story of childhood in Hindi Short Stories by सीमा books and stories PDF | किस्सा बचपन का

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किस्सा बचपन का

हम सभी के जीवन में बचपन के कुछ ऐसे किस्से होते हैं जो हमारे दिमाग में पूरी तरीके से छप चुके होते हैं । कुछ हमें खुशी देते हैं तो कुछ हमारी आंखें नम कर देते हैं, कुछ में हम मुस्कुरा देते हैं तो कुछ मैं खुलकर हंस देते हैं, कुछ किस्से किसी की याद दिला देते हैं, कुछ किसी की अहमियत हमारी जिंदगी में और बड़ा देते हैं । ऐसे ही कुछ किस्से मेरी जिंदगी में भी है, जो मैं आज आपके साथ साझा कर रही हूं ।
मेरे और मेरे भाई के उम्र में सिर्फ 1 साल का फर्क है ।हम दोनों को ही हमारी नानी ने पाला पोसा है क्योंकि मेरी मम्मी भी नौकरी में थी जिस वजह से उन्होंने हम लोगों को पालने में उनकी मदद की । मैं अगर सोचती हूं तो मेरी जिंदगी का सबसे पहला और सबसे घनिष्ठ मित्र मेरा भाई है, हम दोनों हम उम्र थे, कभी-कभी लोग हमें जुड़वा भी कह देते थे । हम दोनों की शैतानियां भी एक ही जैसी होती थी । हालांकि वह मुझसे ज्यादा शैतान था लेकिन जो निम्न स्तर की शैतानियां थी मैं उसमें उसका पूरा सहयोग करती थी ।
बचपन का एक किस्सा याद आता है जब मैं और मेरा भाई चार-पांच साल के होंगे । मेरी नानी अपने घर का काम खत्म करने के बाद दोपहर में जब सोने चली जाती थी तो हम लोग आपस में खेला करते थे और हम लोगों का फेवरेट गेम था कि हम लोग मेन गेट पर चढ़ जाते थे, वह मेन गेट ऊपर से बिल्कुल सपाट था, तब के जमाने में कांटे नहीं लगाया जाते थे । हम लोग आराम से उस पर टेक लगाकर खड़े हो जाते थे ।हम लोगों की गर्दन और हाथ गेट के बाहर होते थे और शुरू होता था हमारा गेम । रास्ते से जो भी निकलता था, हम लोग हाथ जोड़कर उनसे नमस्ते करते थे-- आंटी जी नमस्ते, अंकल जी नमस्ते, भैया नमस्ते, दीदी नमस्ते, दादा नमस्ते... रास्ते से शायद ही ऐसा कोई जाता हो जिसे हम लोग नमस्ते ना करते हो । तब ज्यादातर लोग या तो पैदल चलते थे या कभी कबार कोई साइकिल से दिख जाता था तो सभी लोग हमारे नमस्ते का जवाब बड़े ही खिलखिलाते हुए या स्माइल करते हुए देते थे! कुछ लोग तो ऐसे थे जो उनका रोज का रास्ता था और वह जानते थे कि यह बच्चे इस दरवाजे पर लटके होंगे और वह लोग हम लोगों की शैतानी को देखकर बहुत खुश होते थे । सोचो तो हम लोगों ने कितने लोगों का दिल खुश कर के खून बढ़ाया होगा और कितनों का बिगड़ा मूड भी बनाया होगा
हद तो 1 दिन तब हो गई जब नमस्ते करते करते मेरा भाई गेट के बाहर ही गिर गया हमारी सुरक्षा की दृष्टि से नानी हमेशा दरवाजे पर ताला लगा कर रखती थी । ताला लगा होने की वजह से मुझे यह खबर नानी को देनी ही पड़ी । नानी ने बड़बड़ते हुए ताला खोला और भाई को अंदर किया यह तो अच्छा हुआ कि दरवाजा छोटी हाइट का था और भाई को ज्यादा चोट नहीं लगी, उस दिन हम लोगों को डांट बहुत पड़ी लेकिन यह सिलसिला रुका नहीं ।
आज तो लोग एक दूसरे को जानने वालों को भी नमस्ते करने में मन चुराते हैं । बचपन ऐसा था कि ना जान, ना पहचान, ना प्यार, ना मोहब्बत, इसके बाद भी बिना किसी स्वार्थ के सब को नमस्ते करते थे और ऐसा करने में ना किसी की जाति पूछते थे, ना धर्म, ना पद और ना उसका स्टैंडर्ड । इसीलिए बचपन से पवित्र कुछ भी नहीं । जैसी भावना एक बच्चे के मन में होती है अगर ऐसी भावना जीवन भर हमारे अंदर रहे तो कभी कोई झगड़ा हो ही ना । इसलिए अपने मन में एक बच्चा हमेशा जिंदा रखिए