Apanag - 20 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 20

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अपंग - 20

20

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रिचार्ड प्रतिदिन एक करीबी रिश्तेदार की तरह भानुमति के पास आता रहा | उसने राजेश को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन राजेश रुक और उसके जैसे लोगों में इस तरह से खो चुका था कि रिचार्ड भी उसे उस बेहूदी भीड़ में से निकालकर नहीं ला सका |

न जाने क्यों रिचार्ड चाहते हुए भी राजेश को अपनी कम्पनी में से निकाल नहीं सका | बहुत बार सोचता लेकिन फिर उसे महसूस होता शायद वह सुधर ही जाए और भानु का बिखरा हुआ घर सँभल जाए | वह भानुमति को बहुत-बहुत पसंद करता था.उसे अपना बहुत अच्छा दोस्त भी मानने लगा था | वह यह भी जानता था कि भारत के लोग इतनी आसानी से संबंधों को तोड़ते नहीं हैं | इसीलिए वह भानु के लिए आशावादी था कि उसका पति सही रास्ते पर आ जाए तो शायद उसका घर टूटने से बच जाए |

रुक राजेश को अच्छी तरह से बेवकूफ़ बना रही थी | रिचार्ड अपने व्यवसाय के दौरान इनके जैसे बहुत से बेवकूफ़ों से मिलता ही रहता था | राजेश कितना मूर्ख था भानुमति जैसी शिक्षित, सुन्दर, संस्कारी पत्नी को छोड़कर उस रुक जैसी दिखावटी लड़की के पीछे पड़ा था | पता नहीं क्यों राजेश अपना भला-बुरा नहीं समझ पा रहा था ? उसके लिए जो भी थी बस रुक थी, जो कुछ था केवल रुक और रुक का साथ ! जिसके पीछे वह लट्टू हो रहा था |

हर रात वह देर में नशे में लौटता और काफ़ी दिन निकलने तक बिस्तर में पड़ा रहता | न ही उसकी कोई पत्नी थी और न ही उस नए प्राणी के बारे में वह सोचता था जो उसके कारण ही इस दुनिया में आया था | उसकी ज़िम्मेदारी किसी के भी प्रति नहीं थी |

जिस अस्पताल में भानु ने बेटे को जन्म दिया था, उसमें एक अफ़्रीकी नर्स थी जो अब अमेरिका की निवासी थी | जब कभी उसे समय मिलता वह भानुमति के पास आकर बैठती और उसे अक्सर बताती कि वह इंडिया की कितनी बड़ी फैन है | उसका मन था कि वह भारत जाए |

उसका नाम मिरांडा था और वह वहाँ पर 'हरे राम, हरे कृष्ण' के मंदिर में जाती थी और खूब झूम-झूमकर भजन गाती थी | वह कभी-कभी भानु को भजन गाकर भी सुनाती थी | वह इतना झूम-झूमकर गाती कि भानु को उसका स्टाइल देखकर बड़ा मज़ा आता लेकिन वह तो सच में मस्ती से गाती थी | हाँ, उसकी आवाज़ में जब वह अंग्रेज़ी एक्सेंट में गाती थी भानु की हँसी बड़ी मुश्किल से कंट्रोल हो पाती थी | फिर भी भानु सदा उसे प्रोत्साहित करती रहती थी |

मिरांडा ने कई बार रिचार्ड को देखा था और भानु से भी उसके बारे में पूछा था |

"आई सपोज़, रिचार्ड इज़ योर बॉय फ्रैंड ?" मिरांडा ने पूछा | पता नहीं एक दिन वह किस मूड में थी |

"ही इज़ जस्ट माय फ्रैंड ---" भानु ने कहा |

"जस्ट फ्रैंड? एज़ आई नो ही इज़ ए बिग शॉट ---"

