अभी तक आपने पढ़ा फ़ोन पर कजरी की बातें सुन कर नवीन को लगा कि कजरी का कोई बॉयफ्रेंड भी है। अब नवीन को कजरी पर शक़ होने लगा । वह सोचने लगा। शायद कजरी बदला लेने के लिए. . . यह सब कर रही है।
नवीन आज जब ऑफिस पहुँचा तब वह अपनी सीट पर जाकर बैठ ही रहा था कि उसकी कुर्सी पर फिर वही पर्ची चिपकी हुई उसे दिखाई दी।
नवीन इधर-उधर देखने लगा। सब अपनी-अपनी टेबल पर थे किसी का भी ध्यान उसकी तरफ़ नहीं था। नवीन गुस्से में ज़ोर से चिल्लाया, "रामू काका!"
रामू काका उसके ऑफिस में प्यून का काम करते थे। वह दौड़ कर आए। तब तक नवीन ने पर्ची निकाल दी। सब लोग नवीन की तरफ़ देखने लगे कि आख़िर हुआ क्या है। एकदम शांत रहने वाला नवीन इतने गुस्से में…?
"रामू काका आज सुबह ऑफिस में कौन आया था?"
"कोई नहीं साहब"
"आप यहाँ के प्यून हैं और आपको पता नहीं ऑफिस में कौन आया था?"
"पर साहब हुआ क्या है? यहाँ तो हम ही थे, साफ़-सफाई वाली कमला और रमा। हम तीनों के सिवा और तो कोई नहीं आया।"
नवीन गुस्से में चिल्लाया, "क्या तुम सो रहे थे रामू काका, जाओ जाकर वॉचमैन से पूछकर पता लगा कर आओ?"
कोई ना कोई तो ज़रूर आया था, नवीन बुदबुदाया।
स्टाफ के लोगों ने पूछा, "क्या हुआ नवीन?"
"कुछ नहीं, आप लोग प्लीज़ अपना काम कीजिए।"
नवीन सबसे सीनियर था इसलिए किसी ने भी ज़्यादा बहस करना ठीक नहीं समझा।
अब तो नवीन परेशान हो चुका था। पानी सर के ऊपर से निकल चुका था। अब उसे बार-बार कजरी और उसके बॉय फ्रेंड पर भी शक़ हो रहा था।
उसने घर आकर निशा से कहा, " निशा आज तो हद ही हो गई।"
"क्या हुआ नवीन?"
"आज तो ऑफिस में मेरी चेयर पर वही पर्ची चिपकी मिली । वह इंसान ऑफिस तक पहुँच गया है। हो सकता है कल हमारे घर में भी घुस जाए।"
"नवीन अब तो हमें पुलिस कंप्लेंट करनी ही पड़ेगी।"
यह सुनते ही नवीन घबरा गया। उसे डर लग रहा था कि कहीं वह राज़ ना खुल जाए कि उसने कजरी के साथ . . .! वह सोच में पड़ गया कि अब वह निशा को क्या जवाब दे।
"नवीन किस सोच में पड़ गए, तुम चुप क्यों हो? और कोई रास्ता है हमारे पास? हमें कुछ ना कुछ करके इस मुसीबत से छुटकारा तो पाना ही पड़ेगा ना।"
"वैसे मैं पुलिस के झंझट में पड़ना नहीं चाहता पर तुम कह रही हो तो मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ। जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ।"
निशा भी असमंजस की स्थिति में थी कि पुलिस कंप्लेंट करनी चाहिए या नहीं। यही सोचते हुए वह बाथरूम में तैयार होने के लिए चली गई।
नवीन ने पुलिस कंप्लेंट करने के लिए अपना आधार कार्ड और दूसरे काग़ज़ रख लिए। फ़िर उसने सोचा कि निशा का भी आधार कार्ड रख लेते हैं शायद ज़रूरत पड़ जाए।
उसने निशा को आवाज़ लगाकर पूछा, "निशा तुम्हारा आधार कार्ड कहाँ है? वह भी साथ में रख लेते हैं।"
बाथरूम में शॉवर चालू होने की वज़ह से निशा को नवीन की आवाज़ सुनाई नहीं दी। इसलिए यह सोच कर कि वह ख़ुद ही निकाल लेगा, नवीन निशा की अलमारी के पास गया लेकिन अलमारी में ताला लगा था।
नवीन ने कजरी को आवाज़ लगाते हुए पूछा, "कजरी निशा अलमारी की चाबी कहाँ रखती है, तुम्हें मालूम है क्या?"
"जी साहब, अभी देती हूँ।"
कजरी ने तुरंत ही चाबी लाकर नवीन को दे दी। उसने अलमारी खोली लेकिन निशा का आधार कार्ड उसे सामने दिखाई नहीं दिया। तब उसने सोचा शायद पर्स में होगा, ओफ्फ़ ओह पर्स भी तो तीन-चार हैं निशा के पास। कोई बात नहीं, अभी देख लेता हूँ। उसने एक-एक करके निशा के सारे पर्स देख लिए किंतु आधार कार्ड नहीं मिला।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः