TRIDHA - 8 in Hindi Fiction Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | त्रिधा - 8

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त्रिधा - 8

त्रिधा कॉलेज कैंटीन में बैठी हुई थी मगर हर्षवर्धन की बात सुनकर वह वहां से उठकर बाहर की तरफ जाने लगी थी तभी हर्षवर्धन ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया और उससे कहने लगा - "आज तुम्हें मेरी बात सुननी ही होगी त्रिधा"


"क्या है हर्षवर्धन? तुम्हें भी बहुत अच्छे से पता है कि मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी है फिर क्यों तुम जबरदस्ती मेरे आस पास रहने की कोशिश करते हो?" त्रिधा ने गुस्से में हर्षवर्धन से कहा। वह कभी किसी पर इतनी नाराज नहीं हुई थी। हर्षवर्धन हैरान रह गया।


"हां मैं जबरदस्ती तुम्हारे आस पास रहने की कोशिश करता हूं, क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूं। मुझे बताओ त्रिधा, क्या कमी है मुझमें जो तुम मेरे प्यार को स्वीकार नहीं कर सकती हो?" त्रिधा के सामने हर्षवर्धन ने अपने घुटनों पर बैठते हुए बहुत लाचारी से पूछा। त्रिधा सोच रही थी प्यार भी इंसान को कितना मजबूर बना देता है, वह हर्षवर्धन जो कभी किसी के सामने नहीं झुकता था आज अपने प्यार के लिए गिड़गिड़ा रहा था।


"तुमने सही पहचाना हर्षवर्धन, कमी है….. मगर तुम में नहीं मुझ में। तुम अपने आपको देखो और फिर मुझे देखो, मैं कहीं भी तुम्हारे स्टेटस, तुम्हारी लाइफस्टाइल में फिट नहीं होती हूं। जितने रुपए तुम एक दिन की पार्टी में खर्च कर देते हो उतने रुपए कमाने के लिए मैं महीने भर बच्चों को पढ़ाती हूं। तुम्हारे पैरेंट्स मुझे कभी एक्सेप्ट नहीं करेंगे।" त्रिधा ने हर्षवर्धन को आज सारा सच बता दिया था। जो पिछले एक साल से उसे परेशान कर रहा था आज वही सब हर्षवर्धन जान चुका था।


"सिर्फ इतनी सी बात त्रिधा। जिस दिन मुझे अहसास हुआ था कि मैं तुमसे प्यार करता हूं, उसी दिन मैंने अपने मॉम डैड को बता दिया था, तुम उन्हें उस दिन से ही पसंद हो त्रिधा, और रही बात हमारे स्टेटस के बीच के अंतर की, तो हां, हम लोग अमीर जरूर हैं मगर हमने अपने मॉरल वैल्यूज नहीं छोड़े हैं। मेरे मॉम डैड को तुम इसीलिए पसंद हो क्योंकि तुम दिल की बहुत अच्छी हो, फिर फर्क नहीं पड़ता कि हमारे बीच में स्टेटस का गैप कितना है, और स्टेटस का गैप तो कहीं है ही नहीं त्रिधा, जिस तरह से तुम लोगों की मदद करती हो, सब के बारे में अच्छा सोचती हो, तुम से ज्यादा अमीर तो कोई हो ही नहीं सकता त्रिधा।" हर्षवर्धन ने त्रिधा को समझाने की कोशिश की।


"यह सब सिर्फ बातें हैं हर्षवर्धन, आगे जाकर तुम्हें खुद मुझसे शादी करने का रिग्रेट होगा। अभी हम उम्र के उस पड़ाव में हैं जहां सिर्फ आकर्षण को ही प्यार समझ लेते हैं मगर वाकई में हम एक दूसरे से प्यार करते हैं या नहीं यह जानने के लिए थोड़ा वक़्त लो।" त्रिधा ने हर्षवर्धन को समझाया और फिर हल्की सी मुस्कान के साथ कैंटीन से बाहर चली गई।


"काश मैं तुम्हें समझा पाता कि तुम मेरे लिए क्या हो त्रिधा।" हर्षवर्धन धीरे से बुदबुदाता हुआ कैंटीन से बाहर चला गया। उसका मन काफी खराब हो गया था।


त्रिधा क्लास रूम में जाकर पहुंची तो वहां उसने संध्या को परेशान देखा तो उससे पूछने लगी - "क्या हुआ संध्या, तुम परेशान क्यों लग रही हो?"


