The Author Dave Vedant H. Follow Current Read संग्राम : आ गई पुलिस!! By Dave Vedant H. Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books My Passionate Hubby - 5 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन... इंटरनेट वाला लव - 91 हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त... अपराध ही अपराध - भाग 6 अध्याय 6 “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच... आखेट महल - 7 छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक... Nafrat e Ishq - Part 7 तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब... 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(4) 1.6k 6.8k गुजरात!! आज़ाद भारत का एक अनोखा राज्य, जहा शराब पर पूरी तरह से पाबंदी है. गुजरात में हर एक दिन ‘सुखा दिन’ होता है, मतलब की शराब बेचना और खरीदना बंध. शराब बेचते पकड़े जाने पर कानून की तोहीन होती है और निर्धारित सालों की जेल की सजा. लेकिन गुजरात में हर साल करोड़ो रुपिये की शराब बेची तो जाती ही है. पुलिस!?........जाहिर सी बात है की सवाल उठेगा ही की ‘शराब की बंधी होने के बावजूद भी करोड़ो रुपिये की शराब बेची केसे जाती है?, पुलिस क्या कर रही है?’ मगर जवाब भी तो आसान है, ‘शराब बेचनेवाले बेचने के नशे में चूर है, आवाम शराबी बनके शराब के नशे में चूर है और पुलिस उनसे हफ्ता लेकर पैसो के नशे में चूर है.’ शाहपुर, गुजरात का एक एसा शहर जहा हररोज शराब पूरी शान-ओ-शौकत के साथ बेची जाती है. पूरे शहर की जनता को मालूमात है की शहर में यू बिन्दास्त शराब बेची जाती है, पर जब जिस इलाके में शराब का मुख्य रूप से व्यापार चलता है उस इलाके के सिनियर पुलिस इनस्पेक्टर को ही कोई दिक्कत नहीं है तो जनता क्या कर शकती है? शाहपुर शहर के ईस इलाके में एक ‘ब्लू बंगला’ है जहा से शराब का खुले आम व्यापार होता है और ईस काली करतूत के पीछे है ‘देला शेठ’ का हाथ. देला शेठ, शाहपुर शहर का सबसे बड़ा शराबी. काले धंधे में अव्वल, बदनाम गुंडा और सरकार का सबसे अच्छा दोस्त. देला शेठ और उसके दो भाई, बाकी के साथीदारो के साथ शराब का व्यापार करते थे. देला शेठ ईस कहानी के विलन है और विलन होने के नाती उनका एक तडकता-फड़कता डायलोग भी तो होना चाहिए. देला शेठ हर पल ये बोलते नजर आते है की, “धंधा करना गेम है मेरा......और गेम तो मैं खेलूँगा. जो कोई भी मेरी गेम में आया......उसका तो मैं गेम बजा डालूँगा!!” अब बात करते है कहानी के दूसरे विलन की........दूसरा विलन यानी की अच्छा विलन और उसे हम बुरा हिरो भी बुला शकते है. शाहपुर शहर के मियाबाद विस्तार के सिनियर पुलिस इनस्पेक्टर, ‘संग्राम गायकवाड़’!! देला शेठ और संग्राम, दोनों में कोई फेर नहीं. दोनों का मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना, काम जेसा भी हो अच्छा या बूरा......