वे दोनों भाई-बहन थे. भाई बड़ा था. गोरा-चिट्टा रंग, फूले-फूले गाल और उम्र नौ साल. नाम था बबलू. बहन छोटी थी. सुनहरे बाल और नीली चंचल आंखें चेहरे से नटखटपन साफ छलकता. उम्र सिर्फ़ सात साल. वह अक्सर सितारों वाला फ्रॉक पहनती और दिनभर अपने भय्या के संग रंग-बिरंगी तितलियां पकड़ने में व्यस्त रहती. उसका नाम था बबली
सावन का बादल जब हरियाली का गीत ले कर आता, तब दोनों बच्चे उसके पीछे हो लेते. वे बादल से जिद करते ढोल बजाने की. बादल उनकी जिद सुकर हंसने लगता. फिर धीरे-धीरे बादल का ढोल बजने लगता, वे खुश हो कर नाचने लगते .
जाड़े में जब सरसों खिलती, तब वे खेतों की मेड़ों पर चलकर गांव के दोनों छोर नाप डालते. तितलियां पकड़ने की कोशिश करते. बबली सरसों के फूलों के बीच छिप कर बैठ जाती, बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे तितलियों की ओर हाथ बढ़ाती. लेकिन फिर भी कोई भूल हो ही जाती और तितली ‘टा-टा’ कर उड़ जाती. फिर आता मनभावन वसंत.
फूलों की खिलखिलाहट और पक्षियों की सुमुधुर सुर लहरी उन्हें घर में टिकने ही कहां देती थी. कभी लाल गुलाब उन्हें अपने पास बुलाता तो कभी मोंगरा के सफेद फूल. बाग के पक्षी से उनकी दोस्ती थी. जब वे बाग में जाते तब पक्षी उनके कंधों पर आ बैठते थे.बुलबुल और कोयल में तो उनको गाना सुनाने की होड़ लग जाती. काला कौआ भी उन्हें देखकर जोर से चिल्लाता-जै रामजी की.
गर्मी फिर से आयी थी. लेकिन वे दोनों बड़े उदास थे. भाई बिस्तर पर पड़ा चुपचाप छत को घूर रहा था और बहन दूसरे कमरे में बैठी बोर हो रही थी. दोनों को एक दूसरे से मिलने की सख्त मनाही थी. भाई को चेचक निकली थी. कमरे में पड़ी बोर होती बबली बाहर सीढ़ियों में आकर बैठ गई. उसको चुपचाप सीढ़ियों में बैठे देख छत के ऊपर से गुजरते सूरज को बड़ा आश्चर्य हुआ. उसने नीचे आकर बबली की ठुड्डी उठाकर पूछा, ‘‘ क्या बात है गुड़िया? तुम उदास क्यों हो? तुम्हरा भय्या कहां है?’’ बबली ने रोते-रोते सूरज को सारी बातें बता दी. यह भी कि उसकी मम्मी ने दो दिन से उसे भट्या से मिलने नहीं दिया है.
सूरज एक आह भर कर ऊपर उठ गया. और रास्ते भर में सबको बबली की कहानी सुनाता गया.बबली की उदासी की खबर सुनते ही बादल दौड़ा-दौड़ा उनसे मिलने आया. लेकिन बबलू को तो बिस्तर तक से उठने की मनाही थी. दुखी बादल भारी मन से लौट गया. कोयल और बुलबुल भी उनकी खैरियत लेने पहुंचे. जाते वक्त नीलकंठ का पवित्र पंख दे गए, जिसे सिरहाने पर रख लेने से बच्चों को डरावने सपने नहीं आते. रंग-बिरंगी तितलियां परीलोक से उनके लिए तरह-तरह के उपहार ले कर आई. इस बार बबलू बाहर निकल आया और सीढ़ी पर बैठकर तितलियों के मुंह से परीलोक की आश्चर्य भरी कहानियां सुनने लगा. काफी देर बाद सुंदर तितलियों ने विदा लेती.
तब आती मीठे सपनों वाली रात. सभी बच्चे जहां मीठी नींद में मस्त होते. वहीं नन्ही बबली तकिए में मुंह छिपाकर आंसू बहाती, ‘‘ हे भगवान मेरे भय्या को ठीक कर दो . हे भगवान.....’’
बहुत देर बाद उस गुड़िया सी सुंदर लड़की बबली को नींद आती तब सपने में एक मैला-कुचैला, गन्दा रोगी-सा बूढ़ा दिखलाई देता. उसके मुंह पर कई फोड़े होते, जिससे मवाद और गंदा खून रिसता रहता. बबली को उदास देखकर वह नजदीक आकर पूछता , ‘‘ बिटिया तुम उदास क्यों हो?’’