"प्रभात अभी तक नहीं आया है और मेरा कॉल भी रिसीव नहीं कर रहा है। माना कोई वजह होगी बट एट लीस्ट कॉल तो रिसीव कर ही सकता है ना।" संध्या ने परेशान होकर कहा।


"अरे सॉरी सॉरी वेरी सॉरी यार संध्या, वो क्या हुआ कि हर्षवर्धन की बातों के कारण मेरा ध्यान भटक गया और मैं तुम्हें बताना ही भूल गई, दरअसल प्रभात ने मुझे सुबह तुम्हें बताने के लिए कहा था कि उसकी थोड़ी तबियत खराब है और इसीलिए आज वह कॉलेज नहीं आएगा। अब तुम्हें तो पता ही है जब उसकी तबियत खराब हो जाए तो फिर वह किसी से बात नहीं करता इसीलिए उसने तुम्हारा कॉल रिसीव नहीं किया होगा। तुम चिंता मत करो सब ठीक है।" त्रिधा ने बताया तब जाकर संध्या को थोड़ी राहत मिली। इतनी देर से वह प्रभात की चिंता में परेशान हो रही थी।


"यार तुम पहले बता सकती थीं न देखो मैं कितनी परेशान हो गई और इसी चिंता चिंता में मैंने तो छोले भटूरे भी नहीं खाए।" संध्या ने मुंह बनाते हुए कहा तब त्रिधा ने अपना माथा पीट लिया।


"क्या हर सेशन के पहले दिन तुम्हारा छोले भटूरे लाना कंपल्सरी है?" त्रिधा ने हंसते हुए पूछा।


"इन्हीं छोले भटूरे के कारण तो आज से ठीक एक साल पहले हम लोगों को प्रभात मिला था।" संध्या ने आंखों में चमक लाकर कहा। त्रिधा मुस्कुरा पड़ी और सोचने लगी संध्या से ज्यादा प्रभात को और कोई प्यार नहीं कार सकता। संध्या और प्रभात एक दूसरे के लिए ही बने हैं। एक बिल्कुल बच्ची है तो दूसरा इतना समझदार है। अपनी ही सोच में मग्न त्रिधा मुस्कुरा दी तो संध्या प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देख रही थी।


"अरे वही पहला दिन याद करके मुस्कुराहट आ गई, प्रभात को तुमसे ज्यादा प्यार और कोई नहीं कर सकता।" त्रिधा ने संध्या की प्रश्नवाचक नज़रों का जवाब देते हुए कहा।



अगला लेक्चर वैकैंट था। त्रिधा और संध्या दोनों ही बैठी बैठी बोर हो रही थीं। जब कभी भी लेक्चर वैकैंट होता था तो त्रिधा, संध्या और प्रभात कैंटीन चले जाया करते थे और अगर प्रभात नहीं होता तो वे लोग माया के साथ चले जाते थे मगर आज न तो प्रभात आया था और न ही माया से उन दोनों की कोई भी बात हो पाई थी। इस समय वे दोनों सबसे ज्यादा माया को ही मिस कर रही थी क्योंकि वह माया ही थी जो उन दोनों के एंटरटेनमेंट का चलता फिरता पिटारा हुआ करती थी। संध्या और त्रिधा क्लास रूम से बाहर निकलकर बाहर कॉरिडोर में जा रही थी कि तभी एक लड़की को देखकर त्रिधा अचानक ही रुक गई। संध्या ने उससे पूछा - "क्या हुआ चलो ना, अचानक रुक कैसे गई?"


