Unfortunate... in Hindi Short Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | अभागिन...

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अभागिन...

अलीगढ़ से करीब बीस से पच्चीस किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव, बीरपुर ! उसके एक बड़े से मकान के बाहर चबूतरे पर चारपाई पर बैठी एक वृद्ध महिला जिसे देखकर ये साफ-साफ पता चलता है कि बुढ़ापा उसे छू-छूकर निकला जा रहा है मगर मजाल उसकी जो दो पल भी ठहर जाये उस पर ! !

गोरी चमड़ी,गोल मुख,माथे पर बड़ी सी एक लाल बिंदी मानो कि जैसे पूर्णिमा का चाँद बस अभी-अभी निकला है कि उसकी लालिमा भरपूर परिलक्षित हो रही है । खिचड़ी बालों में बीच की माँग जिसमें सिंदूर की भरावन इतनी दूर तक कि आदमी उसपर चलकर सीधे कलकत्ता पहुंच जाये । लम्बी-चौड़ी,हट्टी-कट्टी जैसे किसी राजनीतिक दल की कोई मुख्य नेता !

"राम-राम काकी" एक छोटे कद की साँवली सी स्त्री नें झुककर उस महिला का अभिवादन किया ।

राम-राम सुरति, और बता आज इधर की राह कैसे नाप ली ?

अरे बस काकी, आपकी कृपा-दृष्टि चाहिए थी ।

हाँ-हाँ बता, अब किसके कोरे पाँव रंगवाने हैं ?

अरे काकी कोरे तो नहीं हैं मगर रंगवाने तो ज़रूर हैं ।

उन दोनों महिलाओं का आपस में बातचीत का दौर अभी पूरे शबाब पर भी नहीं चढ़ पाया था कि तभी वहाँ एक तीसरी महिला का आगमन हुआ जो देखने में एक गरीब तबके से मालूम हो रही थी और उसे देखकर ये अनुमान लगाना भी ज्यादा कठिन नहीं था कि उसपर अभी जल्दी ही कोई महान दुख पड़ा था ।

वो आयी और उसने अभिवादन में बस अपना सिर भर झुकाया जिसपर काकी नें भी उसे हाथ से एक ओर बैठने का इशारा किया और वो महिला बिना कुछ बोले चुपचाप एक ओर बैठ गई । यूं लगा कि मानो वो अपनी बारी का इंतज़ार करती किसी कतार में बैठी हो ।

हाँ सुरति बोल, तू क्या कह रही थी ? किसके हाथ पीले करवाने हैं,दोबारा ?

अरे, काकी और किसके मेरे छोरे जगन के !

अरे पर जगन की पत्नी को मरे हुए तो अभी छह-आठ महीने ही बीते हैं न तो कम से कम साल भर का शोक तो मना ले ।

अरे काकी, अब औरतों का क्या सालभर का शोक मनाना और फिर वो कलमुँही एक छोरी जो छोड़कर मरी है,उसका क्या ? अब नया ब्याह होये तो फिर छोरे की उम्मीद करें !अरे काकी,अब मुझसे वो जान की आफत न सम्भाली जाती और फिर मेरे लाडले छोरे जगन का उतरा चेहरा और उसका अकेलापन...न काकी न ! अभी उमर ही का है मेरे छोरे की फिर कोई तो होए जिससे उसका दिल बहले !

काकी थोड़ी देर के लिए किसी गहरी सोच में जैसे डूब गई !

क्यों सुरति, कोई गरीब कन्या चलेगी तुझे क्योंकि वो ही मिल सकती है अभी फिलहाल नयी वरना दहेज की अगर बात है तो विधवा और एक-दो बच्चों की माँ की तो कोई कमी न है ,बोल !

"अरे नहीं-नहीं, काकी दूजियां तो बिल्कुल भी न लूं मैं मेरे छोरे की खातिर,भईया बहू तो मैं नयी ही लाऊँ" इतना कहकर सुरति अपने मुँह पर अपना आँचल रखकर खींसे निपोरने लगी !

"अच्छा अब तू बता कि तेरी क्या समस्या है ?", काकी नें उस दूसरी महिला की ओर घूरते हुए पूछा !

"मेरी बिटिया का ब्याह अभी पिछले माह ही तय हुआ था काकी और अभी कल रात ही उसके होने वाले ससुराल से खबर आयी कि उसका होने वाला दूल्हा माहमारी का शिकार हो गया काकी" इतना कहकर वो फूट-फूटकर रो पड़ी ! !

अरे ! बस-बस, तू पहले सम्भाल अपने आपको और अपनी पूरी बात कह !

अपने पल्लू से बहते हुए आँसुओं को रोकने का भरसक प्रयत्न करते हुए उसने एक बार पुनः अपनी बात कहना शुरू किया.... काकी तुम तो अपने गाँव की दशा जाने हो, यहाँ बस पता लगने की देर है और फिर सब लोग मेरी छोरी को मनहूस-मनहूस कहकर ऐसो बदनाम कर देंगे कि बाको ब्याह...वो महिला इतना कहकर फिर से रो पड़ी !

अपने को सम्भालते हुए उसनें कहा कि... काकी, तुम ही बताओ कि माहमारी पर किसका जोर और फिर मेरी बिटिया नें तो बा लड़का ए देखो तक न हो फिर भी भगवान नें जे कैसा कलंक लगा दिया मेरी अभागिन के भाग्य पर ! !

अच्छा-अच्छा तुम पहले रोना बंद करो ! अब जो होना था वो तो हो ही गया न ! अच्छा ये बताओ कि बिटिया के ब्याह के लिए रुपया-पैसा तो इकट्ठा किया होगा न तुमनें ?

हाँ-हाँ, काकी ! बस तुम कोई अच्छा सा लड़का बता दो और पैसे-कौड़ी की कतई चिंता न करो । अगर मुझे अपनी जमीन भी गिरवी रखनी पड़े तो हर्ज नहीं बस मेरी बिटिया का भाग्य बन जाये । काकी मैं तुम्हारा ये एहसान पूरी उमर न भूलूंगी !

अरे तो ये तुम्हारे सामने तो बैठी है सुरति । क्यों सुरति ? काकी नें सुरति को टेढ़ी आँख का इशारा करते हुए कहा !

सुरति को काकी का इशारा और मौके का फायदा उठाते रत्ती भर भी देर न लगी !

"हाँ-हाँ , जैसा तुम हुक्म करो !", सुरति तपाक से बोली !

मगर काकी, दूजियां और फिर मेरी बिटिया और इनके बेटा का उमर का भी बड़ा सारा अंतर होवेगा और.....

इससे पहले कि वो और कुछ बोल पाती काकी उसकी बात को बीच में ही काटते हुए बोल पड़ी...अरे अब तेरी छोरी को कोई फ्रेश तो मिलने से रहा क्यों सुरति ?? और फिर छोरों में क्या नया क्या पुराना ? छोरे तो सब नये ही होवे हैं इस पर सुरति बोली ...और क्या काकी...इतना कहकर काकी और सुरति के कपटी चेहरों पर एक कुटिल मुस्कान तैर गई !

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