TRIDHA - 5 in Hindi Fiction Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | त्रिधा - 5

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त्रिधा - 5

" ऐसा भी क्या हो गया माया ? " त्रिधा ने पूछा।

" जब मैं राजीव से मिलने पहुंची तो उसने मुझे कहा कि अब वह...कि अब वह... " माया आगे न बोल सकी और फिर रोने लगी। एक बार फिर त्रिधा ने उसे चुप करवाया, उससे कुछ देर शांत होकर बैठने के लिए कहा और खुद जाकर कॉफी बना लाई फिर एक कप माया की ओर बढ़ाते हुए कहा " अपना दिमाग शांत करो माया और जो भी बात है मुझसे शेयर करो ताकि तुम्हारे मन पर कोई बोझ न रहे "
माया, त्रिधा की बात समझ रही थी और उसने कुछ देर चुप रहने के बाद सब कुछ बताया।

" त्रिधा उसने मुझसे कहा कि वह अब मुझसे परेशान हो चुका है, मेरा बार बार उसे फोन करना, उससे मिलने की ज़िद करना और उसकी परवाह करना, यह सब उसे घुटन लगने लगा है और अब उसे मुझसे भी अच्छी एक लड़की मिल गई है... वर्षा, जो उसे हर वक़्त परेशान नहीं करती, उसकी भावनाओं को समझती है और वो दो बार उसके घर भी रुक चुका है जब उस लड़की के घर का कोई सदस्य वहां नहीं था। त्रिधा , मैंने उसे अपनी सेविंग्स में से पैसे दिए, उसके ऊल जलूल खर्चे उठाए, अपने घर पर झूठ बोला, अपनी पढ़ाई से ज्यादा उस पर ध्यान दिया, उसके लिए इतना सब किया फिर भी वह एक ऐसी लड़की के साथ रहना चाहता है जो उससे प्यार करने की जगह, उसकी परवाह करने की जगह उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर रही है। इस सब में उलझ कर रह जाएगा वो और अपनी स्टडीज, अपने करिअर और अपने परिवार से दूर होता जाएगा " माया ने त्रिधा को सब बताया।

" उसकी और परवाह मत करो माया जिसने एक ऐसी लड़की के लिए तुम्हें छोड़ दिया.... वर्षा नाम मेरी ज़िन्दगी में कुछ ज्यादा ही बेकार है " त्रिधा ने आखिरी वाक्य लगभग बुदबुदाते हुए कहा।

" पर मैं उससे प्यार करती हूं त्रिधा " माया ने सुबकते हुए कहा।

" ऐसे प्यार का कोई फायदा नहीं माया जो तुममें सिर्फ खामियां ही देखे, अच्छाइयां नहीं और जो तुम्हें बदले में प्यार तो क्या सच्चाई तक ना दे सके उसके लिए अपने प्यार को खर्च मत करो। अब तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो " त्रिधा ने कहा।

" हां तुम ठीक कहती हो त्रिधा पर मुझे थोड़ा वक़्त लगेगा सब भूलने में , तब तक तुम मेरा साथ दोगी न " माया ने आंखों में उम्मीद लिए कहा।

" माया दोस्तों से पूछा नहीं जाता और न ही दोस्त साथ छोड़ते हैं , मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं " त्रिधा ने माया को गले लगाते हुए कहा। कुछ देर तक दोनों एक दूसरे से अपने अब तक के जीवन के बारे में, अपने भविष्य के बारे में बातें करती रहीं।

अगले दिन दशहरा था और इसीलिए कॉलेज की छुट्टी थी लेकिन दशहरा पर भी माया सुबह से ही उदास थी और त्रिधा काफी देर से उसे हसाने की कोशिश कर रही थी मगर सब बेकार, माया , जो त्रिधा को अपने मजाक से हंसाती रहती थी आज खुद ही नहीं हंस पा रही थी। लंच के बाद त्रिधा को ध्यान आया कि आज उसे जल्दी ट्यूशन पढ़ाने जाना है तो वह माया से अपना ध्यान रखने का कह कर हॉस्टल से निकली।

त्रिधा रास्ते में जा रही थी लेकिन उसके दिमाग में, कानों में बस एक ही नाम गूंज रहा था ' वर्षा '। वह सोच रही थी कैसा अजीब इत्तेफाक है, एक वर्षा हर्षवर्धन के आगे पीछे घूमती रहती है तो एक वर्षा ने राजीव को माया से दूर कर दिया।
सोचते सोचते त्रिधा प्रभात के घर के सामने से निकली तो देखा वह मुंह लटकाए बालकनी में घूम रहा था, त्रिधा जल्दी से वहां से चली गई ताकि प्रभात उसे देख न ले क्योंकि बीते शनिवार ( जब दो दो तीन लड़के उसका पीछा करने लगे थे ) उसके साथ हुए उस हादसे के बाद यह पहली बार था जब वह बच्चों को पढ़ाने जा रही थी और अगर प्रभात उसे देख लेता तो वह उसे अकेले नहीं जाने देता पर त्रिधा उसे अपनी वजह से परेशान नहीं करना चाहती थी इसीलिए वहां से जल्दी चली गई।

त्रिधा बच्चों को पढ़ा कर लौटी रही थी कि तभी उसे वे लड़के एक बार फिर से नजर आए उनको वहां देख कर त्रिधा एक बार फिर सकपका गई लेकिन वह अपना डर अपने चेहरे पर नहीं लाना चाहती थी इसलिए वहां पर ही खड़ी रही। आज दिन भी था और भीड़ भी इसीलिए उसे इतना नहीं डर नहीं था लेकिन तभी वे लड़के उसकी तरफ बढ़ने लगे। त्रिधा का डर और भी बढ़ चुका था अपने आसपास भीड़ होने के बावजूद उसे डर लग रहा था क्योंकि वह जानती थी की भीड़ सिर्फ तमाशा ही देखती है, किसी की मदद के लिए आगे नहीं आएगी। वह डर की वजह से जल्दी-जल्दी चलते हुए आगे बढ़ रही थी लेकिन तभी उसकी नजर सड़क के दूसरी ओर से आते हुए प्रभात पर पड़ी और उसे थोड़ी शांति मिली पर अब दूसरी तरफ से वे लड़के भी त्रिधा की तरफ तेजी से बढ़ने लगे जिन पर प्रभात की भी नजर पड़ चुकी थी और अब प्रभात भी त्रिधा की स्तिथि को समझ चुका था और वह उसके पास आ रहा था लेकिन ट्रैफिक ज्यादा होने की वजह से उसे सड़क पार करने में देर लग रही थी, वहीं वे लड़के अब फब्तियां कसते हुए त्रिधा के एकदम नजदीक आ चुके थे लेकिन इससे पहले कि वे तीनों त्रिधा के पास आते उन लड़कों में से एक को एक जोर का मुक्का पड़ा और वह दूर जाकर गिर गया, जिसे देखकर बाकी दोनों लड़के पीछे हट गए। जब त्रिधा ने दूसरी ओर देखा तो उसे हर्षवर्धन नजर आया। अब तक प्रभात भी सड़क पार कर कर वहां आ चुका था और सामने हर्षवर्धन को देखकर उसे थोड़ी संतुष्टि मिली कि कम से कम उसके अलावा और भी कोई है जो त्रिधा का ध्यान रख सकता है। त्रिधा अब भी भावहीन सी खड़ी एक बार प्रभात को देखती तो एक बार हर्षवर्धन को।