"कुछ नहीं।" त्रिधा ने सकपकाते हुए कहा। दरअसल उस लड़की को देखकर त्रिधा काफी परेशान हो गई थी, यह वर्षा थी। वही वर्षा जिसे उसने पहली बार हर्षवर्धन के साथ देखा था उस दिन से ही त्रिधा को वर्षा से चिढ़ हो गई थी उसे समझ नहीं आया कि वर्षा यहां इस समय क्या कर रही है।


"कुछ तो बात है, अभी तो तुम अच्छी खासी चल रही थी अब अचानक उस लड़की को देखकर क्या हो गया? संध्या ने आखिरकर त्रिधा से साफ-साफ पूछ ही लिया।


"वो संध्या... दरअसल बात यह है कि जो लड़की तुमने अभी-अभी देखी यह वर्षा है हर्षवर्धन की एक्स गर्लफ्रेंड। आज से ठीक एक साल पहले जब मैंने पहली बार हर्षवर्धन को देखा था तब यह यहां उसके साथ ही थी मगर उसके बाद हर्षवर्धन ने मेरे ही सामने इसे फटकार दिया था और ब्रेकअप कर लिया था पर अब यह यहां क्यों आई है?" त्रिधा ने परेशान होकर संध्या को बताया।


"तो इसका मतलब तुम भी हर्षवर्धन से प्यार करती हो न तभी इतनी परेशान ही इसे देखकर।" संध्या ने त्रिधा के कान मरोड़ते हुए कहा।


"नहीं… ऐसी बात नहीं है संध्या मगर मैं बस क्यूरियस हूं कि यहां क्यों आई है?" त्रिधा ने फिर से सच छिपाते हुए कहा।


"चलो फिर देखते हैं कि यह कहां जाती है, पता चल जाएगा।" संध्या ने कहा तब त्रिधा ने सहमति में सिर हिलाया और कॉरिडोर में मौजूद एक खंभे के पास खड़े होकर वर्षा पर नजर रखने लगी, संध्या भी उसके साथ ही खड़ी थी। कुछ देर बाद उन दोनों ने देखा कि बरसात उस लड़की से बात कर रही थी उससे अपनी बात खत्म करने के बाद वह फर्स्ट ईयर के क्लास रूम में जाकर बैठ गई। त्रिधा और संध्या ने आंखें बड़ी करते हुए, हैरानी से एक दूसरे को देखा।


"यह क्या मामला है!" संध्या ने आश्चर्य से कहा।


"अब यह यहीं पढ़ेगी।" त्रिधा ने खिसियाकर कहा।


"वैसे मुझे लगता है कि सिर्फ इसलिए कि यह हर्षवर्धन की एक्स गर्लफ्रेंड है, हमें इसके बारे में कोई राय नहीं बना लेनी चाहिए। आजकल यह ब्रेकअप, पैचअप, यह सब तो बहुत कॉमन है त्रिधा और फिर इन दोनों का तो ब्रेकअप भी हो चुका है, तो मुझे नहीं लगता तुम्हें इस बारे में ज्यादा चिंता करनी चाहिए। यह हर्षवर्धन और वर्षा का आपसी मामला है और फिर तुम जब हर्षवर्धन से प्यार ही नहीं करती तो कैसी चिंता! हो सकता है वर्षा एक अच्छी लड़की हो। जरूरी नहीं हर बार रिश्ते टूटने की वजह किसी एक पक्ष का बुरा होना ही हो, कई बार रिश्ते टूटने की वजह है दो लोगों का अच्छा होना भी होता है। हो सकता है हर्षवर्धन ने वर्षा से ब्रेकअप किया, इसकी वजह उन दोनों की सोच ना मिलना हो, किसी बात से परेशानी हो, कोई मिसअंडरस्टैंडिंग हो। त्रिधा मुझे लगता है तुम्हें वर्षा को गलत नहीं समझना चाहिए।" संध्या ने त्रिधा को समझाते हुए कहा तब त्रिधा को भी संध्या की बात सही लगी और उसने वर्षा पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए संध्या के साथ कैंटीन चलना ही सही समझा। वैसे भी उसे सबको यही दिखाना था कि हर्षवर्धन की जिंदगी में कोई आए, कोई जाए, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि वह वर्षा के कॉलेज में आ जाने से अंदर ही अंदर बहुत इनसिक्योर महसूस कर रही थी मगर संध्या की बात भी अपनी जगह सही थी। त्रिधा को समझ आ गया था कि संध्या की बात भी अपनी जगह सही है, उसकी इनसिक्योरिटीज अपनी जगह हैं मगर इसकी वजह से उसे वर्षा के बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए, हो सकता है वाकई में वर्षा एक अच्छी लड़की हो और हो सकता है उन लोगों के ब्रेकअप की वजह वाकई कोई मिसअंडरस्टैंडिंग हो या एक दूसरे से उनके विचार ना मिलना हो इससे यह तो कहीं साबित नहीं होता कि वर्षा एक अच्छी लड़की नहीं है। अपने मन को समझा कर त्रिधा कैंटीन में पहुंच गई।


