Aag aur Geet - 15 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | आग और गीत - 15

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

आग और गीत - 15

(15)

“फिर किसके बारे में बातें करूँ ? ” राजेश ने पूछा ।

“मेरे बारे में भी कुछ बातें करो ।”

“तुम्हारे बारे में क्या बातें करू, तुम तो मेरे सामने मौजूद ही हो और मैं तुमको देख रहा हूँ मगर अब तुम्हारा चेहरा मुझे साफ़ नहीं दिखाई दे रहा है ।”

“क्यों चाँद की रोशनी तो है, फिर....। ”

“बात यह है कि नींद के कारण मेरी आँखे बंद होती जा रही है ।” राजेश ने कहा और चट्टान पर लेट गया ।

“तुम थके भी हो और ज़ख्मी भी हो, तुम्हें आराम करना ही चाहिये । ” निशाता ने कहा “मगर मैं अपने दिल को क्या करूँ जो यही चाहता है कि बस मैं तुमसे बातें करती रहूँ, ऐसी बातें जो कभी न समाप्त हो, तुम्हारा वह आदमी जिसे पहले मैं यहां लाई थी और जो अब मोबरान बना हुआ है वह अपने को कवि कहता था मगर मुझे वह नंबरी मूर्ख मालूम होता था । अब यही देखो कि उजली भेड़ ने उसे अपने मोह जाल में फांस लिया है । सुन रहे हो न ? ”

मगर राजेश का उत्तर न पाकर वह झुकी और राजेश का चेहरा देखने लगी ।

राजेश की आँखे बंद थीं और वह सच मच सो गया था । वह कुछ देर तक राजेश को प्यार भरी नजरों से देखती रही, फिर वह भी लेट गई ।

***************

राजेश की आंख खुलने का कारण गर्मी का एहसास था ।

गर्मी तो वातावरण में थी ही मगर उसे अपने चेहरे पर गर्मी का एहसास हुआ था । बात वास्तव में यह थी कि सवेरा हो गया था सूरज भी निकल आया था मगर राजेश की आंख नहीं खुली थी और निशाता जाग चुकी थी । उसे सोता हुआ राजेश बड़ा अच्छा लगा था । वह बे ख्याली में राजेश के चेहरे पर झुक पड़ी थी और उसे अपलक देख रही थी । उसकी नाक के नथनों से निकलने वाली गर्म हवायें राजेश के चेहरे से टकरा रही थीं ।

वह बौखला कर उठा तो निशाता की ठुड्डी से उसका सर टकरा गया ।

“अरे बाप रे ! ” उसने कहते हुये छलाँग लगाईं और दूर जा खड़ा हुआ फिर दोनों हाथों से अपना सर पीटने लगा ।

“अरे अरे यह क्या कर रहे हो । ” निशाता कहती हुई आगे बढ़ी और उसके दोनों हाथ पकड़ लिये ।

“अगर मम्मी ने देख लिया होता तो ? ” राजेश ने कहा ।

“क्या वह तुम्हारे साथ है ? ”

“वह तो नहीं है मगर एक मौसी तो हैं न ।”

निशाता हंसने लगी फिर एक दम चौंक पड़ी ।

“क्यों क्या हुआ ? ” राजेश भी चौंका ।

“तुम्हारे साथी भी है ना ? ”

“हां है तो । मगर तुमने यह पूछा क्यों ? ”

“वैसे ही ।” निशाता ने कहा फिर एक ओर हाथ उठा कर बोली “उधर एक आदमी मुझे दिखाई दिया था बस इसीलिये मैंने पूछा था ।

“तुम इतनी दूर तक देख लेती हो ! ”

“इससे भी दूर की चीजें देख लेती हूँ ।” निशाता ने कहा “आओ चलें ।”

“कहा ? ”

“नाले पर ।”

“क्यों ? ”

“स्नान किया जायेगा ।”

“नहीं मैं नहीं आऊंगा ।”

“क्यों ! ” निशाता उसे घूरने लगी ।

“मैं रात भर गयाब रहा हूँ । मेरे साथी मेरे लिये परेशान होंगे ।” राजेश ने कहा “अब मैं उनके पास जाऊँगा ।”

“अब तुमसे रात में मुलाक़ात होगी और तुम मुझे मोबरानी के महल तक ले चलोगी ।”

“तुम तमाशा भी दिखाते हो ? ” निशाता ने पूछा ।

“हां ।”

“तो फिर आह मोबरानी के महल के सामने तमाशा दिखाओ ।”

“वह नाराज तो नहीं होगी ? ” राजेश ने पूछा ।

“नहीं, बल्कि खुश होगी ।यहां तमाशा दिखाने वाले आते ही रहते है ।”

“अच्छा । अब तुम क्या करोगी ? ”

“नहा धो कर मोबरानी के पास चली जाऊँगी ।”

“अगर उस विदेशी तथा उसके साथियों ने फिर शरारत की तो, तुम्हारा बाप तो ज़ख्मी है ।”

“दिन में कोई नहीं बोलेगा ।” निशाता ने कहा “और फिर मैं सब को शबर देने जा रही हूँ, आज झगडा होकर ही रहेगा ।”

“अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, अपना वादा याद रखना ।” राजेश ने कहा और उधर ही चल पड़ा जिधर उसकी टीम वालों ने छोलदारियां डाल रखी थीं ।

मैदान में अच्छी खासी धुप फैल चुकी थीं और दुबे-भेड़े तथा सुनहरी खालों वाली गायें चरति हुई नजर आ रही थी मगर कही कोई आदमी नहीं दिखाई दे रहा था । वह सफ़ेद इमारत सूरज की रौशनी में भी उतनी ही अच्छी लग रही थी जैसी रात में चाँद की रोशनी में लग रही थी ।

अचानक राजेश के कानों में ढोल औए ताशे की आवाज़ें पड़ने लगीं और वह उधर ही मुड़ गया । अब उसकी चाल में तेजी थी ।

फिर वह उस स्थान पर पहुंचा जहां उसकी टीम वाले बनजारा डांस का रिहर्सल कर रहे थे । कोई ढोल पिट रहा था, कोई ताशा बजा रहा था और कुछ लोग उछल कूद रहे थे । कलाबाजियां लगाईं जा रही थी । कन्धों पर चढ़ कर कूल्हे मटकाये जा रहे थे ।

मदन उनके मध्य खड़ा निर्देश दे रहा था और मोंटे की हैसियत दर्शक की सी थी ।

जोली और मेकफ भी सम्मिलित थे । मेकफ ने तो कुछ उछल कूद भी मचा रखी थी मगर जोली के पैर तो बिलकुल ही गलत पड़ रहे थे ।

“मेडम ! ” माधुर ने जोली का सम्बोधित किया “बनजारों के समान आप वाल्ज नहीं नाच रही है ।”

उसी समय मदन की नजर राजेश पर पड़ी और उसने लहक कर कहा ।

“आइये । आइये मिस्टर राजेश । आप तो हमें छोड़ कर बिलकुल ही गयाब हो गये ।”

“सवाल यह है कि यह सब क्या हो रहा है ।” राजेश ने पूछा ।

“जो कुछ हो रहा है उसे आप देख ही रहे है ।” मदन ने हंस कर कहा “कुछ आप भी कमाल दिखाइये ।”

राजेश फौरन ही पीठ के बल लेट गया और फिर कमर तक दोनों पैर ऊपर उठाये उसके बाद चीखा ।

“अबे कालिये ! मेरे दोनों तलुओं पर अपना सीना रख दे ।”

मेकफ उसके निकट आया और बोला ।

“बास, सीना नहीं पेट ।”

“क्यों ? ”

“डिस वैलेन्स हो जायेगा ।” मेकफ ने कहा ।

“चल पेट ही रख ।” राजेश ने कहा ।

मेकफ ने अपना पेट राजेश के दोनों उठे हुये तलुओं पर रखा । इस क्रिया से मेकफ का सारा बोझ राजेश के तलुओं पर पड़ गया । फिर राजेश पीठ के बल घूमने लगा ।

कुछ ही क्षण बाद वह पीठ के बल तेजी से चक्कर लगा रहा था और मेकफ उसके तलुओं पर टिका हुआ था । उसके दोनों हाथ इस प्रकार आगे की ओर फैले हुये थे जैसे वह हवा में तैर रहा हो ।

टीम वाले सारा काम छोड़ कर तालियां बजा रहे थे । कह कहे लगा रहे थे ।

फिर राजेश ने मेकफ को संकेत किया और वह उसके तलुओं पर से उतर गया ।

राजेश भी उठ कर खड़ा हो गया और मदन से कहा ।

“ऐसा कोई तमाशा दिखाओ तो जानूं ।”

“यह सब आप ही देखा सकते है ।” मदन ने हंस कर कहा “हम लोग तो बस उछल कूद वाले है, वैसे माथुर लकड़ी के ऊपर खड़ा हो सकता सकता है ।”

“यह अच्छी बात है, मगर प्रोग्राम क्या है ? ” राजेश ने पूछा ।

“यह तो मिस जोली ही बता सकती है ।”

“वह क्यों ? ” राजेश ने पूछा ।

“इसलिये कि चीफ ने जोली ही को हमारा इनचार्ज बना रखा है, हमें जोली से ही आदेश मिल रहे है, हम तो अंधकार में है ।”

“सुनो ! तुम्हारे चीफ ने मुझसे कहा था कि उस हवाई जहाज का सामान.....। ”

“जी हां । ” मदन ने बात काट कर कहा “वह तो हम रात ही उठा लाये थे ।”

“कहां है ? ”

“छोलदारी के पीछे ।”

“क्या मैं भी देख सकता हूँ ? ”

“अवश्य, आइये ।” मदन ने कहा और सबको वहीँ छोड़ कर राजेश के साथ चल दिया ।

एक छोलदारी के पीछे हवाई जहाज के कुछ टूटे और जले हुये टुकड़े रखे हुये थे ।

“इन्जिन नजर नहीं आया ? ” राजेश ने पूछा ।

“जी नहीं । बस वहां जो कुछ था वह सब यही है ।”

