Mahantam Ganitagya Shrinivas Ramanujan - 1 in Hindi Biography by Praveen Kumrawat books and stories PDF | महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 1

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 1


किसी भी विषय में विशिष्ट ख्याति पाने के साथ असाधारण प्रतिभा से विभूषित व्यक्ति बहुत ही कम होते हैं। समय के साथ ओझल होना भी नियम ही है, परंतु विश्व - गणित मंडल में उज्ज्वल प्रतिभा के धनी श्रीनिवास रामानुजन इस नियम के अपवाद हैं। केवल तैंतीस वर्ष की अल्प आयु पानेवाले एवं पराधीन भारत में दरिद्रता के स्तर पर विवशताओं के मध्य पले-बढ़े रामानुजन ने गणित पर अपने शोधों से तथा उनके पीछे छिपी अपनी विलक्षणता की जो छाप छोड़ी है, उसे जानने के बाद किसी को भी आश्चर्य होना स्वाभाविक है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन जैसे व्यक्ति संसार में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। उनके जीवन में झाँकना तथा कार्य
से अवगत होना एक दिव्य विभूति के निकट जाने जैसा है। यदि आज श्रीकृष्ण अर्जुन के सामने ‘गीता’ के दसवें अध्याय के ‘विभूतियोग’ का वर्णन करते तो यह अवश्य कहते, ‘गणितज्ञानां अहं रामानुजन अस्मि— अर्थात् गणितज्ञों में मैं रामानुजन हूँ।’

उनके विद्यार्थी जीवन की एक घटना है। उनकी कक्षा में गणित के अध्यापक ने कहा कि यदि 3 केलों को 3 बच्चों में बराबर-बराबर बाँटा जाए तो प्रत्येक बच्चे को 1-1 केला मिलेगा। फिर अध्यापक ने इसका व्यापीकरण किया। इसपर रामानुजन का प्रश्न था, ‘तो यदि केलों को शून्य बच्चों में बराबर-बराबर बाँटा जाए, तब भी क्या प्रत्येक बच्चे को एक-एक केला मिलेगा?’ इससे स्पष्ट होता है कि शैशवकाल से ही रामानुजन की बुद्धि शून्य के विशेष स्थान की ओर संकेत कर रही थी।
संख्याओं से रामानुजन का मानो अटूट तादात्म्य संबंध बन गया था। अंक 7 की वह बड़ी रहस्यमयी बातें करते थे। उन्हें भारतीय मिथ में आए सप्तर्षि आदि में 7 की संख्या का सृष्टि में विशेष स्थान लगता था। चार अंकों— 1,2, 7 और 9 को वह किन्हीं कारणों से बहुत महत्त्वपूर्ण मानते थे।
संख्याओं के बारे में विलक्षण तथ्य अनायास ही बता देना उनकी प्रकृति का अंग बन गया था। उनके जीवन में विशेष भूमिका निभानेवाले कैंब्रिज विश्वविद्यालय के स्वनामधन्य प्रो. हार्डी से बहुधा उनकी वार्ता का विषय संख्याएँ एवं उनसे संबंधित शोध प्रश्न ही रहते थे। रामानुजन के जीवन के संध्या काल की एक घटना ने उन्हें भी चकित कर दिया था। वह बीमार अवस्था में लंदन के अस्पताल में थे। श्री जी. एच. हार्डी उनसे मिलने टैक्सी में गए। टैक्सी का नंबर था 1729, बातें संख्याओं पर होनी ही थीं और हार्डी के मन में यही संख्या घूम रही थी। अतः उन्होंने टैक्सी का नंबर (1729 ) बताने के साथ-साथ यह भी कहा कि इस संख्या में उन्हें कोई विशेषता नहीं लगती। परंतु रामानुजन ने रुग्ण अवस्था में भी उनको विस्मित करते हुए तुरंत कहा कि यह संख्या तो असाधारण है। यह वह संख्या है, जो दो विभिन्न प्रकार से दो संख्याओं के घन का योग है—
1729= 1³ 12³ = 9³ 10³
उनका यह अनायास कथन आज भी चौंका देनेवाला है। बाद में 'इलिप्टिक कर्व' को ठीक से समझाने के लिए जे.एच. सिल्वरमैन ने इस प्रसिद्ध कथानक का प्रयोग किया है। रामानुजन नितांत अकेले रहकर इंग्लैंड में शोध कार्य में लगे थे। जिस गति से वह नए-नए सूत्र लिखते जा रहे थे, उनका उस गति से लेखन अथवा प्रकाशन संभव ही नहीं था। उनके शोध-सूत्रों की एक पूरी पुस्तक की सामग्री उनकी मृत्यु के बाद तीस वर्ष तक इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ जॉर्ज वाटसन के पास दबी पड़ी रही। वाटसन की मृत्यु के पश्चात् वह कैसे प्रकाश में आई, इसकी भी एक रोचक कहानी है, जो पाठकों को आगे पढ़ने को मिलेगी। इस ‘लॉस्ट बुक ऑफ रामानुजन’ ने उनके द्वारा बनाए गणित भंडार को और भी अधिक समृद्ध कर दिया है। अपने अल्प जीवन में उन्होंने जो कार्य किया, उसपर काफी कार्य हुआ है और हो रहा है। वास्तव में उनके कतिपय सूत्रों का विधिवत् स्थापन अभी तक नहीं हो पाया है। उन्होंने उन्हें कैसे लिख दिया, यह एक विस्मय की बात है। इस विस्मय पर उनसे प्रश्न भी किए गए। उनके पास इन प्रश्नों का एक सीधा समाधान था। वह कहते थे कि स्वप्न में अपनी इष्टदेवी से उन्हें वे सूत्र प्राप्त होते हैं। इससे उनके जीवन की अध्यात्म-प्रेरणा का भी आभास
होता है। प्रिंसटन विश्वविद्यालय के ‘इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडी’ के प्रो. फ्रीमैन जे. डाइसन के अनुसार, ‘रामानुजन की सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्होंने बहुत कुछ खोजा और साथ ही कहीं अधिक खोजों के उपवन में औरों को खोजने के लिए छोड़ दिया।’

