Murder - 4 - Last Part in Hindi Crime Stories by Atul Kumar Sharma ” Kumar ” books and stories PDF | मर्डर (A Murder Mystery) - 4 - अंतिम भाग

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मर्डर (A Murder Mystery) - 4 - अंतिम भाग

भाग - 4

इंस्पेक्टर विजय थाने में , हवलदार साठे से -


"" साठे पहले तो उस अंकित को बुलाओ। उससे डिटेल में बात करते हैं। फिर उस लड़के क्या नाम बताया था उसका...हाँ संतोष उसे भी हाज़िर करो। अब यही लोग बताएंगे बाकी की बात। और जरा मिसेज लीला हिंदुजा की कुंडली भी पता करो। ""..विजय साठे को इशारा करते हैं।

तभी केबिन में एक हवलदार हाथ मे एक फ़ाइल लिए हुए प्रविष्ट होता है।

"" सर उस गाड़ी और गन की जांच रिपोर्ट आ गई है। ""..वो फ़ाइल विजय को देते हुए बोला।

इंस्पेक्टर विजय वो फ़ाइल गौर से पढ़ने लगते हैं। पढ़कर अचानक उनकी आंखों में एक चमक आ जाती है।

कुछ देर में अंकित पुलिस थाने में इंस्पेक्टर विजय के समक्ष बैठे हुए।

"" हाँ तो अंकित बताओ पूरी बात।""..विजय अंकित से बोले।

"" सर आपको बता तो चुका हूं। ""

"" वो पूरा सच नही था। में बाकी की इंटरवल के बाद की पिक्चर जानना चाहता हूँ। ""..विजय स्वर में कड़क पन लाते हुए पुलिसिया अंदाज़ में देखते हुए बोले।

अंकित थोड़ा डर जाता है। वो बाकी की सारी बातें तोते की तरह इंस्पेक्टर विजय के सामने बोल देता है। उसको वही पूछताछ रूम में रोककर विजय अपने केबिन में आकर बैठ जाते हैं। तभी साठे केबिन में आते हैं। और विजय से बोलते हैं।

"" सर आपका शक सही था। ये मिसेज हिंदुजा जो हैं ना वो रमन लाल की दूसरी पत्नि हैं। उनकी पहली पत्नि का देहांत तो बरसो पहले हो चुका है। बाद में रमन लाल में लीला से शादी की। ये लीला एक नम्बर की लालची हाई फाई लाइफ जीने वाली एक अय्याश किस्म की औरत है। जो पुनीत और रमन को बिल्कुल पसंद नही करती। उसके खर्चे बहुत हाईं फाई हैं। उसका कई लोगो के साथ सम्बन्ध है। रमन के आफिस के कर्मचारी और घर के नोकरों से पूछताछ करने पर उसकी ये सभी असलियतें पता चलीं। रमन के आफिस के अकाउंटेंट नीलेश के साथ भी उसके सम्बंध हैं। बाद में पता नही क्या हुआ कि दोनो में फ़्रेक्शन आ गए। और तबसे ये नीलेश भी गायब है। लीला और भी कई गलत काम धंधों में लिप्त हैं। जो वो रमन लाल के बिजनेस की आड़ में बड़ी कुशलता से चला रही है। पहले तो रमनलाल को इसका पता नही था। पर जबसे पता चला उनके बीच आये दिन बहस होने लगी। रमनलाल एक मेहनती इंसान है जो खुद के दम पर नीचे से ऊपर पहुंचा है। वो अपने परिवार की इज़्ज़त को लेकर कुछ नही बोला चुप चाप खामोश बैठ गया। बस इसी खामोशी का और फायदा वो लीला उठाती रही। ""..साठे के इतना बताने पर ही इंस्पेक्टर विजय बाकी का सारा मामला समझ जाते हैं। वो संतोष को फौरन गिरफ्तार कर लाने की बात करते हैं। और फिर अंकित को लेकर उस एक्सीडेंट वाली जगह पर जाते हैं।

अगले दिन रमनलाल हिंदुजा , प्रेम नामदेव , के पूरे परिवार को और संतोष की माताजी को थाने में बुलाया जाता है। जब सभी आ जाते हैं तो इंस्पेक्टर विजय रमनलाल से बोलते हैं।

"" रमनलाल जी , आपका एकाउंटेंट नीलेश कहाँ है???""...

"" जी वो कुछ दिनों से गायब है। बाद में पता चला कि हिसाब किताब में काफी गोलमाल करके वो फरार हो गया। में उसके बारे में रिपोर्ट लिखाने ही वाला था कि ......"" कहते हुए रमनलाल रुक से जाते हैं। फिर उसके आगे विजय बोलना शिरू करते हैं।

"" हाँ आप उसके खिलाफ रिपार्ट लिखाते पर घर की इज़्ज़त बचाने के लिए ऐसा नही किया। क्यो में ठीक कह रहा हूँ ना रमनलाल जी। ""..इंस्पेक्टर विजय रमन के कंधों पर हाथ रखते हुए उनसे बोले।ये सुनकर रमनलाल के चेहरे का रंग अचानक उड़ जाता है। वहां मौजूद सभी लोग हैरानी से इंस्पेक्टर विजय की तरफ देखने लगते हैं।

"" चलिए अब ज्यादा सस्पेंस क्रिएट नही करते हुए में मुद्दे की बात पर आता हूँ। रमन लाल जी आपकी पहली पत्नि की मृत्यु काफी साल पहले हो चुकी हैं । उसके बाद आपके जीवन मे लीलाजी आईं। जो आपसे उमर से बहुत छोटी और पुनीत से मात्र 10 - 12 ही साल बड़ी हैं। उनको आपसे कोई प्यार नही बस आपकी दौलत और शोहरत को देखकर आपकी और आकर्षित हो गईं। शादी के बाद धीरे धीरे इन्होंने अपना जाल फैलाना शिरू कर दिया। किती पार्टीज में पैसा उड़ाना, घूमना फिरना, मनचाहे लोगो के साथ उठना बैठना, कुछ गेर कानूनी धंधों में भी लिप्त रहना इनका शगल बन गया। घर मे कोई रोकने टोकने वाला तो था नही। आप अपने काम में ही मसरूफ रहते। आपके साहबज़ादे पुनीत भी आपके पैसे की शानो शोकत में गले गले तक डूब कर अपनी ही दुनिया मे मस्त रहते। आपकी पत्नि की नजदीकियां आपके खूबसूरत एकाउन्टेन्ट नीलेश से बढ़ गईं। वो बेचारा गरीब घर का मेहनती युवक था। आपकी पत्नि के जाल में फंस कर उनके हाथों की कठपुतली बनकर रह गया। लीलाजी ने उसके साथ चुपके से वीडियो फ़िल्म बना ली और उसे धमकाकर पेसो का मिसयूज़ करने लगी। वो बेचारा कबतक छिपा पाता इनका सारा काला हिसाब किताब। लेकिन लीलाजी यही नही रुकीं। बल्कि पुनीत के दोस्त अंकित को भी उन्होंने अपने जाल में फांस लिया। और उसकी भी वीडियो फ़िल्म बनाकर उससे भी मनचाहा काम लेती रहतीं। उसे भी अपनी उंगलियों पर नचाती। जब उनको पता चला कि अंकित की पहचान कुछ ड्रग डीलर्स से है तो उसके जरिये वो अपनी पार्टीज में ड्रग्स सप्लाई कराती। पर जब नीलेश इन सबसे बुरी तरह उकता गया तो उसने एक दिन आपके घर आकर आपके सामने सबकुछ बक दिया। आपके पैरों तले जमीन खिसक गई। पर आप ठहरे इज़्ज़तदार इंसान। जिन्हें अपने परिवार की इज़्ज़त सबसे ज्यादा प्यारी है। आपने नीलेश को पैसे देकर उस मेटर को वही दबा दिया। और संतुष्ट होकर वहीं बैठ गए कि अब सारी बात यही खत्म हो गई। पर लीलाजी की सोच बहुत दूर तक जाती है। उन्हें नीलेश की धमकी ने अंदर तक डरा दिया। उनको ये बिल्कुल भी पसन्द नही आया था कि नीलेश ने सारी सच्चाई आखिर रमनलाल यानी आपको क्यो बता दी। उन्होंने जबसे ही बदला लेने की ठान ली।वो तो आपको और पुनीत को भी अपने रास्ते से हटाकर पूरी सम्पत्ति पर अकेले कब्ज़ा करना चाहती थीं।

