Bandhan Prem ke - 1 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | बंधन प्रेम के - भाग 1

Featured Books
  • Bewafa Ishq

    ️ Bewafa Ishq ️कहते हैं प्यार इंसान की ज़िंदगी को बदल देता ह...

  • It's all beacuse our destiny make

     किस्मत " Destiny "वेदिका और आर्यन की शादी को दो साल हो चुके...

  • इतिहास के पन्नों से - 8

                                                       इतिहास के...

  • My Alien Husband - 5

    [Location: पार्क के एक कोने में — शाम की हल्की हवा, चारों तर...

  • The Risky Love - 10

    अपहरण कांड की शुरुआत...अब आगे.........आदिराज अदिति को अमोघना...

Categories
Share

बंधन प्रेम के - भाग 1

बंधन प्रेम के
अध्याय 1

(1)

शांभवी और मेजर विक्रम कॉफी हाउस में बैठे हैं। शाम का वक्त है। दोनों कॉफी पी रहे हैं और दोनों का ध्यान टीवी के स्क्रीन पर है। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता पिछली रात सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक सीमावर्ती सेक्टर में पड़ोसी राष्ट्र की ओर से होने वाली घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब देने के क्रम में सेना की ओर से उठाए गए एक बड़े कदम की खबरें ब्रीफ कर रहे हैं। उनकी ओर से पूरा विवरण जारी किए जाने के बाद पत्रकारों ने सवाल पूछने शुरू किए।प्रवक्ता ने बड़ी चतुराई से उनके जवाब दिए और दृढ़ता से रक्षा मंत्रालय का पक्ष रखते हुए बताया कि जिनकी फितरत में ही विश्वासघात और छल हो,वे दो साल पहले की सर्जिकल स्ट्राइक में मुंह की खाने के बाद भी अपनी नापाक हरकत से बाज नहीं आने वाले। लेकिन इस बार ऐसी तगड़ी चोट पहुंचाई गई है कि वे आने वाले कई सालों तक कोई बड़ा दुःसाहस नहीं कर सकेंगे।

एक पत्रकार ने पूछा- सर क्या आप घटना का अधिक विवरण देंगे? जिसमें हमारे जांबाज़ सैनिकों ने बहादुरी का परिचय दिया है और दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम कर दिया है। उस पॉइंट की अधिक जानकारी देंगे, जहां पर यह मुठभेड़ हुई है?

- जी नहीं।मैंने सेक्टर का नाम बता दिया है, लेकिन अधिक विस्तार से विवरण देना देश की सुरक्षा के लिए खतरा होगा क्योंकि ऐसी सूचनाओं का फायदा शत्रु राष्ट्र उठाता है।

- अच्छा, कम से कम उन जांबाज़ सैनिकों और अफसरों के नाम तो बता दीजिए, जिन्होंने कल रात की झड़प में बड़ी वीरता का परिचय दिया है।

- यह भी संभव नहीं और फिर ये विवरण सेना के गुप्त मिशन से जुड़े हुए हैं।ऐसे में हम कोई भी पहचान उजागर करेंगे तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ उन अफसरों व सैनिकों के लिए भी असहज होगा।

-ओके सर।

कॉफी का कप टेबल पर रखते हुए शांभवी मुस्कुरा उठी। उसने कहा- कांग्रेचुलेशन विक्रम जी। मुझे आप पर गर्व है और मुझे ही क्या देश के हर एक नागरिक को गर्व होगा, आप जैसे बहादुर पर।

-थैंक्स मिस शांभवी। कोई मैंने अलग से तीर मारने वाला काम नहीं किया है। मैं अपनी सामान्य ड्यूटी पर था। हां यह अलग बात है कि बॉर्डर पर पहुंचते ही मेरे अंदर देशभक्ति का एक जोश और जुनून जाग उठता है और मेरा वश चले तो मैं न जाने आगे कहां तक बढ़ जाऊं।

- आपके इसी जोश और जुनून ने तो कल रात एक बार फिर हमारे शत्रुओं को बुरी तरह पराजित कर दिया।मुझे खुशी है कि हमारी सेना को कोई नुकसान नहीं हुआ और सारे शत्रु मारे गए।

"सर,आप दोनों कुछ और लेंगे? यह कहते हुए वेटर ने पास आकर पूछा।
शांभवी ने उत्तर दिया- नहीं, नहीं। अभी के लिए बस ये दो कप कॉफी ही काफी हैं।

इस चर्चा पर ध्यान न देते हुए मेजर विक्रम ने कहा- मिस शांभवी, बुरा न मानो तो बहुत दिनों से एक बात मेरे मन में है।

-अरे, तो बोलिए विक्रम जी, इसमें इतना हिचकने की क्या बात है?

- शांभवी मैं अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में कुछ कहना चाहता हूं आपसे।

- तो कहिए मैं तैयार हूं सुनने को। आप कह सकते हैं।

मेजर विक्रम ने कहना शुरू किया ही था कि रेस्टॉरेंट में आर्मी के दो-तीन ऑफिसर भीतर आने लगे। मेजर कुणाल, मेजर इरफान और मेजर विनय ने लपक कर मेजर विक्रम को गले लगा लिया। यह देश के सीमाई राज्य का एक सीमावर्ती शहर है, जहां पास में सेना की एक बड़ी यूनिट है। शाम को प्रायः आर्मी एरिया के अनेक फौजी इस शहर की दुकानों,रेस्टोरेंट्स सिनेमा हॉल आदि में देखे जा सकते हैं। यहां पहुंचकर थोड़ी सिविलियन लाइफ़ जीने का अनुभव जो होता है।

मेजर कुणाल ने कहना शुरू किया-
"वाह यार, कल तुम लोगों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए।"

" भाई लेकिन तुम सुबह तक लौट आए,मुझे तो लग रहा था कि बॉर्डर पार करके तुम कहीं दूर तक ना निकल गए हो।"

मुस्कुराते हुए विक्रम ने कहा- भाइयों ,बॉर्डर पर ताकत के साथ बुद्धि से भी काम लेना पड़ता है। इसीलिए मैं हमेशा जोश के साथ होश रखता हूं। अब कुछ बातें बॉर्डर पर पहुँचने के बाद राज़ की राज़ ही रहती हैं।

अब सबका ध्यान शांभवी की ओर गया। "हेलो शांभवी, कैसी हैं आप ?आपको यहां देखकर अच्छा लग रहा है।"

शांभवी ने सबके अभिवादन का गर्मजोशी से उत्तर दिया और फिर विक्रम से कहा कि अब वह अपने घर लौट रही है। घर के लोग मेरी राह देख रहे होंगे।कोई भी बात हो तो आप मुझे देर रात तक भी फोन या मैसेज कर सकते हैं।अभी मैं चलती हूँ। शांभवी ने एक बार हाथ हिलाकर सभी का अभिवादन किया और बाहर निकलने के लिए दरवाजे की ओर बढ़ी।

(क्रमशः)

योगेंद्र

(आखिर मेजर विक्रम क्या कहना चाहते थे शांभवी से? यह जानने के लिए कृपया पढ़िए इस धारावाहिक का अगला भाग शीघ्र ही।)

(यह एक काल्पनिक कहानी है किसी व्यक्ति,समुदाय,घटना,संस्था,स्थान आदि से अगर कोई समानता हो,तो वह संयोग मात्र है।)