TRIDHA - 4 in Hindi Fiction Stories by आयुषी सिंह books and stories PDF | त्रिधा - 4

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त्रिधा - 4

अगले दिन रविवार था और प्रभात सुबह से माया के फोन पर फोन कर कर के त्रिधा से मॉल जाने के लिए ज़िद कर रहा था और त्रिधा की समझ से बाहर था कि आखिर प्रभात को अचानक हुआ क्या है इतने महीनों में तो कभी भी कॉलेज के अलावा कहीं जाने के लिए, मिलने के लिए ज़िद नहीं की फिर अचानक क्या हुआ। त्रिधा अभी सोच ही रही थी कि दोबारा फोन बजने लगा और माया उसके सामने आकर खड़ी हो गई और मुंह टेढ़ा करते हुए बोली " उसका इश्क़ चाय सा और तुम डायबिटीज की मरीज़ सी " त्रिधा मुंह खोले माया को देखती रह गई, वह अक्सर ही ऐसी बेतुकी बातें करने लगती थी।

" माया, प्रभात मुझसे कोई इश्क़ नहीं करता वो बस मेरा दोस्त है जैसे तुम और संध्या हो " त्रिधा ने सामान्य रूप से कहा।

" सॉरी यार वो क्या है न अक्सर ही लोग ब्वॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड को दोस्त बोलते हैं तो मुझे लगा तुम भी ऐसे ही बोल रही हो " माया ने मासूम सा चेहरा बनाते हुए कहा।

" जब मुझे प्यार होगा न माया तो मुझे उसे किसी से छुपाने की जरूरत नहीं पड़ेगी " त्रिधा ने कहीं खोते हुए कहा।

" कैसा लड़का चाहिए तुम्हें त्रिधू? " संध्या ने हॉस्टल के कमरे में अंदर आते हुए पूछा।

" संध्या तुम.... यहां.... कैसे ? " कहते हुए त्रिधा संध्या के गले लग गई और ज़ोर से उसके दोनों गाल खींच दिए।

" मुझे लगा हमारी दोस्ती को इतना टाइम हो गया है तो क्यों न क्वालिटी टाइम स्पेंड करें, हैंगआउट करें तो बस आ गई " संध्या ने चहकते हुए कहा।

" बहुत अच्छा आइडिया है... मॉल चलें क्या? " त्रिधा ने पूछा।

" अरे तुम पूछा मत करो त्रिधू बस हुकुम करो तुम तो मेरी प्यारी त्रिधू " संध्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

" ठीक है मैं आती हूं " कहकर त्रिधा तैयार होने लगी।

" तुम भी चलो न माया " संध्या ने कहा।

" नहीं संध्या मुझे एक इंपॉर्टेंट कॉल लेना है तुम एन्जॉय करो " माया ने भी सहजता से कहा।

" ठीक है, टेक केयर " संध्या ने कहा और त्रिधा को अपने साथ लेकर मॉल चली गई।

जब त्रिधा और संध्या मॉल पहुंचे तो देखा प्रभात वहां पहले से ही मौजूद था। उसे देखते ही संध्या खीझ गई और त्रिधा से बोली " यह यहां क्या कर रहा है? आज सिर्फ हम दोनों का दिन था, इसकी तो आदत है हमेशा हम दोनों के बीच आने की और त्रिधु यह इतना सजकर क्यों आया है? "

" वो मैं कैसे बताऊं... चलो चलकर देखते हैं " त्रिधा ने मासूमियत से कहा और फिर दोनों आगे बढ़ गईं।

बहुत देर तक संध्या अपने लिए कुछ न कुछ खरीदती रही जिस बीच त्रिधा और प्रभात चुपचाप बस उसके साथ चल रहे थे। जब संध्या अपने लिए कपड़े ट्राय करने लगी तब त्रिधा ने प्रभात से पूछा " तुमने ऐसे मॉल क्यों बुलाया? इतना ही इंपॉर्टेंट था तो घर भी तो बुला सकते थे और इतना सज धज कर क्यों आए हो.... मेरे मैसेज की वजह से? " त्रिधा एकसाथ इतने सवाल पूछ बैठी कि प्रभात को समझ ही नहीं आया कि पहले किस सवाल का जवाब देना है।

" हां तुमने बताया न कि संध्या भी आ रही है तो हो गया तैयार " प्रभात ने रूखेपन के साथ कहा।

" आज तुम ऐसे रूडली बात क्यों कर रहे हो प्रभात? " त्रिधा ने पूछा।

" जब तुम मेरे घर आईं थीं तुम्हें उसी दिन से पता था न कि मैं संध्या से प्यार करता हूं लेकिन फिर भी तुमने न कुछ पूछा न कुछ कोशिश की मेरे लिए यह कैसी दोस्ती है तुम्हारी? और कुछ करना न करना तो बाद की बात है तुमने तो एक दोस्त के हक से कुछ पूछा भी नहीं " प्रभात ने त्रिधा पर चिल्लाते हुए कहा।

