Secret Admirer - 22 in Hindi Love Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | Secret Admirer - Part 22

Featured Books
  • रिव्हॉल्व्हर - प्रकरण 13

    प्रकरण १३ न्यायाधीश सक्षमा बहुव्रीही यानी नावाप्रमाणेच एक सक...

  • सप्तरंगी गंध

    सप्तरंगी गंधभाग १: माधवाची जीवनयात्राचंद्रपूरच्या डोंगरदऱ्या...

  • चकवा - (अंतिम भाग )

    चकवा  अंतिम भाग 6तासभर दम खावून ते उतरणावरून पुढे निघाले. गा...

  • चकवा - भाग 5

    चकवा भाग 5 ती सात एकर जमिन दोन एकर गुरवाकडे,दोन एकर देवस्थान...

  • दंगा - भाग 4

    ३                       मुलांच्या आत्महत्या......  मुलांचा ब...

Categories
Share

Secret Admirer - Part 22

"मुझे लगा इशान तोह पहले से ही अंदर है। अगर आंटी को किसी चीज़ की जरूरत हुई तोह वोह देख लेगा।" कबीर ने बिना अमायरा की आंखों में देखे कहा। क्योंकि इसमें अमायरा बेहतर थी, वोह उसकी आंखों से समझ जाती की कबीर सच बोल रहा है या झूठ।

"बात इसकी नही है की मॉम को किस चीज़ की जरूरत है। बात है की अगर मुझे आप की जरूरत होती, आपके साथ की तोह?" अमायरा ने अचानक कबीर को देखते हुए सवाल पूछ दिया। जबकि सिचुएशन इतनी टेंसड थी फिर भी कबीर अपने आप को मुस्कुराने से रोक नही पाया। वोह इस बात से खुश था की अमायरा को उसकी जरूरत थी, उसके साथ की, वोह चाहती थी की कबीर उसके साथ खड़ा रहे। पर यह वक्त मुस्कुराने का नही था इसलिए उसने जल्दी से अपनी मुस्कान छुपा ली।

"मैं आपसे कुछ पूछूं?" अमायरा ने दुबारा पूछे।

"मैं.... उह्ह...। मैं बस जा नही पाया हॉस्पिटल के अंदर। मुझे डर लगता है।" कबीर ने बिना किसी भाव के कहा।

"क्यों?"

"मेरी और महिमा की शादी को सिर्फ पंद्रह दिन बचे थे, और उसकी शूट चल रही थी। हमारे शादी से पहले का उसका लास्ट शूट था। वोह एक एक्शन सीन कर रही थी। उसने इंसिस्ट किया था की वोह यह सीन खुद करेगी और बॉडी डबल से नही करवाएगी। परफॉर्म करते वक्त, उसका बैलेंस बिगड़ गया और वोह बिल्डिंग की टेंथ फ्लोर से नीचे गिर गई। वोह पंद्रह दिन तक कोमा में रही और मैं पूरे समय उसके साथ था। उसके लिए प्रार्थना करता था, रोता था, उसके जल्दी ठीक होने की बस कामना करता रहता था। पर पंद्रहवें दिन वोह मुझे छोड़ कर चली गई। जिस दिन हमारी शादी होने वाली थी। उसके बाद से मैं कभी भी हॉस्पिटल नही गया।" कबीर की आंखों में आंसू भर गए थे बताते वक्त। यह पहली बार था की वोह किसी को यह बात बता रहा था।

"आई एम सॉरी। मुझे आपसे यह नहीं पूछना चाहिए था। मैं तोह बस.... मैं..."

"इट्स ओके अमायरा। मैं भी चाहता था की मेरे अंदर की यह बात निकल जाए। इन यादों ने मुझे पाँच साल तक डरा के रखा हुआ है। मुझे उम्मीद है की आज के बाद अब ऐसा नहीं होगा। एनीवे तुम यहां क्यों आई? तुम्हे घर जाना है? कबीर ने बात बदलते हुए पूछा।

"हां।"

"आंटी का क्या? इशान कह रहा था की तुम यहां आज रात आंटी के साथ रहना चाहती हो।"

"इसकी जरूरत नही है। प्लीज मुझे घर ले चलिए।"

कबीर ने कार स्टार्ट कर दी। उसे इतना समझ आ रहा था की कुछ तोह हुआ है जो अमायरा को परेशान कर रहा है पर वोह अभी चुप रहा। अभी अमायरा को आराम की जरूरत थी।

