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21/9/18
फूनशोलिंग
भूटान गेट: फूनशोलिंग भूटान के चुखा जिले में इंडिया भूटान सीमा पर स्थित है। सीमा के भारतीय तरफ जयगांव व् भूटान की तरफ फुंनशोलिंग है। इसलिए इसे भूटान गेट कहते हैं। यहाँ से हम भूटान में प्रवेश करते हैं। यहां लकड़ी से बना एक शानदार गेट है। यह बागडोगरा हवाई अड्डे से 164 km की दूरी पर है।
फूनशोलिंग में भारतीय बिना किसी पासपोर्ट या परमिट के रह सकते हैं। फुनशोलिंग से आगे जाने के लिए हमको भूटान सरकार से परमिट लेना पड़ता है।
फूनशोलिंग एक साफ़ सुथरा शहर है। ट्रेफिक नियमों का यहाँ पुरी तरह से पालन किया जाता है। जेब्रा क्रासिंग पर पैदल चलने वालों को पूरा सम्मान दिया जाता है। यहाँ के निवासियों का जीवन सादगी भरा है। और जीवन की गति यहाँ सामान्य है। भूटान गेट को सशस्त्र सीमा बल (SSB), अर्धसैनिक बल और भूटान पुलिस द्वारा संचालित किया जाता है।
आज मेरी भूटान में यह पहली सुबह थी। करीब छह बजे ही मेरी नींद खुल गई। रात में तो अपने घर को ढूंढने की जल्दी थी। वैसे भी एक अनजान जगह रात में क्या देखती?
सुबह देखा तो नजारा बहुत सुंदर था। मेरे स्टे के आसपास काफी मल्टी स्टोरी बनी थी। सबकी खिड़कियों का पैटर्न एक जैसा था। सामने एक बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन का कार्य चल रहा था। आसपास घने पेड़, दूर पर्वत जो थोड़े बर्फ से ढके थे। बहुत साफ-सुथरे बादल मुस्कुराते हुए अच्छे लग रहे थे। जिस जगह का प्रदूषण का स्तर कम हो वहां का आसमान धुला- धुला सा लगता है। जैसे सिर्फ बारिश के बाद हमें अपने घर के बाहर भी देखने को मिल जाता है।
ऐसा ही धुला आसमान बिंसर ( नैनीताल से थोड़ा ऊपर की ओर) भी देखा था। दूर बर्फ से ढके पर्वत और ऊपर नीला आसमान, एकदम सफ़ेद झक बादल, ऐसा लग रहा था कि यहां बादल भी बड़े आराम से सांस ले रहे है। आकाश में तैर रहे हैं। आकाश से निगाह हटाई तो याद आया मैं नीचे कुछ खाने – पीने का सामान देखने आई थी।
अब तो मुझे चाय पीने की इच्छा हो रही थी। आसपास कोई दिखे तो मैं उनसे बात करूँ, यह सोच ही रही थी कि एक महिला सुबह की वॉक के लिए मेरे सामने से निकली।
मैंने उनसे, “hello, good morning” के साथ बात आरंभ की। जवाब में उन्होंने भी रुककर जवाब दिया। मैंने उनसे आसपास किसी चाय की दुकान के लिए पूछा। उन्होंने कहा- “यहाँ से थोड़ी दूर जाने पर ही कुछ मिल पायेगा पर अभी तो सात भी नहीं बजे हैं। इतनी जल्दी थोड़ा मुश्किल ही है।”
जहाँ हम बात कर रहे थे। वहीं सामने एक किराने की दुकान थी। वह महिला उस दुकान में गईं। उन्होंने उस महिला से भूटानी में कुछ कहा। फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली- “ये आपको चाय बना कर दे देंगी।”
किसी अनजान के लिए इतना वक्त और सहयोग देना मुझे लुभा गया। वह महिला मेरे धन्यवाद का जवाब, एक मुस्कुराहट के साथ दे कर आगे बढ़ गईं।
पर मेरे दिल में उस महिला के लिए जगह बन गई जो हमेशा रहेगी। साथ ही यह सवाल भी मन में उठा कि क्या मैं किसी अजनबी विदेशी को इतना वक्त दे पाती?