बबली उसे देख कर डर जाती . वह घबराहट में पूछती,‘‘ तुम कौन हो?’’ वह बूढ़ा प्यार से उत्तर देता, ‘‘ मैं लोगों की बीमारियां दूर करने वाला देवदूत हूं.’’
उसकी बात सुनकर बबली चहक उठती, ‘‘ तो तुम मेरे भय्या की बीमारी दूर करने आए हो न!’’ बूढ़ा कुछ धीरे से बोलता , ‘‘ नहीं बिटिया. अभी वक्त नहीं आया.’’
‘‘ क्यों मेरे भाई ने किसी का क्या बिगाड़ा था?’’
‘‘ उसने छोटी चिरैया, गौरैया के अंडे फोड़े थे’’ और बूढ़ा चला गया.
फिर दिखाई देता एक टेढ़े मुंह वाला काला-कलूटा आदमी. उसके सारे शरीर में बाल ही बाल होते और पीठ पर झूलती एक लाल गठरी. जिस पर टेढ़-मेढ़े अक्षरों में लिखा होता बीमारियां.
बबली पूछती , ‘‘ तुम कौन हो?’’
काला आदमी मूछों में ताव देता हुए एक भद्दी हंसी हंसता, ‘‘ नहीं बेटी , मैं लोगों को बीमारियां बांटता हूं. तुम्हारे भय्या को थोड़ी बीमारी और देने आया हूं. कल जब तुम्हारे भाई को डॉक्टर इंजेक्शन लगा कर गया था तब उसने भगवान को गाली दी थी. इसलिए उसे थोड़ी बीमारी और दी जा रही है.’’
बबली हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘ आप भय्या की बीमारी मुझे दे दीजिए. उसे अच्छा कर दीजिए.’’
बबली की नींद टूटी तो घर में कोहराम मचा था. बबलू बेहोश पड़ा था. दो-तीन डॉक्टर उसके सिरहाने खड़े थे. बबली को रात वाले सपने की याद ताजा हो आई और वह फूट-फूट कर रोने लगी. ऊपर से गुजरता सूरज उसे रोता देख नीचे उतर आया . बबली ने रोते-रोते उसको सारी बातें बता दी. पूरी बात सुनकर, सूरज ‘अभी आया’ कह कर आकाश में ऊंचा उड़ गया और रास्ते भर में सबसे बबली की कहानी कहता गया.
थोड़ी ही देर में बाग में बादल, सूरज और तितलियां आ गई. पक्षियों और कई खिलने वाली कलियों की भीड़ से बाग भर गया. हवाएं खामोश हो गई. सूरज के अभाव में सारे संसार में अंधेरा छा गया. हवाओं की खामोशी से जीवधारियों में खलबली मच गई. तितलियों को आता न देख फूलों के पेड़ मुरझाने लगे.पक्षियों की चहचहाहट के बिना सारा संसार सुनसान लगने लगा. अपनी सृष्टि की दुर्गति पर ब्रह्मा के आश्चर्य की कोई सीमा न रही. वह हैरान-परेशान हो उठे. उन्होंने कारण जानने के लिए सबको अपने दरबार बुला भेजा. सबसे पहले सूरज की बारी थी, उससे पूछा गया , ‘‘तुमने अपना काम क्यों नहीं किया?’’
सूरज ने सिर झुका कर उत्तर दिया, ‘‘ हे प्रभो मुझे दूसरे की खुशी के लिए जलने की शक्ति इन नन्हे बच्चों की प्रसन्नता से मिलती थी. जब से ये उदास है मेरा शरीर भी टूटा-टूटा सा लगता है. कोई काम ठीक तरह से होता ही नहीं है.’’ ऐसा ही जवाब बादल ने भी दिया. कलियों ने खरा-सा जवाब दिया-हमें खिल कर हंसना कौन सिखाएगा? तितलियों ने कहा- हम किसके लिए उड़ते फिरे. वे दोनों बच्चे तो अब बाग में आते ही नहीं. पक्षी बोले-हम गाना किसे सिखाएं? चारों हवाएं घिघयाए स्वर में बोली-महाराज
हमारी बात मत पूछिए. जब से फूलों ने खिलना बंद किया तब से लोग हमसे नफरत करने लगे है. हम जिधर भी जाती है लोग नाक में कपड़ा रख कर ‘बदबू-बदबू’ कह कर दूसरी और भाग निकलते हैं.
ब्रह्मा चक्कर खा गए. उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए बबलू की बीमारी वापस लेने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं रह गया था. बोले, ‘‘ अच्छा जाओ तुम सब अपना-अपना काम करो. तुम्हारी खातिर बबलू की बीमारी वापस ली जाती है.’’
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