भाग 23
आपने अभी तक पढ़ा नियति को मिनी की कस्टडी मिलने रस्तोगी पार्टी की मांग करता है। उसके कहने पर पार्टी करने का प्रोग्राम बनाते हैं। मेरी मां पार्टी कहीं और करने की बजाय पार्टी अपने घर पर करने का प्रस्ताव रखती है। सब की रजा मंदी से पार्टी की जगह मेरे घर पर तय होती है। जिसके लिए सभी सहर्ष राजी हो जाते है।
इधर हम सब जेंट्स बातें करने में मशगूल हो जाते है।
उधर कविता दीदी फुर्ती के साथ खाना तैयार करने में जुट जाती है। नीता मौसी मिनी के साथ खेलने और बाइक चलाना सिखाने में व्यस्त हो जाती है। कभी मिनी को कुछ चाहिए तो कभी कुछ। वो मिनी को अच्छे से समझती है की उसे कब क्या चाहिए?
मेरी मां और नियति की मां अपने अपने परिवार और संघर्ष की कहानी एक दूसरे को बताने लगती है। दोनों ने ही अपनी अपनी जिंदगी में काफी कुछ झेला है। दोनों का ही दिख से करीबी नाता रहा है। उन्हें आपस में बात करना भला सा अहसास दे रहा था। नियति कुछ देर तो बैठ कर उनकी बातों को सुनती है।
फिर जब बात होते होते उसकी कहानी तक पहुंची तो उसकी चर्चा होने लगी। जब बात उसकी शुरू हुई तो नीना देवी के दुर्व्यवहार की भी होने लगी। तो उसे अच्छा नही लगा। एक खुशी उसे अभी अभी मिली थी। उस खुशी की मिठास को वो उन कड़वे यादों से फीका नही होने देना चाहती थी। इस लिए वह वहां उठ गई। फिर उठ कर इधर उधर घूमने लगती है। जब उसे कुछ समझ नहीं आया की क्या करे? तो वो किचेन में कविता दीदी के पास चली गई। कविता ऐसे अचानक नियति को किचेन में देख चौक गई! वो बोली, "भाभी आप यहां….? कुछ चाहिए क्या...? आप बताइए मैं ले कर आती हूं।"
नियति बोली, "नही कविता दीदी मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं बस बैठे बैठे ऊब रही थी तो सोचा चलूं आपके पास। सब अपनी अपनी कंपनी में बिजी है। मुझे कुछ समझ नहीं आया क्या करूं तो यहां आपके पास चली आई। मैने सोचा कुछ बातें आपसे करूंगी को समय कट जायेगा।"
कविता ने एक साथ कई काम फैला रक्खे थे। एक गैस पे खीर चढ़ी हुई थी, तो दूसरे पर पुलाव, बाकी दोनो चूल्हे पर भी सब्जियां पक रही थीं। जिन्हे बारी बारी कविता चला रही थी। नियति कविता के पास खड़ी हो गई और कविता को परेशान देख ही साथ के गैस पर रखी सब्जी को खुद भी पकाने लगी।
तभी कविता अचानक से बोल पड़ी, "भाभी आप मिनी को संभालो, भैया आपको किचेन में काम करते देखेंगे तो मुझसे शिकायत करेंगें की कविता ..!दीदी …! आपने घर आए गेस्ट से कम करवा लिया!"
कविता की बात से नियति थोड़ी उदास हो गई बोली, " कविता दीदी मिनी अभी मुझसे ज्यादा नीता मौसी से घुली मिली है। वो उनके ही पास है। तभी तो मैं यहां चली आई। और रही बात प्रणय जी की तो मैं उन्हें बता दूंगी कि मैं अपनी मर्जी से किचेन में आई हूं। आप परेशान मत हो।"
खाने से बड़ी अच्छी खुशबू आ रही थी। कविता दीदी ने अपने सधे हाथों से जल्दी ही खाना तैयार कर दिया। टेबल लगाने में नियति ने भी मदद की। सब कुछ लग जाने पर कविता दीदी हम सभी को भी बुलाने आई।
उनकी आवाज सुन मैं बोल उठा, "अरे!!! दीदी खाने की इतनी अच्छी खुशबू आ रही थी की रुका ही नही जा रहा था। मैं कब से यही इंतजार कर रहा था की कब आप बुलाओ?"