उस किराने की दुकान वाली महिला ने मुझे बड़े स्नेह से चाय बना कर दी। मैंने उनकी दुकान में ही बैठकर चाय पी। कुछ खाने का सामान व फल वगैरह लिए। खाने का सामान देख कर लगा हम भारत की ही किसी किराने की दुकान पर खड़े हैं। बिस्किट, नमकीन खाने के अधिकतर सामान भारतीय ही थे। बस एक अंतर था कि किराने के सामान के साथ फल भी रखे थे।
पहली बार भूटानी मुद्रा मेरे हाथ में आई। रुपया और वहाँ की मुद्रा का मूल्य एक ही है। उन लोगों की मुद्रा में दोनों मुद्रा मिली होती है। बदले में वो हमें कुछ भी दे देतें हैं।
यहाँ मैं आपसे कुछ बातें कहना चाहूँगी। हमें अंग्रेजी का कम से कम काम चलाऊ ज्ञान होना बहुत जरूरी है। बिना भाषा के भी लोग अपना काम तो चला ही लेते हैं। पर जानकारी से सुविधा बढ़ती है।
कल रात से ही महसूस किया था कि यहाँ के लोग हमसे अंग्रेजी में बात करते हैं। हिंदी शायद कुछ लोग समझ जाये पर अंग्रेजी वैश्विक स्तर पर एक जरूरत है।
कल से अब तक मैंने सबसे अंग्रेजी में बात की, हमारा बातचीत का माध्यम यही भाषा बनी। भाषा के ज्ञान पर अपना दायरा विस्तृत हो तो यह सुविधाजनक होता है।
अपने कमरे में आकर मैंने नाश्ता किया। कुछ फोन पर बातें की जो मेरा हर दिन का क्रम रहेगा। अपने परिवार से बात करना और यहाँ के फोटो भेजना।
मुझे भूटान का परमिट लेना था। जिसके लिए रास्ता पूछते हुए करीब दस मिनिट में मैं परमिट ऑफिस पहुँच गई। मेरे साथ मेरा पासपोर्ट, एक फोटो था जिसकी जानकारी मुझे पहले से थी।
आवेदन पत्र भरने के बाद जब उसे जमा करने की पंक्ति में खड़ी हुई तो अधिकारी ने पूछा- “आप अकेली हैं?”
“हाँ!”
“तो आपको एक पत्र लिखकर देना होगा कि आप अपनी जिम्मेदारी पर यहाँ आईं हैं।”
ये बात मुझे कुछ अजीब लगी। मैंने अधिकारी से कहा- “एकल यात्री तो पूरे विश्व से यहाँ आते होंगे तो क्या ये सबके लिए लिखना जरूरी है?”
उनका स्पष्ट जवाब था:-“हाँ!”
व्यवस्था के आगे बहस बेकार ही होती है। मैंने पत्र लिखा और मुझे एक घण्टे में परमिट मिल गया। यहाँ परमिट लेने के लिए कोई शुल्क नही देना होता है। किसी एजेंट के द्वारा लेने पर वो आपसे ₹500 वसूल ले पर सरकार तो इसे मुफ्त में ही देती है।
ऑफिस के सारे कर्मचारियों घो व किरा ( भूटानी पारम्परिक वेशभूषा) पहने हुए थे, जो नियमानुसार जरूरी है। साथ ही अधिकतर लोगों के कपड़ों पर राजा-रानी के फोटो का बेज लगा था।
जो जरूरी नहीं होता है पर अधिकतर लोग प्रेम-वश इसे लगाते हैं। यहाँ महिला व पुरुष कर्मचारी बराबर ही थे। जो आगे भी मुझे हर जगह एक से ही मिले। बहुत शांत, ननम्र मृदुभाषी!
इस ऑफिस से आप चाहें तो भूटानी सिम भी ले सकतें है। ₹210 में सिम मिल जाती है। जो अधिकतर लोग लेना पसंद करतें हैं।
जब आप अकेले यात्रा कर रहे हैं तो बेहतर है आप बस या साझा टैक्सी में यात्रा करें। सावधानी, बचत दोनों ही ठीक रहती हैं। वैसे भूटान के लोगों के बारे में कहा जाता है के ये लोग बहुत सज्जन होते हैं। आजतक मेरा भी यही अनुभव रहा।
सड़को पर चलने वाली गाड़ियों के देखकर लगता है कि हम भारत में ही हैं। अधिकतर वही गाड़ियाँ दिखाई दे रहीं थीं जो हम अपने देश में देखते हैं।
मगर यातायात के नियम व पुलिस की मुस्तैदी बहुत अलग है। साथ ही नागरिक भी बेहद अनुशासित है। एकदम साफ सड़कें, आसपास हरियाली और पारंपरिक सामान से सजी यहाँ की दुकानें अच्छी लग रही थी। पर मुझे जल्दी थी। पारो पहुँचना था। आज से मेरा कमरा वहीं के लिए मैंने आरक्षित करवा रखा था। मैंने खाने का थोड़ा- सा सामान लिया।
एक जगह कुछ लोग समोसे व जलेबी ले रहे थे। मैंने भी समोसे लिए साथ ही एक टैक्सी ली। अब मुझे अपना सामान गाड़ी में रखकर अपने आगे की यात्रा पर निकलना है।
कमरे से अपना सामान उठाया। अपनी होस्ट को घर की चाबी दी। उससे विदा लेकर मैं नीचे आकर अपनी गाड़ी में बैठी। होमस्ट छोड़ते समय कोई कुछ भी नही देखता है। सब कुछ विश्वास पर ही चलता है। यह मेरे पिछले दोनों अनुभव भी रहे।
उस फ्लैट में एक बात पर मैंने गौर किया कि लोगों के घर के दरवाजे बंद नहीं रहते हैं। वह खुले ही होते हैं। अपने घर में फ्लैट के दरवाजे के खुले रहने का सोचना भी मुझे अजीब लगा। ये लोग किस्मत वाले हैं कि बड़े आराम से रह लेते हैं।