Bhangarh - 5 in Hindi Horror Stories by Anil Sainger books and stories PDF | भानगढ़ - 5

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भानगढ़ - 5

सुबह समायरा को अलवर के बस अड्डे से बस में चढ़ा कर अमन दिल्ली की ओर निकल पड़ता है | अमन को गाड़ी चलाते हुए कई बार लगा कि समायरा अभी भी उसके साथ है | समायरा की साँस लेने की आवाज और उसके शरीर से आती मादक गंध वह अभी भी महसूस कर रहा था | समायरा का आँसू से भरा चेहरा बार-बार अमन के सामने कौंध रहा था | वह गाड़ी चलाते हुए बुदबुदाया ‘वो जाना नहीं चाह रही थी | लेकिन मजबूरी थी | वरना वो मेरे साथ ही दिल्ली चलती | साथ होती तो मजा आ जाता | कितनी प्यारी बातें करती है | और कितनी सारी बातें करती है | आठ-दस घंटे में उसने अपनी पूरी जिन्दगी की कहानी सुना दी | बहुत ही मासूम और अच्छी लड़की है | किस्मत वालों को ही ऐसा जीवन साथी मिलता है | मैं भूतनियों और चुड़ैलों को ढूंड रहा था | यहाँ तो मुझे जीता-जागता प्यार करने वाला जीवन साथी मिल गया | अमन भाई तेरी तो लाटरी लग गई है | ये सब ईशान और जतिन के कारण हो पाया है | अबे यार उन्हें तो मैंने बताया ही नहीं’, बुदबुदा कर वह फ़ोन उठा ईशान का नंबर मिलाता | घंटी बजती रही लेकिन ईशान ने फ़ोन नहीं उठाया |

अमन गाड़ी सड़क किनारे लगा एक बार फिर ईशान का नंबर मिलाता है | इस बार भी वह फ़ोन नहीं उठाता है | परेशान हो वह जतिन का नंबर मिलाता है | लेकिन वह भी फ़ोन नहीं उठाता है | वह फ़ोन रख फिर से गाड़ी स्टार्ट कर दिल्ली की ओर चल देता है | वह रास्ते भर दोनों को फ़ोन मिलाता रहा लेकिन दोनों ने ही फ़ोन नहीं उठाया | किसी अनहोनी घटना का डर उसे सताने लगा था | आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह दोनों उसका फ़ोन न उठायें | जरूर कुछ हुआ है | यही सोच वह दिल्ली पहुँच कर घर जाने की बजाय उनके घर की ओर चल देता है |

अमन ने गाड़ी जतिन के घर की ओर अभी मोड़ी ही थी कि उसे जतिन सामने से आता दिख जाता है | वह वहीं गाड़ी रास्ते में ही रोक कर जल्दी से उतरता है और भाग कर जतिन से लिपट जाता है | जतिन हैरान हो बोला “अबे तू कब आया और यहाँ क्या कर रहा है” | अमन अलग होते हुए बोला “सालो, तुम दोनों फ़ोन नहीं उठा रहे थे तो मैंने सोचा क्यों न घर जाने से पहले तुम से मिल लूँ” |

जतिन हल्की आवाज में बोला “वो मैं फ़ोन घर छोड़ गया था | क्या बात है तू बहुत खुश लग रहा है | कोई ख़ास बात ही होगी कि तू इतनी दूर से आने के बावजूद यहाँ आ गया है” | अमन ख़ुश होते हुए बोला “हाँ ! बात ख़ास नहीं बहुत ख़ास है | तभी तो मैं रह नहीं पाया और यहाँ तक चला आया | वैसे तू इतना बुझा-बुझा सा क्यों लग रहा है | सब ठीक तो है” |

जतिन गंभीर भाव से बोला “चल घर चल | वहाँ बैठ कर बात करते हैं”|

जतिन सोफे पर बैठते हुए बोला “हाँ ! अब बता कि क्या ख़ास बात है जो तुझे इतनी दूर ले आई” | अमन खुश होते हुए बोला “भाई, मैं तुम दोनों का जिन्दगी भर आभारी रहूँगा | इस बार मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो गईं हैं | भानगढ़ तो मेरे लिए वरदान सिद्ध.......”, वह कुछ और बोल पाता इससे पहले ही जतिन गुस्से से बोला “कहानी मत गढ़ | सीधे-सीधे मुद्दे की बात कर” |

