Han, Main bhagi hui stri hun - 19 in Hindi Fiction Stories by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग उन्नीस)

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हाँ, मैं भागी हुई स्त्री हूँ - (भाग उन्नीस)

रिसोर्ट में बड़ी भीड़ थी।बेटे ने कहा था कि वह जाते समय मुझे ले लेगा पर वह नहीं आया था।जबकि रिसार्ट मेरे घर की रूट पर ही था।अब देर शाम को अंधेरे में मेरा अकेले रिसोर्ट जाना सम्भव नहीं था।अभी आँखों के लिए मुझे सावधानी बरतनी पड़ रही थी।पड़ोसिनों ने मुझसे कहा कि बेटे ने बुलाया है तो मुझे जाना चाहिए।आखिरकार मैंने बेटे को फोन किया तो उसने बताया कि वह पत्नी सहित रिसोर्ट जल्दी आ गया। तैयारी करनी थी और गेस्ट भी आने लगे थे ।आप ऑटो करके आ जाइये।आपके घर से सीधी रूट पर ही है।जीचाहा कि साफ मना कर दूं ,पर न जाती तो उन्हें बुरा लगता ।आखिरकार रिसोर्ट पहुँची तो देखा उसके सारे गेस्ट आ चुके हैं।रिसोर्ट में तीसरे माले पर क्लब था,जिसकी प्रवेश फीस पर व्यक्ति दो हजार थी।कुल पच्चीस लोग थे।यानी एंट्री फीस ही पचास हजार लगने थे। बेटे ने कहा कि कोई बात नहीं ,मेरी तो एक ही बेटी है।सही कह रहा था बेटा माँ तो कई होती है न!
मुझे याद आ रहा था कि किस तरह पैसे की कमी के कारण मैंने आँखों ने सस्ता लेंस डलवाया।पांच -दस हजार के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े।मैंने बेटे से बताया था कि ऑपरेशन के लिए एक- दो लोग चंदा देने को कह रहे हैं।तब वह चुप रहा ।मैं अपेक्षा कर रही थी कि वह कहे कि दो -दो कमाऊ बेटों के रहते आपको चंदा क्यों लेना पड़ेगा?हाँ,उसने यह जरूर कहा कि नेपाल के किसी खैराती अस्पताल में नाममात्र के खर्च पर ऑपरेशन हो जाता है।वहीं किसी के साथ चली जाइए।
मैं खून का घूंट पीकर रह गई थी।आज वही बेटा सिर्फ इंट्री फीस पचास हजार दे रहा है।मैं चुप रही पर मन तो दुख ही रहा था।क्लब क्या एक हुक्का -बार था।उसका बहुत बड़ा हॉल था ।जिसमें एक तरफ डीजे प्लेटफार्म बना था।जिस नशे में मत्त युवा थिरक रहे थे।कान फोडू संगीत था। दूसरी तरफ एक खुला बार था।शीशे की चमचमाती आलमारियों में तरह तरह की कीमती शराब थी।सिगरेट और हुक्के के धुएं से पूरा हॉल भरा हुआ था। जगह -जगह अपनी रिजर्ब सीटों पर बैठे लड़के-लड़कियाँ सिगरेट शराब या हुक्का पी रहे थे।कहीं -कहीं तो चार -पांच लड़कों के बीच एक ही लड़की थी।नशे की खुमारी चढ़ती तो वे डीजे प्लेटफार्म पर जाकर थिरकने लगते।फिल्मी स्टाइल में रोशनी की तोपें चल रही थीं।कौन हैं ये युवा.....?रोजगार के लिए संघर्ष करते युवा तो ये हो नहीं सकते।इतने महंगे रिसोर्ट में कीमती शराब, सिगरेट और हुक्के का खर्च साधारण युवा नहीं उठा सकता।
जरूर ये अमीर बाप की बिगड़ी औलादें होंगी।
