Kaal Chakra in Hindi Moral Stories by Narendra Rajput books and stories PDF | काल चक्र

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काल चक्र

काल चक्र

यह एक छोटी सी कहानी लिखने का बस एक ही उद्देश्य है की इसे पढ़ने के बाद शायद कोई आत्महत्या न करे। आप सब से बिनती है की ज्यादा से ज्यादा लोगो तक इस कहानी को पहुंचाए।  किसी एक का भी जीवन हमारे वजह से बच गया तो उनके परिवार का भला होगा।

कहानी कुछ इस तरह से  है।

एक उत्कर्ष नाम का लड़का जो २५ वर्ष की आयु में ही आत्महत्या कर लेता है। आत्महत्या के बाद उसने अपने आप को एक कुर्सी पर बैठा हुआ पाया, चारो और अँधेरा था बस कुर्सी के आसपास की जगह पर थोड़ा सा उजाला था। उस कुर्सी पर से वह हिल नहीं पा रहा था, ना कुछ बोल पा रहा था। उसके सामने एक टेबल था और टेबल के सामने एक और कुर्सी थी। पहले उसने बहोत कोशिश की कुर्सी से उठने के लिए, फिर उसे अंदाजा आ गया की अब में यहाँ से कहीं नहीं जा सकता। करीब दो दिन जितना समय हो गया होगा ऐसे ही बैठा रहा। फिर अचानक से उसके सामने वाली कुर्सी पर एक व्यक्ति प्रगट हुआ। उसे देख उत्कर्ष थोड़ा खुश हुआ आखिर कोई तो दिखा पर अभी भी वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। उस व्यक्ति का नाम था नारायण। नारायण जी ने एक चुटकी बजायी और उत्कर्ष उस कुर्सी पर ठीक से बैठ पाया और वह अब बोल भी सकता था। वह तुरंत बोला सर अच्छा हुआ आप आए में बहुत परेशान था। नारायण जी ने अपना हाथ दिखाकर उत्कर्ष को चुप रहने के लिए कहा। नारायण जी ने टेबल पर देखा और फिर बोले तुम्हारी आयु ६० वर्ष की थी पर तुमने आत्महत्या करके इसे २५ की कर दी तो अब तुम्हे फिर से पृथ्वी पर जाना होगा और अपने बचे हुए ३५ साल पुरे करने होंगे। उत्कर्ष बोला सर मुझे अमेरिका, यूरोप या ऑस्ट्रेलिया इनमे से कोई भी देश में भेज दो।

नारायण जी मुस्कुराए और बोले तुम्हारे पास सिर्फ तीन विकल्प है, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान इन में से कोनसा देश पसंद करोगे ?  उत्कर्ष के तो होश उड़ गए बोला इन देशो में से कोई एक ? नारायण जी बोले हां इन में से ही कोई एक। उत्कर्ष बोला सर पूरी दुनिया में १०० से अधिक देश है तो फिर सिर्फ इन तीनो में से ही एक क्यों ? नारायण जी बोले क्योंकि इन देशो में फिलहाल कोई जाना नहीं चाहता और अन्य देश में बहोत बड़ी लम्बी कतार है। उत्कर्ष बोला में इंतज़ार करने के लिए तैयार हूँ। नारायण जी बोले पर हमारे पास इतना समय नहीं, लम्बी कतार मतलब २०-२५ साल भी लग सकते है। उत्कर्ष बोला २५ साल ? नारायण जी बोले हाँ, २५ साल क्योंकि जो इंसान अपनी पूरी जिंदगी पृथ्वी पर बिताकर आते है, उनका जो भी हिसाब किताब होता है उसके बाद उनको उनके पसंद का देश मिलता है, उसमे भी सभी को सभी देश का विकल्प नहीं होता, सिर्फ इंसान ही नहीं पृथ्वी पर से आने वाले पशु, पक्षी और सारे जीव सभी को बड़े बड़े देश में जाना होता है, एक दिन में लाखो की संख्या में लोग यहाँ आते है, इसलिए २५ साल लग सकते है, वो सब एक अलग हिसाब है। तुम बताओ कोनसा देश पसंद करोगे ? उत्कर्ष बोला क्या में ईरान में एक कब्बडी का खिलाडी बन सकता हूँ ?  नारायण जी बोले ज्यादा अक्कल का इस्तेमाल मत करो, तुम क्या सोच रहे हो ईरान में कब्बडी खिलाडी बन ने के बाद फिर भारत में कब्बडी खेल ने आ कर यहीं पर अपना घर बसा लोगे, ऐसा कुछ नहीं होगा तुम्हारा जन्म कहीं भी हो सकता है अमीर घर, गरीब घर या फुटपाथ पर भी।

