नीलम कुलश्रेष्ठ
वाह ! फ़िल्मी दुनियां ? दूरदर्शन पर दिखा रहे हैं इस शताब्दी के शंहशाह के बेटे की शादी का बेशकीमती आमंत्रण पत्र है।--परत --दर --परत खोलते जाइये --सबसे पहले एक नफ़ीस काग़ज़ पर बच्चन जी की कविता पढ़िये --फिर आमंत्रण पत्र ---लेकिन रुकिये --अभी कहाँ इसके नीचे करीने से सजी मिठाइयाँ भी हैं। हाय ! बड़े ख़ुशनसीब हैं वे लोग जिन्हें गिफ़्ट हैम्परनुमा ये नायब तोहफ़ा मिला है हमसे तो ये ऊँचे --न --न---बेहद ऊँचे लोग हैं, यदि गर्दन उठाकर देखो तो यदि टोपी पहन रक्खी हो तो पाताल में जा गिरे। गर्दन को झटका लग जाये वह अलग। वह यही ख़बर दूरदर्शन पर देख रही है। चैनल बदलो, तब भी यही ख़बर। वह सोफ़े पर बैठी इस ख़बर को बार बार दिलचस्पी से देख रही है। कमरे के बाहर की तरफ़ के मुख्य दरवाज़े का पर्दा हटा हुआ है। पति ने दरवाज़े में डाक के आने के लिये एक लम्बी स्लिट कटवाई हुई है। बाहर की तरफ़ उसे टीन के कवर से ढक रक्खा है जिससे पोस्टमैन आराम से उसमें से पत्रिकाएं अंदर डाल सके।
उसकी उड़ती हुई नज़र उस स्लिट पर गई। बाहर से एक बच्चे ने उंगली से वह स्लिट हटाकर अपनी दोनों आँखें वहां गढ़ा दीं हैं। वो आंख्ने उसके ड्राइंग रूम का जायज़ा ले रहीं हैं --सोफ़े, कार्पेट या किसी कलाकृति पर फिसल रहीं हैं। वह इन आँखों को पहचानती है, ये ऑंखें हैं कॉलोनी के पास वाली झोपड़पट्टी या सड़क पर रेन बसेरा बनाये मज़दूर के किसी बच्चे की। जो फटेहाल है कपड़ों में, धूल से सने बालों से कॉलोनी में भीख मांगने आते रहते हैं। दोपहर के समय इन्हें खाना भी मिल जाता है। कुछ डांटकर भगा देते हैं ? उसे आश्चर्य है ये आँखें बोल क्यों नहीं रहीं ? वो चुपचाप उसके ड्राइंगरूम की सजावट का मुआयना कर रहीं हैं जैसे वह टी वी स्क्रीन पर दिखाई जाने वाली भव्य शादी की योजना का।
कुछ मिनट निरीक्षण करने के बाद दो तीन बच्चे दरवाज़ा पीटना शुरू कर देते हैं। 'आंटी कुछ खाने को दो न। "स्क्रीन पर जकड़ा मन उठना नहीं चाहता लेकिन यदि इनकी बात नहीं सुनी तो ये शोर मचता रहेगा। उसने पर्स में से कुछ सिक्के निकाले और दरवाज़ा खोल कर उन तीन बच्चों में बाँट दिये, "अभी हमारा खाना नहीं बना है। बाजू की दुकान से कुछ ख़रीदकर खा लो। "
"हमें प्यास लगी है, पानी तो पीला दो। "
दिल टी वी की तरफ़ खिंच रहा है उस शादी में अनेक बड़े फ़िल्मी सितारे, राजाध्यक्ष शामिल हो रहे हैं। कौन जाने इस रईसी शादी का कितना ब्यौरा देखने से छूटता जा रहा है। वह इन बच्चों के लिये अलग रक्खे जग में पानी ले आती है .सबसे छोटा लड़का अपनी नाक सुड़कता है, फिर उसे कमीज की बाँह से पोंछता है। फिर हाथ की ओक बनाकर पानी पीता है। पानी पीकर तृप्त होकर फिर कमीज से गीले होंठ पोंछता है। कुछ सोचते हुये उसकी आँखें आश्चर्य से फटी रह जातीं हैं, "तुम्हारे यहां नल भी है ?"
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नीलम कुलश्रेष्ठ
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