दूसरी तरफ त्रिधा के इनकार के बाद हर्षवर्धन से उस दिन कॉलेज में नहीं रुका गया। वह सुबह ही अपनी कार लेकर कॉलेज से निकल गया था। उसका घर जाने का भी बिल्कुल मन नहीं था सो इस वक़्त वह झील के किनारे जाकर खड़ा था। न जाने कितने घंटे उसने यूं ही झील के किनारे खड़े होकर बिता दिए। फिर कॉलेज का टाइम निकल जाने पर वह घर चल दिया। दरअसल वह किसी को जवाब देने की स्थिति में नहीं था कि वह कॉलेज से जल्दी क्यों आ गया था इसीलिए उसने कॉलेज का टाइम झील के किनारे खड़े होकर निकाल दिया ताकि घर पर उसे किसी को यह ना बताना पड़े कि वह परेशान क्यों है और वह किसी को बताता भी तो क्या कि जिससे वह इतना प्यार करता है बस वही उसके प्यार को नहीं समझ पा रही है।


कॉलेज का टाइम खत्म होने के बाद त्रिधा हॉस्टल जाने वाले रास्ते पर थी और संध्या अपने घर की ओर निकल गई थी। आज का दिन दोनों के लिए ही बेकार गया था। अभी त्रिधा रास्ते में ही थी कि तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी - "त्रिधा…" त्रिधा ने पलटकर देखा, प्रभात खड़ा हुआ था।


"कैसे हो?" त्रिधा ने सहज है पूछ लिया।


"दस साल बाद अपनी सबसे अच्छी दोस्त से मिल कर इंसान जैसा होता है बस वैसा ही हूं।" प्रभात ने त्रिधा को देखकर सपाट लहजे में कहा।


"क्या मतलब?" त्रिधा ने हैरानी से पूछा।


"कैसे हो तो ऐसे पूछ रही हो जैसे दस साल बाद मिल रहे हों। अब तुम्हारी दोस्त के लिए कुछ न करो तो भी तुम्हें परेशानी है और उसके लिए कुछ करने के कारण कॉलेज ना जाओ तो भी तुम्हें परेशानी है। बेवकूफ।" प्रभात ने अब भी सपाट लहजे में कहा तो त्रिधा खीज उठी और चिढ़ कर बोली - "अब जो कुछ लिया है उसके लिए दिखाना है तो दिखाओ वरना मैं जा रही हूं हॉस्टल। फिर दिखाते रहना फरिश्तों को।"


"ज्यादा नहीं बोलने लगी हो? एक साल पहले तक तो सिवाय हल्के से हंसने के, जरूरत से ज्यादा एक शब्द नहीं बोलती थीं।" प्रभात ने त्रिधा का कान मरोड़ते हुए कहा।


"तो तुम क्या पड़ोस वाली आंटी हो? मेरी रिश्तेदार आंटी हो? नहीं न… तो मेरे बोलने से तुम्हें क्या परेशानी है?" त्रिधा ने भी प्रभात को उसी के लहजे में जवाब दिया और उसके बिना कहे ही उसके घर चली गई ताकि आज कॉलेज न जाकर, एक लड़की के लिए खरीददारी करने का जो महान काम प्रभात ने किया था उसे देख सके।


त्रिधा प्रभात के घर में गई ही थी कि सामने ही उसे उसकी मम्मी नजर आ गईं।


"कैसी हैं आप आंटी?" त्रिधा ने प्रभात की मम्मी को वहां देखकर खुश होकर पूछा।


"मैं ठीक हूं बेटा। तुम कैसी हो?


