लघुकथा- अक्स बरक्स
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"अरे शीलू क्या कर रही है घर पर, तू बोर नहीं होती, आ बैठते हैं बात करते हैं ! मैं तो पूरा दिन घर पर बोर ही हो जाती हूँ!" फोन पर रमीला ने शीलू से कहा।
शीलू ने प्रतिउत्तर में कहा, " नहीं यार ! घर पर कोई कैसे बोर हो सकता है ! खोजो तो घर में दिनभर कोई न कोई काम निकल ही आता है।"
"अच्छा ! खाने बनाने, कपड़े धोने और सोने के अलावा तेरे पास काम ही क्या है?" रमीला ने मुँह बनाते हुए आगे कहा, "बाकी कामों के लिए तो तूने मेड रखी हुई है।"
"हाँ ये तो है! मेड अपना काम करती है मैं अपना ! और फिर तू तो जानती है मेरे सास ससुर भी मेरे साथ ही रहते हैं मुझे उनकी देखभाल करनी पड़ती है। ऊपर से आजकल तो ठंड भीबहुत है तो और अधिक ही ध्यान रखना पड़ता है। पिताजी को श्वास की बीमारी है और माता जी को गठिया बढ़ जाता है। " शीलू ने कहा।
"अरे यार तू भी न !" आजकल कौन इन बुड्ढों को साथ रखता है इनको साथ रखने का मतलब अपनी आजादी खत्म! और दिनभर इनकी चाकरी करते रहो! हर कदम पर टोका टाकी करना और बात बात पर अपने जमाने की कहानियाँ सुनाना इन लोगों का पसंदीदा काम होता है। और दिनभर अपनी बेटियों की दुहाई देते रहते हैं सो अलग। कोई भी नया सामान अपने लिए खरीदो तो पहले उनकी बेटी के लिए खरीदो। भला बताओ किसके पास इतना पैसा होता है कि बेवजह बर्बाद करता रहे। अपने लिए तो कैसे ब्यहि जुगाड़ करके या पति से जिद करके लिया जा सकता है। लेकिन हर बार तो ननद के लिए नहीं ले सकते। न दिलाओ तो ताने सुनो! "
"हाँ कह तो तू सही ही रही है, लेकिन एक बात बता जब तेरे माता पिता की बात आएगी तो क्या तू अपनी भाभी से यही उम्मीद करेगी कि वह तेरे माता पिता को छोड़कर अलग रहने लगे।" शीलू ने नहले पे दहला मारा।
"पागल हो गयी है क्या ?" मेरे मम्मी पापा की जिम्मेदारी तो मेरे भैया भाभी की है वो उन्हें संभाले वरना मैं तो उन्हें कोर्ट में घसीट लूँगी। कोई मजाक है क्या ?" रमीला ने बिफरते हुए कहा।
"क्यों ! गुस्सा आया न! जब बात अपने माता पिता की आयी तो तू इतना भड़क गई । और पति के माता पिता का कोई वजूद नहीं ! जिनके घर में तू रह रही है जिन्होंने अपना बेटा तुझे ख़ुशी से सौंप दिया उनकी कोई कद्र नहीं होनी चाहिए।" शीलू ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
बगल के कमरे बैठे उसके सास ससुर की आँखों में खुशी के आँसू छलक आये।
शाम को पति जब ऑफिस से घर वापस आया तो रमीला ने उससे कहा, "सुनो अगले संडे हम मम्मी पापा के पास चलेंगे बहुत दिन हो गए उनसे मिले हुए।"
"हाँ तो चली जाओ न किसी ने मना किया है क्या ? वैसे भी जब तुम्हारा मन होता है चली ही जाती हो किसी से पूछने की तुम्हे क्या जरूरत?" पति ने बेमन से कहा।
वह बोली, "नहीं निशू इस बार मैं अपने नहीं तुम्हारे मम्मी पापा के पास जाना चाहती हूँ उनसे मिलना चाहती हूँ।"
निशू हैरानी से उसके मुँह को ताकने लगा !
लेखिका
अन्नपूर्णा बाजपेयी
कानपुर