Ek tha Thunthuniya - 7 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | एक था ठुनठुनिया - 7

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

Categories
Share

एक था ठुनठुनिया - 7

7

कंचों का चैंपियन

ठुनठुनिया गाँव के कई बच्चों को कंचे खेलते देखा करता था। इनमें सबसे खास था नीलू। कंचे खेलने में नीलू इतना होशियार था कि खेल शुरू होने पर देखते ही देखते सबके कंचे उसकी जेब में आ जाते थे। इसलिए बच्चे उसके साथ खेलने से कतराते थे। कहते थे, “ना-ना भाई, तू तो जादूगर है। पक्का जादूगर...! हमारे सारे कंचे पता नहीं कैसे देखते ही देखते तेरी जेब में चले जाते हैं?”

ठुनठुनिया बड़े अचरज से नीलू को कंचे खेलते देखकर मन ही मन सोचता था, ‘काश, मैं भी नीलू की तरह होशियार होता!’

पर उसके पास तो कंचे थे ही नहीं, फिर वह भला नीलू से कैसे खेलता? और कैसे उस जैसा होशियार हो जाता?

एक दिन ठुनठुनिया दौड़ा-दौड़ा घर गया। माँ से बोला, “माँ-माँ, एक इकन्नी तो देना। कंचे लेने हैं।”

गोमती दुखी होकर बोली, “बेटा, आज तो घर में बिल्कुल पैसे नहीं हैं। वैसे भी तेरे सारे शौक पूरे हों, इतने पैसे हमारे पास कहाँ हैं! बस, किसी तरह गुजारा चलता रहे, इतना-भर ही मेरे पास है। आगे तू बड़ा होकर कमाने लगेगा तो...!” कहते-कहते माँ की आँखें गीली हो गईं।

“नहीं माँ, नहीं! एक इकन्नी तो आज मुझे दे दे, फिर नहीं माँगूँगा।” ठुनठुनिया ने जिद करते हुए कहा।

गोमती के पास उस समय मुश्किल से कुछ आने ही बचे थे। सोच रही थी कि यह पैसा घर की जरूरतों के लिए बचाकर रखा जाए। उसी में से निकालकर गोमती ने इकन्नी दी, तो ठुनठुनिया उसी समय ठुमकता हुआ भागा और इकन्नी के आठ नए-नकोर कंचे खरीद लाया।

कंचे लोकर उसने दोस्तों को दिखाए तो सभी की आँखें चमकनें लगीं। सुभाष, नीलू, अशरफ—सभी चाहते थे कि ठुनठुनिया बस उसी के साथ खेले। नए-नकोर कंचों की चमक सभी को लुभा रही थी।

पर ठुनठुनिया सोच में पड़ गया। बड़ी मुश्किल से वह माँ से एक इकन्नी माँगकर लाया। अगर खेल में ये सारे के सारे कंचे चले गए तो...? उसका दिल नहीं मान रहा था कि वह इन कंचों को इस तरह लुटा दे।

तभी उसे तरकीब सूझी। उसने नीलू से कहा, “नीलू, मैं तेरे साथ खेलूँगा। पर तू तो पक्कड़ है, मैं कच्चड़। पहले मुझे अच्छी तरह खेल सिखा दे! मैं फिर एक खेल सिखाने के बदले तुझे यह बड़ा वाला नीला, चमकदार कंचा दूँगा।”

सुनते ही नीलू खुश हो गया। वह उसी समय ठुनठुनिया को कंचे खेलना सिखाने लगा। नीलू को खेल के बहुत सारे दाँव-पेच आते थे। वह ठुनठुनिया को बताता जा रहा था। ठुनठुनिया ने खुद भी अपने हाथों से कंचे खेलकर बहुत कुछ सीख लिया। नीलू की चालों को भी समझ लिया। बड़ी देर तक नीलू और ठुनठुनिया कंचों का ‘दोस्ती वाला मैच’ खेलते रहे, जिसकी शर्त यह थी कि कोई किसी के कंचे लेगा नहीं। खेल के बाद दोनों एक-दूसरे के कंचे लौटा देंगे।

शाम हुई तो नीलू ने कहा, “वाह! ठुनठुनिया, तू तो अब खासा होशियार हो गया। ला मुझे दे, अब नीला वाला चमकीला कंचा!”