"मैं भी ठीक हूं आंटी।"


"आओ बैठो, आज तो प्रभात अपनी फ्रेंड्सवर्सरी की शॉपिंग कर के आया है देखो तो क्या क्या लाया है।"


"अच्छा, प्रभात ने शॉपिंग की है तब तो देखना ही पड़ेगा।" त्रिधा ने अनजान बनते हुए कहा।


"हां सही कह रही हो बेटा, इसे शॉपिंग करना बिल्कुल नहीं आता।"


"आंटी आज आप क्लीनिक नहीं गईं?" त्रिधा ने सहज ही पूछ लिया।


"नहीं त्रिधा, वो आज शाम की शिफ्ट में ड्यूटी है इसीलिए अभी घर पर हूं, थोड़ी देर में निकलना होगा। चलो अब तुम दोनों बैठ कर बातें करो, मैं तुम लोगों के लिए कुछ नाश्ता लेकर आती हूं तुम तो अभी अभी कॉलेज से आई होगी न, भूख भी लग रही होगी, मैं अभी कुछ बना कर लाती हूं।" प्रभात की मम्मी ने प्यार से त्रिधा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा त्रिधा ने उन्हें रोकना चाहा पर तब तक वे किचन में जा चुकी थीं।


"आंटी मेरी वजह से परेशान होती हैं।" त्रिधा ने उदास होकर कहा।


"मम्मी की कोई बेटी नहीं थी ना अब मेरे हिस्से का लाड़ भी तुम ही खाओगी, भुक्खड़।" प्रभात ने आंखें छोटी करते हुए कहा।


"एक मिनट, एक मिनट, मैं तो तुम या संध्या से कभी कोई गिफ्ट लेती नहीं हूं तो फिर यह फ्रेंड्सवर्सरी की शॉपिंग किस लिए?" त्रिधा ने हैरानी से पूछा।


"बेवकूफ" कहते हुए प्रभात ने त्रिधा के सिर पर एक थप्पड़ जड़ दिया पर अबकी बार त्रिधा ने भी एक के बदले दो थप्पड़ प्रभात को लगाने के बाद उससे पूछा - "क्यों? मैं क्यों बेवकूफ?"


"अपनी गर्लफ्रेंड के लिए शॉपिंग कर रहा हूं यह बोलता मम्मी से?" प्रभात ने एक भोंह ऊपर चढ़ाते हुए पूछा।


"तो मुझे अच्छे से बली का बकरा बनाया जा रहा है।" त्रिधा ने आंखें छोटी कर के प्रभात को टेढ़ी नज़रों से घूरा।


"अब जैसी तुम्हारी मर्ज़ी, तुम समझ लो।"


"सुधर जाओ प्रभात सुधर जाओ।"


"नहीं बेटा इसे कोई नहीं सुधार सकता। एक नंबर का आलसी, जिद्दी और कामचोर इंसान है यह।" प्रभात की मम्मी ने किचन से बाहर आते हुए कहा।


"नहीं आंटी इसकी बीवी आएगी ना तब वो इसे बेलन से कूट कूट के सुधारेगी, तब सुधरेगा ये।" त्रिधा ने प्रभात को देखकर कुटिल मुस्कान के साथ कहा। तब तक प्रभात की मम्मी उन दोनों के लिए एक - एक प्लेट राजमा चावल ले आईं। त्रिधा मज़े से राजमा चावल खाने लगी और बीच बीच में प्रभात को जीभ दिखा कर चिढ़ाती जाती।


"बेवकूफ" त्रिधा के चिढ़ाने से परेशान होकर प्रभात चिल्ला पड़ा और उसके सिर पर एक थप्पड़ लगा दिया।