" ऐसे मत कहो प्रभात... मैं पूछना चाहती थी पर मुझे लगा कि अगर तुम मुझे बताना चाहते तो खुद ही बता देते , शायद तुम बताना नहीं चाहते यही सोचकर मैंने कुछ नहीं पूछा... आय'म सॉरी प्रभात " त्रिधा ने धीमी आवाज़ में कहा जैसे बस रो ही देगी।

" वाह त्रिधा मुझे बताना चाहिए था... एक दोस्त के नाते हक था तुम्हारा और फ़र्ज़ भी पर तुमने तो अपना हक लिया ही नहीं, मुझे दोस्त माना ही नहीं बल्कि तुम तो.... " प्रभात अपनी पूरी बात कह पाता इससे पहले ही त्रिधा के रोने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी। एक पल के लिए वह सन्न रह गया कि यह उसने क्या कर दिया। त्रिधा अब भी सॉरी सॉरी बोल रही थी, अगले ही पल उसने त्रिधा के आंसू पोंछे और उसे चुप करवाया और कहा " माफी तो मुझे मांगनी चाहिए... आय'म सॉरी त्रिधा , दरअसल मैं संध्या और अपने बारे में सोच सोचकर इतना परेशान था कि सारा फ्रस्ट्रेशन तुम पर निकल गया और तुम गलत नहीं हो, आय अंडरस्टैंड तुम अब किसी को परेशान नहीं करना चाहती, और मुझे और संध्या को कभी खोना नहीं चाहती इसीलिए ऐसे रिज़र्व रहती हो लेकिन ट्रस्ट मी, हम दोनों हमेशा तुम्हारे ऐसे ही पक्के वाले दोस्त रहेंगे चाहे जो हो जाए " कहकर प्रभात ने त्रिधा के सिर पर हाथ फेरते हुए उसका रोना बन्द करवा दिया।

" थैंक्स... समझने के लिए " त्रिधा ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा।

" कोई थैंक्स नहीं गलती भी तो मेरी ही थी, यार त्रिधा कुछ करो न, मेरी हेल्प करो... देखो यू नो आइ लाइक संध्या और वो हम दोनों के साथ रहती है लेकिन तुम्हें बहुत मानती है, कुछ ऐसा करो न कि वो मुझे ना नहीं कहे, मान जाए प्लीज़ उसे मना लो, वो तो बुद्धू है मुझसे ऐसे चिढ़ती है पता नहीं प्यार करती भी होगी या नहीं " प्रभात ने कहा।

" इतना प्लीज़ नहीं भी कहते तब भी मैं तुम दोनों के लिए सबकुछ कर सकती हूं " त्रिधा ने मुस्कुराते हुए कहा। इससे आगे दोनों कुछ और बात करते संध्या आ गई और एक नज़र उन दोनों को देखकर त्रिधा से कहने लगी " यह पक्का मेरे मर्डर की प्लैनिंग कर रहा होगा "

" संध्या, प्रभात तुम्हारे मर्डर की प्लैनिंग क्यों करेगा वो तो तुम्हें... आह... " त्रिधा बस सबकुछ कहने ही वाली थी कि तभी प्रभात ने उसके सिर पर ज़ोर से थप्पड़ मार दिया और उसकी चीख निकल गई जिससे संध्या पूरी बात नहीं सुन सकी लेकिन शक की निगाहों से प्रभात को देखने लगी और बोली " क्यों मारा इसे? "

" उसने मेरी वॉच गिरा दी " यह कहते हुए प्रभात ने खुद ही अपनी घड़ी गिरा दी जिसे संध्या देख नहीं पाई।

" तुम दोनों अजीब हो " संध्या ने अपना सिर झटकते हुए कहा।

" तुमसे कम " त्रिधा ने अपना सिर सहलाते हुए कहा और घूरकर प्रभात को देखने लगी जिसपर प्रभात ने उसके आगे हाथ जोड़ लिए।

