The MAGIC SHOW in Hindi Fiction Stories by Dave Vedant H. books and stories PDF | The MAGIC SHOW

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The MAGIC SHOW

मंडप सज गया. कुलदेवी माँ का आशिर्वाद ले लिया. जान को बिदाई के वखत दी जानेवाली भेट दे दी गई. रिश्तेदारों ने एकदूसरे को प्यार से गले लगा दिया. वरवधू गाड़े में बैठ गये.

......और जान आगे निकली.


......और मेजीशियन मीर ने जादू के खेल छेड़े. मेजीशियन मीर गाव का इकलोता जादूगर था. वो अपना गुजरान गाव में और आसपास के शहेरों में जादू दिखाकर चलाता था. बड़ा ही मशहूर था ‘मीर मेजीशियन’ और बड़ा ही मज़ेदार उसका The MAGIC SHOW. गाव में अगर किसी की भी शादी होती थी तो मीर का MAGIC SHOW तो पहली जरुरत मानो समजी जाती. बच्चों में बड़ा प्रिय था मीर, तो शादी में बच्चों का दिल बहेलाने मीर खुशीखुशी छोटेमोटे जादू के खेल दिखा देता ओर जो भी दाद मिले उसे दिल से स्विकारता.


गीतो के सूर ज्यादा मज़ेदार थे या शहेनाई के सूर या तो फिर मीर का जादू, ये तय कर पाना बारातियों के लिए मुश्किल बना रहा. मीर ने जादू तो एसा चलाया था की वर के पिता भी उसके मज़े में दाद देना भूल गये. आखिर में जब वर के पिता का हाथ थेली में गया और मीर के हाथ में पाई पड़ी तब जाके जान कुछ आगे निकली.


मीर के जादू ने तो पूरे बाजार को जगा दिया था. सारे व्यापारी सब काम छोड़कर जान को और खास कर मीर के जादू को देखने दुकानों के बहार आ खड़े हो गये. मेजीशियन मीर अपने MAGIC SHOW वाले कपड़ो में ही तैयार होकर शादी में आता और सब का ध्यान अपनी ओर खींच जाता.

हर घडी मीर अपने जादू में ओर अंदर ही अंदर उतरता जाने लगता. एकबार मीर अपना जादू दिखाना शुरू करता तो समय और जगह का भान बिलकुल ही भूल जाता. पर दूर किसी दूसरे गाव से अपने लडके की शादी कराने आये तुलसीदास भाई को ये बात की ख़बर कहा. उन्होंने मीर को दाद के पैसो का लालचु गिनाकर पावली फेंककर आगे बढ़ने की जल्दी होने के कारन मीर को आदेश देते हुए कहा की,

“ चलो मीर, जल्दी से अब आगे चलो.”

पर जादू की उस दुनिया में खोये हुए मीर को सुनने की फुरसत ही कहां थी. मीर उसके जादू में डूबा ही जा रहा था और उसीमें समय बिगड़ा जा रहा था. तुलसीदास को मन ही मन खचकाट हो रही थी की इसी गति से आगे बढे तो घर पहोंचते तो साम हो जायेगी और फिर होराजी की बत्ती मंगानी पड़ेगी. उस महेंगी बत्ती से तो अच्छा है की ईस जादूगर को एक-दो पाई ज्यादा देकर समय बचालुं. पर जादू में डूबे मीर को तो पैसे गिनने की फुरसत ही कहां थी!! उसी के चलते ढ़ोली ने मीर के सारे दादवाले सिक्के जमीन पर से उठा लिये.

आख़िरकार तुलसीदास ने मीर को धक्का मारकर ताना दिया, “अब निकलना भाई, चलना आगे बढ़ना, एसे डग और पग दाद लेने खड़ा हो जायेगा तो किस दिन जान को जगह पे पहोंचायेगा ?”

तब जाके मीर को कुछ भान हुआ और जान आगे निकली.