उत्कर्ष फिर भी अपनी पूरी कोशिश कर रहा था और फिर बोला अगर मान लीजिये मेने पाकिस्तान पसंद किया और १० साल में मेने वहां आत्महत्या कर ली तो ? नारायण जी बोले तो क्या, फिर यह कुर्सी , यह टेबल और सामने मुझे ही पाओगे फिर तुम्हे अफ़ग़ानिस्तान और ईरान में से किसी एक को पसंद करना होगा। उत्कर्ष अब भी हार नहीं मान रहा था। उत्कर्ष फिर बोला सर मेरी आयु ६० की थी इसलिए आप मुझे फिर से पृथ्वी पर भेज रहे हो, तो जब में भारत में था तब मेरे पास खुद का घर था, गाडी थी, करीब ३ लाख नकद थे और भी छोटी मोटी चीजे थी वो सब भी तो मुझे फिर से मिलनी चाहिए, अपनी बची हुई उम्र के साथ में यह सब भी तो छोड़ कर आया हूँ। 

नारायण जी मुस्कुराए और बोले हम जब किसी जिव को पृथ्वी पर भेजते है तो उसका सारा हिसाब किताब करने के बाद उसके हिस्से में आई  हुई खुशियाँ और तकलीफे उसके साथ भेजते है। उसके हिस्से में लिखी खुशियाँ कोई छीन नहीं सकता और मिली हुई तकलीफ से वह दूर नहीं भाग सकता। उत्कर्ष बोला  में कुछ समजा नहीं। नारायण जी बोले अगर हमने किस्मत में खुशियाँ लिख दी तो फिर चाहे वो फूटपाथ पर भी क्यों न जन्म ले उसे वह सारी खुशियाँ मिलेगी और वैसे ही किसी के किस्मत में तकलीफे लिख दी तो उसे वह सारी तकलीफे मिलेगी फिर चाहे वह किसी अमीर परिवार में भी जन्म क्यों न ले। यह तो ठीक तुम्हे और एक बात बताना चाहता हूँ की जिव को चाहे इंसान का शरीर मिले या पशु पक्षी का उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, खुशियाँ लिखी है तो खुशियाँ मिल ही जाएगी। उत्कर्ष को अचानक अमीर घर में रहने वाले कुत्तो की याद आ गई, जिन पर महीने में लाखो खर्च किए जाते थे।  नारायण जी बोलते जा रहे थे, नसीब में अगर लाखो चाहनेवाले लिखे हो, तो चाहनेवाले मिल ही जाएंगे फिर उसके रंग रुप का कोई महत्व रहता नहीं है, इस बात पर उत्कर्ष को वेस्ट इंडीज़ के क्रिकेटर याद आ रहे थे, और कई लोग ऐसे भी होते है की नसीब में सब कुछ लिखा होता है सिवाय के कामयाबी, अब उसे कुछ नेता और अभिनेता के बच्चो की याद आ रही थी।  

उत्कर्ष बोला सर जी एक बात और है जो समज नहीं आ रही है, नारायणजी बोले बोलो क्या बात है ? उत्कर्ष बोला जब सब कुछ पहले से ही लिखा हुआ होता है तो फिर इंसान को करना क्या है ? आप कहते हो सभी के जीवन में खुशिया और तकलीफे हिसाब किताब करने के बाद लिखी जाती है पर हकीकत तो यह है की ८०% तकलीफे और २०% खुशिया होती है। नारायणजी बोले यह तो अपना अपना नजरिया है, अगर हमारे नजरिए से देखोगे तो ८०% खुशिया है और २०% तकलीफे।  उत्कर्ष बोला कैसे ? नारायणजी बोले तकलीफ होती क्या है ? कुछ खोने का डर ही तो है, किसी को नौकरी खोने का डर,  किसी को मान सम्मान खोने का डर, किसी को धन दौलत खोने का डर, किसी को अपनों को खोने का डर तो किसी को जिंदगी खोने का डर।  जब यह डर निकल जाएगा अपने आप २०% जो हे वो ८०% में बदल जाएगा। उत्कर्ष बोला डर तो लगेगा ही ना क्योंकि इन सब के बिना जीवन मुश्किल है। 

नारायणजी हमेशा की तरह मुस्कुराए और बोले एक कहानी सुनो एक इंसान था जिसे भूल ने की बीमारी थी।  घर से निकलते वक्त पैर का अंगूठा भूल जाता था, बस में प्रवास करे तो बस में अपना कान भूल जाता था, दफ्तर से निकलते वक्त हाथ भूल जाता था, उत्कर्ष अचानक बोल पड़ा सर जी ऐसे थोड़ी होता है, नारायण जी बोले क्यों नहीं होता है, उत्कर्ष  बोला उसका हाथ है, उसका पैर है, उसकी आँख है, उस से जुड़ा हुआ सब कुछ उसके साथ ही जाएगा। नारायण जी बोले में भी यही समझाने की कोशिश कर रहा हूँ, जो तुम्हारा है वह तुम्हारे साथ ही रहेगा कुछ कहीं नहीं छूटेगा।

उत्कर्ष ने आखिर हार मान ली और बोला में एक देश पसंद करता हूँ बस सिर्फ एक बात और बता दीजिए की जैसे मैंने अमेरिका, यूरोप जैसी जगह पसंद की तो वैसे ही बाकी लोग भी तो यही जगह पसंद करते होंगे तो भी भारत में जन्म लेने की कतार लम्बी है ? नारायण जी बोले तुम्हे जान के हैरानी होगी की सबसे ज्यादा लम्बी कतार सिर्फ और सिर्फ भारत देश के लिए है। अब तुम खुद भारत में रह चुके हो तो अब में भारत देश के बारे में क्या बताऊ ? ऐसा नहीं है की अन्य देशो को पसंद नहीं किया जाता है लेकिन भारत देश की संस्कृति, १०-१० दिनों के बड़े बड़े त्यौहार और बाकी सब तो तुम जानते ही हो, क्या और कितनी खूबियां है। तुम्हारे सामने भारत  देश की तारीफ़ करना मतलब एक बेटे को माँ की खुबिया बताना होगा। उत्कर्ष मन में बोला शायद इसिलए भारत की जनसंख्या दिन भर दिन बढ़ते जा रही है।

नारायण जी बोले तकलीफ शरीर को नहीं होती है, जो भी तकलीफ होनी है वो आत्मा को ही होनी है, तो शरीर का त्याग करने का फायदा ? और यह बात भारत में ही रहने वाला एक लड़का है जो बहोत अच्छी तरह से जानता है, जिसके मन में बार बार आत्महत्या का विचार तो आता है पर कभी करता नहीं है, यही सोचकर की इस जन्म में जैसे तैसे तो बारहवीं पास की है, मर जाऊंगा तो फिर से जन्म होगा और फिर से पूरी पढाई करनी पड़ेगी, पढाई तो ठीक उसके साथ साथ मार कौन खाएगा ? क्या पता अगले जन्म में दसवीं भी पास कर सकूंगा या नहीं। फिर वह कभी साबन की टिकिया बेचने का व्यवसाय सोचता है तो कभी वड़ा पाँव की गाडी लगाने का सोचता है।  

सर, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, मुझे कोई देश नहीं पसंद करना है, आप मुझे किसी भी देश में भेज दो कोई गम नहीं होगा।  मुझे यकीन है मेरे हिस्से की खुशियाँ और तकलीफे साथ ही आएगी, अब तो जानवर भी बन जाऊ तो कोई गम नहीं।

नारायण जी बोले ठीक है, कुछ ही समय में तुम्हारा दूसरा जन्म हो जाएगा।

 

उम्मीद करता हूँ आपको भी इस कहानी से कुछ ना कुछ सिखने मिला होगा।

 

जय हिन्द

 

नरेंद्र राजपूत

 

मुंबई