Paar - Mahesh Katare - 3 in Hindi Adventure Stories by राज बोहरे books and stories PDF | पार - महेश कटारे - 3

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पार - महेश कटारे - 3

महेश कटारे - कहानी–पार 3

अलसाता गिरोह चौक गया। कमला ने दीवार से टिकी ग्रीनर दुनाली झटके के साथ पकड़ ली। और कमर में बँधी बेल्ट से दो कारतूस निकाल तेजी के साथ बेरल में ठोंक दिए।

अगले क्षण गिरोह खुले चबूतरे पर था। सबकेक आँख–कान टोह पर थे। अँधेरे में दुश्मन को गच्चा दिया जा सकता है तो दुश्मन भी अँधेरे का लाभ उठाकर घेर सकता है। मोर रह–रहकर कोंक उठते थे। संकेत, किसी के मंदिर की ओर ब.ढते जैसे थे।

‘‘देखो–देखो। वो बाटरी चमकी !’’ तरी के घने बबूल वन में कुछ चमककर बुझा था।

‘‘दूसरा गिरोह भी हो सकता है।’’

‘‘कौन होगा ? चरन बाबा शहर में है। इधर है ही नहीं।’’

‘‘देवा घूम सकता है। उसकी बिरादरी के काफी घर हैं इधर।’’

‘‘पुलिस भी तो हो सकती है–गैल काटकर आ रही हो।’’

‘‘डाबर में पुलिस वाले क्यों मरेगे ?

‘‘नौकरी के लिए सब करना पड़ता है, मन–बेमन से।’’

‘‘अब जल्दी से पार निकल जाना चाहिए।’’

‘‘उधर यूपी की पुलिस डटी हो तो ? उधर की सूँघ–साँघ तो लेनी पड़ेगी।’’

‘‘तो जा ! लुगाई के घाँघरे में दुबक जा। अबे साले, तू क्या पुलिस की जगह जिंदाबाद–जिंदाबाद गानेवाली भीड़ की उम्मीद रखता है ? बागी क्यों बना ? लुल्लू–लुल्लू करता घर रहता और टाँग पसारकर सोता।’’ हरिविलास की इस झल्लाहट पर चुप्पी हो गई। इसे अचानक हो क्या गया है ?

जल्दी के लिए खड़ा उतार पकड़ा गया। टॉर्च जलाना खतरनाक था। पैरों को तौल–तौलकर रखना पड़ रहा था। लड़के को अब हरिविलास ने अपनी बगल में ले लिया– इन रास्तों के लिए कच्चा और नि.जोरा है लड़का। नेंक चूकते ही हजारों हाथ नीचे पहुँचेगा। हड्डियाँ भी नहीं बचेंगी– सबरे तक। लड़के की पीठ पर अब केवल सफरी बैग था। बंदूक कमला ने सँभाल ली थी।

नीचे पहुँचते ही बेसाली के भरके ह्यबीहड़हृ शुरू हो जाते हैं। यहाँ की मिट्टी पानी में बूँद के साथ घुलकर बहने लगती है। हर बरसात में बीहड़ा का नक्शा बदलता है। बड़े ढूह टूट और भहराकर निशान खो देते हैं तो छोटे ढूह नीचे की मिट्टी बहने से ऊँचे हो जाते हैं। हर साल पुराने के आसपास नए रास्ते बनते व चुने जाते हैं। गैर–जानकार के लिए पूरी भूल भुलैया हैं भरके। फँसने वाले का राम ही मालिक है। भेड़िए, बघेरे, साँप–सियार सभी का तो आसरा है इनमें। जंगली जानवरों से बचने के लिए गिरोह ने टॉर्च जला ली। रोशनी से चमकमकाए जानवर पास नहीं आते। पुलिस के यहाँ भय नहीं– कदम–कदम पर ओट व सुरंगो जैसे रास्ते हैं।

आधी रात छूते–छूते गिरोह ने बेसली की रेत पकड़ ली। नदी में बा.ढ नहीं थी, पर बिना तैरे पार न हुआ जा सकता था।

कमला ने नथुआ को बुलाकर समझाया–‘‘नत्थू ! तुम इस सुअरा को जलेकर खैरपुरा पहुँचो। मेहमानी करो दो–चार दिन। इसे भुसहरा में डाल देना– आराम कर लेगा। इधर की जानकारी लेते रहना ! ऐसी–वैसी बात न हुई तो छठे दिन मंदिर पै मिलेंगे। और सुन, चरन बाबा या भरोसा गूजरा की गैंग टकरा जाय तो बरक जाना। ये मादर।।।।अपने को धरती से दो हाथ ऊँचा समझते हैं।’’

नत्थू ने लड़के की पीठ से कमला का बैग निकलवाया और अपना कस दिया, फिर ‘‘जय भीम’ बोलकर दो छायाओं के साथ अँधेरे में समा गया।

अब गिरोह तीन जगह बँट गया था। अपनी–अपनी जाति में सुरक्षा पाना आम चलन है। भरकों के बीच चौरस जगहों पर खेत हैं। जगह–जगह नलकूप व उसके साथ मंजिला–दोमंजिला कोठरियाँ हैं। आराम से खाते हुए पड़े रहो और खतरे की भनक मिलने पर बीहड़ में सरक लो।

हरिविलास को कमला ने बिजली वाले रमा पंडित को लाने भेज दिया था। बाम्हन होकर भी तैरने में मल्लाहों के कान काटता है। यहाँ नौकरी करते, डाकुओं से साबका रोजमर्रा की ची.ज है, पर वह कमला से बेतरह डरता है। तरह–तरह के किस्से हैं, उसके बारे में–बड़ी जाति से घृणा करती है। आदमी छाँटकर महीने–दो महीने सेवा करवाती है, फिर गोली मार देती है। बुलावे पर पहुँचने की मजबूरी ठहरी–रोज यहीं रहकर बिजली के खंभों पर च.ढना उतरना है।

रेत पर चित्त पड़ी कमला के पास पहुँच रामा ने हरिविलास के बताए अनुसार अभिवादन किया।

‘‘तू ही रामा पण्डित है ? ’’ कमला ने पूछा।

‘‘हाँ, बहन जी !’’

‘‘भैंचो ।----! तुझे मैं बहन दिखती हूँ ?’’

रामा घबरा गया–‘‘मैंने तो ....मैं.....माफ कर दें।’’ वह घिघियाने लगा। समझ नहीं पा रहा था कि कैसे संबोधित करें।

‘‘ठीक है, जल्दी कर !’’ कमल बैठ गई– ‘‘और सुन, दगा–धोखा किया तो लाश चील–कौवे खाते दिखेंगे ! सामान ले जा पहले, तब तक मैं कपड़े उतारती हूँ।’’

‘‘जी–ी–ी ?’’

‘‘ठीक है।’’ रामा ने कंधे पर रखा मथना रेत पर रख दिया। बैग का सामान मथना के भीतर जमाया गया। दो बंदूकें खड़ी करके फँसाई गई।

‘‘तुम दोनों इसके साथ तैरकर पार पहुँचो। मैं इसे निशाने पर रखती हूँ, तुम उस पार से से रखना।’’ कमला ने सुरक्षा–व्यवस्था समझाई।