लीलाजी ने पुनीत के क्लासमेट संतोष मेहरा को भी निशाना बनाया। जो पहले से ही शक्ति कपूर की फिल्मी इमेज लिए घूमता रहता था। और अंकित के जरिये उसकी पहचान ड्रग्स सप्लाई के कारण लीलाजी से अच्छी तरह हो गई थी। अपने प्लान को अंजाम देने के लिए उन्हें एक दिन मौका भी मिल गया। उनके दूसरे वीडियो फ़िल्म के शिकार अंकित का उन्होंने बखूबी इस्तेमाल किया। नीलेश को रास्ते से हटाने के लिए उन्होंने अंकित के साथ मिलकर एक खेल खेला। जब अंकित और उसके परिवार को एक रिश्तेदारी में जाना था तो उन्होंने पुनीत की गाड़ी ले जाने को कहा, जो रमनलाल ने पुनीत को उसके जन्मदिन पर भेंट की थी। जब अंकित अपने परिवार के साथ शाम को वापिस आ गया तो लीलाजी ने संतोष को भेजकर उस शाम को अंकित से उस गाड़ी की चाबी ले ली। जिसकी पुष्टि प्रेम नामदेव जी के पड़ोसी विपिन ने भी की। उनका प्लान था कि उसी गाड़ी में नीलेश को बहाने से ले जाकर उसे मारकर वहीं जंगल मे ठिकाने लगाकर गाड़ी वापिस अगली सुबह से पहले रमनलाल के बंगले में खड़ी कर देना। उसके बाद अंकित किसी भी तरह ये साबित कर देता की वो गाड़ी वो रात में ही पुनीत को दे आया था। जिससे सारा शक पुनीत पर जाता। क्योंकि पुनीत की भी कई बार पैसोको लेकर नीलेश से काफी लड़ाई हो चुकी थी। और जब पुनीत की स्कूल में डांस कॉम्पिटिशन को लेकर संतोष से हाथापाई हुई तो पुनीत ने सबके सामने संतोष को भी धमकी दे डाली थी। बस इसी बात का फायदा मिसेज लीला हिंदुजा उठाना चाहती थी। और पुनीत को रास्ते से हटाकर रमनलाल की सारी दौलत की इकलौती वारिस बनना चाहती थी।

हम संतोष के घर उसे पकड़ने गए तब पता चला कि वो भी उसी दिन से गायब है जिस दिन से नीलेश । हमारा माथा तभी ठनक गया कि इन सबमे कोई कनेक्शन तो है।

सबकुछ प्लान के मुताबिक ही जा रहा था।अंकित के अपने रिश्तेदार के यहाँ से वापिस आकर गाड़ी की चाबी चुपके से उस शाम को संतोष को सौंप दी। संतोष अपने साथियों के साथ नीलेश को बहाने से कार में बैठाकर उस जंगल के रास्ते ले गया। और वहां सुनसान सड़क जिसपर कोई रात में बहुत कम आता जाता है । बड़ी आसानी से नीलेश को मारकर वहीं जंगल मे दफना दिया। यहाँ तक तो सबकुछ प्लान के मुताबिक ही हुआ। लेकिन लीलाजी के इस फूल प्रूफ प्लान में उस गिरोह ने भी अनजाने में भांजी मार दी। उस सुनसान सड़क पर पिछले कुछ महीनों से राहगीरों को एक औरत रास्ता क्रॉस करते दिखाई देती थी। गाड़ी को तेज ब्रेक लगाते और हड़बड़ाहट में उनकी गाड़ियां पेड़ों से टकरा जाती। बाद में वो रहस्मयी औरत भटकती आत्मा बनकर उन लोगो को डराती। जिससे वो या तो डरकर भाग जाते या बेहोश हो जाते। और फिर गिरोह के अन्य सदस्य सबकुछ लूटकर फरार हो जाते।

उस दिन जब संतोष अपने साथियों के साथ मिलकर नीलेश की गोली मारकर हत्या कर उसकी बॉडी को वही जंगल मे दफना कर वापिस गाड़ी में आ रहा था तो वही आत्मा बनी औरत उसे दिखाई दी। संतोष ने गाड़ी रोककर बाहर उतरकर देखा तो उस ओरत का ड्रामा चालू हो गया। संतोष और उसका एक साथी जो पहले से ही ड्रग्स के नशे में थे, ये सब देखकर बुरी तरह डर गए। उस आत्मा बनी औरत उसके साथियों ने दोनो को बुरी तरह मारा और खूब डराया। बाद में उन्होंने संतोष के साथी को दबोच लिया और गला दबाने लगी। दोनो बुरी तरह घबरा गए। संतोष अपने साथी को वही छोड़कर जैसे तैसे कार वापस भगाते हुए भागा। और घबराहट हड़बड़ाहट में आगे जाकर एक्सीडेंट कर बैठा। गाड़ी में ही कुछ समय तक बेहोश रहने के बाद जब संतोष को होश आया तो वो गाड़ी से बाहर आकर कुछ कदम पैदल चलते हुए जंगल की तरफ गया। थोड़ा अंदर जाने पर उसे कुछ नशेड़ी दिखाई दिए जो गांजा खींचकर बेसुध पड़े हुए थे। वो कुछ देर वही बैठ गया। फिर थोड़ा सम्भलने के बाद उसने लीलाजी को फोन लगाया। और सारी बात बताई। लीलाजी फ़ौरन उसकी बताई जगह पर पहुंच गई और बड़ी चालाकी और सावधानी से पहले तो संतोष को ड्रग्स दी। जब वो नशे में और धुत्त हो गया तो उन्होंने उसे भी मार दिया। और उसकी लाश को वही घाटी से नीचे फेंक दिया। ताकि कोई सबूत ना रहे। पर वो ये नही जानती थी कि संतोष उसकी गन जिससे उसने नीलेश को मारा था घबराहट में वही गाड़ी में भूल आया था। जिसपर उसकी उंगली के निशान मौजूद थे। रिपोर्ट के मुताबिक पुनीत रमनलाल अंकित और बाकी किसी भी सस्पेक्ट्स के उंगलियों के निशान और ब्लड सेम्पल उस गाड़ी में पड़े ब्लड से मैच नही हुए।

बाद में जब गाड़ी की जांच रिपोर्ट में गाड़ी में ड्राइवर के अतिरिक्त और दो लोगो के होने की पुष्टि हुई तो हमने खोजी दस्ते सहित उस जंगल को छान मारा। और संतोष का साथी हमे उसी जंगल मे बहुत कमजोर हालत में बुरी तरह घायल अवस्था मे बेहोश मिला जिसे संतोष छोड़कर भाग आया था। यदि हम समय पर नही पहुंचते तो वो भी मर जाता। बाद में जंगल से नीलेश और उसी रास्ते पर आगे जंगल मे अंदर की तरफ घाटियों में से संतोष का शव भी बरामद कर लिया गया। उसकी लाश बहुत कुछ सड़ चुकी थीं । ज्यादा कुछ तो सबूत नही मिले पर डीएनए टेस्ट से पुष्टि हो गई। संतोष के ब्लड के सेम्पल गाड़ी में मिले ब्लड से मैच कर गए। जिसकी लाश हमे घाटियों में से मिली।

फिर अंकित पर थोड़ी सी सख्ती करनी पड़ी जिससे उसने बाकी का सारा सच उगल दिया। क्यों मिसेज लीलाजी बहुत हाईं फाई लाइफ स्टाइल जीने की आदत पड़ गई थी ना आपकी। ( इंस्पेक्टर विजय आंखों को नचाते हुए लीलाजी की तरफ देखकर बोलते हैं) और नीलेश की हत्या की साज़िश रचने और संतोष को उकसाकर उसकी हत्या करवाने, बाद में स्वयम द्वारा संतोष को मारकर फेंकने के जुर्म में आपको गिरफ्तार किया जाता हैं । और सिर्फ यही नही आपके तमाम काले उल्टे सीधे धंधों के लिए भी पूरे सबूत सहित आपपर चार्ज शीट लगाई जायगी। और अंकित को भी हिरासत में लिया जाता है पर चूंकि वो नाबालिग है इसलिए उससे उसी तरह पेश आते हुए बाल सुधार गृह भेजे जाने की अर्जी लगाई जायगी।

आज़कल पैसों के चक्कर मे और बिज़ी लाइफ स्टाइल में माता पिता अपनी सन्तानो पर ध्यान नही दे पाते। पर प्रेम नामदेव जी आपने भी अंकित के क्रियाकलापों पर ध्यान नही दिया। उल्टा उसकी हर गलती को पर्दे से ढंकने की कोशिश की। जिसका नतीजा आज आपके सामने है। हम कोशिश करेंगे कि अंकित के साथ रियायत बक्शी जाए क्योंकि वो अभी नाबालिग है। और रमन लाल हिंदुजा जी इतनी छोटी उम्र में अपनी औलादों को इतने मंहगे गिफ्ट देने का नतीजा भी आपके सामने है। पहले उन्हें खुद को इस लायक बनने दीजिए फिर अपना प्यार दिखाइए। अक्सर कम उम्र में पैसे की चमक औलादों को ऐसा राह से भटका देती है की फिर वो चाहकर भी कभी लौट कर पीछे नही आ पाते। ""...,

इंस्पेक्टर विजय बोले जा रहे थे और सभी गौर से उन्हें देखे और सुने जा रहे थे।

समाप्त