प्रो. हार्डी ने रामानुजन की तुलना अन्य गणितज्ञों से एक विशेष प्रकार से की थी। उनका कहना था यदि 0 से 100 तक विभिन्न व्यक्तियों को प्रतिभा के आधार पर अंक दिए जाएँ तो 'वह स्वयं को 25, लिटिलवुड को 30, जर्मनी के गणितज्ञ डी. हिल्वर्ट को 80 तथा रामानुजन को 100 अंक क्रमश: देंगे।' उल्लेखनीय है कि उन्होंने सिर्फ रामानुजन को पूरे-के-पूरे अंक दिए, अन्य किसी को नहीं, स्वयं को भी नहीं । अतः वह रामानुजन में पूरे गणितज्ञ की छवि देखते थे।
उनके गणित के शोधों को हिंदी में अथवा अन्य किसी भी भारतीय भाषा में सुगम व ग्राह्य रूप से प्रस्तुत करना किसी साधारण व्यक्ति के लिए एक बड़ी चुनौती है, परंतु इसकी आवश्यकता है। जिससे समय पर प्रेरणा लेकर नई संतति में वैज्ञानिक दृष्टि एवं प्रखरता का विकास किया जा सके। उनके जीवन की विलक्षणताओं से प्रभावित होकर पत्रकार कैनिगल ने बहुत परिश्रम करके एक बड़ी अच्छी पुस्तक ‘द मैन हू न्यू इनफिनीटी’ (वह पुरुष, जो अनंत से परिचित था) से लिखी है। भारत के बाहर हमें कोई ऐसा गणितज्ञ नहीं मिला, जिसने उनको नहीं पढ़ा हो और पढ़कर रामानुजन को सराहा न हो।
भारत में तथा संपूर्ण विश्व के गणित जगत् में उनकी मृत्यु का शोक छा गया था। शोक सभाओं का आयोजन हुआ था। कुछ समाचार पत्रों में उनकी जीवनी छपी, जिसमें इस बात का विशेष उल्लेख रहा कि किस प्रकार एक अत्यंत निर्धन परिवार में जनमे, स्कूल की शिक्षा से भी वंचित एक नवयुवक ने बत्तीस वर्ष की आयु में गणित जगत् में असाधारण नाम कमाया। इंग्लैंड जाकर वहाँ से बी. ए. ही नहीं पूरा किया, रॉयल सोसाइटी की फैलोशिप से भी विभूषित हुए, और मद्रास विश्वविद्यालय में गणित के प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए।