देख रहा था।

"तुषार!" रागिणी ने गुहार लगायी।

तुषार रागिणी की तरफ ध्यान नही दे रहा था। ध्यान खिचने के लिए उसे यही तरिका समझ आया, की वो असलियत खोल कर रख दे।

मैं दस साल की थी, तब मेरे माता पिता ने मुझे, अपनी मासी के यहां छोड़ा।

मेरे कुंडली में दोष था जिसके बारे में शायद तुम्हे आंटी ने बताया हो क्योंकि शादी के टूटने के बाद से ही यह सब शुरू हुआ।

मेरे कुंडली मे दोष मेरे पिताजी और ताऊजी को रास नहीं आया।

उनके बिझनेस को होते हुए, भारी नुक्सान के चलते, मुझे देवकी मौसी के पास दिल्ली भेज दिया।

मैं 15 साल की उम्र तक वही पली–बढ़ी फिर अचानक मासी ने मुझे घर लाकर छोड़ दिया।

मुझे यहाँ सब बर्दाश होने जैसा नहीं था।
3-4 महीने बाद खबर आई मासी चल बसी, ब्रेन ट्यूमर के कारण; मुझे इस बात का सदमा लगा।

"मासी के तेरवी के दिन मैंने घर से भाग जाने का फैसला लिया बिना किसी को बताए, और यही मेरी सबसे बड़ी गलती बन गई।"

"I am suffering from sexual harassment, rape."

तुषार रागिनी की तरफ आंख उठाकर देखने लगा आंख आश्चर्य के कारण बाहर आ गई थी।
मुंह से शब्द का आदान–प्रदान मानो खंडित सा हो गया हो।

उस दिन वो गुंडे मुझे वही मार डालते, मेरी ही खुदकी दुप्पटे से गला दबाकर…

रागिनी को इस हादसे का अनुवाद करना भी मुश्किल हो रहा था। उसने एक लंबी सास ली.

उस दिन वो सिद्धार्थ था जिसने मुझे बचाया, मुझे हॉस्पिटल लेकर गया, मुझे हौसला दिया, जीने की उम्मीद दी। अगर आज उसे जरूरत है तो मैं उसकी मदद क्यों न करूं?

जरूर मैंने सिद्धार्थ को इलाज के लिए ही अप्रोच किया था पर अब "मैं उसे अपना जीवन साथी बनाना चाहती हूं।"

यह कथन रागिनी ने जोर देकर बोला, बड़े ही कठोर विश्वास के साथ।

"मेरी possessiveness jealousy कोई इलाज का हिस्सा नहीं है।"

"पर आपको पता होता हुए भी की भाई किस बीमारी से गुजर रहे हैं। फिर भी आप उनको अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहती हैं?"

"अगर यह कोई सहानुभूति...."

"सहानुभूति होती तो तुम मुझे यहाँ नहीं लाते।"

तुषार चुप हो गया। दोनों गंगा के तट पर पहुंच गए। तुषार आगे–आगे चल रहा था।

"तुषार!"

तुषार रुक गया..

"मुझे माफ कर दो.. "

"किस चीज़ के लिए?"

"तुम्हारी insecurity के लिए.."

तुषार मुस्कुरा दिया।

"कोई जरूरत नहीं, मैं भाई के लिए खुश हूं; भाई के खुशी में मेरी खुशी। मैं आपके साथ उसका भविष्य देख सकता हूँ।"

रागिनी भी मुस्कुरा के हंस दी,
"काश ये तुम्हारे भाई को भी लगता।"

"उसकी आप बिल्कुल फिकर मत कीजिए।"

रागिनी गाड़ी पर बैठने जाने ही वाली थी की; "यह क्या कर रहे हो?"

मिनरल वाटर की बोतल के ढक्कन से तुषार अपने गले पर निशान बना रहा था।

"यह क्या कर रहे हो?"

“बस, एक कोशिश" Test the water ( यहां अर्थ : धैर्य की परीक्षा लेना। )

तुषार ने अपनी शर्ट के दो बटन भी खोल दिए और बस वो रागिनी को लेकर चल दिया।
रागिनी को घर में छोड़ते ही।

"रागिनी घर घुसते ही, वैशाली ने पहला सवाल दागा।"
"अरे तुम अब आ रही हो, प्रतिक्षा तो कब की आ चुकी है।"
"हा! पास में ही मेला लगा था तो वहा गई थी।"
"पर हमे तो पता नही चला।" वैशाली ने शक जताया।
" I am tired." रागिनी ने अपनी बात रखी।
"ठीक है, रहने दोनो विशु यही उसके घूमने फिरने का दिन है, बाद में तो चूला–चौका ही संभालना ही है।"
वैशाली से हुई अधमरी सी बातो के बाद वो अपने रूम में पोहची।
प्रतीक्षा सो रही थी, यह अजीब था लेकिन शायद थक गई होंगी यह उसने मान लिया।
बाथरूम में घुसते ही,
"क्या हुआ रागिनी उदास होने के लिए?"
रागिनी ने शीशे में देखा।
"कुछ नही, बस आज दिन अच्छा नही था।"
"तुम्हे सच में सिद्धार्थ पसंद है?"
" हा।"
"अरे वा! मेरी रागिनी बड़ी हो गई।"
रागिनी हस दी।
"अरे रागिनी खाना खाले, गरम कर दिया है।" गौरी की आवाज थी यह।
"जा, वैशाली बुला रही है।"
"मुझे नहीं जाना।"
"ऐसा नही कहते, वो तुझसे प्यार करती है।"
"प्यार करते तो छोड़ के नही जाते।"
"अरे मेरी बच्ची, मजबूरी थी उन दोनो की।"
"उनके मजबूरी के कारण ही यही हाल है आज मेरा।"
उसने इतना कहते ही, कैबिनेट से एक बॉटल निकाली और दवाई अपने मुंह में डाल दी।
और बाथरूम से बाहर आ कर पानी की घुट गटक ली, वहा रखे गिलास से।

दूसरी और तुषार कुछ देर पहले हुए बातों का विचार करते हुए कब घर आ गया उसे ही पता ही नहीं चला।
गाड़ी स्टैंड पर लगा वो घर में घुसा।
आज, डाइनिंग रूम में कोई नहीं था शायद गंगा आंटी बाहर गई थी, नारायण अंकल भी कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
घर में कोई ना देख सीधा वो गेस्ट रूम की तरफ बढ़ गया। जहां वो कितने तो भी दिनों से ठहरा हुआ था।

गेस्ट रूम में जाते ही सिद्धार्थ वहां पहुंच गया, "कहाँ था तू अब तक?"

"मैं वो रागिनी जी को घर छोड़ने गया था।"

"इतना देर लगता है, घर आने को?"

"अरे भाई क्या लड़कियों जैसे, सवाल कर रहे हो।”


"सात के अंदर घर में; नौजवान हूं, कोई 70 साल का बूढ़ा थोड़ी हूँ।"

"यह तेरे गले पर…."