"आंटी देखिए खाने भी नहीं दे रहा ये।" त्रिधा ने मासूम बनकर कहा तो मीनाक्षी जी (प्रभात की मम्मी) प्रभात को डांटते हुए कहने लगीं - "अरे अरे कितना लड़ते हो तुम दोनों, खाना तो खाने दो उसे प्रभात।" त्रिधा को घूरता हुआ प्रभात चुपचाप बैठ गया।


"वैसे बेटा मुझे तो लगता है काश मेरी भी कोई बेटी होती बिल्कुल तुम्हारे जैसी।" मीनाक्षी जी ने मुस्कुराते हुए त्रिधा से कहा


"मैं भी तो आपका बच्चा ही हूं आंटी।" त्रिधा ने फिर मासूमियत से कहा।


"हां हां इसे एडॉप्ट कर लीजिए आप मम्मी।" प्रभात ने मुंह बनाकर कहा।


"आय'म ऑलरेडी अडॉप्टेड… दोस्त भाई होते हैं ना इस हिसाब से आय'म ऑलरेडी अडॉप्टेड।" त्रिधा ने इतराते हुए कहा।


"भाग जा बेवकूफ" इतना कहता हुआ प्रभात वहां से अपने कमरे में चला गया।


"आंटी मैं देखकर आती हूं उसने बाकी दोस्तों के लिए क्या क्या गिफ्ट्स लिए हैं।" त्रिधा ने कहा।


"कोई जरूरत नहीं है मेरे रूम में आने की तुम वहां आओगी तो सारा सामान फैला कर जाओगी।" प्रभात अपने कमरे से ही चिल्लाया और अगले ही पल हाथों में कुछ सामान लिए हॉल में आ गया।


"चलो तुम दोनों सामान देखो, मैं किचन समेट लेती हूं, फिर मुझे क्लीनिक जाना है।" इतना कहकर प्रभात की मम्मी वहां से चली गईं। तब त्रिधा प्रभात को तब तक घूरती रही जब तक उसने संध्या के लिए खरीदे हुए गिफ्ट्स उसके सामने लाकर नहीं रख दिए।


"अब देखो और बताओ।" प्रभात ने त्रिधा को देखते हुए बहुत जिज्ञासा से कहा। उसने पहली बार संध्या के लिए कुछ खरीदा था इसीलिए थोड़ा ज्यादा नर्वस था।


"आंटी तो कह रही थी कि तुम्हें शॉपिंग करना नहीं आता पर तुम्हारी पसंद तो बहुत अच्छी है, इतनी अच्छी खरीदारी तो मैं एक लड़की होकर भी नहीं कर पाती जितनी तुमने संध्या के लिए कर ली।" त्रिधा ने आश्चर्य से पूछा।


"अब उसके लिए शॉपिंग कर ली तो आश्चर्य हो रहा है, नहीं करता था कुछ, तब कहती थीं कि प्रभात तुम संध्या से मिलते नहीं हो, उसके लिए कुछ करते नहीं हो।"


"हां तो ये दो अलग अलग बातें हैं, सबकुछ बहुत सुंदर है प्रभात, कल शाम को डेट पर चले जाना, पता चला कॉलेज में ही सब पकड़ा दिया।"


"इतनी अक्ल है अभी बाकी मुझमें।"


"मैं हॉस्टल जा रही हूं। आज तो बहुत थक गई बोरियत भरा दिन होता है तो थक जाते हैं।" इतना कहकर त्रिधा ने अपना बैग उठाया और अपने हॉस्टल चली गई।


