Hotel Haunted - 26 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 26

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 26

शाम के 5:00 बज रहे थे राजीव उसी बेड पर पड़ा हुआ था तभी उसका फोन बजा, फोन को उसने अपने कान से लगाया "ओक मैं बस पहुंचता हूं।" इतना कहने के बाद उसने फोन वहीं पर छोड़ कर अपने घर से निकल गया। दूसरी तरफ हॉस्पिटल में पिछले कई दिनों से बेहोश पड़े हुए पाटिल को अचानक होश आया और वह तुरंत ही अपने स्ट्रक्चर पर बैठ गया, उसके सर में दर्द हो रहा था जिसकी वजह से उसने कराहते हुए अपने सर को पकड़ लिया।

उसे अचानक उस भयानक रात की याद आ गई जिस रात उसके साथ यह हादसा हुआ था उस रात के बारे में सोच कर उसकी सांसे तेज होने लगी उसने जल्दी से उसने अपने हाथ पर लगी निडर और सारी चीजें निकाली और तेजी से चलता हुआ हॉस्पिटल के बाहर निकल गया जैसे उसको कहीं जाने की बहुत जल्दी थी

होटल में....

"यह तो होना ही था पिछले हफ्ते हुई घटना के बाद हम इस चीज को नजरअंदाज नहीं कर सकते एक साथ 16 लोग अचानक से एक रात को बुरी तरह से मारे जाते हैं, जिनमें यहां घूमने आए कपल्स के अलावा आपके स्टाफ के कुछ लोग भी थे क्या आप लोगों को जरा सा भी तरस नहीं आता कि यहां मासूम लोगों की जान जा रही है और आप सबको अपनी लालच की पड़ी है।" राजीव के सामने खड़े इंस्पेक्टर मोहित ने गुस्से में यह बात कही।

"ऐसे हादसों के चलते आप इस होटल को नहीं चला सकते इसलिए आपके होटल की कहानी यहीं पर खत्म होती है।"इतना कहते हुए उसने राजीव क्या हाथ में पेपर्स थमा दिए और निकुंज को घूरते हुए मोहित वहां से निकल गया।

राजीव उन पेपर्स को हाथ में पकड़े वही खड़े-खड़े देखता रहता है। उसका सपना यह रिसोर्ट था,पर अब वह सपना इन हाथ पर रखे पन्नों में खत्म हो चुका था। वह इधर उधर अपनी नज़र घुमाते हुए होटल को देखता रहता है, जैसे आज के बाद वह यहां कभी नहीं आने वाला। "क्या नहीं किया मैंने इस होटल को मशहूर बनाने के लिए,मैंने हर एक मुमकिन कोशिश कर ली और आज अचानक कोई भी आकर इस होटल को बंद करने का फैसला कैसे ले सकता है?"यह बात उसने गुस्से में चिल्लाते हुए कई जो उस खाली पड़े जगह में गूंज रही थी।

निकुंज बोलता है "सर हम इंसान का एक दायरा है, जिसे हम कभी पार नहीं कर सकते,हर चीजों पर हमारा कंट्रोल नहीं रहता अक्सर जो चीज हम चाहते हैं वह हमें नहीं मिलती फिर चाहे हम उसके लिए कितनी भी ताकत लगा दे, पर हम वक्त और हालात के आगे मजबूर हो जाते हैं।यह वक्त ही है जो इंसान को मजबूत और मजबूर दोनों बना सकता है।" निकुंज ने आवाज इतनी अजीब तरीके से कही कि राजीव उसको देखता रहता है।"

निकुंज ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा "सर अब हम चाहे तो भी कुछ भी नहीं कर सकते इसलिए अफसोस करने का कोई फायदा नहीं है,आज इस रिसोर्ट में हमारा आखरी दिन है उसके बाद तो हम यहां कभी नहीं आ पाएंगे, वैसे भी मैंरी इस रिजॉर्ट से बहुत सी यादें जुड़ी है तो क्यों ना ये आखिरी रात इस होटेल में बिताए।" यह बात उसने ऊपर लटकते हुए झूमर की ओर देखकर कहीं।

"नहीं मैं बस अब घर जाना चाहता हूं इन सब चीजों की वजह से बहुत परेशान हो चुका हूं और सर में दर्द भी हो रहा है।" इतना कहते हुए वह गेट की तरफ जाने लगता है तभी पानी की बड़ी-बड़ी बूंदों के साथ बरसात शुरू हो जाती है और देखते ही देखते पूरी जगह पानी में भीगने लगती है। राजीव बाहर देखते हुए कहता है "क्या मुसीबत है अचानक यह बारिश कैसे शुरू हो गई?"

