TRIDHA - 12 in Hindi Fiction Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | त्रिधा - 12

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त्रिधा - 12

रात को इस समय भला कौन आया होगा! सोचते हुए त्रिधा ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने खड़े व्यक्ति को देखकर वह हैरान रह गई। कुछ पलों के लिए तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह वाकई नींद में नहीं है।

त्रिधा के सामने उसकी रोशनी मैडम खड़ी थीं। वह भागकर उनके गले लग गई और बहुत देर तक रोती रही। कुछ देर बाद जब वह संयत हुई तब उसने मैडम से पूछा - "मैडम आप यहां कैसे?"

तब रोशनी मैडम ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - "अब अपनी बेटी से मिलने आने से पहले भी बताना या पूछना पड़ेगा क्या?"

न में सिर हिलाती हुई त्रिधा एक बार फिर उनके गले लग गई।

रोशनी मैडम बोलीं - "कैसी हो त्रिधा?"

रोशनी मैडम का यह सवाल सुनकर त्रिधा का मन तो हुआ कि वह मैडम को सब कुछ बता दे मगर अभी तो मैडम आई ही थीं इस बारे में रुक कर बात करने का सोचकर त्रिधा चुप हो गई।

कुछ देर बाद त्रिधा, अपने और रोशनी मैडम के लिए एक एक कप कॉफी बना लाई। दोनों साथ बैठकर कॉफी पी रही थीं।

रोशनी मैडम बोलीं - "त्रिधा मैं थोड़ा जल्दी में हूं। भोपाल किसी परिचित से मिलने आना हुआ तो सोचा तुमसे जरूर मिलकर जाऊंगी।"

उनकी बात सुनकर त्रिधा मुस्कुरा दी। तब रोशनी मैडम ने आगे कहा - "बेटा! इतनी काबिल बनो कि अगली बार जब मैं तुमसे मिलने आऊं तो इस हॉस्टल में नहीं बल्कि तुम अपने घर में मेरा स्वागत करो।" इतना कहकर उन्होंने त्रिधा के सिर पर हाथ रख दिया। उनकी बात सुनकर त्रिधा फूट फूटकर रो पड़ी।

रोशनी मैडम ने त्रिधा का सिर अपनी गोद में रख लिया। वे बोलीं - "त्रिधा, मैं जब से आई हूं, तुम कुछ परेशान लग रही हो। बताओ बेटा क्या बात है। कोई परेशानी है इस शहर में? कोई तुम्हें परेशान तो नहीं कर रहा न?"

रोशनी मैडम ने जब त्रिधा से बिलकुल मन की तरह सवाल किए तो उसने रोशनी मैडम को कसकर पकड़ लिया, वह और ज्यादा रोने लगी। कुछ देर बाद वह बोली - "प्रभात है न मैडम, उसने आज तक मुझे कोई परेशानी नहीं होने दी और न ही आज तक किसी को मुझे परेशान करने दिया। मगर अब…"

त्रिधा की बात सुनकर पहले तो रोशनी मैडम खुश हुईं मगर उसके कहे आखिर के दो शब्दों ने उन्हें चिंतित कर दिया। उन्होंने पूछा - "मगर क्या त्रिधा?"

त्रिधा ने रोशनी मैडम को शुरू से लेकर अब तक की हर बात बता दी फिर अंत में वह बोली - "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैडम मैं क्या करूं… प्रभात और संध्या को समझाऊं भी तो कैसे आखिर वर्षा ने उनका विश्वास जीतने के लिए अपनी जान खतरे में डाली थी।"

रोशनी मैडम बोलीं - "मैं उम्र में तुमसे बड़ी हूं त्रिधा और जीवन के बारे में मेरा अनुभव भी तुमसे ज्यादा है। तुम एक बार प्रभात और संध्या को अपने मन में चल रही परेशानी से अवगत जरूर करवाओ। प्रभात और संध्या आज भले ही तुम्हें गलत समझें मगर कल सच उनके सामने आ ही जायेगा। झूठ कभी ज्यादा समय तक नहीं टिकता है त्रिधा। झूठ की पट्टी से बंद आंखों से कोई तुम्हारा नजरिया न समझे तो उसे एक मौका जरुर दो मगर जो सच देखने के बाद भी तुम्हारा नजरिया न समझे, उसे दूसरा मौका कभी मत दो।"

त्रिधा उनकी पूरी बात सुनने के बाद बोली - "मैं समझती हूं मैडम लेकिन प्रभात और संध्या मेरे दोस्त हैं। कम से कम उन्हें तो मेरी बात समझनी चाहिए। हर्षवर्धन जो मेरा दोस्त भी नहीं है वो मुझे समझता है लेकिन संध्या और प्रभात नहीं।"