खाना तो त्रिधा प्रभात के घर ही खा आई थी। वह प्रभात से बातें कर रही थी तब तक वह काफी अच्छा महसूस कर रही थी मगर जैसे ही वह कॉलेज से लौटी तो अब फिर से वह अकेली होने के कारण बोर होने लगी थी। उसे वापस माया की याद आ रही थीं त्रिधा प्रभात और संध्या से बातें करती हुई आराम से कॉलेज से लौटती थी मगर माया जल्दी ही लौट आती थी और जब तक त्रिधा लौटकर आती, माया उसे रूम में ही मिलती। कभी कभी वह दोनों के लिए खाना भी लेकर आ चुकी होती थी। जब भी त्रिधा परेशान होती थी, वह उससे बातें किया करती थी, भले ही अपना ही मजाक क्यों न बनाना पड़े मगर वह त्रिधा को हंसा देती थी। त्रिधा सोच रही थी जब तक माया उसके साथ रहती थी, वह कभी भी उससे जुड़ नहीं पाई या शायद उसने कभी भी उसे संध्या और प्रभात जितनी अहमियत नहीं दी… पता नहीं पर अब जब वह यहां नहीं है, तब कहीं न कहीं त्रिधा को उसकी कमी खल रही है, उसकी अहमियत का अहसास हो रहा है। त्रिधा सोच रही थी, सच में जब तक हम किसी से दूर न हो जाएं तब तक उसकी अहमियत का पता नहीं चलता।


सोचते सोचते ही पूरी दोपहर बीत गई। अब त्रिधा को ट्यूशन पढ़ाने जाना था।


"एक तो यह प्रभात मेरा इतना ध्यान रखता है कि अब पढ़ाने जाऊं तब भी यही साथ जाएगा, वहां से संध्या फोन कर कर के पूछेगी 'ठीक से पहुंच तो गई न त्रिधू' हद हैं ये दोनों।" बड़बड़ाते हुए त्रिधा मुस्कुरा दी। एक बार फिर उसे माया की याद आ गई जब वह कॉलेज जाने के लिए, ट्यूशन जाने के लिए तैयार होती यही तो माया अपने फोन में गाने लगा दिया करती थी या कभी कभी उसके पढ़ाने जाने से पहले उसके लिए कॉफी ले आती थी।


बेमन से तैयार होकर त्रिधा बच्चों को पढ़ाने के लिए चली गई। जब वह लौटकर आई तब भी काफी उदास थी, वह सोच रही थी, एक तो सुबह ही हर्षवर्धन से उसकी बेवजह कि बहस हो गई थी जिस पर भी माया यहां नहीं थी जिससे वह अपनी परेशानी कह पाती। प्रभात और संध्या से वह कुछ नहीं कहना चाहती थी क्योंकि दोनों ही उसे इतना चाहते थे कि उसकी खुशी के लिए दोनों ही तुरंत उसे हर्षवर्धन के प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कह देते, वे यह नहीं समझते कि इसमें त्रिधा तो खुश रहेगी मगर हर्षवर्धन के लिए सब कुछ इतना भी आसान नहीं होगा…. बस यही सब सोचकर वह चुप रहती।


बच्चों को पढ़ाकर जब त्रिधा वापस हॉस्टल के अपने कमरे में बैठकर हर्षवर्धन, प्रभात, संध्या और माया सभी के बारे में सोच रही थी तभी उसके फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आ गया।


"हेलो?" त्रिधा ने असमंजस के भावों से पूछा।


"त्रिधा…." उधर से आई आवाज़ को त्रिधा कैसे नहीं पहचानती। इसी आवाज़ के तो सपने देखा करती थी वह दिन रात मगर उसके साथ होने की कल्पना भी करना उसकी किस्मत नहीं थी।


"त्रिधा…. कहां खो गईं?" वापस हर्षवर्धन की आवाज़ आई।


"मैं ठीक हूं। तुम कैसे हो हर्षवर्धन?" त्रिधा ने अपने आपको सामान्य रखते हुए पूछा। हालांकि हर्षवर्धन से बातें करते वक़्त त्रिधा का मन तो होता कि वह घंटो उससे बतियाती ही रहे मगर फिर उसे याद आता कि वे दोनों कभी साथ नहीं हो सकते तो वह न चाहते हुए भी उससे बेरुखी से बात करने लगती, फिर हॉस्टल आकर सारा दिन वह कितनी उदास रहती, यह सिर्फ वही जानती थी। मगर आज न ही वह उससे रुखाई से बात कर रही थी और न ही उसे फोन रखने की कोई जल्दी थी।


"मैं भी बिल्कुल ठीक हूं त्रिधा। अब तुमसे बात करने के बाद एकदम ठीक हो गया हूं।" उधर से हर्षवर्धन की खिलखिलाती हुई आवाज़ सुनाई दी।


"आज मुझे तुमसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी हर्षवर्धन। मैं ऐसा व्यवहार कभी किसी के साथ नहीं करती हूं मगर तुम्हारे साथ न जाने कैसे…."