बेटे की अपनी और चचेरी चार सालियाँ अपने -अपने पति और बच्चों के साथ आई थीं।उसकी सास और साला भी साथ थे।सभी सालियाँ और उसकी पत्नी घुटने से ऊपर तक की मॉर्डन ड्रेस पहने हुईं थीं और डीजे की तेज धुन पर नाच रही थी।सभी कमसीन,छरहरी और सुंदर थीं।बेटा सभी पुरूष रिश्तेदारों के साथ बार के काउंटर पर खड़ा होकर महंगी शराब खरीद रहा था। फिर उसने सालियों और बीबी को शराब की ग्लास थमाई।मुझसे भी पीने के सम्बंध में पूछा।मेरे मना करने पर उसने मुझे कोल्ड ड्रिंक लाकर दी।शराब पीने के बाद सभी डीजे पर चले गए और 'अभी तो पार्टी शुरू हुई है' जैसे भड़कीले गानों पर नाचने लगे।डीजे के तेज शोर से मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।ब्ल्डप्रेशर की मरीज हूँ इसलिए या फिर इसलिए कि पहली बार ऐसे क्लब..ऐसी पार्टी में आई थी। वे सभी मेरे सामने खुद को मॉर्डन दिखा रहे थे।
मैं सोच रही थी कि क्या मार्डन होने की यही पहचान है?क्या नंगापन,फैशन,नशा,फिजूलखर्ची,दिखावा मॉर्डन होना है।
इनमें से कोई भी न तो मेरे इतना शिक्षित है न किसी क्षेत्र में मशहूर। विचारशील तो बिल्कुल भी नहीं ।सभी विचारों से लकीर के फकीर हैं।बेटा चार- चार सालियों के साथ नाचकर खुश है।उसकी सास मेरे पास ही बैठी बच्ची की देखभाल कर रही है। बच्ची पूरे समय सोती रही।बारह बजे रात को केक कटिंग होगी।अभी आठ बजे हैं।जी घबरा रहा है।घर दूर है और रात को अकेली घर लौट भी नहीं सकती।वरना यहाँ से भाग जाने का मन कर रहा है।आखिर मैंने बेटे की सास से उस हॉल के बाहर खुली हवा में चलने को कहा।हॉल के बाहर खुले में भी बैठने की व्यवस्था थी,पर वहाँ की सीटें भी रिजर्ब थीं।मुश्किल से एक कोने की मेज खाली मिली।उसी के सोफे पर हम दोनों बैठ गईं।खुली हवा में बैठने से जान में जान आई थी।
बेटे की सास लंबी ,छरहरी और सुंदर महिला हैं।उम्र यही कोई पचास साल की होगी।दो साल पहले ही पति की मृत्यु हुई है।पति एक नम्बर का शराबी था और कोई काम भी नहीं करता था।संयुक्त परिवार के कारण गुजर- बसर हो जा रही थी।तीन बेटियां और एक बेटा है।सबकी शादी हो चुकी है।मेरा बेटा उनका बड़ा दामाद है और अब उनकी ज्यादातर जिम्मेदारी वही निभा रहा है।वही सरकारी नौकरी में है और पत्नी के दबाव में भी।उसकी पत्नी का झुकाव मायके के प्रति बहुत ज्यादा है।हमेशा कोई न कोई उसके घर पड़ा रहता है।सास को वह सारी तीर्थयात्राएं करा चुका है।उसके हर टूर में ससुराल का एक या दो या फिर सभी सदस्य शामिल रहते हैं।उनको देखकर ऐसा लगता है कि बेटे से बेटियाँ अच्छी होती हैं।मेरा बेटा अपनी जननी की कद्र नहीं करता और उसकी पत्नी अपनी माँ पर जान देती है।
बेटे से कोई इस बाबत सवाल करे तो उसका यही उत्तर होगा कि सबकी माँ भागी हुई स्त्री नहीं होती।यानी हर जिम्मेदारी की बात पर उसके पास एक ही धारदार हथियार है,जिसके भय से चुप रहकर सब सह जाना ही मेरे पास एकमात्र विकल्प बचता है।