रोशनी मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा - "दोस्ती दोनों ओर से समझौते का रिश्ता होता है त्रिधा। बुराई सबमें होती हैं मगर इन बुराइयों के सामने किसी की अच्छाई कभी नजरंदाज नहीं करनी चाहिए। रिश्ता तोड़ने की लाखों वजह हों मगर निभाने की अगर एक भी वजह है तो रिश्ते निभा लेने चाहिए क्योंकि सच्चे रिश्ते करेले की तरह कड़वे जरूर हो सकते हैं मगर करेले की ही तरह कई नुकसानों से बचाते हैं। रही बात हर्षवर्धन की, तो मैं तुम्हारे एक वाक्य से ही उसे समझ गई। जब कोई तुम्हें न समझे फिर भी वह अकेला तुम्हें समझे, तुम्हारे साथ खड़ा रहे तो वह प्यार का सबसे निश्छल रूप होता है।"

त्रिधा ने रोशनी मैडम की गोद में अपना सिर छिपा लिया।

रोशनी मैडम आगे बोलीं - "तुम्हारी हर समस्या का समाधान है मेरी बातों में लेकिन यह सफर तुम्हारा है, इसलिए कोशिशें भी तुम्हारी ही होंगी। खुशी हो या तकलीफ हो, कोई और व्यक्ति, इंसान को सिर्फ सहारा दे सकता है, सहन उसे खुद ही करना होता है त्रिधा।"

उन्होंने त्रिधा के सिर पर हाथ फेरकर कहा - "उठो मेरी बहादुर बच्ची। अभी बहुत बड़ी जिंदगी है संघर्ष हर कदम पर हैं तुम्हें हार नहीं माननी है।"

त्रिधा उठकर बैठ गई। कुछ देर बातें करने के बाद रोशनी कदम चली गईं, उनकी दस बजे की ट्रेन थी।

त्रिधा अपने बेड पर लेटी हुई थी। रोशनी मैडम की बातें सुनने के बाद उसमें एक अलग ही सकारात्मकता और जीवन को लेकर एक अलग ही नजरिया आ गया था। अब उसे पता था कि उसे क्या करना है।

***

अगले दिन रविवार था। त्रिधा देर से सोकर उठी। बाहर बारिश हो रही थी। त्रिधा को बारिश बहुत पसंद थी, वह खिड़की के पास खड़ी होकर बारिश को लगातार देख रही थी कि तभी उसके फोन पर कॉल आने लगा।

त्रिधा ने अपना फोन उठाकर देखा, प्रभात का कॉल था। बिना एक पल की भी देरी किए त्रिधा ने कॉल रिसीव किया।

दूसरी तरफ से प्रभात बोला - "गुड मॉर्निंग त्रिधा! क्या कर रही हो तुम?"

प्रभात की बात सुनकर त्रिधा को विश्वास ही नहीं हुआ कि प्रभात ने उसे तीन महीने बाद सुबह सुबह फोन किया था, गुड मॉर्निंग बोलने के लिए।

त्रिधा ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा - "मैं ठीक हूं प्रभात। अभी सोकर उठी थी।"

त्रिधा की बात सुनकर प्रभात बोला - "अच्छा त्रिधा आज मौसम अच्छा है तो मैं संध्या के साथ कहीं डेट पर जाने की सोच रहा था।"

प्रभात की बात सुनकर त्रिधा खुश हो गई। उसे लगा कि शायद सब कुछ पहले जैसा होने वाला है। प्रभात संध्या के साथ डेट पर जा रहा है और उसके साथ मिलकर संध्या के लिए प्लान्स बना रहा है। मगर ठीक तभी प्रभात की बात सुनकर उसका सारा उत्साह और सारी खुशी गायब हो गई। प्रभात बोला - "त्रिधा मैंने वर्षा को बोल दिया है कि वह संध्या से उसे पढ़ाने के लिए बोल दे। इससे संध्या का पूरा दिन वर्षा को पढ़ाने में निकल जाएगा और वह मुझे बार बार कॉल्स नहीं कर पाएगी तब तक मैं आराम से उसके लिए प्लान्स बना लूंगा। मैंने तुम्हें इसलिए बताया है कि अगर आज तुम्हारी मुझसे या संध्या से बात न हो पाए तो तुम परेशान नहीं हो।"

प्रभात की बात सुनकर त्रिधा बोली - "तुम्हारी और संध्या की डेट के लिए प्लान तो हम हमेशा से एक साथ ही बनाते आए थे न प्रभात! चलो अच्छा है अब तुम खुद ही सब कुछ अरेंज कर लोगे तो मेरा भी संडे आराम से जाएगा।" त्रिधा ने कहा तो शांत स्वर में था मगर यदि प्रभात त्रिधा के सामने होता तो उसके चेहरे पर आया हुआ गुस्सा साफ देख पाता।

प्रभात बोला - "मैं जानता हूं त्रिधा तुम आजकल बहुत परेशान रहती हो और बहुत ज्यादा स्ट्रेस्ड भी रहती हो इसीलिए मैं तुम्हें और परेशान नहीं करना चाहता था।" त्रिधा फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली - "तुम और संध्या मुझे कभी परेशान नहीं कर सकते प्रभात। अच्छा प्रभात, ब्रेकफास्ट बन गया है मैं नीचे खाने चली जाती हूं वरना खत्म हो जाएगा।" कहकर त्रिधा ने बिना प्रभात की बात सुने ही फोन रख दिया।

बाहर आसमान बरस रहा था और अंदर त्रिधा की आंखें बरस रही थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जो संध्या और प्रभात हर वक्त उसके लिए परेशान रहते थे, उसका खयाल रखते थे, उसे अपनी जिम्मेदारी समझते थे, आज वही त्रिधा उनकी जिंदगी में कोई मायने नहीं रखती!