राजेश उकडूं बैठ गया और उन टुकड़ों को उलट पलट कर देखने लगा । फिर ठण्डी सांस खींचता हुआ उठ गया और बोला ।

“कुछ भी नहीं हुआ ।”

“क्या नहीं हुआ ।” मदन ने विस्मय के साथ पूछा ।

“वहीँ जो हुना चाहिये था ।”

“इसका मतलब यह हुआ कि आप बताना नहीं चाहते ।”

“क्या तुम नहीं जानते ? ”

“मैं क्या जानूं ।” मदन ने कहा “हमें कुछ बताया नहीं गया है, हम तो अपनी बुध्धि से यह समझ रहे है कि हम यहां नायक को प्राप्त करने के लिये भेजे गये है ।”

“नायक के अतिरिक्त एक आदमी और भी है ।” राजेश ने कहा ।

“वह कौन है ? ” मदन ने पूछा ।

“यह नहीं जानता, बस तुम्हारे चूहे ने इतना ही बताया था कि हमारा एक महत्वपूर्ण आदमी यहां कैद है और उसे छुड़ाना है ।”

“वह कहां कैद है ? ”

“तुम्हारे चीफ की मालुमात के अनुसार यहां की सफ़ेद इमारत में ।”

“तो हमें उस इमारत तक चलना होगा ।”

“बिना चले कैसे काम बनेगा ।” राजेश ने कहा ।

“तो फिर चलिये ।” मदन ने कहा “मगर ठहरियें, जोली से परामर्श ले लिया जाये क्योंकि हम उसी के चार्ज में दिये गये है ।”

“तुम उससे बातें करो, तब तक मैं तुम्हारे चीफ से बातें करता हूँ ।”

“क्या हमारा चीफ भी यहां मौजूद है ? ” मदन ने पूछा ।

“हां ।”

“कहां है ? ” मदन ने उत्सुकता के साथ पूछा ।

“यह तो तुम भी जानते हो कि वह कभी सामने नहीं आता, किसी बिल में छिपा बैठा होगा ।”

“तो फिर आप उनसे बातें कैसे कीजियेगा ? ”

“क्या तुम्हारी अक्ल घास चरने गई है ! ” राजेश ने मुंह बना कर कहा “आखिर जोली उससे किस प्रकार आदेश प्राप्त करती होगी ।”

मदन बगलें झांकते लगा ।

इतने में जोली भी वहा आ गई और मदन ने उससे सफ़ेद इमारत तक चलने की बात कही ।

जोली कुछ क्षणों तक सोचती रही फिर बोली ।

“ठीक है, चलो चला जाये । मगर मोंटे और मेकफ यहीं रहेंगे ।”

राजेश जोली की बात से मन ही मन खुश हुआ मगर ऊपर से बिगड़ कर बोला ।

“तुम लोगों का जो दिल चाहे वह करो, मैं तो चला ।”

“सुनो तो । ” जोली कोमल स्वर में बोली “हमारा चीफ हम सबसे अधिक तुम पर ही विश्वास करता है इसलिये हमारे साथ तुम्हारा रहना अत्यंत आवश्यक है ।”

“तुम कहती हो तो फिर रुक जाता हूँ ।”

फिर लगभग आधा घंटा बाद पूरी टीम बनजारों के भेस में छोलदारियों से निकली और उछलती कूदती सफ़ेद इमारत की ओर बढ़ने लगी । सबके हाथों में लकड़ियाँ थी । एक आदमी ताशा बजा रहा था और एक आदमी ढोल पिट रहा था ।

राजेश और मदन उनके पीछे पीछे चल रहे थे ।

ढोल और ताशे की आवाज़ें सुन सुन कर कबायली चट्टानों से निकलने लगे थे और बड़े विस्मय तथा दिलचस्पी के साथ यह द्रश्य देखने लगे थे । पार्टी गाती बजाती आगे बढ़ती जा रही थी ।

राजेश कबायलियों में जाने पहचाने चेहरों को तलाश कर रहा था मगर न अभी तक कोई विदेशी नजर आया था और न निशाता ।

फिर ऐसा लगा जैसे पूरे कबीले के लोग मैदान में निकल आये हों । उनमें कुछ की नजरें जोली पर भी जमी हुई थी ।

लम्बे कद के गोर चिट्टे और चिपटी नाक तथा चौड़े ललाट वालें यह कबायली बहुत ही सुरदय और प्रसन्न चित्त वाले मालूम हो रहे थे । उनमें से कई एक पार्टी में सम्मिलित हो गये थे और अछल कूद रहें थे ।

इतने में एक अधेड़ आयु का एक भीमकाय आदमी नजर आया । उसने हाथ के संकेत से उन्हें ठहरने के लिये कहा फिर स्थानीय भाषा में कठोर स्वर में पूछा ।

“तुम लोग कौन हो, कहां से आये हो और क्या चाहते हो ! ”

सब लोग एक दुसरे का मुंह देखने लगे क्योंकि कोई भी स्थानीय भाषा नहीं जानता था । मदन केवल समझ सकता था, बोल नहीं सकता था ।