मीर आगे तो बढ़ा पर उसका दिमाग और दिल बिलकुल दो दायके पीछे चला गया. बीस साल पहेले एसी ही एक ढ़लती दोपहर को मीर ने गाव की ही एक लड़की सकीना की शादी में अपना MAGIC SHOW दिखाया था और मीर की ही बेटी नज़राना का वो आखरी MAGIC SHOW बनकर रह गया था.

मीर एक ही जादू बारबार दिखा रहा था, अटक ही नहीं रहा था. वास्तव में वो जादू नज़राना का सबसे पसंदीदा जादू था. बच्चे बेचारे समज नहीं पा रहे थे मीर का ये बर्ताव, बस सुन रहकर देखे ही जा रहे थे. मीर को अचानक से नज़राना की याद आने की वजह शायद यह भी थी की जब उसने नज़राना का वो सबसे पसंदीदा जादू दिखाना शुरू किया तब एक बिलकुल नज़राना जेसी छोटी सी बच्ची ख़ुशी से मानों ज़ुमने लगी और मीर को उस बच्ची में अपनी छोटी सी गुड़िया, नज़राना मानों की जैसे वापस मिल गयी.


बिलकुल जवानी में घरभंग हुए मीर को दो साल की एक बच्ची की माँ बनना पड़ा था. मीर को ईस दुनिया में केवल दो ही चीजों से दिललगी थी : एक तो उसका MAGIC SHOW और दूसरी नज़राना. उसने नज़राना को सगी माँ से भी ज्यादा लाड़ से पाला था. नज़राना काख़ में बैठने जितनी हुई तब तक मीर उसे चोबीस घंटे अपने साथ ही घुमाता. किसी की भी शादी में जाना हो या कोई जगह MAGIC SHOW हो, नज़राना को अपने साथ ही रखता. छोटी सी नज़राना मानों पिता के गले में हाथ लपेटकर पीठ पर लगी हो.

अपने जादू के बहेतरीन खेलों और नज़राना की हाज़री में मीर खुद को ईस दुनिया का सबसे बड़ा जादूगर समजता. वो बस यू ही जादू के खेल दिखाता रहेता, अपनी नन्ही सी नज़राना को रिज़ाने. वो सपनों के सहारे अपना जीवन जीता और जादू से अपने सपनें साकार करता.

मीर को उसके सबसे पसंदीदा जादू - खुद नज़राना को उतनी जल्दी खो देना पड़ेगा, उस बात से बेचारा बिलकुल अन्जान था. एक दिन की बात है, नज़राना बड़ी बीमार हो गयी थी और उसी दिन मीर के करीबी दोस्त की बेटी सकीना की शादी में मीर को अपना MAGIC SHOW दिखाना था. बड़े ही भार से भरे हृदय के साथ केवल सकीना की खुशी के लिए वो नज़राना को बीमार हालात में ही अपने साथ ले गया. उस दिन सकीना की बिदाई तो सिर्फ़ अपने घर से हुई पर मीर की नज़राना ने तो ईस दुनिया से ही रुक्सत ले ली.

नज़राना के एसे अकाल मृत्यु से मीर ने बेटी और ही और पत्नी, दोनों के देहविलय का दुगना वियोग सहा था. दिनों तक वो चुप सा हो गया था. मानों जैसे पागल ही हो गया था. उसकी एसी बिगड़ी बिख़री हालत देखकर लोग कहेते थे की, ‘ जादूगर नी डागणी चसकी गई छे.’ ( मतलब ‘पागल हो जाना.’ गुजराती में बोले जानेवाली एक कहावत. )


पीपल के पेड़ के पास गाड़ा अटका. वैसे तो ये पेड़ गाव की कई कन्याओकी बिदाई का साक्षी बन चुका है. मीर खुद ही एसी अनगिनत शादी में अपने छोटेमोटे जादू के खेल दिखा चुका है. लेकिन आज की ये बिदाई जरा अलग ही थी. आज जादू के खेल दिखानेवाला ‘The MAGIC SHOW’ का मशहूर मेजीशियन मीर नहीं था बल्कि बीस साल पहेले नज़राना को ईस दुनिया से अलविदा कहनार एक लड़की का बाप था.