" अब तुम सेफ हो त्रिधा " कहते हुए हर्षवर्धन ने त्रिधा को गले लगा लिया। त्रिधा जोकि पहले से ही सकपकाई हुई थी हर्षवर्धन के इतने पास होने से और ज्यादा सकपका गई और बुत की तरह ही खड़ी रही। जब हर्षवर्धन को ध्यान आया कि वे एक सड़क पर हैं तो वह खुद ही त्रिधा से दूर हो गया। कुछ वक़्त बाद त्रिधा भी संभल गई लेकिन इस सब के बीच प्रभात बिल्कुल चुप खड़ा था, न त्रिधा से कुछ बोल रहा था और न ही उसे कुछ समझा रहा था। प्रभात का यह व्यवहार हमेशा से उलट था, वह हमेशा ही त्रिधा को परेशान देखकर कुछ न कुछ ऐसा करता था कि वह खुश हो जाए लेकिन आज वह चुप था जिसे देखकर त्रिधा को कुछ समझ नहीं आया। अगले ही पल हर्षवर्धन और त्रिधा दोनों ही प्रभात को देख रहे थे और प्रभात त्रिधा को गुस्से से घूर रहा था। ऐसे में हर्षवर्धन ने चुप रहने में ही भलाई समझी पर त्रिधा बोल पड़ी " क्या हुआ प्रभात ? " त्रिधा का बोलना था और प्रभात ने अगले ही पल त्रिधा के गाल पर ज़ोर से थप्पड़ मार दिया । अचानक हुई एक और घटना से त्रिधा डर गई और चुपचाप अपने गाल पर हाथ रखे खड़ी रही वहीं हर्षवर्धन की भी आंखे खुली की खुली रह गईं।
" तुम्हें बहुत शौक है न ऐसे दबंग बनकर घूमने का, किसने कहा था कि ऐसे अकेले आओ और वह भी किसी को बताए बिना। तुम बेवकूफ हो या पागल हो जो यहां तक अकेली आ गई, अभी कुछ हो जाता तो? बच्ची हो क्या जो बिल्कुल भी अक्ल नहीं तुम में? वह तो संध्या ने मुझे फोन करके बताया कि तुम आज भी ट्यूशन लेने गई थी पर उससे नहीं मिली तब मुझे पता चला कि तुम यहां हो वरना तुम तो अपने सारे फैसले खुद ही लेती हो न... त्रिधा द इंडिपेंडेंट गर्ल " प्रभात ने त्रिधा पर चिल्लाते हुए कहा। प्रभात का गुस्सा जो अब तक उसने रोक रखा था अब त्रिधा पर उतर चुका था।

" शांत हो जाओ प्रभात सब देख रहे हैं " हर्षवर्धन ने प्रभात को समझाने की कोशिश की।

" मैं शांत कैसे हो जाऊं हर्षवर्धन? तुम्हें क्या पता इसने कितना कुछ देखा है! तुम कुछ नहीं जानते पर मैं इसकी हर एक बात जानता हूं, मैं जानता हूं इसने बचपन से आज तक कोई खुशी नहीं देखी। पहले इसके घर में सब होने के बावजूद भी इसका कोई अपना नहीं था और अब यहां जब इसे कोई अपना मिला है तो मैं पूछता हूं क्यों यह अपना हक नहीं ले रही? " प्रभात अब भी गुस्से में था और त्रिधा अब भी अपने गाल पर हाथ रखे हुए, नज़रें नीची किए हुए सब कुछ सुन रही थी।

" तुम ठीक तो हो न त्रिधा ? " हर्षवर्धन ने त्रिधा के आंसू पोंछते हुए पूछा।

त्रिधा ने कुछ नहीं कहा बस हां में सिर हिला दिया।

" सॉरी " प्रभात ने त्रिधा के सामने अपने कान पकड़कर कहा।

" प्रभात मुझे हॉस्टल छोड़ दो... अब तो ठीक है न " त्रिधा ने कहा।

" अजीब दोस्ती है... हमें तो कोई पूछने वाला ही नहीं, अरे हम भी हैं यहां " हर्षवर्धन ने हल्के से खांसते हुए कहा जिससे कि वह दोनों का ध्यान अपनी ओर खींच सके।

" तेरा तो अलग से हिसाब होगा रुक तू, कल मिलना कॉलेज में " प्रभात ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा जिसे सुनकर त्रिधा हल्के से मुस्कुरा दी और हर्षवर्धन वहां से भाग खड़ा हुआ।

" त्रिधा " त्रिधा अपने हॉस्टल के अंदर जाने ही वाली थी कि प्रभात की आवाज़ सुनकर रुक गई और पीछे मुड़कर देखते हुए कहा " हां बोलो "

