Jivan Bina - 5 in Hindi Poems by Anangpal Singh Bhadoria books and stories PDF | जीवन वीणा - 5

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जीवन वीणा - 5

केवल भौतिक जीवन जीना, एकांकी वा अनहितकारी ।
अध्यात्मिक जीवन के बिन नहिं,जीवन होय पूर्णता धारी।।
धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष की, श्रेष्ठ चतुष्टय नीति बखानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।

धर्म-अर्थ वा काम-मोक्ष का, है अद्भुत पुरुषार्थ चतुष्टय ।
भौतिक,अध्यात्मिक जीवन का,यह अद्भुत संगम है निश्चय।।
अर्थ-काम भौतिक जीवन है, धर्म-मोक्ष प्रभुता अगवानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।

धर्म यदपि अध्यात्म नहीं है,पर भौतिकता हित सुखकारी।
जहां उपेक्षा धर्म-मोक्ष की, वहां बने जन भ्रष्टाचारी ।।
अनाचार, व्यभिचार घृणा वा, नफरत करती खींचातानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

अंदर से अशांत है मानव व्याकुल है बेचैन बड़ा है ।
खुद का हो या हो समाज हित,उसमें रोड़ा बना खड़ा है।।
हिंसा, नफरत,आतंकों को,मान लिया कर्तव्य निशानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

मानवता का जो स्वरूप है,धर्म उसीको हम कह सकते।
मानवीय मर्यादाओं का, धर्म पाल सुख से रह सकते ।।
अनुचित,उचित,अशुभ,शुभ सबका,भेद बताती धर्म कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

अच्छे शुभ व्यवहार हेतु, प्रेरित करता है धर्म हमारा ।
और अनैतिक क्रिया कलापों,से हमको करवाय किनारा।।
अर्थ-काम की उचित और, नैतिक प्रतीति है धर्म कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

कलुषित,अशुभ भावनाओं को,करे नियंत्रित,शांत बनाए।
धन अभिलाषाओं पर अंकुश,रखना हमको नित्य सिखाए।।
इस प्रकार आनंद युक्त, जीवन जीने की रीति निभानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

धारण अगर धर्म को करलो, तो पुरुषार्थ चार सध जाते ।
धर्म मार्ग दर्शक मानव का, धर्म पकड़ शुभता पथ पाते ।।
पाप-पुण्य,शुभ-अशुभ,बुराई, अच्छाई के बनते ज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

ईश्वर है सब जगह न्याय प्रिय, सदा देखता कर्म हमारे ।
उसका कर्म विधान एक है,बोओ-काटो निज फल सारे।।
बुरे कर्म करने पर हमको,होती है महसूस गिलानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

मिले आत्मसंतोष,आत्मसुख,पुण्य कर्म हम जब करते हैं।
पुण्य कर्म के हेतु धर्म से, सत्य प्रेरणा उर भरते हैं ।।
जहां रहो, जो कार्य करो बस, उसमें होय न बेईमानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

शिक्षक,व्यापारी,किसान या, हो अभियंता,या हो माली।
होउ चिकित्सक या वैज्ञानिक,या फिर होतुम अध्ययनशाली।
बस ईमानदार बनकर सब, कर्म करो अपना सा जानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

प्रतिभा,समय और श्रम का है,सुनियोजन सबसे हितकारी।
देश, समाज और जग सारा, रहे सदा तेरा आभारी ।।
दिव्य प्रेरणाएं स्वधर्म से, मिलने में होती आसानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

सम्प्रदाय या पंथ नहीं है, धर्म नाम शुभता का कारक।
धर्म नहीं है एक दिखावा, धर्म श्रेष्ठताओं का धारक ।।
धारण करने योग्य जगत में, वही धर्म बतलाते ज्ञानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

जैसे जड़ पर वृक्ष खड़ा है, वैसे ही यह जीवन जड़ है।
जितनी जड़ मजबूत बनेगी,उतनी ऊंची बने पकड़ है।।
मानवीय कर्तव्य निभाना, समझो सच्ची धर्म निशानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

हर प्राणी का और वस्तु का,अपना धर्म,स्वभाव अलग है।
चांद हमें शीतलता देता, सूर्य ऊष्मा से जगमग है ।।
उड़कर वायु गगन में जाए, पर नीचे को बहता पानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

मानव का स्वभाव मानवता, धर्म यही है उसका जानो।
मानवीय गुण हर मानव में, थोड़ा कर प्रयास पहचानो।।
अग्नि ऊष्मा की द्योतक है,उसको तो हर वस्तु जलानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

धैर्य,क्षमा,दम,इन्द्रिय निग्रह,शौच,सत्य,अस्तेय निभाओ।
धी,विद्या,अक्रोध को समझो,अपने अंत: में उपजाओ।।
ये दस गुण धारण करना ही, धर्म बताते हैं सब ज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।६७।।