Bhutan Ladakh aur Dharamshala ki Yatraye aur Yaadey - 12 in Hindi Travel stories by सीमा जैन 'भारत' books and stories PDF | भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 12

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भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 12

12…

तीसरा दिन

आज मुझे अकेले ही कुछ और दर्शनीय स्थल देखने जाना था। शिखा लखनऊ वापस जा रही थी। मैं नाश्ता कर रही थी तब श्री ने मुझे कहा कि 'यदि चाहो तो आप मैक्स, जो जर्मनी से आया हुआ है के साथ लोकल साइट सीन के लिए जा सकती हो। वह आपके साथ जाना पसंद करेगा। जिन स्थानों पर आप जा रही हो वे जगह उसने भी नहीं देखी है।’ सोलो ट्रेवलर हर रोज कहीं जाएं, ये जरूरी नहीं। साथ ही वो पैसों की बचत की भी चिंता करते हैं तो जब उन्हें जब, जैसा साथ मिलता है उसके साथ चलना पसंद करते हैं। यह मेरे लिए अच्छा ही हुआ, मुझे कंपनी व पैसों का सहयोग भी मिल गया।।

 मैंने कहा 'बहुत अच्छी बात है उनका स्वागत है।’

 मैक्स ने मुझसे बहुत ही सहजता से बातचीत शुरू की जो मुझे बहुत अच्छी लगी। वह साइंस में ग्रेजुएशन कर चुके थे। अपनी एक साल की जॉब के बाद वह ट्रैवल पर निकले थे। इससे पहले वह इराक में एक महीने रहे। उनके माता-पिता दोनों डॉक्टर हैं। इंडिया भी वह दो महीने के लिए आए थे। 

अभी करीब पंद्रह दिन से वह लद्दाख में है। मुझे विदेशी पर्यटकों की ट्रैवल करने की एक बात बहुत अच्छी लगी कि ये बड़े इत्मीनान से किसी जगह रहते हैं। उस जगह का स्वाद लेते हैं। उसे जीते हैं। हर रोज सुबह उठकर भागते हुए अधिकतम पर्यटक स्थल देखने की हमारी दौड़ से बेहतर यह तरीका है। एक बहुत ही रिलेक्स सोच के साथ घूमना मुझे भी बहुत पसंद हहै

 कितनी जगह गए इससे ज्यादा महत्व है हम कितना ठहरे, ररूके और उस जगह को कितना अपने अंदर जमा कर सके। यही तो वह धन है जो अकेले में अपनी यादों के साथ जीने की ताकत बनता है। मैक्स के साथ बातें करते हुए हम अपने पहले डेस्टिनेशन पर पहुंच गए। संगम का पानी और उस जगह की ठंडी हवा, मैं आज भी महसूस कर सकती हूं।

मैक्स ने मुझे बताया कि 'वह अपने घर में रोज़ाना बर्तन साफ करते हैं।’ उसकी मॉम ने उसे चॉइस दी थी कि या तो वह खाना बनाए या बर्तन साफ करें। मैक्स ने बर्तन साफ करना पसंद किया।

वह मुझसे बोले- 'जब वह हॉस्टल में खाना बनाने वाले को बर्तन साफ करते हुए देखता हूं तो मुझे बहुत दुख होता है। सब लोग अपने बर्तन खुद साफ क्यों नहीं करते?' ये उनका सवाल था। 

उस दिन के बाद मैं जब तक वहां रही मैंने अपने बर्तन खुद ही साफ किए। श्री मुझसे कहती थी ‘ आप क्यों साफ कर रहे हो? विजय है ना, वह कर देगा।’

 मैंने उसे सिर्फ इतना ही कहा ‘एक प्लेट और एक कुकर साफ करने में कितनी देर लगती है?' मैक्स के सवाल का जवाब तो हमारी व्यवस्था का जवाब है। जहां रोजगार के अवसर के रूप में बिहार से लोग यहां आकर यह सारे काम कर रहे हैं।

संगम, नदी जो मुझे ऊपर, हवाई जहाज से बहुत महीन सुंदर दिख रही थी। यहाँ अपनी मस्ती में झूमती, बहती हुई बहुत सुंदर लग रही थी। नदी ही तो हमें सिखाती है- बहते रहना, जो साथ रखने लायक नहीं है उसे किनारों पर छोड़ते हुए आगे बढ़ने का नाम ही जीवन है!