त्रिधा बाहर बारिश को देखती हुई अपने आपसे बोली - "मैं इतनी महान भी नहीं प्रभात जो मुझे किसी चीज का बुरा न लगे... क्या किसी में इतनी ताकत होती है कि वह इतनी गहरी दोस्ती को भी तुड़वा दे वह भी सिर्फ कुछ ही समय में?"

त्रिधा अपने आंसू पोंछकर पीछे मुड़ी ही थी कि तभी उसके फोन पर वापस कॉल आने लगा। त्रिधा ने फोन उठाकर देखा तो हर्षवर्धन का कॉल था।

त्रिधा ने फोन उठाया मगर वह कुछ बोली नहीं। वह दूसरी ओर से हर्षवर्धन की बात सुनना चाहती थी। हर्षवर्धन भी उसकी चुप्पी समझ गया, वह बोला - "त्रिधा आज तक मुझे कभी किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं पड़ी शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन का बेटा होने का फायदा था यह। त्रिधा मुझे पता है तुम भी मुझसे प्यार करती हो मगर मैं नहीं जान पा रहा कि वह कौन सा कारण है जिसकी वजह से तुम अपने प्यार को स्वीकार नहीं कर पा रही हो। बस एक साल बचा है त्रिधा हमारे पास, उसके बाद मैं नहीं जानता तुम कहां होगी और मैं कहां होऊंगा! मैंने आज तक किसी से कुछ नहीं मांगा, मैं आज तुमसे कुछ मांगना चाहता हूं... त्रिधा अगर तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है तो भी बस अपनी जिंदगी का यह एक साल मुझे दे दो। इस एक साल के सहारे ही सही, मैं अपनी बाकी की जिंदगी गुजार दूंगा। मैं वादा करता हूं अपनी हद से ज्यादा आगे कभी नहीं बढूंगा। बस अपनी जिंदगी का यह एक साल मुझे दे दो प्लीज त्रिधा।"

हर्षवर्धन की बात सुनकर त्रिधा को कुछ समझ ही नहीं आया कि यह सुबह-सुबह कैसी बातें कर रहा है। वह बोली - "तुम सुबह-सुबह यह सब क्या बातें लेकर बैठ गए हर्ष! तुम्हें पता है न मैं पहले ही कितनी परेशान हूं और तुम मुझे ये सब बातें करके और परेशान क्यों कर रहे हो? मैं बचपन से अकेली रहती आई हूं, कभी अपनापन नहीं देखा मैंने। वह अपनापन संध्या और प्रभात ने दिया था मुझे। आज वे मुझसे दूर हो रहे हैं और उन्हें खोने का दुख तुम नहीं समझ सकते क्योंकि वे दोनों तुम्हारे लिए सिर्फ तुम्हारे दोस्त हैं मगर मेरा तो पूरा परिवार हैं वे। तुम्हारे पास अपना पूरा परिवार है तुम्हें प्यार करने वाला, तुम्हारा ध्यान रहने वाला, मगर मैंने अपनी जिंदगी अभावों में गुजारी है, किसी अपने को खोने का दुख क्या होता है यह तुम नहीं समझ सकते मगर इस दुख से मैं गुजर रही हूं।"

त्रिधा की बात सुनकर हर्षवर्धन कुछ देर चुप रहा फिर वह बोला - "तुम कैसे कह सकती हो त्रिधा कि किसी अपने को खोने का दुख मैं नहीं जानता! जिसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता हूं वही मुझसे प्यार करते हुए भी मुझसे दूर जा रही है। बस एक साल ही तो है मेरे पास उसके साथ रहने के लिए। उस एक साल के बाद मैं शायद जीवन में कभी उससे मिल भी नहीं पाऊंगा। उसके सामने होते हुए भी मैं उसे अपना नहीं कह सकता, क्या यह दुख नहीं है त्रिधा? मैं तुमसे कुछ बड़ा नहीं मांग रहा, तुम्हारे दिन का थोड़ा सा समय बस अपने लिए मांग रहा हूं मैं। प्रभात और संध्या के साथ जो समय तुम बिताती थीं अब वह सारा समय खाली हो गया है, बस वह समय मुझे दे दो। मैं तुम्हारी पढ़ाई के बीच में नहीं आऊंगा, तुम्हारे जीवन में हद से ज्यादा इंटरफेयर भी नहीं करूंगा। सिर्फ एक साल दे दो त्रिधा। जिस दुख से तुम गुजर रही हो त्रिधा वही दुख तुम मुझे क्यों देना चाहती हो?"