****

"तुम क्या कर रही हो? पहले ही बहुत देर हो गई है। तुम्हे सोना नही है क्या?" कबीर ने वाशरूम से बाहर निकलते हुए पूछा। अमायरा शीशे के सामने बैठी थी। और अपने आप को ही देख रही थी।

"कुछ ढूंढने की कोशिश कर रही हूं।" अमायरा ने जवाब दिया। कबीर बैड पर बैठ गया लेकिन दोनो एक दूसरे को शीशे के जरिए देख सकते थे।

"खुद में? या शीशे में?" कबीर ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"हां। शायद मुझे कोई क्लू मिल जाए।"

"किस बारे में?"

"जिंदगी के।" अमायरा ने दुखी मन से कहा।

"क्या हुआ है अमायरा? कोई चीज तुम्हे परेशान कर रही है?" कबीर ने पूछा। वोह अब परेशान होने लगा था। क्योंकि अमायरा ने ना ही गाड़ी में कुछ बोला था और ना ही घर आने के बाद।

"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूं मिस्टर मैहरा?" अमायरा ने कहीं खोए हुए पूछा।

"हां। तुम्हे मुझसे परमिशन लेने की ज़रूरत नही है। पूछो क्या पूछना चाहती हो?" कबीर ने प्यार से कहा।

"मैं कैसी दिखती हूं?"

"तुम बहुत खूबसूरत दिखती हो।" कबीर ने बिना सोचे समझे कह दिया, उसे बाद में रियलाइज हुआ की वोह कह गया। लेकिन अमायरा वोह यह जवाब की उम्मीद नही कर रही थी, बल्कि उसे कोई और जवाब चाहिए था।

"नही। मैं नही हूं। यह मैं जानती हूं। पर मैं आपसे पूछ रही थी की मैं कैसी दिखती हूं? क्या मैं मॉम के जैसी दिखती हूं?"

"क्या? यह किस तरह का सवाल है?"

"बताइए मुझे।"

"तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो? हुआ क्या है अमायरा?"

"बहुत कुछ, पर फिर भी, कुछ भी नही।" अमायरा ने जवाब दिया, वोह अपने खयालों में खोए हुए थी।

"तुम मुझे डरा रही हो अब। प्लीज बताओ क्या हुआ है?" कबीर अपना सब्र खो रहा था।

"क्या मैं आपसे कुछ कन्फेस कर सकती हूं? क्या आप उसे सीक्रेट रखेंगे?" अमायरा ने फुसफुसाते हुए कहा। वोह कबीर के नजदीक आ गई थी, उसके साथ बैड पर बैठ गई थी।

"हां अमायरा। मैं हमेशा सीक्रेट रखूंगा।" कबीर ने प्रोमिस करते हुए कहा।

"आपको याद है कुछ महीने पहले आप ने मुझे कहा था की आपको लगता है की मेरी मॉम बायस्ड है? वोह दी को फेवर करती हैं और मुझे नही?" उसने फिरसे फुसफुसाते हुए कहा।

"हां। उस बात का क्या?"

"आप सही थे। वोह हैं। वोह बहुत बायस्ड हैं। यही मैं तबसे शीशे में जानने की कोशिश कर रही थी।"

"मैं समझा नही।"

"आप नही समझे? क्या आपको लगता है की उनका बिहेवियर कुछ इस तरह का है की मैं उनकी बेटी हूं ही नही? जैसे उन्होंने मुझे कहीं से एडॉप्ट कर लिया था? एडॉप्ट किया, पाला, बड़ा किया और प्यार किया जैसे मैं उनकी अपनी बच्ची हूं। पर सिर्फ अपनी बच्ची के जैसे मान के। ना की उनकी असल में अपनी बच्ची समझ के।" अमायरा के चेहरे पर निराशा वाले भाव थे और कबीर ने पहली बार इस हस्ते मुस्कुराते चेहरे पर उदासी देखी थी। ऐसा क्या हुआ जो वोह इतनी दुखी है, कबीर नही जानता था।

"क्या? तुम यह क्या कह रही हो अमायरा? यह सच नहीं है।" कबीर ने आराम से कहा।

"क्यों? क्यों यह सच नहीं हो सकता? क्या आपने नही कहा था की वोह बायस्ड हैं? अमायरा ने प्यार से पूछा।

"मैने कहा था। शायद मैने कुछ ज्यादा ही बोल दिया था। मेरा मतलब यह नहीं था की वोह तुम्हारी मॉम नही है।"

"वोह नही है।"

"क्या सोच कर तुम ऐसा कह रही हो? मुझे यकीन है की कोई गलतफेमी हुई है तुम्हे। क्या तुमने किसी और को यह कहते हुए सुना था?"