"सो, बिग शॉट्स डोंट हैव परमीशन फॉर द फ्रैंड्स -?" भानु ने मुस्कुराकर पूछा |

"नो--नो आई डोंट मीन दिस ---" वह थोड़ी सी सकुचा दी थी |

फिर मिरांडा उसके पास हिंदी सीखने आने लगी थी | वह जानती थी कि उसके पति के साथ उसके संबंध कुछ ठीक नहीं थे | वैसे भी भानु ने अपने लिए उससे कुछ काम के लिए कई बार बात की थी |

सबसे पहले तो मिरांडा ने ही उससे हिंदी सीखनी शुरू कर दी हुए एक घंटे के हिसाब से पाउंड्स देने निश्चित कर लिए | लगभग पंद्रह दिनों बाद दो और नर्सों को पकड़ लाई जो उसके जैसी ही हिंदी और भारत की दीवानी थीं | भानु निश्चिन्त सी होने लगी | मज़े की बात यह कि जब तक एक घंटे भानु उन दोनों नर्सों को पढ़ाती मिरांडा बड़े आराम से बच्चे को खिलाती |

"व्हाई यू वेस्ट योर टाइम ?" एक दिन भानु ने मिरांडा से पूछ ही लिया |

"आई एंजॉय प्लेइंग विद हिम " मिरांडा ने उससे खेलते हुए उत्तर दिया था |

ये जो दो नर्सें और पढ़ने आतीं थीं इनके नाम सिस्टर एलिस और सिस्टर रूमी थे |

ये दोनों भी मिरांडा के साथ 'हरे राम ; हरे कृष्ण'मंदिर की सदस्या थीं और भारत जाने के सपने देखती थीं |

कमाल था ! भानु अक्सर सोचती, भारत के लोग यहाँ आकर पागल हो जाते हैं और यहाँ के लोग भारत जाने के लिए पागल हुए जा रहे हैं !

कभी-कभी तीनों नर्सें एक साथ भी इक्क्ठी हो जातीं और खूब गाने सुनतीं -सुनातीं, मस्ती करतीं | सच तो यह था कि बेटे के जन्म के बाद भानु खूब खुश रहने लगी थी | उसे दोस्त मिल गए थे |

एक दिन चाय के प्याले हाथ में लिए हिंदी-अँग्रेज़ी में खिचर-पिचर चल रही थी |

"सिस्टर एलिस ! व्हाट योर फ़ादर इज़ डूइंग ?" पता नहीं क्यों भानु पूछ बैठी |

"आई डोंट हैव फ़ादर ?"

"मीन्स "

"यस.आई डोंट हैव फ़ादर ---" उसने फिर से अपनी बात दोहरा दी |

भानु का दिमाग़ उसी स्थिति में चल निकला, क्या उसका बेटा भी बड़ा होकर यही कहेगा 'आई डोंट हैव फ़ादर " उसके माथे पर पसीना चुहचुहाने लगा | वह एकदम चुप सी हो गई |

"हर मदर डाइवोर्सड हर फ़ादर ---" मिरांडा ने उसे समझाते हुए कहा |

"ओह !" वह यह कहकर वह फिर से चुप हो गई |

पता चला एलिस के दो भाई -बहन और थे जिन्होंने शादी कर ली थी | बस. एलिस ही अपनी माँ के साथ रहती थी | वो भी नर्सिंग के काम में ही थीं |

"नर्सिंग इज़ ए नोबल प्रोफ़ेशन ---" एलिस ने कहा |

"ऑफ़ कोर्स !" भानुमति ने उसकी बात पर ठप्पा लगा दिया |

उसने अपने आप ही बताया कि अगर वह शादी करती है तो उसकी माँ या तो अपनी माँ के पास रहेंगी या फिर अपने ब्वॉय फ्रैंड के साथ !

कितनी आसानी से ये लोग परिस्थिति को स्वीकार कर लेते हैं, भानुमति ने सोचा था और हम लोग रिश्तों के साथ लटकते रहते हैं, थेगली चिपकाकर रिश्तों को ओढ़ने-बिछाने के लिए बचाते रहते हैं, यही हमारी संस्कारिता है शायद ! लेकिन यह क्या हुआ कि पुरुष कुछ भी करता रहे और स्त्री उसी के नाम की माला जपती रहे !