हर्षवर्धन की कही अंतिम पंक्ति सुनकर त्रिधा चुप हो गई। वह समझ गई कि जिस दुख से वह गुजर रही है, वही दुख हर्षवर्धन भी तो महसूस कर रहा होगा। खुद उसे तो यह दुख सिर्फ छह महीनों से महसूस हो रहा है मगर हर्षवर्धन तो जब से उससे मिला है, वह हर दिन इसी दुख में जी रहा है। रिश्ते भले ही अलग हों, प्यार का रूप भले ही अलग हो, मगर दुख एक जैसा ही तो है दोनों का।

काफी देर चुप रहने के बाद त्रिधा बोली - "आज मेरे साथ लंच पर चलोगे हर्ष?"

दूसरी ओर हर्षवर्धन चुप था, शायद वह मुस्कुरा रहा था। कुछ देर बाद वह बोला - "बिलकुल हां" हर्षवर्धन का जवाब सुनकर त्रिधा ने हंसते हुए फोन रख दिया।

***

त्रिधा नाश्ता अपने कमरे में ही ले आई थी। वह अपने बिस्तर पर बैठ कर नाश्ता करती जा रही थी और सोच रही थी कि वर्षा ने जो कुछ भी कल उससे कहा था वह सारी बातें वह हर्षवर्धन को लंच के बाद बताएगी क्योंकि उससे पहले वे सारी बातें बता कर और सोच कर वह अपना और हर्षवर्धन का मूड खराब नहीं करना चाहती थी।

जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म करने के बाद त्रिधा ने अपनी कबर्ड खोली और उसमें से सारे कपड़े निकाल कर, प्रत्येक सूट को अपने ऊपर लगा कर आईने में देखने लगी। हालांकि वह खुद हर्षवर्धन से दूर भागती थी मगर उसके साथ समय बिताने की कल्पना मात्र से भी उसकी सारी परेशानियां, सारी चिंताएं दूर हो जाती थीं। वह किसी अलग ही दुनिया में पहुंच जाती थी जहां सिर्फ खुशी ही खुशी थी होती थी, कोई परेशानी होती थी, नहीं कोई दुख नहीं होता था, कोई तकलीफ नहीं होती थी। त्रिधा ने अपने लिए एक काले रंग का सूट निकाल कर अलग रख लिया। यह सूट उसे प्रभात ने उसके जन्मदिन पर दिया था। और यह ख्याल आते ही त्रिधा का चेहरा एक बार फिर उदास हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे उलझे हुए से मोड़ पर खड़ी थी, जहां एक पल में उसे खुशी मिलती थी तो अगले ही पल में वह फिर उदास हो जाती थी।

***

हर्षवर्धन और त्रिधा, हर्षवर्धन के ही रेस्टोरेंट में बैठे हुए थे। हर्षवर्धन ने पूरा रेस्टोरेंट त्रिधा के लिए ही सजा रखा था, आज कोई भी अन्य व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था, सब तरफ शांति और सिर्फ संगीत था। त्रिधा को यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उसके लिए इतना भी कर सकता है। वह मंत्रमुग्ध सी चारों ओर देख रही थी।

हर्षवर्धन ने एक वेटर को बुलाकर त्रिधा की पसंद का सारा खाना ऑर्डर कर दिया और वेटर के सर्व करते ही खुद भी मजे से स्वाद लेकर खाना खाने लगा। त्रिधा हैरानी से हर्षवर्धन को भुक्कड़ों की तरह खाते हुए देख रही थी और सोच रही थी ऐसे तो वह खाया करती थी प्रभात और संध्या के साथ। हर्षवर्धन ने जब त्रिधा को खुद को देखता हुआ पाया तो वह इशारे से त्रिधा से खाने के लिए बोला, हर्षवर्धन का इशारा देख कर त्रिधा भी खाने लगी। कुछ देर बाद अपना - अपना खाना खत्म करने के बाद दोनों अपनी जगह पर ही बैठे हुए थे।

काफी देर तक दोनों ही चुप थे। त्रिधा हर्षवर्धन से ज्यादा बातें करके उसके मन में अपने लिए और लगाव नहीं करना चाहती थी, वहीं हर्षवर्धन त्रिधा से ज्यादा बातें करके उसे यह नहीं दिखाना चाहता था कि वह उसके बिना बहुत कमजोर पड़ जाएगा। फिर त्रिधा ने ही सोचा जब वह हर्षवर्धन को अपना समय दे ही रही है तो क्यों न उससे बात करे, उसे वह सारी खुशी दे जो वह चाहता है। यही सोच कर त्रिधा बोली - "मुझे अपना रेस्टोरेंट नहीं दिखाओगे हर्षवर्धन?"

