Apanag - 21 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 21

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अपंग - 21

21 --

सच बात तो यह थी कि भानुमति रिचार्ड की और अपनी मित्रता को कोई नाम ही नहीं दे पाई थी | मिरांडा को भानु के पास बैठना इतना अच्छा लगता था कि वह कभी भी चली आती और फिर बहुत देर बैठकर जाती |

मिरांडा अनमैरिड थी और भगवान कृष्ण की दीवानी थी | वह धीरे-धीरे हिंदी बोलने लगी थी और उससे मीरा, कृष्ण और राधा के बारे में बात करती रहती थी | भानु से उसने बहुत सी कहानियाँ सुन ली थीं और वह कहती थी कि वह भी कृष्ण से शादी बनाना चाहती थी |

"मैं कभी भारत जा सकती हूँ --?" मिरांडा ने एक दिन भानुमति से पूछा |

"हाँ, क्यों नहीं ? बहुत लोग भारत जाते हैं तो तुम क्यों नहीं ?" भानु ने कहा |

"मुझको लेकर चलेंगें ?"

"क्यों नहीं ? मेरे पेरेंट्स के घर पर ही रहना --" भानुमति ने कहा |

"नो--नो, आई कैन स्टे इन द मंदिर --" वह 'इस्कॉन' की मेंबर थी और उसे सभी के इस्कॉन मंदिर में रहने की इजाज़त थी |

भानु को उसका मंदिर कहना बहुत प्यारा लगा, वह चाहती तो टैंपल भी कह सकती थी लेकिन उसने 'मंदिर' धब्द को इतनी सुंदरता और कोमलता से बोला कि भानु को उस पर प्यार हो आया |

मुन्ना के होने की ख़बर रिचार्ड पहले ही राजेश के नाम से भानु के माता-पिता के पास भारत भेज चुका था |भानु ने बेटे को 'जॉय' कहकर पुकारना शुरू कर दिया था | बच्चे के आने से उसके जीवन मे प्रसन्नता भर उठी थी | उसे मित्र भी मिल रहे थे, उसे काम भी मिल रहा था और वैसे उसने रिचार्ड से भी काम के लिए बात की थी | लेकिन उससे पहले वह एक बार मुन्ना को लेकर माँ-बाबा के पास जाना चाहती थी | हर परिस्थिति में रिचार्ड उसकी सहायता कर रहा था | वह अब यहाँ नहीं रहना चाहती थी |

"क्या तुम भारत में सैटल होना चाहती हो ?" उसके प्रति इतना प्रेम रखकर भी रिचार्ड उसके मन की शन्ति और प्रसन्नता चाहता था |

"नहीं, अभी नहीं रिचार्ड, अभी तो माँ-बाबा से मुन्ना को मिलाना चाहती हूँ | जानती हूँ वे कितने उतावले हो रहे होंगे---"

"उतावले --??" रिचार्ड ने अचानक पूछा | उसकी समझ में नहीं आया था कि भानु ने क्या कहा था ?

"ईगर ---" भानु ने उसको समझाने की कोशिश करते हुए कहा |

"ओह ! आई सी ---" रिचार्ड ने मुस्कुराकर कहा |

"ऑफ़ कोर्स ---" उसने मुस्कुराकर सर हिलाया और फिर मुन्ने के गालों धीरे से प्यार से थपथपाया |

"माँ-बाबा ने राजेश को देखकर पहले ही मुझे बहुत समझाया था लेकिन मैंने फिर भी अपने मन की करी और अब इसका रिज़ल्ट मैं तो भुगत ही रही हूँ, माँ-पापा भुगतें, क्यों ?"

"क्या चाहती हो ?" रिचार्ड छोटी-मोटी गलतियों के लावा ख़ासी अच्छी हिंदी बोलने लगा था |

" बस, बच्चे को एक बार मिलाकर यहाँ वापिस आकर खुद सैटल होकर उन्हें सब कुछ बताऊंगी |"

रिचार्ड चुपचाप उसकी बात सुनता रहा फिर उसने पूछा ;

"वॉन्ट टू से समथिंग ?"

"हम्म, कैन यू डू मी ए फ़ेवर ?"

"माई प्लैज़र "

"मैं माँ-बाबा को मिलकर आती हूँ तब तक मेरे लिए कोई काम तलाश कर दो न ?"

"व्हाय नॉट इन माइ फ़र्म ?"

भानुमति झिझकी, कैसे सामना करेगी राजेश का ?

"बी ब्रेव भानुमति --यू हैव टू फाइट विद ऑल इविल्स "

सच ही तो कह रहा था रिचार्ड, उसे स्ट्राँग बनना होगा |

पत्र में उसने लिख दिया था कि वह माँ-बाबा से बच्चे को मिलाने भारत जा रही है |

रिचार्ड ने उसे भारत भेजने की सब तैयारियाँ पहले ही कर लीं थीं | वह उसे एयरपोर्ट पर भी छोड़ने आया |

माता-पिता को भनक दिए बिना वह उन्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी |

"देखो, मैंने बच्चे का कितना सुंदर नम बनाया |" एयरपोर्ट पर अचानक रिचार्ड ने जैसे कोई पटाखा फोड़ा |

"नाम बनाया ? "

"मतलब, चूज़ किया ?" भानु ने हँसकर कहा |

"वो ही ---मीन्स "

"अच्छा ! क्या ?"

"पायस का कितना सुन्दर मीनिंग है 'पुनीत', अच्छा है न ?"

"हाँ, बहुत अच्छा है | "

"तो अब इसको पुनीत बोलना |"

"थैंक्स रिचार्ड --"

"नो थैंक्स, इट इज़ माइ प्लेज़र -"वह बोला और उसकी आँखों में आँखें डालकर बोला;

"आई विल मिस बोथ ऑफ़ यू --"

"आइ नो ---बाय --" एनाउंसमेंट हो रहा था | उसे अंदर जाना था |

न जाने कितनी देर रिचार्ड एयरपोर्ट के बाहर खड़ा रहा |

प्लैन में सैटल होने के बाद भानु का मन बेचैन था | कुछ तो था जिसे वह भी मिस कर रही थी | जॉय सो चुका था, उसने उसे बेबी-सीट पर सैटल कर दिया | उसका मन अशांत था | उसने पर्स में से डायरी निकाली और लिखने लगी ;

आँखों में

बातों में

भीड़ में, अकेले में

साँसों संग, दुकेले में

पूरब में, पश्चिम में

सब जगह, सब ओर

झाँक-झाँक देखा मैंने

कहीं न मिला --

हाथों से फिसला सा

आँखों में पिघला सा

साँसों में बंद कहीं

फिर भी स्वछंद कहीं

घरवाले, बेघर सा

जीवन या मरघट सा --

सब जगह, सब ओर

ताक-ताक देखा मैंने

कहीं न मिला ---

गलियों की ख़ाकों में

दीन -हीन फाँकों में

बंसी की तानों में

भँवरे के गानों में

खिलती सी कलियों में

निर्मम सी गलियों में

उत्तर में, दक्खिन में

सब जगह, सब छोर --

पात-पात देखा मैंने --

कहीं न मिला ---

मेरा मैं ---!!

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