निकुंज ने राजीव की ओर बढ़ते हुए कहा "यहां का मौसम ही ऐसा है कब पलट जाए कह नहीं सकते।" पर राजीव ने उसकी बात नहीं सुनी, निकुंज चलते हुए राजीव के सामने आ गया और उसकी आंखों में देखते हुए कहा "अब तो आप रुकेंगे ना?" राजीव ने निकुंज का चेहरा देखा तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी इसीलिए उसने अपनी गर्दन हां में हिला दी।

"तो फिर आज की आखिरी रात आपकी जिंदगी के नाम" निकुंज ने अपनी इस बात को अजीब सी आवाज में कहीं की राजीव उसको देखता ही रह गया, उसको एक अनजाना सा डर भी सता रहा था। "क्या मतलब है तुम्हारा?" राजीव ने घबराते हुए निकुंज से कहा। निकुंज ने एक शराब की बोतल निकाली और उसको गिलास में भरते हुए कहा "मैं तो बस इतना कहना चाहता था कि हम तो सिर्फ वक्त के हाथों की कटपुतली है, हमारी जिंदगी की डोर भी उसी के हाथों में है इसीलिए शायद इस वक्त की जो वह चाहता है वही हो रहा है।"

राजीव को निकुंज की कोई भी बात समझ में नहीं आ रही थी, वह उसके चेहरे को देखकर हैरान था क्योंकि रिसोर्ट के बंद होने की खबर से उसके चेहरे पर कोई भी शिकन नजर नहीं आ रही थी बल्कि निकुंज के चेहरे की वह अजीब मुस्कान कब से राजीव को डर का एहसास दिला रही थी। निकुंज इस वक्त अपना गिलास पकड़े हुए पीछे मुड़कर खड़ा था।

"वैसे तो सर इस होटल को लेकर आपकी वफादारी के बारे में मैं कुछ भी नहीं कह सकता क्योंकि इस होटल के लिए आपने अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ जो किया उसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए" निकुंज की यह बात सुनकर राजीव की आंखें बिल्कुल खुली रह गई, जैसे उसकी बीती जिंदगी के कुछ पल उसकी आंखों के सामने आ गए हो, जिसे वह बिल्कुल याद नहीं करना चाहता था। उसके हाथ से गिलास छूटता है और जमीन पर गिर कर टूट जाता है।

"क्या...!?क्या कहना चाहते हो तुम? मेरा कौन सा दोस्त?" राजीव घबराते हुए बोलता है। निकुंज अब पीछे मुडता है और चलते हुए उसके पास आता है, वह उसके बिल्कुल मुंह के पास जाते हुए कहता है "आप अच्छी तरह से जानते हैं मैं किसकी बात कर रहा हूं।"
"पर कैसे तुम्हें इन सब बातों के बारे में कैसे पता?"

इस बार निकुंज राजीव के कान के पास जाते हुए भारी आवाज में कहता है "क्योंकि मैं शुरू से ही इस कहानी का एक अहम हिस्सा रहा हूं।" इतना बोलते हुए निकुंज जोर से हंसने लगता है उसकी वह हंसी पूरे होटल में गूंजने लगती है, राजीव को अब बहुत डर लग रहा था इसलिए वह पीछे मुड़कर जल्दी से दौड़ते हुए होटल के गेट की ओर भागने लगता है।

वह भी थोड़ी दूर ही पहुंचा था कि तभी निकुंज शराब की बोतल उठाता है और अपनी पूरी ताकत से राजीव की ओर फेकता है जो राजीव के सर से टकराकर टूट जाती है। राजीव जमीन पर गिर जाता हैं,वह अपने सर को पकड़ कर कराह रहा था। निकुंज दूसरी बॉटल निकालकर जैसे ही वार करने वाला था कि तभी पीछे से गोली चलने की आवाज सुनाई देती है और वह गोली जाकर सीधा निकुंज के सीने में घुस जाती है।

निकुंज के हाथ से वह बोतल टूट कर नीचे गिर जाती है तभी पीछे खड़ा हुआ शख्स दो और गोलियां चलाता है, जो निकुंज को लग जाती है और वह जमीन पर गिर जाता है। उसके शरीर में से खून निकलते हुए जमीन पर फैलने लगता है। राजीव चौंकते हुए पीछे मुड़कर देखता है तो पाटिल अपने हाथ में सर्विस रिवाल्वर लेकर खड़ा हुआ था जो पूरी तरह से भीगा हुआ था।

वह राजीव के पास चलते हुए आता है और उसको सहारा देखकर खड़ा करता है। "पाटिल अच्छा हुआ तुम आ गए वरना निकुंज तो मेरी जान ही ले लेता।" पाटिल राजीव की ओर देखते हुए कहता है "आपको टेंशन लेने की जरूरत नहीं है राजीव सर, जिस रात उन सब की मौत हुई तभी मैंने निकुंज को रिपोर्टर नीलेश का खून करते हुए देख लिया था पर उस रात उसने मुझ पर भी हमला करके मुझे मारने की कोशिश की पर मैं बच गया।"
"मुझे पहले से ही शक था कि जरूर होटल में से ही कोई इन सब मौत को अंजाम दे रहा है इसलिए जयदीप की बॉडी मिलने के बाद,मैंने सुराग ढूंढने के बहाने अपने ऑफीसर्स को भेजकर होटल के सभी स्टाफ के फिंगरप्रिंट निकाल लिए थे और जयदीप की बॉडी पर भी निकुंज के फिंगर प्रिंट थे, आज मैंने निकुंज को उसके अंजाम तक पहुंचा दिया है और सर हमारे पास सबूत भी है, इसलिए आप चिंता मत कीजिए हम कोर्ट से भी बात करेंगे उनसे कहेंगे कि यह जगह हांटेड नहीं है और एक आदमी के हाथ किए गए मर्डर है फिर वह शायद होटल को ओपन करने के लिए मान जाए।"

राजीव पाटिल के चेहरे को देखता रहता है,उसे अब कहीं एक छोटी सी उम्मीद की किरण नजर आ रही थी "चलिए सर मैं आपको घर छोड़ देता हूं"पाटिल राजीव की ओर देखकर कहता है और दोनों होटल के गेट की ओर बढ़ने लगते हैं शाम के 7:00 बज रहे थे इसलिए धीरे-धीरे अंधेरा हो रहा था, बारिश अब थोड़ी कम हो चुकी थी,पर आसमान में अभी भी काले बादल मंडला रहे थे।

वह दोनों अभी बाहर निकलने वाल थे कि तभी होटल का गेट "धमममम्....." की आवाज के साथ अपने आप बंद हो जाता है। अचानक गेट को ऐसे बंद होता हुआ देखकर दोनों डर जाते हैं, पाटिल गेट के हैंडल को पकड़ता है और जोर से खींचता है पर वह फिर भी नहीं खुलता है जैसे उसको किसी ने बाहर से लॉक कर दिया हो।

तभी को शांत पड़े हुए माहौल में एक अजीब सी हसी गूंजती है, जिसे सुनकर दोनों की रूह कांप जाती है, वह जैसे ही पीछे मुड़कर देखते हैं तो निकुंज उनके पीछे खड़ा हुआ था। उसकी आंखें बिल्कुल काली पड़ गई थी, चेहरे पर काली नसें ऊभर आई थी और उसके चेहरे पर वही डरावनी मुस्कुराहट थी।

उसके शरीर में अचानक से वाइब्रेशन शुरू हो जाती है और तीन गोली उड़ते हुए फर्श पर गिरती है। फर्श पर गिरा हुआ उसका खून काला पड़ चुका था, धीरे धीरे वह हिलता हुआ निकुंज के शरीर में वापस चला जाता है। यह नजारा देखकर पाटिल के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था, वह कांपते हुए हाथों से अभी निकुंज पर गोली चलाने वाला था कि तभी उसके हाथ पर चाकू से वार होता है और उसका हाथ कट कर नीचे गिर जाता है।

पाटिल चिल्लाते हुए जमीन पर छटपटाने लगता है,उसका खून फर्श पर किसी पानी की तरह फैला हुआ था। राजीव उसकी हालत देखकर वहीं पर बैठ जाता है। उस पर किसने वार किया यह देखने के लिए जैसे ही पाटिल अपनी दाएं और देखता है तो उसे एक और झटका लगता है "अंकिता....!??पर तुम्हारी तो मौत हो चुकी थी।" पाटिल की बात सुनकर निकुंज मुस्कुराते हुए कहता है "यहां आने वालों की जिंदगी और मौत का फैसला सिर्फ मैं करता हूं।"