फिर मैंने दोनो मामाजी और रस्तोगी से कहा, "चलिए सब लोग खाना खा लेते हैं।" मामाजी और रस्तोगी को साथ ले कर मैं खाने की टेबल पर आ गया। सब कुछ तैयार था। कविता दीदी ने मां के कहने पर उनका और नियति के मां का खाना वही सोफे के टेबल पर ही लगा दिया था। वो दोनो बातों में मशगूल थी। मैने सुना मां को मेरे अकेलेपन की चर्चा नियति की मां से करते हुए। वो अपनी परेशानी बता रही थीं की बेटी की जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी हूं, अब बस इच्छा है की प्रणय भी शादी करके सेटल हो जाए। एक अच्छी सी बहू आ जाए तो वो भी मेरी तरफ से निश्चिंत हो जाए।"
मैं, रस्तोगी, दोनों मामाजी, नीता मौसी सब खाने बैठ गए। सबको परोस कर लास्ट में नियति भी साथ खाने बैठ गई। नन्ही मिनी कभी इधर तो कभी उधर घूम रही थी। वो कभी थोड़ा सा नियति के हाथ से खा लेती तो कभी नीता मासी के हाथो से। तभी वो मेरे पास आकर खड़ी हो गई। मुंह खोल कर खिलाने का इशारा करने लगी, "आ.. आ.." कह कर। वो बेहद प्यारी लग रही थी इसे करते हुए। मुझसे रहा ना गया। मैने उसे उठा कर गोद में बिठा लिया और उससे पूछ पूछ कर की वो क्या खायेगी उसके मुंह में छोटे छोटे कौर डालने लगा। कभी वो कुछ प्लेट में दिखा कर इशारा करती, कभी कुछ। और वही चीज खिला देने पर ताली बजा कर हंसती और तब खाती। उसकी इस बाल सुलभ हरकत को देख सभी आनंदित हो रहे थे।
नीता मौसी को आश्चर्य हो रहा था की मिनी कैसे खा रही है? वो तो कुछ भी नही खाती थी। खाना तो बिलकुल भी नही। वो बस दलिया, खिचड़ी या फिर बिस्कुट ही थोड़ा सा खाती थी। पर मेरे साथ वो मजे लेकर खा रही थी। शायद ... वो सबके साथ की वजह से ही खा रही थी। खाना खत्म होते होते शायद वो सुबह से ही बाहर रहने की वजह से बहुत ज्यादा थक गई थी। मेरे कंधे से चिपक गई और वैसे ही चिपके हुए सो गई। मेरे लिए एक छोटे बच्चे का स्पर्श बिल्कुल नया एहसास था। मेरे घर में कोई छोटा बच्चा नहीं था। बहन प्रिया दीदी का एक बेटा था । पर वो बाहर ही सेटल थी इस कारण आना जाना लगभग नही के बराबर होता था। वो आती भी तो इतने कम समय के लिए सब से मिलने जुलने में ही वक्त बीत जाता। साथ रहने का मौका ही नही मिल पाता था। उसके छोटे छोटे पैर लटकते हुए मेरे हाथों को छू रहे थे। उसकी नन्ही उंगलियां मेरी पीठ और सीने को छू रही थी। वो नर्म छुवन मेरे दिल को उसके प्रति अजीब से प्यार से सराबोर कर रही थी। उसके सोते ही नियति ने मेरी गोद से ले कर बिस्तर पर लिटाने को कहा। पर मैं इस अद्भुत एहसास को ज्यादा से ज्यादा समय तक महसूस करना चाहता था। इस लिए उसे मना कर दिया की मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है।
खाना पीना समाप्त कर अब सभी जाने की तैयारी करने लगे। नियति को तो नीता मौसी के घर जाना था। वो उनके साथ उन्ही की गाड़ी में चली जाती। पर नियति की दोनो मामियां मिनी को देखना चाहती थी। इस कारण सभी को नियति के मामा के घर जाना पड़ा।
मैं सब को साथ ले नियति के मामा जी के घर गया। मिनी सो रही थी। दोनो मामियां नियति की घर से बाहर आकर ही सोती हुई मिनी को देखा और छू कर प्यार किया। हम सब वहां थोड़ी देर रुक कर मैंने मामाजी को उनके घर छोड़ कर रस्तोगी को उसके घर ड्रॉप करने चला गया। नीता मौसी भी नियति और मिनी को ले कर अपने घर की ओर चल पड़ी।
अगले भाग में पढ़े क्या नियति और प्रणय की ये मुलाकात बस यही खत्म हो गई? क्या नीना देवी इस हार के बाद शांत बैठ गई? वो मिनी के बिना कैसे खुद को संभाल पाएगी।