पर ज्यादातर उनका काम बूरा ही होता था. देला शेठ दुनिया के सामने खूले होकर गेरकानूनी काम करते थे और संग्राम वर्दी की आड़ में. देला शेठ आराम से पूरे शहर में शराब का व्यापार करते और संग्राम उनसे पैसे लेकर अय्यासी करता. कोई भी अगर देला शेठ के खिलाफ़ कोई फ़रियाद लेकर आता तो संग्राम केवल उसे सुनकर उस मसले को रफा-दफा कर देता. देला शेठ, संग्राम को अपने छोटे भाई जेसा मानते थे. वो दोनों पूरी तरह से एकदूसरे पर निर्भर थे. मगर देला शेठ के एक काले धंधे से तो संग्राम भी अन्जान था. ‘देला शेठ शहर की बहरे-मूंगे की शाला के बच्चों से शराब की हेरफेर करवाता था.’ उसी शाला में कुछ कॉलेज की लडकिया नयी-नयी पढ़ाने आयी थी. उस लडकियों में से एक ने संग्राम और देला शेठ की जीवनी ही बदल डाली और तो और संग्राम को एक सच्चा पुलिस बनने पर मजबूर किया. उस लड़की का नाम है ‘आरती जैन’. आरती ने एक बार बच्चों को पढ़ाते ही पहचान लिया देला शेठ की बच्चों से शराब की हेरफेर के बारे में और दूसरे दिन ही पहोंच गई मियाबाद पुलिस-स्टेशन. वहा की एक महिला अफ़सर ने आरती की पहचान संग्राम से करवाई और आरती ने सारी बात इनस्पेक्टर संग्राम को बताई. संग्राम ने सारी बाते सुनकर, फ़रियाद लिखकर आरती से कहा, “तू जा........फ़िकर ना करना जरा भी, मैं तपास करवाता हूँ.” संग्राम आरती को देखे ही जा रहा था और मन ही मन किसी की याद में खोकर थोडा उदास हो गया था. तब ही आरती ने पूछा, “क्या हुआ सर?.....अचानक आपके चहेरे पर ये उदासी?” संग्राम हलका सा मुस्कुराकर कहता है, “अरे क्या सर.......तेरे भाई जेसा हूँ ना मैं..........और याद रख ‘जिंदगी में कोई भी तकलीफ आती है तो ये संग्राम गायकवाड़ है हाज़िर’.....” “जी........बड़े भैया.....” ( आरती मुस्कुराकर संग्राम से कहती है. ) [ संग्राम आरती को अपना मोबाइल नंबर देकर उसे पुलिस थाणे से बहार छोड़ने जाता है. ] संग्राम उलजाये हुए मुँह के साथ थाणे में वापस आकर ‘पुलिस अफसर भाटिया’ से कहता है, “भाटिया.......ये देला शेठ हमशे कोई खेल खेल रहा है. बच्चों के जरिये शराब की हेरफेर की बात आजतक हमशे छूपा के रखी.” “अब क्या करे सर?”, भाटिया पूछता है. “कुछ नहीं रे........तूं गाड़ी निकाल और चल देला शेठ के घर!!” संग्राम अपनी कुछ पुलिस की टीम के साथ देला शेठ के बंगले पर आ पहुँचता है और संग्राम देला शेठ को पूरी बात अकेले में बैठकर करता है. देला शेठ बात सुनते ही हस पड़ते है और संग्राम से कहते है, “क्या रे संग्राम......हमारी ये बात पता चली नहीं की आ गया रे तूं........काफी बदमाश है तू साला!” संग्राम भी डायलोग मारने से पीछे नहीं हटता, “देला शेठ.....मने ख़बर छे, काई ख़बर ना होय एवुं कहो ने!!....” हमेशा की तरह देला शेठ संग्राम को हफ्ता देकर फ़रियाद पुलिस के चोपड़े से हटा देने को कहता है और संग्राम पैसे लेकर तुरंत मान जाता है. संग्राम, पुलिस अफसर तलपड़े और भाटिया अपनी जिप में वापस थाना जाने के लिए निकलते है. संग्राम : “ तलपड़े......थाणे जाते ही देला शेठ की फ़रियाद को हटा देना बेटा.....” [ संग्राम तलपड़े के सामने एकदम ख़ुश होकर मस्ती से बोलता है. ] तलपड़े : “ समज गया सर.....” इसी दौरान भाटिया को काफी गुस्सा आता है और वह फ़ौरन जिप को साइड में रुकवाकर संग्राम को अपने पास बहार ले जाकर उसकी ये गिनौनी हरकत के बदल सुनाता है. संग्राम चुपचाप सारा भलाबुरा सुन लेता है.......