" मैं तुमसे यह नहीं कह सकता कि तुम ट्यूशन पढ़ाने मत जाओ, जनता हूं तुम स्वाभिमानी हो लेकिन तुम्हारा दोस्त होने के हक से इतना तो कह सकता हूं न कि तुम अकेली नहीं जाओगी " प्रभात ने कहा।

" मैं तुम्हारी चिंता समझती हूं प्रभात पर..... हां दैट्स अ ग्रेट आइडिया " त्रिधा ने अचानक खुशी से उछलते हुए कहा।

" अभी तक तो मुंह बना रही थी अब खुशी से उछल रही हो, तुम भी संध्या के साथ रहते रहते पागल हो गई हो " प्रभात ने बिना किसी भाव के कहा।

" अरे बेवकूफ इससे अच्छा और क्या होगा.... दिमाग मेरा नहीं तुम्हारा खराब है.... तुम मुझे वहां छोड़ने जाओगे लेकिन तुम एक घंटे तक क्या करोगे वहां ? बताओ मुझे " त्रिधा ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा।

" दोबारा जाऊंगा तुम्हें लेने " प्रभात ने त्रिधा को किसी डिटेक्टिव की तरह घूरते हुए कहा।

" संध्या यार देखो तुम जानती हो न प्रभात यहां मेरी वजह से आता है ताकि मुझे कोई परेशानी न हो और वो मुझे यहां छोड़कर थोड़ी ही देर बाद दोबारा मुझे लेने आएगा तो उसे भी तो कितनी परेशानी होगी, प्लीज़ क्या वो एक घंटे के लिए अपने घर जाने की जगह, तुम्हारे घर आ जाए प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़ मेरे लिए मान जाओ ना प्लीज़ मेरी सैंडी " त्रिधा ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा।

" वाह कितना दिमाग है न तुम में.... एक थप्पड़ पड़ेगा अभी, तुम्हें अक्ल नहीं मैं रोज़ उसके घर जाऊंगा तो लोग बातें बनाने लगेंगे " प्रभात ने खिसियाते हुए कहा।

" तब तो हो गई तुम्हारी लव स्टोरी कंप्लीट " त्रिधा ने भी खीजते हुए कहा।

" जाओ अभी और कुछ ढ़ंग का दिमाग लगा पाओ तब बात करेंगे इस बारे में " कहकर प्रभात चला गया।

त्रिधा अपने रूम में पहुंची तो देखा माया उदास सी बैठी है और खिड़की से बाहर झांक रही है।
" माया " त्रिधा ने माया के कंधे पर हाथ रखा तो माया ने पलटकर देखा।

" त्रिधा तुम कब आईं ? " माया ने ऐसे कहा जैसे वह नींद से जागी हो।

" बस अभी " त्रिधा ने अपना बैग एक तरफ रख कर बैठते हुए कहा।

" आज इतनी देर कैसे हो गई त्रिधा? " माया ने कुछ चिंतित होकर पूछा।

" कितनी देर हो गई ? " त्रिधा ने अचरज से घड़ी देखने के बाद आगे कहा " ओह हां आज तो दो घंटे से ज्यादा हो गया "

" सब ठीक तो है न ? " माया अब भी त्रिधा के लिए चिंतित थी।

" हां मतलब नहीं पूरी तरह से तो नहीं पर शायद अब सब ठीक ही हो आगे.... " कहते हुए त्रिधा ने उसे उन लड़कों द्वारा परेशान किए जाने से लेकर , प्रभात के उसे ट्यूशन के लिए छोड़ने जाने के फैसले तक सब बता दिया।

" ऐसी बात थी तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया त्रिधा ? " माया ने कुछ उदास होकर कहा।

" मैं अब किसी को भी अपनी वजह से परेशान नहीं करना चाहती माया " त्रिधा ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

" मैं भी " माया ने उदास होकर कहा तब त्रिधा ने उसकी मनोस्थिति समझते हुए उसे गले लगा लिया और उसके सिर पर हाथ रखकर कहा -