दर्द का सिलसिला अभी यहां थमा नहीं था अंकिता चलते हुए पाटिल के पास आती है और अपना एक पैर उसके पीठ पर रखती है उसके दोनों कंधों को पकड़ते हुए पूरी ताकत लगाकर पीठ की हड्डी तोड़ देती है "तडाककक...." इस आवाज के साथ पाटिल की चीख पूरे होटल में गूंजती है। इसके बाद अंकिता पाटिल को पेट के बल लिटाकर किसी जंगली जानवर की तरह उसके दिल का हिस्सा नोच डालती है और आखिर में उसके दिल को पकड़कर उसके सीने से अलग कर देती है। पाटिल की आंखें फटी हुई थी,उसकी आंखों से निकलते हुए आंसू में जमीन पर गिर रहे थे, उसका चेहरा यह बयान कर रहा था कि उसने कितना दर्द सहा होगा।

सामने का नजारा देखकर राजीव बिलखते हुए रोने लगता है वह चिल्लाते हुए कहता है "क्यों?.. आखिर क्यों निकुंज?.....तुम ऐसा कैसे कर सकते हो, इंसान के रूप में तुम किसी शैतान से कम नहीं।" राजीव की आवाज सुनकर निकुंज हल्का सा मुस्कुराता है और कहता है "मैं निकुंज नहीं हूं, निकुंज के शरीर पर तो मैंने उसी दिन कब्जा कर लिया था जिस दिन आपने उसको पाटिल के साथ यहां उन गार्ड्स को ढूंढने के लिए भेजा था और रही मेरे शैतान होने की बात तो आपके हाथ भी खून से रंगे हुए हैं, अपनी लालच के लिए आपने कितनो की जान ली है मुझे यह बताने की जरूरत नहीं वह सब खुद आपको बताएंगे।"

धीरे-धीरे करते हुए वहां पर उन सभी लोगों की चीखें गूंजने लगती है वह पूरा हॉल किसी शोर में डूब जाता है यहां चीखें इतनी दर्दनाक थी कि कोई जिंदा इंसान इसे सुन नहीं सकता था। राजीव अपने दोनों हाथों को कानों पर रखते हुए चिल्लाता है "इन सब आवाज को प्लीज बंद करो" पर यह आवाज कम होने की जगह और बढ़ने लगती है, यह इतनी बढ़ चुकी थी कि अब राजीव के कानों में से खून निकलने लगा था। राजीव को अब यह लग रहा था कि जैसे उसकी दिमाग की सारी नसें फट जाएगी।

अचानक से फिर वहां शांति छा जाती है, राजीव अपने कानों पर से हाथ हटा देता है,पर अचानक उसकी आंखों में से खून निकलता है उसके सर में एक तेज दर्द होता है और उसका सर किसी फुटबॉल की तरह ऊपर से फट जाता है और वह वहीं पर गिर जाता है।निकुंज की काली आंखें अब नॉर्मल होती है,सामने का नजारा देखकर वह रोते हुए जमीन पर बैठ जाता है "क्यों आखिर क्यों? और कितनों की जान लोगे तुम, आखिर तुम को यह रिसोर्ट बंद ही करवाना था तो, फिर इसको बनने ही क्यों दिया अपनी अंकिता ओर देखते हुए निकुंज जोर से चिल्लाता है।

निकुंज अभी जमीन पर बैठा था कि तभी उसकी पीठ से खंजर आरपार होते हुए उसके पेट से बाहर निकलता है। अंकिता निकुंज को उसके बालों से पकड़ते हुए खड़ा करती हैं। निकुंज से यह दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था, वह दर्द की वजह से अपने पैर जमीन पर रगड़ रहा था "मार दो मुझे भी मार दो प्लीज।" अंकिता उसके छाती से पेट तक एक लंबा घाव लगाती है और उस लकीर में अपनी उंगलियां घुसा के उसके पेट को पूरा फाड़ देती है। निकुंज की आते खून, हड्डियां सब दिखने लगता है और उसका शरीर बेजान होकर जमीन पर गिर जाता है। वहां निकुंज के दिल पर खंजर घुसा कर वही खड़ी रहती है।

बाहर पूरी तरह से अंधेरा छाया हुआ था। बाहर हो रही बिजली की रोशनी की वजह से अंदर का वह खौफनाक नजारा कभी-कभी दिखाई देता था, होटल कि वह दीवारें भी इन नजारों को देख कर कांप उठी थी। दूसरे दिन लोगों के बताने पर पुलिस को वहां से निकुंज,पाटिल और राजीव की लाश मिली। आखिरकार जिस आदमी ने इस होटल को बनवाया वह खुद भी अपने ही लालच का शिकार हो गया। अंकिता की लाश अभी भी पुलिस को नहीं मिली, पुलिस ने बहुत वक्त तक investigation किया पर कोई सुराग नहीं मिलने की वजह से यह केस भी कागजों के बीच कहीं दब कर रह गया और वह होटल हमेशा के लिए बंद हो गया।

To be continued.......