लौटते समय हम गुरुद्वारे में दर्शन के लिए रूके। मैक्स को चाय और बूंदी तो अच्छी नहीं लगी। जब गुरू नानक जी के दर्शन करके बाहर निकल रहे थे तो हमें हलवा मिला। जो मैक्स को बहुत अच्छा लगा। मैंने अपने पास का हलवा भी मैक्स को देना चाहा तो वह बोले 'यह तो बहुत अच्छा है आप खाइए!’

मैंने कहा 'यह हलवा हम अपने घर में भी बना लेते हैं पर तुम्हारे लिए यह नई चीज है तुम इसे ले लो।’

उन्होंने बड़ी खुशी से हलवा खा लिया। अब याद करती हूं तो लगता है मैंने एक गलती कर दी। मैं हॉस्टल में मैक्स के लिए हलवा बना सकती थी। साथ ही वह भी हलवा बनाना सीख जाते। विकसित देशों के बच्चों की आत्मनिर्भरता मुझे अच्छी लगती है। अपना हर काम खुद कर लेने वाले बच्चे हमारे परिवारों में कम ही मिलते हैं। बेटा या बेटी के भेद के बगैर बच्चों में आत्मनिर्भरता होनी चाहिए। ये अनुशासन जीवन की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।

जब हम घूम कर वापस आए तो मुझे मैक्स को एक रेस्टोरेंट दिखाना था। जहां से कल रात मैंने पास्ता खाया था। 80 ₹ की एक प्लेट में इतना पास्ता था कि मेरा लंच व डिनर दोनों हो गया था। किचन में जब मैं उसे रात के समय गर्म कर रही थी तो श्री ने पूछा था 'ये आप कहां से लाए?'

मैंने जब जगह का नाम और कीमत बताई तो किचन में काम कर रहे या खाना खा रहे साथियों के कान खड़े हो गए थे। सब उस जगह का पता जानना चाहते थे। मैंने वो पास्ता मैक्स और अपनी मुंबई से आयी एक यात्री के साथ शेयर किया था।

मैक्स से मैंने पूछा कि 'क्या वह अभी यहां से कुछ लेना पसंद करेगा?'

'नहीं मुझे आज शाम के खाने के लिए बाहर से कुछ लेने की जरूरत नहीं है। मैं अपनी तैयारी करके आया हूं।'

पैसों की बचत व एक बजट के साथ ही आप इतनी छोटी उम्र में यात्रा कर सकते हैं। यह मेरी सोच भी है जो परिवार के साथ या समूह में घूमने पर बिल्कुल नहीं हो सकता है। हमारा कोई साथी कभी सोच भी नहीं सकता कि दिनभर घूमकर आने के बाद वो अपना खाना खुद बनायेगा। यहां फिर वही बात आती है कि खाना तो सिर्फ महिला ही बनायेगी। पति या परिवार साथ में किचन में समय दे, ये मुमकिन नहीं है।

ख़ैर, हम सबके जीवन में कुछ न कुछ है जो हम एक दूसरे से सीख सकते हैं। एक रात जब मैं श्री, टीना और मैक्सिको से आईं क्रिस्टीन के साथ हम चारों बातें कर रहे थे। यही बात क्रिस्टीन ने कही की 'उसे भारतीय परिवारों का आपसी तालमेल बहुत अच्छा लगता है। जो उसने अपने बचपन में ही खो दिया था।' कहते हुए उसकी आंखों में आसूं आ गए। जो मुझे विचलित कर गए।

ये हम सबके जीवन का सच भी है किसी का जीवन पूर्ण नहीं है। कहीं न कहीं कुछ न कुछ कम तो है ही, शायद इसलिए प्रकृति ने अपने विविध रंग के साथ इस धरा को सजाया है। कहीं बर्फ तो कहीं पर्वत, कहीं मैदान तो कहीं गहरी खाई और झरने रेगिस्तान हो या उपजाऊ भूमि सबको फूल दिए साथ ही कांटे भी दिए।

 और ये धरा हमारे लिए एक अध्ययनशाला का काम करती है। सबके जीवन की कमियों को प्रकृति अपने सौंदर्य से पूरा करती है। बस उसे देखने की निगाह हो तो हमारा नजरिया बदल सकता है। टीना और श्री के जीवन में भी अलग अलग समस्याएं थी। श्री ने अपनी मर्जी से विवाह किया लड़का योग्य नहीं था। माता-पिता ने समझाया पर वो वक़्त उनकी बात मानने का नहीं, उन्हें अपना दुश्मन समझने का था।

 शादी के एक महीने बाद ही श्री को समझ आ गया था कि वह एक भयंकर भूल कर चुकी है। शादी के बाद भी पिता श्री से बात करते थे। मां ने बातचीत बन्द कर दी थी। एक दिन श्री ने पिता को अपने पति के बारे में कुछ शब्द ही कहे कि एक अनुभवी, अपनी बेटी से प्यार करने वाले पिता श्री के हालात समझ गए। श्री ट्रेन में घर से भागी थी। उसके पति ने उसे जान से मारने की तैयारी कर ली थी।

शादी एक हादसा भी हो सकती है इसके लिए घर के लोगों की बात को सुनने, समझने की जगह जरूर होनी चाहिए। अब श्री की मां चाहती हैं कि उसकी दूसरी शादी कर दी जाए। पर श्री अब अपना एक हॉस्टल डेवलप करना चाहती है। किसी हिल स्टेशन पर, जिसके लिए उसके पिता पूरी तरह से उसके साथ हैं। एक रात और कितनी बातें, कितनी कहानियां, कितने पात्र! देश या शहर कोई भी हो, सबके जीवन से जुड़े संघर्ष और अनुभव एक से ही लगते हैं।

अदिती की बात सच ही थी कि ऐसे अनुभव सोलो ट्रेवलर को ही मिल सकते हैं। साथ ही एक लेखक के लिए तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि भी है। हमारे अनुभव से, दोस्ती और जीवन को देखने के नजरिए में एक बड़ा रूपांतरण हो सकता है, जब हम इन रास्तों से गुजरते हैं।

अगली सुबह टीना को पेंगाग लेक और क्रिस्टीन को दिल्ली जाना था। करीब रात के तीन बजे हम सब अपने-अपने कमरे में गए। क्रिस्टीन की एक बात आज भी याद आती है। जब उसने कहा था कि 'मैं राजस्थान एक बस में घूम रही थी। मेरे पीछे जो कपल बैठा था वो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। धोती-कुर्ता, रंगीन पगड़ी और बड़ी मूंछ वाला वह व्यक्ति मेरी जिंदगी का सबसे हैंडसम व्यक्ति था। मैंने उसके साथ अपना फोटो लिया था। यह बात उससे कही भी थी। जिसका जवाब उसने एक ऐसी मुस्कुराहट से दिया था, जो आज भी मुझे रोमांचित कर जाती है।'

ये यात्राएं हमारे जीवन को, हमारी यादों को कितना कुछ दे जाती हैं। जो आने वाले समय की ताकत बन कर हमारे साथ चलती है। हर दिन एक नया अनुभव, कुछ नये लोग, नयी बातें मेरी इस यात्रा का यही धन रहा। जो मेरे लिए अनमोल है।

मेरे कमरे में जो दो वियतनामी महिलाएं थीं। उसने मेरी अभी तक कोई खास बातचीत नहीं हुई थी। आज सुबह कमरे में हम तीनों ही थे। शायद उन्हें भी आज कहीं जाने की जल्दी नहीं थी। हम लोगों ने बातें की, उनको हमारे देश के बारे में बहुत कुछ पता था। त्यौहार, खान-पान, पहनावा उन्होंने मुझसे इन सबसे जुड़े कई सवाल किए। उनकी जिज्ञासा मुझे बहुत अच्छी लगी। साथ ही लगा कि मैं वियतनाम के बारे में कुछ भी नहीं जानती हूं।

 यदि हम कहीं घूमने जाएं तो वहां से जुड़ी जानकारी हमारी पास होनी चाहिए। यात्रा के साथ उससे जुड़ी जानकारी की बात करें तो अदिती ने जर्मनी जाने से पहले सेकंड वर्ल्ड वार से जुड़ी कुछ किताबें पढ़ी थी। साथ ही कुछ डॉक्यूमेंट्री भी देखी थी।

