few words!! in Hindi Letter by Madhu books and stories PDF | कुछ शब्द!!

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कुछ शब्द!!








उस दिन तुम्हारे बारे में किसी और से मालूम हुआ मुझे उस बात तनिक भी खबर ना थी जब पता चला मेरा दिल धक से हुआ ऐसा लगा कि किसी ने मेरे मुहँ पर तमाचा जड दिया हो ! इतना जुडाव जो तुमसे था ना तुम पर कभी अधिकार ना जमाया बस मन हुआ लाओ एक बार पूछ ले पर हमारी हिम्मत हि ना हुई तुम तो जानती हि हूँ जादे बात ना करती हूँ l हमारा तुम्हारा रिश्ता हि कुछ ऐसा है ना तो तुम्हें पसन्द है डेली बात ना ना हि हमे हि महिनो महिनो बीत जाते बात किये हुये यहा तक wtsp पर भी नहीं हाय हेलो या गुडमोर्निग गुड नाइट हि बोल ले l ऐसा ना था कि हमारी ज़िन्दगी में तुम्हारी अहमियत ना थी या तुम्हारी ज़िन्दगी में अहमियत ना थी l
उस बात के लिये कभी हम कुछ पूछे हि नहीं लगा कि तुम खुद हमे बताओगी जब सहज होगी l हमे अकसर लगता था कि कुछ बुरा तो नहीं हो रहा है तुम्हारे साथ पर हम कभी हिम्मत हि ना जुटा पाय कभी कभी खुद हि नफ़रत होने लगती कि कैसे है हम जब तुम्हें हमारी जरुरत थी उस वक़्त हम नहीं थे या जानने कि कोशिश नहीं की l इस व्यवहार के लिये हमे लोग घमण्डी अपने में रहने वाली स्वार्थी समझने लगते हैं मुझे खुद समझ आता हम ऐसे क्यों है l ऐसा नहीं कि हम चाहते नहीं है पर कोशिश करती हूँ नहीं हो पाता हमसे l
एक दिन तुम्हें हिम्मत कर काल कि हेलो खैरियत पूछा तुमने बोला सब ठीक है फिर हमारी भी हिम्मत ना हुई शायद तुम भी जानती थी कि हमने किस लिये काल कि हम समझ गये तुम उस बात के लिये हिम्मत नहीं जुटा पा रही l
4 महिने बाद फिर हमने खुद हि सोचा कुछ जुगाड करके तुमसे मुलाकात कि जाय तब तुम भी सहज हो तुम्हें भी उस दिन काम था हमे भी बस उस दिन तुम्हारे हि घर चल पडे l तुम्हें देखकर कितना सुकून मिला था और तुम्हारी मुस्कुराहट चाहे वो झूठी हि सही थी तो थी बस तुम्हारी यही एक बात तुम्हे अलग
बनाती है l हम घर बाहर आटो किये चल पड़े तुम्हारी सुनने के लिये इतना तो समझ गये आज तुम सब बताने वाली हो क्योंकि इतना तो पता है मेसेज से या काल करके तुम वो बाते ना बता पाऊ जो बतानी चाहिए l
हमारी बाते हुई तुमने हमारी खैरियत पूछी हमने तुम्हारी l फिर तुमने खुद बताने लगी जिस बात का इंतजार था धीरे धीरे जैसे तुम बताने लगी ऐसा लग रहा था कि हमारे हमारे पैर से जमीन खिसकती जा रही हो अन्त में तुम बिलख पडी हमारी भी आंखों में आन्सुओ से भरी थी हम क्या कहे हमे कुछ समझ नहीं आया या समझ लो पूरी तरह से सुन्न पड गई लगा शरीर में जान ना रही हो l खैर उस वक़्त तुम्हें सम्भालना था l उस दिन पहली बार रोते देखा तुम्हारा रुदन अन्दर हि अन्दर कचोट रहा था l तुम्हे खुलकर रोने दिया l तुम्हे समझाया जरुरी तो नहीं जो हम लोग समझे वो हमारी बेहतरी के लिये हो l हमारे बड़े हमारे बारे अच्छा बुरा हमसे बेहतर जानते हैं l उस अपनी जगह तुम भी सही थी और तुम्हारे अपने भी l उस दिन अपने मन कि सारी भडाल तुमने निकाली अच्छा बुरा सव हम सुनते रहे l जहा लगा तुम्हे समझाना है तुम्हे समझाया l एक बात अच्छी क्या थी इतनी बुरी परिस्थिति में भी तुमने खुद के साथ कोई गलत कदम ना उठाया शायद तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक खुद को चोट खत्म हि कर लेता l फिर भी तुम्हारे चेहरे से वो मुस्कान ना गई जिसके लिये तुम जानी जाती l खैर उस दिन हम दोनों कि ढेरो बाते हुई कई महिनो बाद साथ में कुछ खाय शाम में हम घर वो भी हमारे वहा भी ढेरो बाते हुई तुमसे जुडी तुमने अपने अनुभव बाटे जो हमे लगा तुम्हारी बेहतरी के लिये वो हमने बताया l
खैर जब भी वक़्त मिलता तुमसे मिलने चले जाते उस दिन के बाद तुम रोई नहीं बस तुम्हारा हद से जादे गुस्सा बढ गया l एक बात किसी से निकली नहीं कि तुरन्त जवाब तुमसे अब कोई कहता भी नहीं था l तुम खुद को खुद में कैद कर लि जब बाहर निकलती तो वो गुस्से के रूप में होता l धीरे धीरे वक़्त बीता वो दिन भी आया उस दिन हमारा मन नहीं था आने फिर सोचकर साढे 10रात में भाई के साथ पहुचे भाई लोग सब वही तुम्हारे हि यहा थे उसे काल कर बुलाया l
जाते हि किसी से नहीं मिली तुमसे सीधी मिली l उस वक़्त भी सजी सवरी गुस्से में बैठी थी l कोई भी तुमसे मिलने आता तो गुस्सा करती हमने तो तुम्हे अधिकार हि दे दिया जितना चाहे गुस्सा कर लो जो मन आय कह लो फिर हमने भी कमर कस लि किसी को अन्दर नहीं आने देगे चाहे तुम्हारी लिये बुरे क्यों ना बन जाते वैसे भी हमारा किरदार उनके अनुसार तो ना था ना कोई शौक था किसी के लिए हम अच्छे हमारे जानने वालो हमे जानते उतना हि काफ़ी उस दिन तुम्हे खाना खिलाया हमने भी तुम्हारे साथ खाया l जब वो वक़्त आया तुम्हे जाना था तुम्हे सब लोग लेकर गये हम वही ऊपर छत से देखते रहे पता नहीं क्यों हिम्मत ना पडी जाने कि l खैर धीरे धीरे सब होता चला गया l तुम्हारे उनको देखकर मुझे तो अच्छी वाइब्स आई देखते हि मासूमियत झलक रही थी खैर तुम्हे समझाया भी शायद उस वक़्त गुस्से में तुम समझना ना चाह रही थी l या शायद हम तुम्हारी परिस्थिति से अनभिज्ञ तो नहीं थे फिर सावरना आता है बिगाडना आता तो नहीं था l क्योंकि सिखाया हि गया था l