अमन मुस्कुराते हुए बोला “भाई, बात ही कुछ ऐसी है | पूरी बात सुनाने से पहले भूमिका तो बनानी ही पड़ती है | खैर, नाराज क्यों हो रहा है”, कह कर अमन अपने बीते तीन दिन की पूरी कहानी सिलसिलेवार सुना देता है | उसकी बात सुन जतिन की आँखें फटी-की फटी रह जाती हैं | उसके माथे पर पसीने की बूँदें साफ़ दिख रही थीं | वह जबरदस्ती थूक गटकते हुए बोला “क्या कह रहा है.... | ऐसा कैसे..... हो सकता...... है” |

अमन मुस्कुराते हुए बोला “क्यों नहीं हो सकता” ? यह सुन, जतिन अपने माथे का पसीना पोंछते हुए बोला “भाई..... ये बात सही है कि समायरा नॉएडा से भानगढ़ जाने के लिए होली वाले दिन दोपहर एक बजे के करीब निकली थी.... | ले....कि...न......”, वह आगे कुछ बोल पाता इससे पहले अमन बोला “लेकिन क्या ? साले वो पहुँची तो थी | क्या बकवास कर रहा है” |

जतिन एक बार फिर अपने चेहरे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोला “भाई.... मुझे भी समझ नहीं आ.... रहा है कि ये सब क्या.....” ?

अमन गुस्से से बोला “ये अटक अटक कर क्यों बोल रहा है | सीधी बात क्यों नहीं कर रहा है” | जतिन अपनी जगह से उठ अमन के पास आकर बैठते हुए बोला “भाई, समायरा का नॉएडा से दिल्ली आते हुए रास्ते में एक्सीडेंट हो गया था और... और.....” |

अमन मुस्कुराते हुए बोला “हाँ ! तो फिर क्या हो गया | समायरा कह रही थी कि उसके सिर में बहुत दर्द है | हल्की-फुल्की चोट......”, वह कुछ और बोल पाता इससे पहले जतिन अपना काँपता हाथ अमन के कंधे पर रखते हुए बोला “भाई, उस एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई थी.....” |

अमन चिल्ला कर बोला “ऐसे कैसे हो सकता है | मैंने अभी कुछ घंटे पहले ही उसे जयपुर वाली बस में चढ़ाया है | क्यों बेवकूफ बना रहा है” | जतिन, अमन के कंधे को दबाते हुए बोला “भाई, यही तो मुझे नहीं समझ में आ रहा है कि ऐसे कैसे हो सकता है | हमें उस दिन शाम छः बजे सफदरजंग अस्पताल से फ़ोन आया था | समायरा की नॉएडा वाली मौसी ने ईशान के घर फ़ोन किया था | हम सब शाम सात बजे के करीब जब अस्पताल पहुँचे तो डॉक्टर ने बताया कि उसे सिर में जबर्दस्त चोट लगी है | वह अभी कुछ देर पहले ही कोमा में चली गई है | यानि होली वाले दिन शाम सात बजे वह कोमा में थी | उससे अगले दिन सुबह ग्यारह बजे जब समायरा तुझे वहाँ होटल मिली उस समय दिल्ली में उसकी डेथ हो चुकी थी | और...... आज..... जिस समय तूने उसे बस में चढ़ाया था उसके कुछ देर बाद ही हमने उसकी चिता को अग्नि दी थी”, कह कर वह चुप कर जाता है |

अमन और जतिन का चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था | दोनों ही कुछ भी बोलने की हालत में नहीं थे | वह दोनों वहीं सोफे पर पसर जातें हैं | लेटते ही दोनों नींद के आगोश में समा जाते हैं |

अचानक कमरे का दरवाजा खुलता है | आवाज सुन दोनों एक झटके से उठते हैं | सामने दरवाजे पर सफेद साड़ी पहने औरत को देख, दोनों एक साथ बोले “समायरा तुम......”!