आखिर में ज्यादा गुस्सा होकर भाटिया संग्राम से कहता है, “पल में बिचारी आरती को बहन बनाया और पैसो को देखते ही उसकी फ़रियाद को रफादफा करने की बात कर रहे है......सर, आपको तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी........” संग्राम अपनी ख़ामोशी तोड़ता है, “ए भाई.......मैं पुलिस इनस्पेक्टर बना पैसा कमाने के लिए, तेरे जेसा वर्दी को शान से पहनकर इमानदारी की पिपुड़ी बजाने के लिए नहीं........और साला बात तो एसे करता है की किसी को मैंने जान से मार दिया हो, ये.......ये अपनी जिप से किसी को उड़ा कर जान ले ली हो.........” [ दो पल की ख़ामोशी.......सुमसान वातावरण.......] संग्राम वापस अपने घर जाता है और एकदम ख़राब मुड़ में शराब की बोतलें निकालता है. बस वो शराब पीने ही जा रहा था की उसके फ़ोन में मेसेज आता है. ट्रिक.......ट्रिक..........( फ़ोन पे मेसेज आने की आव़ाज ) संग्राम फ़ोन देखता है और मालूमात करता है की किसने मेसेज भेजा है. आरती जैन का ही मेसेज होता है और संग्राम के ख़राब मुड़ को वह थोडा सा ठीक करके उसके चहरे पर मुस्कान ले आती है. संग्राम आरती को फ़ोन लगाता है. “ केम छो भाई? “( आरती की आ रही आव़ाज...... ) संग्राम कहता है, “ अरे आरती, अभी तेरा मेसेज आया मुझे वोट्सएप पे. तुने किसी कहानी की लिंक भेजी है. मुझे मालुम है की तू बच्चों को पढ़ाती है पर अभी क्या मुझे भी पढ़ाना शुरू कर देगी क्या?” ( संग्राम आखिर में मुस्कुराता है. ) “ नहीं...नहीं भैया. मैंने सोचा की ‘आप पूरा दिन करते ही क्या हो. बेठे-बेठे थाणे में आप कंटाल जाओ इससे अच्छा है की कुछ पढ़ निकालो. देखो भाई मैं तो एसी ही हूँ, खुद भी पढ़ती रहती हूँ और दुसरो को भी पढ़ाती रहती हूँ. अब आपको भाई बनाया है तो फिर आपकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी भी तो मेरी ही हुई ना’...” ( आरती मज़ाक से जवाब देती है. ) “ मेरी छोटी सी बहन......मैं जरुर से यह कहानी पढ़ निकालूँगा. आपकी इच्छा जरुर पूरी होगी. “ ( संग्राम कटाक्ष से बोला. ) “ मेरे भैया. यह मातृभारती एक्सक्लूसीव कहानी है और कहानी का नाम है ‘रहेमान चाचा’. ईस कहानी के लेख़क की मैं सबसे बड़ी चाहक हूँ और उनकी कोई भी एसी कहानी नहीं है जो मैंने पढ़ी ना हो! संग्राम भैया, आप भी जरुर से यह कहानी पढ़ना और फिर आप भी ईस कहानी और इसके लेख़क ‘वेदांत दवे’ के चाहक बन जायेंगे.” ( आरती ने जवाब दिया. ) संग्राम आरती के कहने पर कहानी पढ़ता है और उसे कहानी इतनी पसंद आती है की वो एक अलग दुनिया में ही खो जाता है और उसका ख़राब मुड़ भी बिलकुल ठीक होकर अच्छा हो जाता है. संग्राम शराब भी वापस रख देता है और कहानी के बारे में ही सोचता रहता है. अगली रात.......... आरती शाला से बस अपने घर जाने के लिए निकल ही रही थी की वहा अप्पु भागता हुआ आता है. अप्पु बोल नहीं शकता है