हमारे मन मे ये शब्द गून्ज रहे थे... .
मन का हो तो अच्छा है...
और मन का ना हो तो और भी अच्छा है!!

हमे लगा हि था तुम्हे ये बात बहुत जल्द रेलाइज होगी l शाम से सुबह सब धीरे धीरे होता चला गया l अब आया जाने का वक़्त भी सब तुम्हारे अपने रोये पर तुम ना रोई शायद हो ऐसा हो कोई जो ना रोया हो l खैर गुस्से दर्द को दरकिनार कर मुस्कुराते हुये सबसे मिली l और मुस्कुराते हुये चली गई l

कुछ दिन जब तुम लौट कर आई तुम्हारे चेहरे कि रौनक बता रही थी कि हमारी जो बात थी वो सच निकली उन कुछ दिनो में अच्छे से देखा समझा जाना खुद से सबकुछ आन्कलन किया तो तुम्हे समझ आ रहा था कि क्या गलत क्या सही l फिर हमारी ढेरो बाते थी तुम्हारी बाते सुनकर मुझे बहुत सुकून मिला और तुम्हे भी खुद को सुकूनियत महसूस कि l तुम्हें पुरसुकून देख मुझे भी सुकू मिला l

कभी कभी ऐसा हो जाता किसी के समझाने पर भी हम नहीं समझते है जब हम बातो को खुद देखते समझते हैं तब वो बाते बेहतरी से समझ आती है l


इति!!