Jangal chalaa shahar hone - 6 in Hindi Children Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | जंगल चला शहर होने - 6

Featured Books
  • నిరుపమ - 10

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 9

                         మనసిచ్చి చూడు - 09 సమీరా ఉలిక్కిపడి చూస...

  • అరె ఏమైందీ? - 23

    అరె ఏమైందీ? హాట్ హాట్ రొమాంటిక్ థ్రిల్లర్ కొట్ర శివ రామ కృష్...

  • నిరుపమ - 9

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 8

                     మనసిచ్చి చూడు - 08మీరు టెన్షన్ పడాల్సిన అవస...

Categories
Share

जंगल चला शहर होने - 6

कंगारू हाथ में थैला लिए इधर उधर घूम रहा था।
असल में जब वो हेलीकॉप्टर की सैर करने के बाद वापस लौट कर अपने घर पहुंचा तो उसने पत्नी को बताया कि पेंगुइन ने उसे रास्ते में खाने के लिए छः तरह के लड्डू दिए थे।
बस, तभी से उसने ज़िद पकड़ ली थी कि उसे छः तरह के लड्डू बनाने का सामान लाकर दो।
बेचारा कंगारू इसी सामान को खरीदने के लिए बाज़ार में घूम रहा था। उसकी समस्या ये थी कि उसे छः तरह के लड्डू बनाने का सामान पता नहीं था।
रास्ते में जो भी उसे मिलता वह उसी से पूछता कि छः तरह के लड्डू किससे बनते हैं? पर कोई भी अब तक उसे उत्तर नहीं दे पाया था।
जब घूमते- घूमते दोपहर हो गई तब जाकर एक बकरी ने उसे बताया कि छः तरह के लड्डू के लिए सारा सामान उसे ऊदबिलाव की दुकान पर मिलेगा। ऊदबिलाव का सुपरस्टोर कुछ ही दूरी पर था।
कंगारू ने लड्डू बनाने के सारे सामान के साथ- साथ कई तरह के अचार भी वहां से खरीदे। ऊदबिलाव ने उसे समझाया कि अचार लड्डू के साथ मत खाना।
अगले दिन सुबह सुबह मांद महल में राजा शेर और रानी साहिबा बैठे सुबह की चाय पीने के साथ अख़बार पढ़ने का आनंद ले रहे थे तभी सहायिका लोमड़ी ने उन्हें जिराफ़ का निमंत्रण पत्र लाकर दिया।
जिराफ़ जल्दी ही एक नई मॉल खोल रहा था जिसका शुभारंभ वो रानी साहिबा के हाथ से करवाना चाहता था। उसने उनसे मिलने का समय भी मांगा था।

जंगल बहुत तेज़ी से बदल रहा था।
जिराफ़ को मॉल बनाने की अनुमति राजा शेर से मिलते ही उसका काम बहुत तेज़ी से शुरू हो गया। जिराफ़ ने पांच सौ बंदरों को काम पर रख लिया था जिससे काम दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से हो रहा था।
बाज़ार में एक दिन कंगारू थैला लेकर क्या घूमा कि बकरी के कैफे की बगल में ही भेड़ ने "छः तरह के लड्डू का सामान" नाम से एक जनरल स्टोर खोल लिया था। अब सूजी, बेसन, बूंदी, नारियल, गोंद और तिल के लड्डू बनाने का सारा सामान भेड़ की दुकान पर एक ही जगह उपलब्ध था।
उधर एक चमत्कार हुआ। मॉल के लिए जिराफ़ को बहुत रुपए की ज़रूरत थी।
संयोग से बर्डीज़ बैंक की चेयरमैन मोरनी और एम डी मैना देवी से उसका संपर्क हुआ तो उन्होंने एक शानदार प्रस्ताव रख दिया। उनका कहना था कि वो जिराफ़ को मॉल के लिए जितना भी रुपया चाहिए, सस्ती दर के लोन के रूप में देंगी, बदले में उन्हें मॉल में उनके बैंक के मुख्य कार्यालय के लिए पूरी एक मंज़िल बना कर देनी होगी। जिराफ़ ने इसके लिए करार कर लिया। आखिर भारी- भरकम किराया भी तो बैंक से मिलने वाला था। लिहाज़ा अब रुपए की कोई दिक्कत न रही और काम ज़ोरदार तरीके से चल निकला।
चारों तरफ विकास के बेशुमार कामों के चलते जंगल में कामगारों की भारी कमी हो गई थी और स्कूल के बच्चे तक पार्टटाइम जॉब करके रुपया कमाने लगे थे। जो भी आता फौरन काम पा जाता।
लेकिन एक घटना ऐसी घटी जिसने सबको चौकन्ना कर दिया।