इसीलिए वो कुछ इशारे करके आरती को अपने पास ले जाता है. अप्पु और आरती, दोनों देला शेठ के ब्लू बंगले की तरफ आगे बढ़ते है और आरती तुरंत समज जाती है की वह शाला के कुछ बच्चों को बंगले के अंदर शराब की हेरफेर करते हुए पाएगी. दोनों ही बिलकुल चुपचाप बंगले के अंदर घुसकर बंगले के उस वाले कमरे में जा पहोंचते है जहा तीन बच्चों के दफ़्तर में देला शेठ के कुछ लोग शराब की बोतलें भर रहे है. आरती ने यह सब युक्ति से अपने फ़ोन में रेकोर्ड कर लिया है. पर उसी वक़्त एक गुंडा उन्हें वहा रेकोर्ड करते देख लेता है और फ़ौरन उनके पास जाकर फ़ोन लेने की कोशिश करता है. आरती उसे धक्का देकर अप्पु का हाथ पकड़कर तुरंत वहा से भाग जाती है. वह गुंडा बंगले के बहार खड़े रहते दो आदमियों में से एक को फ़ोन लगाकर आरती और अप्पु को उड़ा देने के लिए कहता है. आरती और अप्पु, दोनों पीछे के रास्ते से निकल जाते है पर सामने वो गुंडे की गाड़ी काफी तेज गति से उनकी ओर आती नजर आ रही है. आरती तुरंत अप्पु को फ़ोन देकर उसे संग्राम के पास दे आने को कहती है और अप्पु को गाड़ी से बचाने उसे धक्का देती है. अप्पु धक्का लगने से जमीन पर गिर जाता है पर वो तुरंत वापस से उठकर सीधा संग्राम के पास जाने के लिए आगे बढ़ता है. और वह गुंडा इतनी ही बेरहमी से आरती को अपनी गाड़ी से उड़ा देता है. दूसरे दिन की सुबह.......... अप्पु मियाबाद पुलिस थाणे में है और उसने सारी बात कागज़ पर लिखकर संग्राम को बता दी है, साथ ही थाणे के सारे अफसरों ने फ़ोन का रेकोर्डिंग भी देख लिया है. संग्राम चाहे कितना ही गलत धंधा करता हो पर वह अपने देश के कायदे का थोड़ा तो थोड़ा ही सही पर ईमान जरुर रखता था. वह कभी भी पुलिस की पूरी वर्दी में नज़र नहीं आता था, मतलब की संग्राम हमेशा से हमारे देश की शान रही एसी पुलिस की टोपी अपने सर नहीं पहेनता था. क्यूकी उसने आज तक उस वर्दी के सम्मान जेसा कुछ किया ही नहीं था. संग्राम विडियोवाला फ़ोन तलपड़े को देकर सीना कड़क करके पूरे गुस्से से खड़ा होकर अपनी केबिन में जाता है...... कुछ समय बाद........ ठाक.............( केबिन की खुलने की आव़ाज ) थाणे के सारे अफसर संग्राम को सलाम मार रहे है और संग्राम आज पहली बार पूरी पुलिस की वर्दी के साथ ऑन ड्यूटी हो गया है. संग्राम तलपड़े से, “ तलपड़े......गाड़ी निकालो और चलो देला शेठ के घर!! “ आ गई पुलिस!!..........संग्राम.......... आ गई पुलिस!!..........संग्राम........... [ फिल्मों की तरह पीछे बजता हुआ संगीत ] संग्राम अपना काफ़िला लेकर देला शेठ के घर आ पहुँचता है. देला शेठ संग्राम से, “ अरे ए संग्राम......बात सुन य़ार मेरी.... “ संग्राम गुस्से से देला शेठ के सामने देखकर बोला, “ बहन थी मेरी.......देला शेठ, बहन थी मेरी...... “ देला शेठ धीरे से संग्राम के कान में कहता है, “ ईस बार ज्यादा ले ले भाई.....कितनी पेटी पैसा चाहिए बोल!?.... “ संग्राम हस कर देला शेठ को जवाब देता है, “ देला भाई.....हवे ख़ाली जुओ......