"छोड़ो न त्रिधा पुरानी बातों को, आज मन खराब था इसीलिए तुमसे बात कर ली। वैसे प्यार भी न कैसी अजीब चीज है त्रिधा, जो दर्द देता है, वही सुकून भी देता है, दिमाग दूर जाना चाहता है मगर दिल वहीं रहना चाहता है सौ बंधनों में, सौ तकलीफों में भी रहना उसे मंजूर है मगर अकेला होने से भी डरता है।"


"हर्ष!" त्रिधा इससे आगे कुछ और कह ही नहीं पाई।


"तुम मुझे हर्ष ही बुलाया करो, अच्छा लगता है।" हर्षवर्धन मुस्कुराते हुए बोला।


"कल कॉलेज में मिलते हैं।" कहकर त्रिधा ने भी मुस्कुराते हुए फोन रख दिया।


अब हर्षवर्धन से बात कर लेने के बाद त्रिधा को काफी अच्छा महसूस हो रहा था। सुबह हर्षवर्धन से इतनी ज्यादा बेरुखी से बात करने के बाद से ही त्रिधा के मन पर एक बोझ जैसा था, जो अब हर्षवर्धन से बात करने के बाद उतर गया था।


***


अगले दिन संध्या क्लासरूम में अकेली बैठी हुई थी कि तभी किसी ने पीछे से आकर उसकी आंखों पर हाथ रख दिए।


"प्रभात" संध्या ने हाथों को छूते ही पहचान लिया था कि यह प्रभात ही है।


"वाह संध्या! तुमने तो बिल्कुल सही गैस किया।" प्रभात ने खुश होकर कहा।


"बिल्कुल तुम्हें तो मैं बहुत सारे लोगों की भीड़ में भी पहचान सकती हूं।" संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा तब तक प्रभात उसके साथ वाली सीट पर आकर बैठ चुका था।


"आज शाम फ्री हो क्या?" प्रभात ने बिना किसी भूमिका के सीधे ही संध्या से पूछ लिया।


"क्या है ऐसा आज शाम को?" संध्या ने पूछा। हालांकि वह प्रभात के कहने से पहले ही समझ गई थी कि प्रभात उससे क्या कहने जा रहा है।


"डेट पर चलें?" प्रभात ने शरमाते हुए पूछा।


"शर्माना तो मुझे चाहिए था। तुम अजीब हो।" संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा और जैसे ही प्रभात के थोड़ा पास जाने वाली थी कि तभी वहां त्रिधा हर्षवर्धन और बाकी स्टूडेंट्स क्लासरूम में आ गए। संध्या खिसियानी सी बैठी रह गई।


"अरे कोई बात नहीं संध्या, आज शाम तो डेट पर चल ही रहे हैं वहां तुम आराम से मेरे पास बैठ सकती हो।" प्रभात ने धीरे से कहा और जोर से हंसता हुआ त्रिधा के बाल खींचता हुआ क्लासरूम से बाहर चला गया उसके पीछे पीछे ही हर्षवर्धन भी चला गया।


"अब न जाने इन दोनों की क्या खिचड़ी पकने वाली है" त्रिधा ने संध्या के पास बैठते हुए कहा।


"जाने दो बेकार लोग हैं।" संध्या ने हंसते हुए कहा और फिर प्रोफेसर के आने पर दोनों ध्यान से पढ़ने लगीं। प्रभात और हर्षवर्धन अभी तक क्लासरूम ने नहीं आए थे।



क्रमशः