लड़की को लेकर जटपट घर जाने की जल्दी में दुल्हेराजा और उसका बाप काफी उतावले हो रहे थे. आखिर उन्होंने अपनी भड़ास लड़की के पिता के समक्ष रखी,

“ ये आपका मेजीशियन तो बड़ा ही लालची लगता है!! इतनी दाद मील गयी है फिर भी संतोष नहीं रख रहा. हमे तो घर पहोंचते लगता है जैसे सूरज डूब जायेगा. “

उनकी फ़रियाद सुनकर लड़की के पिता तुरंत मीर के पास जा पहोंचे और जोर से बोलने लगे,

“ अरे मीर ज़नाब, इतने भूखे कबसे हो गये ? इतनी अच्छी खासी तो दाद मिल गयी फिर भी मन नहीं भरा आपका. “

पर मीर तो वो ही नज़राना के पसंदीदा जादू में अटका हुआ था तो कुछ सुन कैसे पायेगा ?


अब दुल्हेराजा के बाप का मिजाज हटा और उन्होंने दाद के तौर पर फेंके गये सिक्के को जमीन पर से उठाकर मीर की मुठ्ठी में रखे और उसे रास्ता देने कहा. मीर आगे बढ़ा तो सही, पर खुद के घर-गाव के – मारग पे नहीं, सीम के रास्ते पर.

“ अरे जाने दो उसे जीधर जाना हो. थक जायेगा तो अपनेआप वापस आ जायेगा. “ सीम की तरफ निकले मीर को देखकर दुल्हेराजा का बाप बोला.

और फिर, लड़की-लडके के पिताजी एकदूसरे को गले लगे और जान ने अपना रास्ता लिया.

मीर अभी भी अपनी ही धून में जान के आगे चले जा रहा था. पीछे पादर में खड़े लोग उसे पागल मानकर उसकी मज़ाक बना रहें थे.

मीर को जरा भी पता नहीं था की वो कहां, किस दिशा में जा रहा है. वो बिलकुल सुन सा हो गया था.

अब तो जान के महेमानों ने भी मीर की मज़ाक उडाना शुरू कर दिया,

“ कितना लालची इंसान है. इतने पैसे दाद में मिले फिर भी न जाने और कितने हड़पने है. “

“ दिखाने दो वोही एक जादू.......कर कर के दिमाग अटकेगा तब रुक जायेगा अपनेआप. “


पर मीर आखिर तक गया नहीं. बीच में कब्रस्तान आया के तुरंत ही उसके पैर रुक गये. मेजीशियन मीर की नज़र के सामने, उसके वो ही जादू पे खुशी से एकदम मस्त बनकर उछल कुद कर रही वह बच्ची नहीं पर नज़राना पसार हो रही थी. तुरंत ही उसका हाथ उसके कोट के पॉकेट में गया. रास्ते में दुल्हेराजा के बाप ने धूल में से जो पैसे जबरजस्ती मीर के हाथ में थामे थे, वो उसके हाथ आये. देखा तो वाकई में अच्छे खासे सिक्के दाद में मिल चूके थे.

मीर तो राज़ी राज़ी हो गया. खुशी से एकदम वह छोटी बच्ची के पास गया और बोला :

“ ले नज़राना!! ये तुम्हें तौफे में नज़र करता हूं. “

और उस रकम का स्विकार या तिरस्कार हो उससे पहेले ही मीर कब्रस्तान में दाखिल हो गया. उस वक़्त उसकी आँखों में सिर्फ नज़राना का कफ़न दिखाई दे रहा था.

ये जादूगर का एसा विचीत्र व्यवहार देखकर फिर से उसकी बातें करके जान के लोग आगे निकले.


दिन के ढ़लते मेजीशियन मीर ने नज़राना की कबर के सामने अपना ‘The MAGIC SHOW’ शुरू किया. वो गमगीन वातावरण उस MAGIC SHOW का साक्षी बना.

पर बतकिस्मती से वो मीर का आखरी MAGIC SHOW था. उसके बाद वो जादूगर और उसके जादू के खेल, लोगों को कभी देखने नहीं मिले.