"मुझे क्यों जरूरत होगी किसी के कुछ कहने की, जब मुझे खुद दिखता है की मेरे साथ कैसा बरताव किया जाता है?"

"देखो अमायरा, मुझे पता है की तुम्हारी मॉम थोड़ी बायस्ड हैं इशिता की तरफ लेकिन वोह तुम्हारी मॉम हैं, उन्हे तुम्हारी परवाह है। मुझे और चीजों के बारे में नही पता लेकिन, मैं इतना श्योर हूं की वोह डेफिनेटली तुम्हारी रियल मॉम ही हैं।"

"आप इतने श्योर कैसे हो सकते हो?"

"क्योंकि मेरी मॉम मुझे हॉस्पिटल लेकर गई थी जब तुम्हारी मॉम और तुम्हे देखने जब तुम पैदा हुई थी। मैं उस वक्त बच्चा था लेकिन मुझे याद है की तुम एक छोटी सी सुंदर सी बेबी थी उस वक्त। अंकल उस वक्त बहुत खुश हुए थे, और इशिता, वोह तोह बहुत ही ज्यादा खुश हुई थी तुम्हे देख कर।" कबीर ने शांति से बात बताई और अमायरा लंबी लंबी सांसे लेने लगी।

"ओह मिस्टर मैहरा, आपने यह बात बता कर मेरे भ्रम को क्यों तोड़ दिया?

"अमायरा, मुझे बिल्कुल समझ नही आ रहा की तुम क्या कहना चाहती हो।" कबीर कन्फ्यूज्ड हो गया था।

"मैं यह कहना चाहती हूं की उनके इस बिहेवियर के पीछे भी जरूर कोई कारण होगा क्योंकि किसी को नही पड़ी की मैं क्या सोचती हूं, मैं क्या महसूस करती हूं।" अमायरा ने नरमी से कहा।

"यह बात सही नही है। मुझे तुम्हारी परवाह है।"

"सिर्फ आपको है। और किसीको नही।"

"उन्हे भी है। बस यह समझो की वोह पहले इशिता के बारे में सोचती हैं। कभी कभी ऐसा होता है की पेरेंट्स अपना फेवरेट बच्चा चूस कर लेते हैं, उन्हे ही ज्यादा अटेंशन देते हैं, जबकि यह गलत है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की वोह बुरे पेरेंट्स हैं।" कबीर उसके परेशान दिमाग को शांत करने की कोशिश कर रहा था।

"क्या हो अगर मां बाप अपने सगे बच्चे को पूरी तरह झुक्ला देते हैं, ताकि गोद लिए हुए बच्चे के साथ निष्पक्ष रह सकें।" अमायरा ने यूहीं पागलपन में कहा।

"क्या मतलब है तुम्हारा?" कबीर उसे तसल्ली दे रहा था, उसके कंधे पर हलका से सहला कर।

"क्यों वोह मेरे बारे में पहले नही सोचती जबकि मैं उनकी अपनी बेटी हूं दी नही? जब आज वोह होश में आईं तोह उन्होंने सबसे पहले दी के बारे में क्यों पूछा, मेरे बारे में क्यों नही? वोह मेरे साथ सौतेला व्यवहार क्यों करती हैं? क्यों?" अमायरा ज़ोर से चिल्ला रही थी और कबीर शॉक्ड में ही चला गया था।

"क्या?"

"हम्मम। जब उन्होंने अपनी आंखे खोली तोह उन्होंने अपने आस पास देखा। मैं उनके पास ही बिलकुल सामने बैठी थी। उन्होंने मुझे देख कर स्माइल तक पास नही की। और इशिता दी के बारे में पूछने लगी। क्यों? क्योंकि मैं उनकी बेटी हूं और दी उनकी ज़िमेदारी?"

















__________________________
**कहानी अभी जारी है..**
**रेटिंग करना ना भूले...**
**कहानी पर कोई टिप्पणी करनी हो या कहानी से रिलेटेड कोई सवाल हो तोह कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट कर सकते हैं..**
**अब तक पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏**