Jivan Bina - 2 in Hindi Poems by Anangpal Singh Bhadoria books and stories PDF | जीवन वीणा - 2

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जीवन वीणा - 2

किया बजाना बंद, फेंकने वाले ने फिर वीणा मांगी ।
अंतर्मन पछतावा जागा,ललक बजाने की भी जागी ।।
पर फकीर ने मना कर दिया, पहले सीखो इसे बजानी । वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।

कहो करोगे क्या तुम लेकर, यह बेकार तुम्हारे घर है ।
तोड़ फोड़ फेंकोगे इसको, हमको पूरा पूरा डर है ।।
अगर सीखना हो तो दूंगा,लो संकल्प हाथ ले पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।

शांति भंग होगी तुम सबकी, अगर न इसे बजाना आया।
इसीलिए मुझपर रहने दो,उस फकीर ने फिर समझाया ।।
अच्छी खूब बजा सकते हो,हाथ सभीके कला सुहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।

फिर फकीर ने उसके घर में,नियमित जा उसको सिखलाया।
स्वर साधना सिखाई उसको, और भेद उसका समझाया ।।
अब उसकी वीणा के सब स्वर, लगे बोलने शांति कहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

नित्य बजाता अब वह वीणा, करता था अभ्यास निरंतर।
अब आनंदमयी हलचल से, पुलकित रहता उसका अंतर।।
अब वह स्वर लहरी पुलकन भरती अंतर्मन में मनमानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

शांति भंग हो जाया करती, थी जिस वीणा के सुर सुनकर ।
गहन शान्तिका अनुभव करता,अब वीणा सुर सुनकर घरभर
कलह,क्रोध,झल्लाहट,चिक-चिक,डाल गये अब कहीं रबानी
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

जीवन को यदि सही तरह से, जिया जाय तो सुख ही सुख है
ज्ञान नहीं जीवन वीणा का, तो पाता नर निश्चित दुख है ।।
देव तरसते इस वीणा को, हमने जानी कूड़े दानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

हम हताश हैं,हम निराश हैं,हम उदास जीवन वीणा से ।
क्योंकि बजाना सीख न पाया, इसीलिए आहत पीड़ा से ।।
इसीलिए तो नफरत इतनी,बैर, घृणा, हिंसा मनमानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

वैमनस्यता, कटुता, जड़ता,युद्ध, अंधेरे से हम पीड़ित ।
धुंआ उठ रहा काम,वासना,का जो दुखदाई है निश्चित ।।
करुणा, प्रेम और शुचिता का,सूख गया है सारा पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

जहां मधुर संगीत लहरियां, प्रेम तत्व उठकर छू लेतीं ।
नफरत,घृणा,शत्रुता,कटुता,चिनगारी असफल कर देतीं।।
वहां वासना के अंधड़ में, जीवन देव भर रहे पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

परम शांति के लिए जहां पर,जीवन वीणा हंसती गाती।
और अंधेरा कहीं न होता, वैमनस्यता नहीं सताती ।।
ना कटुता होती उर अंदर,ना हंसती नफरत की रानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।

शोर-शराबा परम चरम पर, अंधकार ही अंधकार है ।
सबका सब सुख चैन छिन गया, इसके पीछे अहंकार है।।
नहीं बजाना सीख सके हम, जीवन वीणा धुनि मस्तानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

जीवन वीणा कैसे बजती, इसके नियम नहीं हम जानें ।
साज संवार करें वीणा की, नहिं जानें उसकी सुर तानें।।
देहभाव से ऊपर उठकर, आत्मभाव की बात न मानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

करें इन्द्रियों की मजदूरी, और उन्ही की जूठन खाते ।
इतनी कठिन दासता ओढ़ी,उससे बाहर निकल न पाते।।
आश्रय देते मन लहरों को, यद्यपि थी हर लहर मिटानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।

जीवन वीणा लगातार.............