Golu Bhaga Ghar se - 14 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | गोलू भागा घर से - 14

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गोलू भागा घर से - 14

14

एक दुनिया रंजीत की

रंजीत!...तभी गोलू की रंजीत से थोड़ी जान-पहचान हुई।

कौन रंजीत? ठीक-ठीक तो गोलू को भी उसके बारे में कुछ पता नहीं है। पर हाँ, इधर रंजीत से उसकी छिटपुट मुलाकातें जरूर होने लगी हैं।

गोलू शोभिता को उसकी स्कूल बस के स्टाप तक छोड़ने जाता है, तो लौटते समय रास्ते में रंजीत उसे अकसर मिल जाता है। वह भी शायद पास वाली किसी कोठी में एक कमरा किराए पर लेकर रहता है। सुबह-सुबह अकसर मदर डेरी से अपने लिए दूध लेने जा रहा होता है।

पता चला कि रंजीत रेडीमेड कपड़ों की एक फैक्टरी में फैशन डिजाइनर का काम करता है। वहाँ इतनी तनखा मिलती है कि आराम से गुजारा हो जाता है और अब उसे किसी की ‘दया’ की जरूरत नहीं है!

“चल, तेरी भी बात करा दूँ अपने फैक्टरी मालिक से!...बहुत बढ़िया आदमी हैं। उन्हें लायक बंदे चाहिए!” रंजीत ने कहा।

“पर मुझे तो यह काम आता नहीं!” गोलू ने बेचारगी से कहा, “मैं वहाँ क्या करूँगा?”

“अरे, नहीं आता तो क्या हुआ! सीख भी नहीं सकता?...चल, मैं सिखा दूँगा। मुझे भी तो किसी ने सिखाया था। लगन से काम करेगा तो हफ्ते, दो हफ्ते में सीख जाएगा।” रंजीत ने भरोसा दिलाया।

“ठीक है, सोचूँगा।...सोचकर बताऊँगा।” गोलू ने कहा, “अभी तो मालिक-मालकिन दोनों को काम पर जाना है। मेरा इंतजार ही कर रहे होंगे!”

गोलू कुछ आगे बढ़ा, तो रंजीत ने फिर पुकार लिया! बोला, “जल्दी सोचकर बताना। अगर जीवन में कुछ बनना है, तो निर्णय लेना सीखो!” फिर स्वर को थोड़ा धीमा करके बोला, “मास्टर जी के घर तुम घरेलू नौकर का काम करते हो न! पर कब तक करोगे और तुम्हें बदले में मिलेगा क्या? तुम तो मुझे ठीक-ठाक घर के लगते हो, क्यों?”

गोलू क्या कहता। वह चुपचाप नजरें बचाता खड़ा रहा।

“तुम घर से भागकर आए हो न!” रंजीत की आँखें गोलू के भीतर कुछ टटोल रही थीं, “क्यों ठीक कह रहा हूँ न मैं? मैं भी कभी घर से भागकर आया था, आज से कुछ साल पहले! बहुत धक्के खाए थे मैंने, बहुत...! फिर अपना रास्ता खोजा! वरना मैं तो लोगों के धक्के खाते और गालियाँ सुनते-सुनते मर जाता।”

गोलू कुछ कहना चाहता था, पर कुछ भी नहीं कह पाया। उसे लगा, आज बहुत दिनों के बाद किसी ने उसका दुख समझा है, उसके दिल के तारों को छेड़ा है। लेकिन उसे हैरानी हुई, रंजीत आखिर यह बात समझ कैसे गया? उसने तो अपने बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।

“तूने इतने दिनों में दिल्ली देखी है...या फिर घर में ही घुसा रहा?” रंजीत हँसकर पूछ रहा है।

जवाब में गोलू के कुछ न कहने पर बोला, “कल शनिवार और परसों इतवार की मेरी छुट्टी है। चल, दोनों मिलकर दिल्ली देखेंगे। मैं तुझे पूरी दिल्ली घुमा दूँगा।”

“पर मास्टर जी और मैडम...? मुझे तो छुट्टी नहीं मिलेगी!” गोलू ने सकुचाते हुए कहा।

“तुझे तो कभी छुट्टी नहीं मिलेगी। इनके पास रहेगा तो पिंजरे में चूहे की तरह छटपटाता रहेगा। कभी बाहर नहीं निकल पाएगा।” रंजीत के शब्द पत्थर की तरह गोलू के सिर पर पड़ रहे थे। पर उनमें उसे सच्चाई जान पड़ी।

फिर भी गोलू ने झिझकते हुए कहा, “दो दिन घर में नहीं रहूँगा, तो मेरी नौकरी चली जाएगी।”

“अरे यार, छोड़ नौकरी! दिल्ली में ऐसी नौकरियाँ लाखों हैं। आदमी काम करने वाला होना चाहिए।” रंजीत बेफिक्री से बोला।

“पर...!” गोलू में अभी भी झिझक बाकी थी, “मालिक बहुत अच्छे हैं। मैं सोच रहा हूँ कि...”

“कोई अच्छे-वच्छे नहीं हैं! तू कहा कर, मालिक ठीक है। यह भी इनकी नाटकबाजी है। अरे भोलाबख्श, यह इन लोगों की मिलीभगत होती है। दोनों में से एक डाँटता है, दूसरा प्यार करता है, ताकि दबा भी रहे और भागे भी नहीं!”

“ठीक है, बताऊँगा सोचकर।” कहकर गोलू चलने लगा।

पर रंजीत पर तो जैसे जिद सवार थी। बोला, “जल्दी बोल, दिल्ली देखनी है कि नहीं?”

“देखनी तो है...!” गोलू ने सकुचाते हुए कहा।

“तो फिर छोड़ नौकरी!”

“मालिक से कहकर छुट्टी ले लूँ दो दिन की...?” गोलू ने सकुचाते हुए कहा।

“कभी नहीं मिलेगी, तू कहकर देख ले! और सुन, यह ‘मालिक...मालिक’ कहना बंद कर! वरना तो तू पूरा, पक्का नौकर ही हो जाएगा। यह भी भूल जाएगा कि तेरा नाम गोलू है।”

“और दो दिन घूमने के बाद...फिर क्या करूँगा? रहूँगा कहाँ?” गोलू ने असमंजस में पड़कर कहा।

“मैं देखूँगा। तू चिंता क्यों करता है इस बात की?” रंजीत ने उसके कंधे पर हाथ रखकर प्यार से दबा दिया।

और गोलू ने फैसला कर लिया कि वह दिल्ली देखेगा। नौकरी छूटती है तो छूटे! आज ही जाकर मास्टर जी से बात करनी होगी। वे तनखा के पैसे दे दें तो ठीक, वरना...देखेंगे!

गोलू ने उस रात मास्टर जी से बात की तो उन्हें जैसे यकीन ही नहीं आया। पर गोलू ने बताया कि उसे एक फैक्टरी में कपड़े सीने का काम मिल रहा है। पूरा आश्वासन मिला है, तो उन्होंने चुपके से उसकी हथेली पर पाँच सौ रुपए रख दिए।

मास्टर जी तो कुछ उदास थे, पर सरिता मैडम खुश थीं। और इस खुशी में उन्होंने अपनी तरफ से थैले में गोलू को एक चादर और छोटा-मोटा सामान डालकर दे दिया था।

जाने से पहले गोलू ने शोभिता और मेघना को खूब प्यार किया। बोला, “गोलू भैया आज जा रहा है, पर जल्दी ही मिलने आएगा।” फिर मास्टर जी और मैडम के पैर छूकर वह बाहर निकल पड़ा।