" तुमने उसे परेशान नहीं किया बल्कि अपनी जिम्मेदारियां निभाईं, उससे प्यार किया, उसे अपना वक़्त दिया लेकिन अगर उसे यह समझ नहीं आता तो तुम क्यों परेशान हो रही हो? माया तुमने तो वह खोया है जो कभी तुम्हारा था ही नहीं लेकिन उसने वह खोया है जो सिर्फ उसका ही था। चिंता मत करो अगर वह ही तुम्हारी किस्मत है, तुम्हारा प्यार है, तो एक दिन लौटकर आ ही जायेगा वरना मान लो कि जिंदगी ने एक और सबक दिया है जिसे तुम्हें याद रखना है - किसी पर अंधा विश्वास न करने का सबक "

त्रिधा की बातें सुनकर माया को बहुत हिम्मत मिली, वह उठी आज पहली बार अपनी किताब लेकर पूरे ध्यान से पढ़ने लगी। उसे पढ़ता देखकर त्रिधा भी खुश थी और वह खुद भी पढ़ने लगी पर प्यार हो और दिनचर्या न बदले ऐसा तो संभव ही नहीं, कुछ देर पढ़ने के बाद ही त्रिधा को दोपहर का वाकया याद आने लगा, जब हर्षवर्धन ने उसे गले लगाया था, यह दूसरी बार था जब त्रिधा और हर्षवर्धन एक दूसरे के इतने करीब थे। त्रिधा चाहकर भी हर्षवर्धन के अलावा कुछ और नहीं सोच पा रही थी।

ठीक ऐसा ही हाल था हर्षवर्धन का... अपने दोस्तों के झुंड में बैठा हर्षवर्धन वहाँ होकर भी उनके साथ न था। वह भी त्रिधा के साथ बिताए अपने पलों को याद कर रहा था , साथ ही उसे प्रभात की बात भी रह रहकर याद आ रही थी ' त्रिधा ने बहुत परेशानियां देखी हैं ' उसने तय कर लिया कि वह जानकर ही रहेगा कि आखिर क्या वजह है उसके अतीत से जुड़ी हुई जो आज तक त्रिधा को खुलकर जीने से रोक रही है, क्या है जो त्रिधा उसे पसंद करने के बावजूद उससे दूर है।

" कहां खोया है हर्ष ? " नवीन की आवाज़ से हर्षवर्धन वर्तमान में लौटा और " कुछ नहीं, मैं घर जा रहा हूं " कहकर अपनी कार में जा बैठा और उसे स्टार्ट कर रेस्टोरेंट से निकल आया। नवीन के साथ साथ उसके बाकी दोस्त उसमें आए इस बदलाव को महसूस कर रहे थे लेकिन उसके गुस्से से सभी वाक़िफ थे इसीलिए कोई कुछ पूछ न सका।

हर्षवर्धन जब घर आया तो अपने माता पिता के साथ डिनर करने के बाद सीधा अपने कमरे में गया और एक बार फिर उसके हाथ कैनवास को रंगने लगे... त्रिधा के रंगों में। कुछ समय बाद जब दीया जी उसके कमरे में आईं तो खखारते हुए बोलीं " अच्छा तो बात यहां तक पहुंच गई है " उनकी आवाज़ से हर्षवर्धन ने सामने कैनवास को देखा तो पाया उसने कैनवास पर वही दृश्य उकेरा है जब उसने त्रिधा को गले लगाया हुआ था।

" ऐसा कुछ नहीं मॉम , वो.... मैं.... बस.... वो.... " हर्षवर्धन हकलाने लगा तो दीया जी ने प्यार से उसके सिर पार हाथ फेरते हुए कहा " तुम्हें कुछ छिपाने की जरूरत नहीं हर्ष, हम दोनों को ही त्रिधा पसंद है बस अपनी पढ़ाई करो अच्छे से बाकी तुम्हारे डैड सब संभाल लेंगे " कहकर वे वापस चली गईं और हर्षवर्धन एक बार फिर अपनी बनाई पेंटिंग में खो गया।

क्रमशः
© आयुषी सिंह