मेरी ही पुलिस जिप से आपके उस गुन्हेगार भाई को एसा उडाऊंगा की मजा ही आ जाएगा!! “ अप्पु संग्राम को वह गाड़ी वाला पहचान के देता है और संग्राम फ़ौरन उसे गिरफ़्तार करने का ऑर्डर देता है. ऑर्डर सुनते ही देला शेठ, “ ए संग्राम......तेरे बाप का राज है क्या? “ संग्राम, “ हा....देला....हा.........ऑन ड्यूटी सिनियर पुलिस इनस्पेक्टर हूँ.......साले दो कोड़ी के गुंडे, तमीज़ से बात कर वरना तुझे भी अंदर कर दूंगा. “ अगले हफ्ते कोर्ट में सुनवाई थी पर देला शेठ ने विटनेस का वीडियो ही गायब करवा दिया और तो और अप्पु के पापा को पैसे देकर उन्हें भी शाहपुर से बहार भेज दिया. संग्राम की आजिज़ी की वजह से एक आखरी सुनवाई यानी की एक ओर तारीख़ पुलिसफोर्स को मिली. तब तक देला शेठ के वह गाड़ी के चालक जिसका नाम रणदीप था उसे जेल में ही बंध रहना था. उसी दौरान संग्राम को भी आरती की याद उस हद तक सताने लगी की उसका मकसद ही जैसे रणदीप को खत्म करना हो गया. संग्राम की एक सोच यह भी थी की ‘ अगर केस से भी रणदीप दोषी साबित होता है तो उसे कुछ चंद सालो की जेल होगी और साला फिर से बहार आ जाएगा. पर उसकी ईस गिनौनी हरकत की वजह से अब आरती तो वापस नहीं ही आएगी ना...... ‘ “ नहीं......गाड़ी की टक्कर का बदला, गाड़ी की टक्कर से..... “ [ संग्राम मन ही मन बोला. ] संग्राम ने तुरंत सारे अफसरों को अपनी केबिन में बुलाया और सबको एक प्लान जाया किया. .......... प्लान पर अमल हुआ और कुछ समय बाद थाणे के बहार गाड़ी की टक्कर से मौत के घाट उतरे रणदीप का मृतशरीर दिखाई दिया. वक़्त थोडा पीछे.............. प्लान के मुताबिक यह हुआ की थाणे के बहार के इलाके के सारे सीसीटीवी केमेरा चालु करवा दिए. थाणे से थोड़े दूर एक ट्रक चालक को खड़ा कर दिया और असल में तो यह ट्रक चालक मियाबाद पुलिस थाणे का एक अफसर ही था. बात यह हुई की रणदीप को किसी तरह से उस्काकर जेल से बहार लाया गया और वह घटना थाणे के केमरे में रेकोर्ड हुई. बहार आकर रणदीप थाणे के अफसर को धक्का देकर भागने गया और वही पे एक तरफ से ट्रक वाला ट्रक लेकर आगे बढ़ा.....दूसरी तरफ संग्राम अपनी जिप लेकर खड़ा था, वो भी आगे बढ़ा. ट्रक थोड़ी तेज हुई और चालक ट्रक में से कुद गया. थाणे के बहार के केमरे में यह सब रेकोर्ड हुआ. कोर्ट में ये क्लिप से साबित करना था की ‘ट्रक की ब्रेक फेइल होने से चालक को कूदना पड़ा.’........वही पे दूसरी ओर संग्राम को अपने सामने तेज गति से आ रहे ट्रक से बचने के लिए यानी की ‘सेल्फ डिफेन्स’ के लिए अपनी जिप का स्टियरींग मजबूरन गुमाना ही पड़ा और उसीमे पुलिस को चखमा देकर भागे हुए रणदीप को टक्कर लगी और उसकी मौत हो गई. अगले हफ़्ते कोर्ट में वही सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई और केस बंध हो गया. वाकई, संग्राम ने एक भाई होने के नाती अपनी बहन आरती को सच्चा न्याय दिलाया. अगर बेकसूर आरती को जिस तरह मौत फ़रमाई गई, बिलकुल उसी तरह वह आरोपी को भी मौत कुबूल हो तो ही सच्चा न्याय मिले.........और संग्राम ने एसा ही किया. तो ईस तरह से, “आ गई पुलिस!!” Download Our App