जंगल में अभी तक किसी ने कोई भिखारी न देखा था। था ही नहीं। भिखारी तो वहां होते हैं जहां सब अपना खाना छिपाकर रख लें और अन्न जल कम पड़ जाए। जंगल में तो सबका अन्न जल खुले आकाश के नीचे फ़ैला बिखरा पड़ा था। यहां भिखारी का क्या काम?
लेकिन सारे में ये ख़बर फैल गई कि जंगल में भिखारी भी हैं।
पेड़ के नीचे ज़ोर ज़ोर से गर्दन हिला कर दीनता से पुकारते ऊंट ने जब तेज़ी से जाती जेब्रा की जीप को रोका तो जेब्रा ने ज़ोर से ब्रेक लगाया। उसे भारी अचंभा हुआ जब बूढ़े कृशकाय से दिखते ऊंट ने उससे कहा कि उसने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है।
भिखारी ऊंट को देख कर जेब्रा का दिल पसीज गया। वह जेब से कुछ रुपए निकाल कर ऊंट को देने ही वाला था कि ऊंट बोल पड़ा - बेटा मुझ भिखारी पर एक अहसान और कर दे, मूषकराज तेरा भला करे। तू मुझे इस जंगल की सीमा तक छोड़ आ, फिर मैं वहां से अपने रेगिस्तान में लौट जाऊंगा। फिर कभी जंगल में नहीं आऊंगा बेटा।
जेब्रा कुछ असमंजस में पड़ा क्योंकि वह अपने भाई के लिए पैट्रोल पम्प खोलने की अनुमति लेने को राजा शेर से मिलने जा रहा था।
पर तभी उसे याद आया कि भूखे को खाना खिलाने और अशक्त की मदद कर देने से उसे जो दुआएं मिलेंगी उनसे शायद उसका काम और भी जल्दी बन जाए।
उसने बूढ़े और बीमार से दिखते ऊंट को जीप में सवार करने में मदद दी और चल पड़ा। वह देखता जाता था कि रास्ते में कोई दुकान दिखे तो इस बूढ़े भिखारी के लिए कुछ खाने- पीने को ख़रीद दे।
ऊंट गर्दन लटका कर बैठ गया।

पेट में कुछ पड़ जाने के बाद जब ऊंट कुछ तरो ताज़ा सा दिखाई दिया तो जेब्रा ने उससे पूछ ही लिया - बाबा, तुमने अभी मुझे कहा कि मूषकराज भला करेंगे, ये मूषकराज कौन हैं?
- अरे बेटा, वो इंसानों के भगवान हैं न गणेश... उनके वाहन मूषकराज हमारे लिए तो देवता जैसे महिमामय ही हुए न! उन्हीं को याद कर रहा था मैं...
अभी बूढ़े ऊंट की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि हाई वे पर तेज़ी से दौड़ती जेब्रा की जीप को ऐसा लगा जैसे कोई उसका पीछा कर रहा है।
जेब्रा ने पीछे मुड़कर देखा और जीप की रफ़्तार और तेज़ कर दी। वह हवा से बातें करने लगा। वह भला अपने से आगे किसी को क्यों निकल जाने देता। खाली पड़े हाई वे पर दोनों गाड़ियां तूफ़ानी रफ़्तार से भागी चली जा रही थीं।
तभी हवा में गोली चलने की आवाज़ आई। जेब्रा ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके होश उड़ गए। पीछे वाली गाड़ी पुलिस की थी।
इतना ही नहीं बल्कि गाड़ी में से एक अफ़सर बारहसिंघा चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था - रुक जाओ नहीं तो गोली मार दी जाएगी...
जेब्रा की समझ में कुछ नहीं आया। उसने जीप की रफ़्तार कुछ कम की। किंतु तभी उसने देखा कि बीमार सा दिखने वाला बूढ़ा ऊंट झटपट चलती गाड़ी से कूद गया।
और सामने का दृश्य देख कर तो जेब्रा के रोंगटे ही खड़े हो गए। गिरते ही ऊंट की गर्दन टूट कर एक तरफ़ गिर गई थी और ऊंट की खाल को किसी कंबल की तरह झटक कर फेंकता हुआ भेड़िया किनारे की झाड़ियों में ओझल हो गया।
जेब्रा ने झटके से जीप रोक दी।
पुलिस ने बताया कि मांद महल से रानी साहिबा के गहनों का बक्सा चोरी हो गया है। शक है कि यही भेड़िया उसे लेकर भागा है।
जेब्रा थरथर कांपने लगा। ओह, वह किस खूंखार अपराधी की मदद कर रहा था...!