ek sach in Hindi Short Stories by अनुराधा अनुश्री books and stories PDF | एक सच

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एक सच

अजीब सी कहानी है एक अनकहा सा सच जिसे बताने कि कोशिश तो की गई लेकिन बताया जा ना सका ...

लेकिन किसी की जिंदगी से जुड़ी है।
पता नहीं इसे पढ़ कर आप सब क्या सोचो।

ये कहानी 2011 मार्च से शुरू होती है।

सिम्मी 13 साल की एक लड़की थी हंसती मुस्कुराती लेकिन जिम्मेदार। उसके परिवार में माता पिता 2 भाई और एक बहन और वो थी। वो परिवार में सबसे छोटी थी। उसका परिवार बहुत खुशहाल था। पापा सरकारी कर्मचारी, मां गृहणी, एक भाई आर्मी ऑफिसर तो बहन शिक्षक थी । उसका दूसरा भाई मनीष घर से दूर रह कर पढ़ाई करता था। बहुत होनहार था। हर बार एग्जाम में अपने कॉलेज का टॉपर रहता था वो। मा पापा भी बहुत खुश रहते थे उसके भाई से। घर में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।उसकी बहन की शादी होने वाली थी मार्च के आखिरी तारीख में। लेकिन शादी से पहले घर में अफरातफरी तब मच गई जब उसके भाई मनीष की तबीयत बहुत खराब रहने लगी।कई डॉक्टर्स को दिखाने के बाद भी उसकी तबीयत बिगड़ते गई। तय हुआ बहन कि शादी के बाद अच्छे डॉक्टर से दिखाएंगे उसे। शादी के पांच दिनों के बाद ही उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया बहुत सारे टेस्ट के बाद पता चला कि उसका भाई कैंसर से पीड़ित है। उसके रीढ़ के हड्डी में कैंसर के रोगाणु पाए गए।घर के सारे लोग, सारे रिश्तेदार, आस पड़ोस के लोग स्तब्ध रह गए ये खबर सुन कर। डॉक्टर ने कहा बहुत कम समय है उसके भाई के पास। सिम्मी कम उम्र होने के वजह से समझ ही नहीं पा रही थी हो क्या रहा है उसके भाई के साथ । उसके भाई का इलाज शुरू हुआ हर अच्छे डॉक्टर से दिखाया गया । भारत के सबसे बड़े कैंसर हॉस्पिटल में दिखाया गया। कीमोथेरपी रेडियोथरेपी सब हुआ लेकिन रीढ़ के हड्डी में बीमारी होने के वजह से ऑपरेशन होना संभव नहीं था। उसके भाई के स्वस्थ में उतार चढ़ाव आने लगे। बोन कैंसर होने के वजह से बहुत ही ज्यादा असहनीय दर्द होता उसे। कई बार ऐसा भी लगा जैसे कुछ ही दिनों में या घंटो में उसकी मौत हो जाएगी।तो कई बार ऐसा भी लगा की वो ठीक हो जायेगा। उसके घर वाले टूट गए थे अंदर से, उसका भाई भी सोचने लगा था कि अब बोझ बन गया सबके लिए वह। उसकी जिंदगी से बेहतर मौत है। सिम्मी की मां सिम्मी और उसके घरवाले उसके भाई मनीष से छुप छुप कर बहुत रोते। लेकिन भाई के सामने हिम्मत दिखाते। खूब सेवा की गई उसकी, कई मंदिरों में मन्नत मांगी गई ।बहुत सारे पैसे खर्च किए गए। हर संभव और असंभव प्रयास किया गया। लेकिन 2013 के महाशिवरात्रि के दिन ही डॉक्टर्स ने सिम्मी के बड़े भाई और पापा से कह दिया की अब मनीष को और बचाया नहीं जा सकता उसे घर ले जाया जाए। और बची हुई जिंदगी वो घर में अपनों के साथ बिताए तो अच्छा है। साथ में जब तक वो जीवित है तब तक कुछ दवाइयां खिलाने का परामर्श भी दिया गया।
मनीष पढ़ा लिखा समझदार तो था ही वो भी समझ चुका था कि उसके पास वक़्त नहीं है ज्यादा। सिम्मी की मां और सिम्मी उसका पूरा पूरा ख्याल रखते रात दिन जग कर एक एक जरूरत का सामान उस तक पहुंचाते। उसके पापा भी सदमे में जा चुके थे। मनीष की सारी इच्छाएं पूरी की जाती। कभी कभी अपनी मौत का जिक्र कर मनीष हंसता तो कभी खुद भी रोता और घरवालों को भी रुलाता। मनीष की हालत बद से बदतर होते जा रही थी। वो अब चल भी नहीं पाता था उसे अपना पैर हिलाने के लिए भी किसी कि मदद चाहिए होती। उसे बहुत ज्यादा दर्द होता, दर्द के इंजेक्शन और दवाई का असर होना भी बन्द हो गया। वो कभी कभी रात भर जगे रहता दर्द से तड़पता चिल्लाता हुआ और साथ में सिम्मी और सिम्मी के मां पापा भी। मनीष कहता क्या सबको अच्छा लगता है उसे दर्द में देखना , जहर क्यों नहीं दे देते उसे, नहीं तो भगवान से कहो कि मुझे सुकून की जिंदगी नहीं देते तो कम से कम मौत दे दे। उसकी जिंदगी मौत से बदतर बन चुकी थी । अब वो जीना नहीं चाहता था।