त्रिधा की बात सुनकर हर्षवर्धन मुस्कुराते हुए खड़ा हो गया और उसका हाथ पकड़कर उसके साथ चलने लगा। वह त्रिधा को पूरा रेस्टोरेंट दिखा रहा था। ऊपर की मंजिल पर इन्हीं लोगों का होटल भी था। कमरों की लंबी कतारों के अंत में बहुत सारी खुली हुई जगह थी जहां कुछ टेबल कुर्सी लगी हुई थीं। त्रिधा वहीं बैठ गई, उसके सामने ही हर्षवर्धन भी बैठ गया।

त्रिधा हर्षवर्धन को गौर से देखती हुई बोली - "मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है हर्ष..."


हषर्वर्धन बोला - "हां, बोलो न त्रिधा। तुम्हें मुझे कुछ भी बताने के लिए पूछने की जरूरत नहीं है। बस कह दिया करो।" हर्षवर्धन के इतना कहते ही त्रिधा ने बीते दिन कॉलेज में वर्षा ने उससे जो भी कहा था, वे सारी बातें हर्षवर्धन को बता दी।

पूरी बात सुनने के बाद हर्षवर्धन ने बस इतना ही कहा - "संध्या और प्रभात भी सेल्फिश निकले।"

हर्षवर्धन की बात सुनकर त्रिधा उदास हो गई। वह बोली - "नहीं हर्ष, प्रभात और संध्या मतलबी नहीं हैं, उन्हें मतलबी कहकर तुम मेरी दोस्ती और इंसानों को लेकर मेरी समझ पर सवाल उठा रहे हो। वे दोनों कुछ भी हो सकते हैं लेकिन मतलबी नहीं। ये तो स्वाभाविक है हर्ष कि जो आपके लिए कुछ बड़ा करता है उसी से आपका लगाव ज्यादा होता है और वर्षा ने भी तो उस दिन संध्या को बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाली। हां उसके इरादे गलत हैं मगर ये बात प्रभात और संध्या को समझाना इसीलिए मुश्किल हुआ क्योंकि कोई भी चालबाज इंसान किसी के लिए अपनी जान खतरे में नहीं डालता।"

हर्षवर्धन को तुरंत अपनी गलती का एहसास हो गया वह बोला - "माफ कर दो त्रिधा। सारा सच जानने के बाद मैं गुस्से में आ गया था।"

त्रिधा बोली - "ये वो समय है हर्ष जब हमें समझदारी से काम लेना चाहिए और गुस्से में इंसान सबसे पहले समझदारी ही खोता है।"

हर्षवर्धन कुछ सोच में था। कुछ देर बाद वह बोला - "त्रिधा अगर तुम ठीक समझो तो क्या मैं वर्षा से बात करूं? उसे समझाने की कोशिश करूं?"

त्रिधा चुप रही। वह जानती थी हर्षवर्धन का गुस्सा वर्षा को डरा धमकाकर कुछ समय के लिए तो रोक देगा मगर उसके बाद वर्षा कोई नया तरीका ढूंढ लेगी उन सबके बीच आने का। वह हर्षवर्धन से बोली - "नहीं हर्ष, तुम वर्षा को डरा कर कुछ समय के लिए तो रोक लोगे मगर उसके बाद वर्षा कोई नया तरीका ढूंढ लेगी हम सबके बीच आने का और अगर उसने प्रभात या संध्या को बता दिया कि तुमने उससे कुछ कहा है तो तुम भी उनकी नजरों में… मैं तुम्हें किसी की भी नजरों में गिरता नहीं देखना चाहती, अपनी वजह से तो बिलकुल नहीं।"

हर्षवर्धन, त्रिधा को गौर से देख रहा था। कुछ समय बाद उसने पूछा - "तो अब तुमने क्या सोचा है त्रिधा?"

त्रिधा सोचती हुई बोली - "वर्षा को उसी के शब्दों से हराऊंगी अब मैं।"

हर्षवर्धन ने त्रिधा से पूछा - "कैसे?"

त्रिधा अपनी आंखों में चमक लाते हुए बोली - "बहुत अच्छा प्लान है मेरे पास। अब सुनो…" इतना कहकर त्रिधा ने हर्षवर्धन को वह सब बता दिया जो उसने सोचा था। हर्षवर्धन को भी त्रिधा का प्लान बढ़िया लगा।

कुछ देर बाद हर्षवर्धन और त्रिधा वापस लौट रहे थे। हर्षवर्धन त्रिधा को हॉस्टल छोड़ने जा रहा था। रास्ते में वह सोच रहा था जब त्रिधा ने रेस्टोरेंट में उससे कहा था कि वह उसे किसी की भी नजरों में गिरता नहीं देखना चाहती थी। हर्षवर्धन अब पूरी तरह निश्चिंत था कि त्रिधा भी उससे प्यार करती है। अब बस उसे वह वजह ढूंढनी थी जिसके कारण त्रिधा उसे प्यार करते हुए भी उससे दूर भागती थी।