जो उसकी यात्रा को ज्यादा रोचक (सच कहें, तो जर्मनी की यात्रा को रोचक कहना जरा मुश्किल ही होगा। क्योंकि जहां- जहां हिटलर के निशान हैं वो हर जगह मार्मिक है। उस जगह जाकर उन्हें देखना मानवता के इतिहास का एक ऐसे दौर को देखना है जिसे हम देखते तो हैं पर वो हमारे मन को भिगो देता है। वहां से बाहर निकल कर मन में यह बात नहीं आती है कि हमनें कोई दर्शनीय स्थल देखा है बल्कि यह बात मन में आती है कि मानव ने कभी इतनी वेदना भी सही थी? यह सोचकर मन उदास ही हो जाता है।) बना पाई थी।

6.सेरज़ंग मंदिर

17 वीं शताब्दी में बनाया गय था, यह लद्दाख से 40 किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर की अनूठी विशेषताओं में से एक यह है कि इसके निर्माण में सोने और तांबे का उपयोग बड़े पैमाने पर किया गया है।

मैत्रेय बुद्धा की एक 30 फीट लंबी खड़ी प्रतिमा, जिसे भविष्य के बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है, मंदिर में विराजमान है। टिलोपा, मार्पा, मिल रास्पा और नरोपा जैसी कुछ शानदार पेंटिंग्स हैं, जिन्हें मंदिर में रखा गया है। बुद्ध और रेड हैट संप्रदाय से संबंधित लोगों के चित्र मंदिर की दीवारों पर चित्रित किए गए हैं।

सेरज़ंग एक पांडुलिपि है जो कि तिब्बती बौद्ध कैनन की एक प्रतिलिपि है, यह तिब्बती बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों की पहचान कराने वाले सभी पवित्र ग्रंथों को सूचीबद्ध करती है। यह चांदी, सोने और तांबे के पत्रों पर लिखी गई है, और वर्षों से इस मंदिर में रखी हुई है।

 

  1. 7.काली मंदिर

 काली मंदिर इसे स्पितुक गोम्पा के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ माँ काली के साथ देवता ‘जिगजित’ की मूर्ति स्थापित है।

  1. 8. गुरुद्वारा पत्थर साहब

गुरुद्वारा पत्थर साहब लेह के आकर्षक दर्शनीय स्थलों में से एक है। इस रास्ते से गुजरने वाले यात्री यहां माथा टेकने के लिए जरूर रूकते हैं। गुरूद्वारे का अनुशासित संचालन हर गुरूद्वारे जैसा ही है। यहाँ एक शिला पर मानव आकृति उभरी हुई है। ऐसा माना जाता है कि यह आकृति सिखों के प्रथम गुरु नानकदेवजी की है।

 कारगिल, लद्दाख का दूसरा सबसे बड़ा क़स्बा है। कारगिल को अगास की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। कारगिल, अपने मठों, खूबसूरत घाटियों और छोटे टाउन के लिए लोकप्रिय है। इस स्‍थान पर कुछ महत्‍वपूर्ण पर्यटन आकर्षण और बौद्ध धर्म के धार्मिक केंद्र जैसे सनी मठ, मुलबेख मठ और शरगोल मठ स्थित हैं।

सर्दियों में लद्दाख की यात्रा के नाम पर अधिकतर चादर ट्रैक ही प्रसिद्द है जो की बर्फ जमी ज़न्स्कर नदी पर किया जाता है और ट्रैकिंग की दुनिया में सबसे मुश्किल ट्रैक माना जाता है । जो लोग इसे कर सकते हैं वो इन दिनों यहां आना पसंद करते है।

जो बर्फ से ढके लद्दाख के सौंदर्य को देखना पसंद करते हैं वो भी सर्दियों में यहां आते हैं। वो समय एक रिस्क लेकर हम वहां जाएं, हो सकता है हम घूम सकें या माईनस टेंप्रेचर इतना गिर जाए कि हम अपने कमरे से बाहर न निकल सकें। कुछ होटल व गेस्ट हाउस ख़ास इन दिनों की मेजबानी करने के लिए खुले होते हैं।

 

 9.चुंबकीय पहाड़ी और चिल्लिंग गांव

चिल्लिंग, प्रसिद्ध चादर यात्रा का प्रारंभ बिंदु है। यह यात्रा सर्दियों के दिनों में जांस्कर नदी पर की जाती है, जब इस नदी का पानी पूरी तरह से जम जाता है। यात्री इस जमी हुई नदी पर चलकर यह यात्रा करते हैं। अगर आप अधिक सर्दियों में लद्दाख की नदियों और पर्वतों के नज़ारे देखने में रुचि रखते हैं, तो आपको चिल्लिंग की यात्रा जरूर करनी चाहिए। इस यात्रा के दौरान आपको जमी हुई जांस्कर नदी देखने का मौका मिलता है।

चिल्लिंग जाते समय आपको चुंबकीय पहाड़ी से गुजरते हुए जाना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है की लद्दाख की कई पहाड़ियों में से एक की चुम्बकीय शक्ति अति प्रबल है। कई बार गाड़ियाँ इसकी और स्वतः ही खिंची चली जाती हैं। हालाँकि मैंने व्यक्तिगत रूप से इस चुंबकीय क्षेत्र को महसूस नहीं किया और ना ही मुझे ऐसा कोई अनुभव हुआ।

सच तो यह है कि ये पहाड़ लौह के अयस्कों से भरे हैं। इसलिए यह हो सकता है कि बाकी की पहाड़ियों से अधिक चुंबकीय आकर्षण इस पहाड़ी पर महसूस होता है और लोहे के बने विशाल वाहनों पर इसका असर ज्यादा होता हो। अधिकतर लोग यही बात कहते हैं कि उन्होंने कोई चुम्बकीय शक्ति नहीं महसूस कि उसके बावजूद सब वहां रूककर इस पीछे आती ( अपनेआप थोड़ा सा ढलान है शायद उसके कारण या वाकई कोई चुम्बकीय शक्ति है जो उसे पीछे खींचती है।) गाड़ी को देखते जरूर हैं।

10.जांस्कर नदी और सिंधु नदी का संगम स्थल

इस यात्रा के दौरान जांस्कर नदी और सिंधु नदी के संगम बिंदु सबसे विहंगम दृश्य है। ये महीन-सी रेखा मुझे प्लेन से भी बहुत आकर्षित करती है। यह सबसे सुंदर और अद्भुत संगम है जो मैंने आजतक देखा है। मैले से हरे रंग की सिंधु नदी लेह से बहती हुई प्राचीन नदी जांस्कर से जाकर मिलती है।

संगम बिन्दु के इस भाग से थोड़ी दूरी तक इन दोनों नदियों का पानी समानांतर बहता है। ऐसा लगता है जैसे ये दोनों नदियां एक दूसरे से बंधी साथ तो चलती हैं, पर अपनेआप में दोनों स्वतंत्र हैं। इन दोनों नदियों के हरे-नीले पानी के स्वतंत्र संगम का यह नज़ारा देखने लायक है।

जनवरी के महीने में यहां की नदियों के किनारे जमने लगते हैं और इस जमे हुए बर्फ के टुकड़े नदी में तैरते हुए दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे आप जांस्कर नदी से गुजरते हुए चिल्लिंग की ओर बढ़ते हैं, बर्फीले किनारों से घिरा हुआ नदी का नीला पानी आपको मंत्रमुग्ध कर देता है।

यह नज़ारा बहुत ही मनमोहक है। कुछ जगहों पर नदी का पानी थोड़ा-बहुत जम जाता है और नदी पर बर्फ की पतली सी परत चढ़ने लगती है, जिसके नीचे से बहते हुए पानी की सिर्फ आवाज़ सुनाई देती है। तो कुछ जगहों पर यह जमी हुई बर्फ ओले के समान प्रतीत होती है जिसके विभिन्न आकार-प्रकार आपको अचंभित कर देते हैं। हमारे साथ हमारे टैक्सी ड्राइवर भी एक तरह से गाइड का कार्य करते हैं। वे हमें बहुत सी जानकारियां देते हैं। जो स्थानीय लोगों द्वारा ही संभव है।

मेरी वियतनामी मित्रों के साथ हमनें अपनी एक दिन की यात्रा का प्लान बनाया।