2013 अगस्त का आखिरी सप्ताह

मनीष अपना हर रात जग कर गुजारता दिन भी कम दर्दनाक नहीं था। अब बस मौत का इंतजार था। उसे हर रोज असहनीय दर्द होता बहुत रोता वो और साथ में सिम्मी और बाकी घरवाले भी। एक रात मनीष की तबीयत बहोत ज्यादा खराब थी वो एक भी पल सुकून से नहीं रह पाया रोता, दर्द से तड़पता हुआ रहा वो अगली सुबह और दिन भी कुछ ऐसी ही थी। लेकिन रात में पता नहीं मनीष ने क्यों कहा आज मुझे दर्द नहीं हो रहा । सब सुकून से सो जाना और अपनी मनपसंद खीर बनाने भी कहा था उसने आज। रात में सब खा कर सो गए । सिम्मी दूसरे कमरे में पढ़ रही थी। और मनीष के कमरे में लगे दूसरे बिस्तर पर उसकी मां सो रही थी।
मनीष जगा हुआ था। सिम्मी उससे कई बार जाकर पूछ चुकी थी भाई कुछ चाहिए। तो मनीष मना कर देता , एक बार उसने सिम्मी से कहा सिम्मी सबका ख्याल रखना बाबू और अभी जाकर सो जाओ और हां मां बहुत दिनों के बाद सोए है आज तो जगाना मत उनको । सिम्मी ठीक है बोल कर चली आई। तब तक मां भी आज दूसरे कमरे में चली गई थी।

रात में उसने कुछ अजीब सी आवाज सुनी। उसे लगा उसके भाई को कुछ चाहिए वो दौड़ के उसके कमरे में गई । जाते ही दंग रह गई वो। उसका भाई अपनी सारी दवाई जिसमें बहुत सारी नींद की, बुखार की, दर्द की, बीपी की , और भी कई सारी दवाई थी सबको एक साथ खा रहा है। सिम्मी ने जब उसे रोकना चाहा और चिल्ला कर सबको जगाना चाहा तो मनीष ने उसे चुप रहने की कसम दे दी। और हाथ जोड़ कर सिम्मी से कहने लगा सिम्मी मै जब दर्द में तड़पता हूं रोता हूं तो अच्छा लगता है तुझे। मां मुझे दर्द में देख कर हर रोज रोती है क्या ये अच्छा लगता है तुझे। दीदी पापा भैया जब छुप छुप कर रोते है तो तुझे अच्छा लगता है। मेरा इलाज करवाने के लिए भैया पापा इतने पैसे खर्च कर रहे है, तुम और मां दिन रात मेरी साथ रहती हो मेरी सेवा करती हो फिर भी में ठीक नहीं हो पा रहा , मै कभी ठीक नहीं हो सकता मुझे इस दर्द भरी जिंदगी से आजाद होने दो।अब सुकून कि नींद चाहिए मुझे। ऐसा कहते हुए हाथ जोड़ कर फूट फूट कर रो पड़ा वो। सिम्मी उसे कुछ ना बोल पाई। स्तब्ध सी देखती रह गई। और वही अपने भाई के पास लेट गई ।

कई रातों से नहीं सोए सिम्मी और उसका भाई रोते रोते सो गए। सिम्मी की सुबह तो हुई लेकिन उसके भाई की नहीं।



सिम्मी उस दिन अपने भाई को रोक नहीं पाई, नाहीं किसी को ये बात बता पाई। आज इतने साल होने के बाद भी सिम्मी खुद को अपने भाई की मौत का जिम्मेदार मानती है।
ये अजीब सा सच किसी को बता नहीं पाई। बस हर पल अंदर ही अंदर घुटते रहती है खुद के गुनाह पर।



मै जानना चाहूंगी कि क्या ये अनकहा सच सिम्मी को अपने मां पापा से बता देना चाहिए।
क्या अपने भाई के मौत की जिम्मेदार है सिम्मी।





कहानी लिखते लिखते मै खुद रोने लगी क्यूकी ये कल्पना नहीं हकीकत है। दुबारा पढ़ कर गलतियां सुधारने की हिम्मत नहीं है। गलतियों के लिए माफी चाहूंगी😭😭😭