त्रिधा को हॉस्टल के गेट पर छोड़कर हर्षवर्धन बोला - "अपना ध्यान रखना त्रिधा।"

"तुम भी।" कहकर त्रिधा मुस्कुराती हुई हॉस्टल के अंदर चली गई।

****

त्रिधा अपने कमरे में बैठकर आज के अपने दिन के बारे में सोच रही थी। वह सोच रही थी हर्षवर्धन के साथ बिताया हुआ यह दिन वह कभी नहीं भूल पाएगी। मगर भूल तो वह कभी प्रभात और संध्या की दोस्ती को भी नहीं पाएगी जिनके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है मगर उन्हें समझा नहीं पा रही कि वे कितनी गलत इंसान के साथ हैं।

त्रिधा अपने कपड़े तह करके रख रही थी कि तभी उसके फोन पर कॉल आने लगा। त्रिधा जैसे ही फोन के पास पहुंची तो देखा संध्या का कॉल था। हफ्तों बाद अपने फोन पर संध्या का कॉल देखकर त्रिधा खुश हो गई। उसने तुरंत कॉल रिसीव किया। इधर से त्रिधा के कुछ बोलने से पहले ही संध्या बोली - "प्रभात को तुमने बुलाया त्रिधा?" संध्या की आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह रो रही है।

त्रिधा घबरा गई। वह सोचने लगी इन दोनों की तो आज डेट थी, प्रभात संध्या के लिए ही सभी अरेंजमेंट्स कर रहा था सुबह से, तो फिर अब कहां चला गया और क्यों? इस समय तो उसे संध्या के साथ होना चाहिए था! और संध्या रो क्यों रही है? इतने सारे सवाल एकसाथ त्रिधा के दिमाग में कौंध गए। उसने संध्या से पूछा - "क्या हुआ संध्या? तुम रो क्यों रही हो? और प्रभात कहां गया?"

संध्या रोते हुए ही बोली - "अगर मुझे पता होता वह कहां गया है तो तुमसे पूछती क्या मैं? हम डेट पर आए थे, झील के पास वाले रेस्टोरेंट में। बस आकर बैठ ही थे कि तभी किसी का फोन आया और वह मुझे बिना बताए अचानक चला गया। मुझे लगा वो तुम्हारे पास ही होगा क्योंकि इतनी हड़बड़ाहट वह सिर्फ अपने घर के लोगों के लिए और तुम्हारे लिए ही दिखाता है।"

त्रिधा फीकी सी मुस्कुराई। वह बोली - "अब पहले जैसी बात कहां रही संध्या! खैर तुम घर पहुंचो, मैं पता करती हूं प्रभात कहां है।"

संध्या ने हां कहकर फोन रख दिया और अपने घर के लिए निकल गई। आज उसे बहुत गुस्सा आ रहा था प्रभात पर। वह रास्ते में बड़बड़ाती हुई जा रही थी "अगर कुछ घंटे भी साथ रहना ही नहीं था तो मुझे बुलाया ही क्यों? घर पर भी सबको झूठ बोलकर आई और यहां आकर भी कोई फायदा नहीं हुआ।"

त्रिधा ने पहले तो सोचा वह प्रभात को कॉल करे मगर फिर उसे लगा कि अब प्रभात से मिलकर ही बात करना ठीक है। यही सोचकर वह तुरंत प्रभात के घर पहुंची। प्रभात के घर पर कोई नहीं था सिवाय उनके सहायक के। त्रिधा समझ गई कि प्रभात की मम्मी अपने हॉस्पिटल होंगी और उसके पापा तो बाहर रहते ही हैं। वह प्रभात के घर बैठकर ही उसका इंतजार करने लगी। लगभग दो घंटे बाद जब प्रभात घर आया तो त्रिधा को वहां देखकर चौंक गया।

प्रभात तुरंत त्रिधा के पास आकर बैठ गया और उसे देखते हुए पूछने लगा - "त्रिधू तुम यहां? क्या हुआ? सब ठीक तो है न?" प्रभात को शायद वह दिन याद आ गया था जब त्रिधा को कुछ लड़कों ने परेशान किया था और वह उसके पास भागती हुई आई थी।

आज त्रिधा को प्रभात के स्नेह से पूछे गए सवालों से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह बहुत गुस्से में थी। त्रिधा ऊंची आवाज में बोली - "कहां थे तुम?"

त्रिधा की आवाज से प्रभात समझ गया कि त्रिधा बहुत गुस्से में है। वह बोला - "मैं संध्या के साथ था। तुम्हें बताया तो था त्रिधा।"

प्रभात की बात सुनकर त्रिधा और ज्यादा गुस्से में आ गई। वह प्रभात को घूरते हुए बोली - "संध्या का फोन आया था मेरे पास, उसके साथ तो तुम थे नहीं। तो अब तुम मुझे बताओ कि आखिर तुम थे कहां? कौन इतना जरूरी हो गया तुम्हारे लिए जिसके लिए तुम अपनी संध्या को वहां अकेले छोड़ आए बिना कुछ बताए?"

प्रभात त्रिधा को एकटक देख रहा था। उसमें आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर बाद वह बोला - "त्रिधा, संध्या मेरे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है मगर इसका यह अर्थ तो बिलकुल नहीं है न कि उसके अलावा मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं। हां मैं गया था संध्या के साथ मगर वर्षा का एक्सीडेंट हो गया था और यहां उसका और है कौन हम सबके अलावा, उसने मुझे बुलाया था। अगर मैं नहीं जाता तो कौन जाता? आखिर वो मेरे कहने पर ही संध्या के साथ थी सारा दिन! और जब वहां से लौटते वक्त उसका एक्सीडेंट हुआ तो मुझे जाना ही था न!"

प्रभात की बात सुनकर त्रिधा खड़ी हुई और जोर चीख पड़ी - "वर्षा वर्षा वर्षा! तुम सबकी जिंदगी क्या सिर्फ वर्षा के ही आगे पीछे घूमेगी? यहां उसका कोई नहीं तो इसमें मेरी गलती है? तुम्हारी गलती है? या संध्या की गलती है? बोलो प्रभात! वर्षा ठीक नहीं है क्यों नहीं समझ रहे तुम? क्या अब इतना भी भरोसा नहीं रहा मुझपर कि मेरी कोई बात तुम मान नहीं सकते?"

प्रभात त्रिधा को ऐसे देखकर और ज्यादा परेशान हो गया। उसने त्रिधा को एक तरफ बैठाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला - "तुम ऐसी नहीं हो त्रिधा। ये तुमने खुद को क्या बना लिया है? मैं समझ सकता हूं तुम्हें वर्षा पसंद नहीं है क्योंकि वह हर्ष की एक्स है मगर इसके अलावा वर्षा बहुत अच्छी है त्रिधा।"

त्रिधा ने बिना किसी भाव के प्रभात से कहा - "अब फर्क नहीं पड़ता कि वर्षा क्या है और कैसी है। बस तुम उससे दूर रहोगे मुझे उसकी हरकतों पर बिलकुल भरोसा नहीं है।"

प्रभात ने भी बिना किसी भाव के जवाब दिया - "यह नहीं हो सकता त्रिधा। कोई आपके लिए इतना करे और आप उससे बेवजह मुंह मोड़ लें इससे बुरा कुछ नहीं होता और मैं यह नहीं कर सकता। तुम मुझे एक वैलिड रीज़न दो, मैं वर्षा से फिर कभी बात नहीं करूंगा।"

त्रिधा, प्रभात को अपने और वर्षा के बीच हुई सारी बातें बताना चाहती थी मगर प्रभात की कही अंतिम पंक्ति सुनकर वह चुप रह गई और अपनी बात बदल कर बोली - "तो ठीक है इसका मतलब यही हुआ कि तुम मुझसे बात नहीं करोगे।"

प्रभात ने शांत होकर कहा - "मैंने ऐसा तो नहीं कहा न त्रिधा।"

त्रिधा ने बस इतना ही कहा - "मैं चलती हूं प्रभात, देर हो रही है।" और वह प्रभात की कोई बात सुने बिना ही उसके घर से वापस अपने हॉस्टल आ गई।

रास्ते में त्रिधा सोच रही थी काश आज उसने अपनी और वर्षा की सारी बातें प्रभात को बता दी होती मगर इससे होता भी क्या! जिस सवाल के जवाब से रिश्ते टूटने लगें उसे कहने का भी क्या फायदा! सोचते सोचते त्रिधा अपने हॉस्टल पहुंच गई।

त्रिधा ने अपने कमरे में जाते ही संध्या को आखिरी उम्मीद समझ कर कॉल किया मगर उसका फोन बिजी आ रहा था। त्रिधा ने फिर उसे कॉल नहीं किया। बस आंखें बंद कर के बैठ गई। कुछ देर बाद संध्या का कॉल आया। त्रिधा ने कॉल रिसीव किया तो संध्या उससे पूछने लगी - "तुम मिली प्रभात से?"

त्रिधा ने हामी भरी तब संध्या बोली - "मैं बेवजह ही परेशान हो रही थी, वर्षा के पास था प्रभात। वर्षा का एक्सीडेंट हुआ था ऐसे में अगर वो नहीं जाता तो अच्छा नहीं लगता न। सॉरी त्रिधा मैंने तुम्हें भी बेवजह परेशान किया।"

त्रिधा ने "कोई बात नहीं" कहकर फोन रख दिया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या वाकई कोई इंसान इतनी जल्दी किसी के लिए इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि कोई अपना ही उसे गलत कह रहा हो मगर वह अपनों को भी सुनना बंद कर देता है! त्रिधा ने हर्षवर्धन को कॉल किया, उसने पहली रिंग में ही कॉल रिसीव कर लिया।

"मेरे ही कॉल का इंतजार कर रहे थे क्या को पहली ही रिंग में रिसीव कर लिया?" त्रिधा ने हैरानी से पूछा।

हर्षवर्धन ने हामी भरी तब त्रिधा ने हर्षवर्धन को आज की पूरी बात बता दो और फिर कहने लगी - "मैंने प्रभात और संध्या दोनों से बात करने की कोशिश की मगर कोई फायदा नहीं हर्ष। वे दोनों इन छः महीनों में मुझसे भी ज्यादा अच्छे दोस्त वर्षा के हो गए हैं। मैंने सोच लिया है हर्ष अब जो हमने सोचा है मैं वही करूंगी, कल ही।"

त्रिधा की बात सुनकर हर्षवर्धन ने कहा - तुमने ठीक सोचा है त्रिधा वैसे भी अब हमारे पास और कोई रास्ता भी नहीं है।"

दोनों ने एक दूसरे से कहा "ठीक है गुड लक।" और फोन रख दिया।

***

अगले दिन कॉलेज में सारा दिन निकल गया मगर त्रिधा ने प्रभात और संध्या दोनों से ही कोई बात नहीं की। वर्षा कॉलेज नहीं आई थी और हर्षवर्धन भी केवल त्रिधा से मिलकर चला गया था।

चार बज रहे थे। त्रिधा कैंटीन में बैठकर कुछ खा रही थी तभी प्रभात और संध्या वहां आ गए। संध्या त्रिधा के पास आकर बैठ गई और उससे बोली - "मुझे प्रभात ने बताया तुम परेशान हो। मुझसे भी नहीं कहोगी क्या त्रिधा? आखिर तुम्हारी परेशानी की वजह क्या है?"

"वर्षा।" त्रिधा ने सपाट लहजे में कहा।

त्रिधा का जवाब सुनकर प्रभात गुस्से में कैंटीन से बाहर निकल गया। तब त्रिधा ने संध्या को देखकर सपाट लहजे में कहा - "तुम भी जाना चाहो तो जा सकती हो। अब अकेले रहना सीख चुकी हूं मैं।"

"कहीं गया नहीं हूं बस देख रहा हूं तुम्हारा पागलपन किस हद तक जा सकता है।" प्रभात ने बाहर से ही जवाब दिया।

संध्या चिढ़ गई। वह बोली - "पहले तो तुम दोनों लड़ना बंद करो। और त्रिधा तुम तो इतनी समझदार हो तुम ऐसी क्यों हो गई जो तुम नहीं थीं? और प्रभात तुम इसे कोई बात प्यार से भी तो समझा सकते हो न!"

त्रिधा ने कहा - "समझ तुम दोनों नहीं रहे हो और अब मैं तुम दोनों को समझाने की कोशिश में और समय बर्बाद नहीं करूंगी। अब मैं सबूत लेकर आऊंगी और तब बात करूंगी तुम दोनों से।" इतना कहकर त्रिधा वहां से चली गई।

प्रभात और संध्या दोनों उसे जाते हुए देख रहे थे।

संध्या ने प्रभात को देखते हुए कहा - "क्यों हम त्रिधा की बात पर एक बार विचार भी नहीं कर सकते?"

प्रभात ने संध्या को देखा फिर बोला - "मेरे लिए सबसे जरूरी तुम हो, वर्षा ने तुम्हारे लिए अपनी जान खतरे में डाली, उसके बारे में बुरा सोचना भी गलत है संध्या। मैं त्रिधा को बहुत अच्छे से जानता हूं, उसे हम दोनों को खो देने का डर है इसीलिए वो इस तरह से व्यवहार कर रही है। उसे डर लगता है कि कहीं हम उसकी जगह वर्षा को न दे दें मगर ऐसा कभी नहीं हो सकता कि उसकी जगह कोई और ले लेकिन यह भी तो एक सच है न संध्या कि हम दोनों की ही जिंदगी में नए दोस्त आयेंगे। हां, वे त्रिधा की जगह नहीं लेंगे मगर नए दोस्त तो बनेंगे न संध्या, और त्रिधा को यह बात स्वीकार करनी ही पड़ेगी। उसे यही बात समझाने के लिए मैं उसके साथ ऐसा व्यवहार कर रहा हूं। तुम क्या समझती हो त्रिधा को इतना परेशान देखकर मैं परेशान नहीं हूं? मैं भी परेशान हूं और तुम भी... मगर त्रिधा को समझाना भी हमारी ही जिम्मेदारी है। वह समझदार है बस अभी थोड़ी पजेसिव हो गई है मगर वह जल्दी ही समझ जायेगी।"

प्रभात की बात सुनकर संध्या मुस्कुरा दी। अब उसके मन में कोई शंका नहीं रही थी। दोनों एकसाथ कॉलेज से बाहर निकले और अपने अपने घर चले गए।

शाम को त्रिधा बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जा रही थी कि तभी उसने कुछ ऐसा देखा जिसे देखकर वह हैरान रह गई।

क्रमशः

आयुषी सिंह