Anuthi Pahal - 19 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | अनूठी पहल - 19

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अनूठी पहल - 19

- 19 -

बी.ए. (अंतिम वर्ष) का परिणाम पार्वती के तेरहवाँ से एक दिन पहले आने के कारण विद्या के यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर भी घर में कोई बहुत ख़ुशी न मनाई जा सकी थी। तेरहवाँ होने के अगले दिन कॉलेज वालों ने विद्या के सम्मान में मण्डी भर में जलूस निकाला। खुली जीप में प्रिंसिपल और प्रभुदास को बिठाया गया और विद्या उनके पीछे खड़ी हुई। जीप के आगे बैंड था और पीछे कॉलेज की अन्य प्राध्यापिकाएँ तथा छात्राएँ थीं। छात्राओं के हाथों में ‘प्लैकार्डस’ थे, जिनपर  लिखा था - ‘विद्या, हमारे कॉलेज की शान’, ‘विद्या, हमें तुम पर गर्व है’, ‘विद्या, तुम हमारी प्रेरणा हो’। यह जलूस जब प्रभुदास की दुकान के आगे से गुजर रहा था तो पवन ने जलूस में सम्मिलित सभी को दो-दो लड्डुओं के लिफ़ाफ़े दिए। रामरतन की दुकान के बाहर मीठे-ठंडे पानी की व्यवस्था की गई थी।

……..

रात को खाने के उपरान्त प्रभुदास ने विद्या को बुलाया और पूछा - ‘बेटे, मुझे तुझ पर गर्व महसूस हो रहा है। यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान पाकर तुमने लड़कियों के लिए कॉलेज खोलने के मेरे निर्णय को सही सिद्ध कर दिया है। …. अब क्या विचार है बेटे?’

‘पापा, मैं हिन्दी में एम.ए. करने के लिए चण्डीगढ़ जाने की सोच रही हूँ।’

दीपक जो पास ही बैठा था, बोल उठा - ‘विद्या, हिन्दी का क्या फ्यूचर है? एम.ए. ही करनी है तो इंग्लिश में कर या कंपीटिशन की तैयारी कर।’

‘भइया, तुमने प्राकृतिक ढंग से खेती करके नाम कमाया है तो क्या मैं अपनी राजभाषा में एम.ए. करके कुछ नहीं कर सकती? दूसरी बात, हिन्दी में एम.ए. करते हुए भी मैं एच.सी.एस. की तैयारी करूँगी और जब भी परीक्षा होगी तो अवश्य चांस लूँगी।’

प्रभुदास - ‘दीपक बेटे, तूने खेती अपने ढंग से करनी चाही, मैंने रोका नहीं। रिज़ल्ट हमारे सामने है। विद्या को भी मन-मुताबिक़ पढ़ने दो, यह भी अपने लक्ष्य को अवश्य हासिल करेगी।’

विद्या - ‘पापा, आपकी यही सोच यदि हर माँ-बाप की हो जाए तो बच्चों के मन-मस्तिष्क से बहुत बड़ा बोझ उतर जाए। आजकल अधिकतर माँ-बाप बच्चों को अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम समझते हैं और उनसे बहुत अपेक्षा रखते हैं, इसलिए स्वाभाविक प्रतिभा दब जाती है और मानसिक तनाव में बच्चे अपना शत-प्रतिशत पढ़ाई को नहीं दे पाते। परिणाम क्या होता है, बच्चे या तो ग़लत रास्ते अपना लेते हैं जैसा राजीव भइया के साथ हुआ या मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।’

‘विद्या, तुम ठीक कह रही हो। जो तुम्हें ठीक लगे बेटा, वही तुम करो। ….. दीपक, तुम कब वापस जा रहे हो?’

दीपक - ‘प्रीति का मन मम्मी-पापा से मिलने का है। कल हम जाएँगे, वहीं से हम उधर निकल लेंगे।’

‘खेती की क्या पोज़ीशन है?’

‘नरमे की बुआई मैं करवा आया था। जाने के बाद सब्ज़ियों में मूली, गाजर, गोभी और पालक लगाना है।’

‘दीपक, ज़मीन का थोड़ा टुकड़ा अगर दालों के लिए तैयार कर लें तो बिना रासायनिक खादों की दालों की भी अच्छी माँग हो सकती है।’

‘पापा, आपका सुझाव बढ़िया है। नरमे की फसल के बाद मैं इस दिशा में भी काम करूँगा।’

‘प्रीति का मन लग गया है वहाँ?’

‘हाँ। वह बहुत खुश हैं। हम दोनों भी सुबह से शाम तक खेत में कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। इससे समय बीतने का पता ही नहीं चलता।’

‘बेटे, तुम सदा ख़ुश रहो, हम तो यही चाहते हैं। मैं और तेरी माँ भी किसी वक्त दो-चार दिन के लिए आएँगे।’

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