Jivit Murda v Betal - 10 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | जीवित मुर्दा व बेताल - 10

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

जीवित मुर्दा व बेताल - 10

अगले दिन सुबह गांव के लोगों ने आकर देखा कि बरगद के पेड़ पर दो लाश आमने सामने झूल रही है । एक मुकेश का और दूसरा रतन ।
संजय के मृत्यु का आतंक खत्म होने से पहले ही दो और मृत्यु से गांव वालों में आतंक और बढ़ गया ।
मुकेश और रतन के घरवाले , उसके दोस्त और दिनेश सभी जानते हैं कि आत्महत्या करने की कोई कारण ही नहीं था लेकिन उन्होंने फिर भी ऐसे फांसी क्यों लगाया इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है । देखने में यह आत्महत्या जरूर लग रहा था लेकिन सभी के मन में यह बात घूम रहा है कि ऐसे आत्महत्या करना संभव नहीं है ।
पेड़ की ऊंची डाली पर रस्सी लगाकर झूलना कोई आसान कार्य नहीं है ।
गांव वालों के मन का आतंक धीरे-धीरे डर में परिवर्तित होने लगा । रात के अंधेरे में घर से कोई भी बाहर नहीं निकलता । सभी काम - काज गांव वाले दिन में ही निपटा कर शाम तक दरवाजे पर कुंडी लगा देते ।
उधर जमींदार साहब चिंता करते करते पागल हो गए हैं । गांव वाले समझ नहीं पा रहे हैं लेकिन जमींदार साहब जानते हैं कि ये सभी मेरी मौत कोई साधारण मौत नहीं है , इसके पीछे बदले की आग धधक रही है । मृत्यु लीला तब तक चलेगी जब तक बदला लेने वाला अपना कार्य पूरा ना कर ले । एक भयानक अभिशाप उन सभी के ऊपर आ गया है । शायद उस अभिशाप की आग में उनके लड़के दिनेश को भी आहुति देना होगा ।
यही सब कुछ सोचकर जमींदार साहब कभी-कभी कांप उठते । दिनेश को भी इस बार डर लगा है इसीलिए उसका बेपरवाह वाला दिमाग़ थोड़ा शांत है । अब वह घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलता तथा अपने पिता की ओर असहाय चेहरे से देखता रहता । जमींदार साहब कभी-कभी उससे डर को भगाने के लिए कंधे पर हाथ रख कर कहते ,
" तुम ज्यादा चिंता मत करो बेटा मैं हूं। देखता हूँ क्या किया जा सकता है । तुम कमरे के अंदर जाओ और भगवान का नाम लो । "

एक दिन जमींदार साहब को खबर मिला कि गांव के मंदिर के पास वाले बरगद के नीचे एक साधिका आई हुई है । मन ही मन जमींदार साहब ऐसे ही किसी मनुष्य को खोज रहे थे । आज कई दिनों बाद उनके चेहरे से चिंता की रेखा कटी है । हाथ जोड़कर उन्होंने भगवान को धन्यवाद किया । समय ज्यादा व्यस्त ना करते हुए वह मंदिर की ओर चल पड़े ।
मंदिर के पास वाला यह बरगद पेड़ बहुत पुराना है । शायद गांव बसने से पहले भी यह ऐसे ही खड़ा था । इसके बाद धीरे - धीरे लोगों ने रहना शुरू किया और यह एक गांव बना । उस वक़्त किसी ने बरगद के चारों तरफ लोगों के बैठने के लिए जगह बना दिया था । गांव के लोग गर्मी के दिनों में खेत से लौटते वक़्त तेज धूप से बचने के लिए यहां आराम करते । लेकिन यह सब बहुत पहले की बात है । बहुत साल बीत गए , गांव में लोगों का वास बढ़ा है और अब तो विद्युत भी आ गया इसलिए अब इसका प्रयोग ज्यादा लोग नहीं करते । इसके अलावा मुकेश और रतन के उस तरह आत्महत्या करने के बाद लोगों ने इस रास्ते पर आना ही छोड़ दिया । लेकिन आज इस तंत्र साधिका के आगमन पर गांव के कुछ लोग यहां पर आएं हैं ।
जटाधारी एक महिला , शरीर का रंग श्याम वर्ण परंतु आंख उज्वलता से भरा हुआ है । उनके पूरे शरीर में शांत भाव है । उनके चेहरे को देखकर गांव वालों के मन का आतंक शायद थोड़ा कम हुआ है । ध्यान मग्न अवस्था में साधिका बैठी हुई है तथा उनके सामने धूनी जल रहा है । धूनी से निकलते धुएँ में चारों तरफ का वातावरण मानो पवित्र हो गया है । धूनी में शायद कुछ मिलाने की वजह से बहुत ही खूबसूरत सुगंध निकल रहा है ।
गांव वाले हाथ जोड़कर सामने ही खड़े हैं। कुछ लोगों ने फल - फूल लाकर साधिका के सामने रख दिया है ।
इसी बीच जमींदार साहब का आते देख सभी थोड़ा बगल हो गए । जमींदार साहब साधिका के सामने हाथ जोड़कर बैठे ।
कुछ देर बाद साधिका का ध्यानमग्न आँख खुला । धीरे-धीरे आंख खोलने के बाद उन्होंने गांव वालों को इशारे से जाने के लिए कहा । सभी के जाने के बाद हाथ जोड़कर बैठे जमींदार साहब से साधिका बोली ,
" नमस्कार जमींदार साहब , मैं शारदा हूं । "
जमींदार साहब बोले ,
" देवी मैं बहुत ही विपदा में हूं । देवी मेरी रक्षा करो । "
इतना बोलकर जमींदार साहब शायद और भी कुछ बोलना चाहते थे लेकिन शारदा उन्हें रोकते हुए बोली ,
" चुप कीजिए , आपके सभी कुकर्मों को मैं जानती हूं । गांव में जो कुछ भी हो रहा है यह सब तुम्हारे और तुम्हारे बेटे के कारण हो रहा है । इससे तुम्हें बचाना बहुत ही मुश्किल है । "

" देवी माँ कुछ तो उपाय होगा ? "

जलते हुए धूनी की ओर कुछ देर देखने के बाद गंभीर स्वर में शारदा बोली ,
" उपाय एक है लेकिन बहुत ही कठिन है । तुम नहीं कर पाओगे। "

" देवी आप बताइए , मुझे कुछ भी करना पड़े लेकिन मेरे लड़के को बचाना ही होगा । "

" तो फिर सुनो "
इतना कहकर शारदा ने जमींदार साहब से जो कहा वह इस प्रकार था ।

दिनेश ने जब भोला पागल का खून किया था उस वक्त तिथि - नक्षत्र के विशेष अवस्था के कारण भोला पागल के आत्मा ने काल दोष पाया और बेताल में परिवर्तित हो गया था । इसके बाद समय बढ़ने के साथ-साथ भोला पागल की आत्मा और भी शक्तिशाली होता गया । बेताल एक भयानक प्रेतात्मा है । उसका शक्ति आम आत्माओं से बहुत ही ज्यादा है । कहीं भी कभी भी शरीर धारण कर लेना , हवा में गायब हो जाना अथवा परिचित किसी का रूप धारण कर लेना । यही सब उसकी विशेष शक्तियां हैं । इसके अलावा और भी शक्तियां उसके अंदर मौजूद है ।
बुद्धि में बेताल किसी साधारण मनुष्य से बहुत ही आगे है इसीलिए उससे मुक्ति पाना इतना आसान नहीं है ।
जमींदार साहब अगर चाहें तो शारदा एक विशेष यज्ञ की व्यवस्था कर सकती है । लेकिन उस यज्ञ की समाप्ति के लिए एक विशेष सामग्री की जरूरत है । जमींदार साहब अगर उस सामग्री को ला सके तभी शारदा उस यज्ञ को करेगी ।

" देवी मां वह विशेष सामग्री क्या है ? "

शारदा कुछ देर एकटक जमींदार साहब की ओर देखकर बोली ,
" एक जीवित नारी जो जल्द ही विधवा हुई है । "

जमींदार साहब आश्चर्य में पड़ गए । उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा ।

जमींदार साहब के चेहरे को देख शारदा बोली ,
" मैं जानती थी कि इस सामग्री कोलाना तुम्हारे बस की बात नहीं । "

कुछ देख सब कुछ चुप , अब चारों तरफ हल्का हल्का अंधेरा होने लगा है । इसी बीच झींगुरों ने भी गाना शुरू कर दिया है ।
जमींदार साहब बोले ,
" देवी माता , क्या और कोई उपाय नहीं है ? "

" नहीं, और कोई उपाय नहीं है । मूर्ख हो तुम इसीलिए यह सब बोल रहे हो । "

सिर झुकाकर कुछ देर जमींदार साहब बैठे रहे। इसके बाद गंभीर स्वर में बोले,
" ठीक है देवी मैं व्यवस्था कर दूंगा । "

तुरंत ही शारदा की आंखें चमक उठी । अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए वह बोली ,
" ठीक है तो फिर सुनो , विधवा को आज ही मेरे पास लेकर आना । मैं पूरी रात उसे तैयार करके भोर में यज्ञ शुरू करूंगी । कल रात से पहले मुझे यज्ञ समाप्त करना होगा क्योंकि कल पूर्णिमा है। और पूर्णिमा के वक्त बेताल की शक्तियां और भी बढ़ जाती है। गांव के सभी लोगों को आज रात से ही घर में रहने को बोलना। परसों सुबह होने से पहले कोई भी अपने घर से ना निकले । आप भी मत निकलना वरना भयानक खतरा हो सकता है । "

इतना सुनकर जमींदार साहब उठ खड़े हुए । चारों तरफ उस वक्त अंधेरा हो चुका था । टॉर्च जलाकर वह अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में चलते हुए उन्हें ऐसा लगा मानो कोई उनका का पीछा कर रहा है । बीच-बीच में एक गर्म हवा उन्हें छूकर निकल जाती ।
शारदा के पास से लौटते वक्त एक छोटा काला डिब्बा शारदा ने दिया था । उसके अंदर क्या है यह बताना बहुत ही मुश्किल है लेकिन रास्ते में जितनी बार भी जमींदार साहब को कुछ अद्भुत अनुभव हुआ उन्होंने उस डिब्बे को अपने सीने में दबाए रखा । शायद इसी कारण से वह गर्म हवा उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका। लेकिन पूरे रास्ते पर उन्होंने एक हंसी की आवाज को सुना। इस आवाज को गांव वालों ने भी कई बार सुना है । जमींदार साहब ने अभी तक इस हंसी को नहीं था सुना लेकिन आज सुनकर उनका पूरा शरीर डर से कांप उठा । किसी तरह अपने आप को संभाल कर वो अपने घर पहुंचे ।.....

क्रमशः.....