ठुनठुनिया ने झट नीला कंचा निकालकर नीलू के हाथ में पकड़ाया और खुश-खुश घर चला गया। अब उसके पास केवल सात कंचे थे। पर उसने सोच लिया था, इन सात कंचों में से एक भी मुझे कम नहीं होने देना।

अगले दिन सुबह ठुनठुनिया घर से निकला और मैदान में जाकर अकेला कंचे खेलने का अभ्यास करने लगा। धीरे-धीरे उसने अपना निशाना इतना पक्का कर लिया कि जिस भी कंचे को चाहता, उसी पर दूर से ‘टन्न’ निशाना लगा देता।

ठुनठुनिया एक दिन में काफी कुछ सीख गया था। फिर भी अकेले खेलकर उसने दूर-दूर के कंचों पर निशाना लगाना जारी रखा। कंचे एक-एक कर पिटते और नीलू का दिल बल्लियों उछल पड़ता। वह मन ही मन अपने को शाबाशी देता, ‘यह हुई न बात!...वाह रे ठुनठुनिया, वाह!!’

नीलू आया तो हँसकर बोला, “अरे ठुनठुनिया, तू अकेला-अकेला क्यों खेल रहा है? क्या तुझे हारने का डर है?”

“नहीं! मैं तो सोच रहा हूँ, तुझे कैसे हराऊँ?” ठुनठुनिया हँसकर बोला।

“मुझे? तू...! तू मुझे हराने की सोच रहा है?” नीलू ने अचकचाकर कहा। ठुनठुनिया के तेवर आज उसे अजीब लगे।

“तो क्या तुम समझते हो कि तुम हमेशा, हर किसी से जीतते ही रहोगे?” ठुनठुनिया खूब जोरों से मुट्ठी के कंचे ठनठनाकर बोला।

इस पर नीलू को तो आग लग गई। “तो चल, हो जाए खेल शुरू!” उसने कंचे निकाल लिए और ठुनठुनिया को चुनौती देता हुआ खड़ा हो गया।

पर ठुनठुनिया भी आज पूरी तैयारी करके खेल में डटा था। शुरू में एक-दो कंचे हारा, पर अंत में आकर उसने खेल बराबर कर दिया। नीलू पसीने-पसीने हो गया। पर ठुनठुनिया तो पूरी मस्ती से खेल रहा था।

खेल के बाद ठुनठुनिया घर लौट रहा था तो नीलू ने कहा, “सचमुच ठुनठुनिया, तूने तो कमाल कर दिया!”

“अभी कहाँ। अभी तो मेरा कमाल तुम कल देखना। थोड़े ज्यादा कंचे घर से लेकर निकलना, वरना कहीं...!” कहर ठुनठुनिया खुश-खुश घर की ओर चल दिया।

अगले दिन ठुनठुनिया ने फिर सुबह-सुबह अकेले मैदान में जाकर दूर से कंचों पर निशाना लगाना और उन्हें पिल्ल में डालने का अभ्यास किया। नीलू आया तो हँसकर बोला, “ठुनठुनिया, लगता है, तूने तो कंचों का चैंपियन बनने की ठान ली है।”

“हाँ-हाँ, और क्या! आकर खेल तो सही।” ठुनठुनिया ने कहा। और उस दिन सचमुच नीलू को उसने बुरी तरह हरा दिया। उसके एक-दो नहीं, पूरे सात कंचे ठुनठुनिया की जेब में आ गए। एक जेब में उसके अपने सात कंचे थे, दूसरी में नीलू से जीते हुए सात कंचे। जितने भी बच्चे वहाँ आए, सबको ठुनठुनिया ने नीलू से जीते हुए कंचे दिखाकर कहा, “सुनो रे, सुनो, मेरे पास तो सात थे, चौदह कंचे हो गए। जिसे भी अपने कंचे दूने करवाने हैं, आकर मुझसे जादू सीख ले।”

ठुनठुनिया की बात सुनकर बच्चों ने हैरत से नीलू की ओर देखा। मगर वह तो पहले ही मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ था।

अब तो हालत यह थी कि नीलू मैदान में ठुनठुनिया को देखते ही भाग खड़ा होता और ठुनठुनिया वहीं से हँसकर कहता, “अरे भई चैंपियन, जरा रुको तो! अरे, सुनो...!”

ठुनठुनिया ने नीलू को तो जम के हराया, मगर दूसरे बच्चों के साथ वह खूब मजे से खेलता। जिन-जिनके कंचे जीतता, उनके बाद में वापस कर देता। इस पर सब बच्चे हँसकर नारा लगाते, “ठुनठुनिया जिंदाबाद!”

कुछ दिनों तक तो नीलू दूर-दूर, शरमाया-सा यह देखता रहा, फिर वह भी लालच छोड़कर इस खेल में शामिल हो गया। इस खेल की शर्त यह थी कि जो भी दूसरों के कंचे जीतेगा, वह बाद में ईमानदारी से वापस कर देगा।

ठुनठुनिया इतना पक्कड़ हो गया था कि सबसे ज्यादा कंचे वही जीतता और बाद में लौटा देता। सब बच्चों के साथ-साथ अब नीलू की भी आवाज सुनाई देती, “ठुनठुनिया, जिंदाबाद...!”