Apanag - 30 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 30

Featured Books
  • NICE TO MEET YOU - 6

    NICE TO MEET YOU                                 પ્રકરણ - 6 ...

  • ગદરો

    અંતરની ઓથથી...​ગામડું એટલે માત્ર ધૂળિયા રસ્તા, લીલાં ખેતર કે...

  • અલખની ડાયરીનું રહસ્ય - ભાગ 16

    અલખની ડાયરીનું રહસ્ય-રાકેશ ઠક્કરપ્રકરણ ૧૬          માયાવતીના...

  • લાગણીનો સેતુ - 5

    રાત્રે ઘરે આવીને, તે ફરી તેના મૌન ફ્લેટમાં એકલો હતો. જૂની યા...

  • સફર

    * [| *વિચારોનું વૃંદાવન* |] *                               ...

Categories
Share

अपंग - 30

30 

----

"क्या हुआ, चुप क्यों हो गई ?" 

"समझ में नहीं आता, कैसे बताऊँ ? क्या बताऊँ ?' 

"ये वो ही बद्री है न जो कुम्हारों वाले मुहल्ले में रहता है ?" भानु ने पूछा | 

"हूँ ----" 

"तू, बता रही थी न तेरी माँ सदाचारी पंडित जी के यहाँ काम करने लगी थी | ये वो ही सदाचारी पंडित जी हैं जो हमारे यहाँ आते रहते थे |" 

"हाँ दीदी, अब कहाँ आते हैं ?वो एमए हो गए थे न "

"एमए --?" 

"वो वोट पड़े न उसके बाद --" 

"ओहो ! एम.एल.ए --" 

"हाँ, वो ही दीदी --" 

"अच्छा फिर ?" 

एक बार माँ बीमार हो गई | सदाचारी पंडित जी के यहाँ मुझे काम करने के लिए भेज दिया गया | उनके घर में तो कोई भी नहीं था मेरा बाप भी मुझे दरवाज़े तक छोड़कर आ गया | उनकी कोठी बहुत दूर पड़ती है न हमारे यहाँ से --"

"तो --आगे बोल --"

"कैसे बताऊँ ? बड़ी शरम वाली बात है--" 

"अब बोल भी ---कह भी दे जो कहना चाहती है " भानु खीजने सी लगी | 

"घर में एक नौकर के सिवा कोई भी नहीं था -- ! बूढा नौकर दरवाज़ा खोलकर अपनी कोठरी में जाकर सो गया था | पता नहीं सारे घरवाले कहाँ गए हुए थे? मैंने जाकर चौका-बासन किया और खुशबू वाले साबुन से हाथ धोने उस बर्तन --हाँ, वॉश बेसन पे गई जिस पे शीशा लगा था | उसके ठीक सामने ही पंडित जी का कमरा है दीदी --किवाड़ उढ़के हुए थे | आवाज़ें आ रही थीं | मैंने सोचा कौन हो सकता है जब इतने बड़े घर में कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था |   

"तो क्या हुआ था ?" 

"मैंने हलके से किवाड़ खोल दिया --हाय ! मैं तो मर गई दीदी ---सच्ची !" 

"आगे भी बोल ---" 

"दीदी ! पंडित जी और उनकी बहू बिस्तर पर ---मैं तो मर गई दीदी, सच्ची !" वह चुप हो गई और उसने अपनी आँखे नीचे झुका लीं | 

"क्या बक रही है ?" भानुमति थोड़ा तेज़ होकर बोली | उसके दिल की धड़कनें भी द्रुत गति से सप्तम सुर में धड़क रहीं थीं | उसके पसीने भी छूटने लगे थे | 

"मैं कह रही थी न दीदी, आप नाराज़ हो जाएंगी |" लाखी रुंआसी होकर मुंह झुकाकर बोली | 

  सच ही तो, उसे लाखी से नाराज़ होने का कोई हक़ नहीं था | उसने ही तो पूछा था इसमें लाखी का भला क्या कसूर था ?

"फिर, क्या हुआ ?" भानु की आँखें भी नीची हो आईं थीं लेकिन उसने सोचा कुछ तो पता करे, और क्या कुछ हुआ था उसके साथ !

"फिर क्या दीदी--मैं उल्टे पाँव लौट पड़ी वहाँ से | घबराहट के मारे मेरा दिल धक-धक कर रहा था | बहुत देर हो गई थी | बापू लेने आने वाले थे | पर --मैं इत्ता घबरा गई थी कि दरवाज़ा खोलकर भाग निकली | भागते हुए मैं घर पहुंची तो माँ, बापू बहुत गुस्सा हुए | 

"क्यों जल्दी क्या थी री ? "बापू चिंघाड़े  

"मुझे--मुझे --" मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था | 

"क्या मुझे --मुझे लगा रखी है ?सही से बता, नहीं तो थोबड़ा तोड़ दूंगा |" 

"मुझे भूख लग रही थी न ---?" 

"ले, इत्ते बड़े घर में खाने को कुछ न मिला तुझे ?

"कोई था ही नहीं, बस, वो एक बुड्ढा वाला नौकर था | वो भी दरवाज़ा खोलके कुठरिया में सो गया था |" 

"अरी, तो रसोई में कुछ तो होगा, खा लेती --" 

"मुझे भौत खराब लगा दीदी। ऐसे जैसे चोरी करने को कहा गया था | अब आप ही बताओ, चोरी कर लेती मैं ? मेरा अपना कौन था वहाँ ? मैं किससे अपनी बात कहती, अपने घर में ?" 

"फिर ?" 

"फिर क्या दीदी, माँ काम पर जाने लगी तो मुझे भी साथ चलने के लिए कहती पर मैं नहीं जाती थी | भौत डर गई थी मैं !पर पता नहीं माँ को क्या हुआ था वो बार-बार मुझे अपने साथ चलने को कहतीं |"

"इतनी बुरी तरह डर गई तू पगली ---" 

"दीदी ! मुझे रातों को नींद नहीं आती थी | "

"एक दिन तो पंडित जी का ड्राइवर माँ को छोड़ने आया | माँ बड़ी खुश थीं, उनसे ज़्यादा बापू खुश था "

"पर, ये सब क्यों हुआ और कैसे ? तेरी माँ तो ऎसी थी नहीं --जब तू छोटी थी तो तेरी पढ़ाई के बारे में माँ से बातें किया करती थी | " भानु के मस्तिष्क में विचार गड़मड़ हो रहे थे | 

"दीदी! माँ ऐसा न करती तो बापू उसे मारने के लिए तैयार हो जाता | ये शराब की लत बड़ी बुरी होती है | कुछ नहीं सोचती अच्छा, बुरा ---"

"फिर --?" 

"फिर एक दिन मेरे बापू ने किसी बात पर माँ को खूब भला-बुरा कहा | माँ ने मुझे पीटा और उन पंडित जी के घर भेज दिया | माँ कहने लगी कि मुझे उसकी जरा भी परवाह नहीं थी, मैं उसकी कैसी नालायक बेटी थी ? उसकी तबियत खराब है तो काम कौन करेगा ?मैं भौत डरी हुई थी ---पर क्या करती गई |"लाखी शायद उस दिन की कोई ऎसी बात याद करने लगी थी जिससे उसे काफ़ी तकलीफ़ हुई थी |