Drohadi ki vyatha - 1 in Hindi Mythological Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | द्रौपदी की व्यथा - (पार्ट1)

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द्रौपदी की व्यथा - (पार्ट1)

कुरुक्षेत्र के युद्ध मे मारे गए वीरो के परिवारजन भागीरथी के तट पर पहुंचे थे।खुले आसमान में चमक रहे सूर्य की किरणें नदी के जल पर पड़ रही थी।
स्त्री पुरषो ने नदी के किनारे पहुंचकर अपने वस्त्राभूषण उतारे और सभी एक एक करके गंगा के पवित्र जल में उतरने लगे।सभी युद्ध मे वीरगति को प्राप्त अपने स्वजनों को जलांजलि देकर श्रद्धांजलि देने के लिए पवित्र नदी के तट पर आए थे।जलांजलि देते समय अपने पतियों और पुत्रो को याद करके औरते सुबक उठी।औरतो के रुदन से वातावरण शोकाकुल हो उठा।औरतो के रुदन से पुरुषों की आंखे भी हम हो गई।
कुंती कीभी आंखे अपने पोते अभिमन्यु और अन्य स्वजनों को याद करके भर आयी।उसे जितना दुख अपने पोते अभिमन्यु का था उतना ही अपने बेटे कर्ण का भी था।कुंती ने वर्षों तक छुपाकर रखे राज को कर्ण को बता दिया था। कि वह उसकी मां है।लेकिन इन पांच बेटो से यह भेद अभी तक छुपाए हुए थी।लेकिन आज उसने सोचा था।जब कर्ण इस संसार मे रहा ही नही तब अब इस राज को छिपाने से क्या फायदा?यही सोचकर वह अपने पुत्र युधिष्ठिर से बोली,"वत्स।"
"जी माताजी।"
"बेटा।नियमानुसार कर्ण को जलांजलि तुम्हे देनी चाहिए।"
"मां यह तुम क्या कह रही हो।?वह दुष्ट दुर्योधन का मित्र और हमारा शत्रु था।हमने उसे युद्ध के मैदान में मारा था।"युधिष्ठिर आश्चर्य से मां से बोला,"मां तुम हमारे शत्रु को हमसे जलांजलि क्यों दिलाना चाहती हो?"
"बेटा जो मर चुका है।इस दुनिया मे नही है।उसकी आलोचना करना सही नही है।"कुंती बोली थी।
"मां सही कह रही है।"द्रौपदी ने अपनी सास की बात का समर्थन किया था।
"वो तो सही है लेकिन पिछली बातों को भुलाना आसान नही होता।"युधिष्ठिर बोला,"मां आप पिछली बातें भुलाकर कर्ण को जलांजलि देने की बात कह रही है।क्यों?"
"क्योंकि कर्ण तुम्हारा भाई था।"
"मां यह कैसा मजाक है?"
"बेटा यह कोई मजाक नही।हकीकत है,"कुंती एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली,"महाराज पांडु से शादी से पहले कर्ण का जन्म हुआ था।"
"क्या?"सहदेव आश्चर्य से बोला,"अगर आपकी बात सही है तो आपने हमसे यह बात अब तक छुपा कर क्यों रखी?"
"लोक लाज और समाज मे बदनामी के डर से मैने कर्ण को जन्म होते ही समुद्र में बहा दिया था।"
"मां यह तुमने अच्छा नही किया,"नकुल बोला,"अपने पाप को तुम आज तक हमसे छिपाये रही।"
"तुम माता माद्री की जगह पिताजी के साथ सती क्यों नही हो गई?अर्जुन गुस्से में बोल,"अगर तुम मर जाती तो यह राज भी तुम्हारे साथ ही चला जाता।"
"अर्जुन ,कुंती तुम्हारी माँ है।माँ से इस तरह बात नही करते।"बहुत देर से चुप खड़े सुन रहे श्रीकृष्ण बोले थे।
"आपकी बात ठीक है।मुझे मां से इस तरह बात नही करनी चाहिए।लेकिन मां ने हमे कहीं मुँह दिखाने के लायक नही छोड़ा।इस राज को राज ही रहने देती तो अच्छा था।अब सारी दुनिया जान जाएगी कि पांडवो की मां और महाराज पांडु की पत्नी बदचलन थी।वह कुंवारी थी तभी मां बन गई थी।"भीम ने श्रीकृष्ण से कहा था।
"भीम दोष तुम्हारी माँ का नही है।उनकी नादानी और जरा सी भूल से ऐसा हुआ था,"श्रीकृष्ण बोले,"नादानी और भूल का परिणाम तुम्हारी माँ को भी भुगतना पड़ा है।वह लोक लाज और समाज के डर से कर्ण को अपना बेटा स्वीकार नही कर सकी।इसका परिणाम यह निकला कि मां के सामने उसका जवान बेटा मारा गया।"

शेष अंतिम भाग में