ऐसे ही एक दूसरे की बेइज्जती करते हुए, मज़ाक उड़ाते हुए तीनों बाहर निकल रहे थे और संध्या के कुछ बोलने पर त्रिधा सामने न देखकर उसकी तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगी कि तभी किसी से टकरा गई और तभी बैक्राउंड में गाना शुरू हो गया " तुझमें रब दिखता है यारा मैं क्या करूं... सजदे सर झुकता है यारा मैं क्या करूं... " यह संध्या के फोन की रिंगटोन थी जो जब बन्द हुई तब त्रिधा ने सिर उठाकर देखा तो पाया यह हर्षवर्धन था जिससे वह टकराई थी। वह अब भी सारी दुनिया से बेखबर बस उसे ही देख रहा था और त्रिधा भी उसके इतने पास थी पर बिल्कुल असहज नहीं थी जैसे उसे सालों से जानती हो, जैसे वह उसका कोई अपना ही हो। हर्षवर्धन और त्रिधा, दोनों एक दूसरे को ही देख रहे थे वहीं प्रभात और संध्या मुंह खोले , आश्चर्य से दोनों को देख रहे थे, उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जो वे देख रहे हैं वह सच है, कभी संध्या और प्रभात एक दूसरे को देखते तो कभी एक दूसरे में खोए हुए त्रिधा और हर्षवर्धन को। त्रिधा एकदम हर्षवर्धन से दूर हो गई और सकपका कर संध्या के पास चली गई इधर हर्षवर्धन भी सकपका गया और दूसरी तरफ चला गया। अभी तक त्रिधा सोच रही थी कि वह संध्या का नाम लेकर प्रभात को डराएगी और खुद मज़े लेगी पर अब उल्टा था, अब वह खुद प्रभात से डर रही थी साथ ही उसे संध्या के सवालों का भी डर था इसलिए वह चुपचाप उनके साथ मॉल से बाहर निकल अाई और चुपचाप ही आगे चलती रही वहीं प्रभात और संध्या दोनों ही उसे देख रहे थे और वह नज़रें झुकाए आगे चलती जा रही थी। बहुत देर तक यही सिलसिला जारी रहा, प्रभात और संध्या, त्रिधा को घूरते हुए चल रहे थे और त्रिधा जमीन पर नज़रें गड़ाए हुए चल रही थी।

" क्या है? " आखिर त्रिधा ने पूछ ही लिया।

" यह तो तुम्हें हमें बताना चाहिए कि आखिर है क्या? " संध्या ने त्रिधा का कान खींचते हुए कहा तो त्रिधा ने सकपकाहट में संध्या के गाल पर थप्पड़ जोरदार मार दिया, संध्या का मुंह खुला का खुला ही रह गया, उसे तो उम्मीद ही नहीं थी कि त्रिधा ऐसा कुछ करेगी। प्रभात संध्या का खुला हुआ मुंह देखकर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और त्रिधा सकपकाए जा रही थी अंततः उसने खुद पर काबू किया और कहा " तुमसे यही उम्मीद थी संध्या तुम्हें तो हर बात में मज़ाक नजर आता है, एक तो मैं तुम्हारी वजह से किसी अनजान लड़के से टकरा गई ऊपर से तुम मुझसे पूछ रही हो कि क्या है "

" हां पूछ रही हूं..... आखिर बात क्या है? जब तुम उस लड़के को जानती नहीं तो तुम उस अनजान लड़के से टकराईं सो टकराईं और फिर उसकी आंखों में भी खो गईं? " संध्या ने एक भौंह ऊपर करते हुए पूछा।

" यार बस कोइंसिडेंस था और क्या होगा मैं तो उसे जानती भी नहीं " त्रिधा ने कहा।

" हमारे कॉलेज में है, हमारी क्लास में आता है, हमारे साथ पढ़ता है, उस दिन कैंटीन में भी था और तुम कहती हो कि इतने महीनों बाद भी तुम उसे जानती नहीं " संध्या ने खीझते हुए कहा।

" ट्रस्ट मी संध्या जब भी मेरी ज़िन्दगी में कुछ भी होगा चाहे अच्छा या बुरा, मैं सबसे पहले तुम दोनों को ही बताऊंगी " त्रिधा ने दोनों को देखते हुए कहा।

" ओके... संध्या तुम जाओ, त्रिधा को मैं छोड़ दूंगा " प्रभात ने संध्या से कहा।

" ओके बाय त्रिधु, बाय प्रभात " कहकर संध्या चली गई।

" उसने मुझसे बाय कहा " प्रभात बुदबुदाता जिसे त्रिधा नहीं सुन पाई और चुपचाप चलती रही।



उधर हर्षवर्धन मॉल में आगे जा ही रहा था कि तभी अपने सामने देखकर चौंक गया और एकटक वहीं देखता रहा। कुछ देर बाद खुद ही बोला " यह सब क्या है वर्षा और तुम यहां क्या कर रही हो? "

" देखो यह है एसिड जो अब उस गंवार के चेहरे पर गिरेगा जिसके लिए तुमने मुझे सबके सामने इंसल्ट किया " वर्षा ने अपने हाथ में पकड़ी एक शीशी दिखाते हुए हर्षवर्धन से कहा।

" बकवास बन्द करो और जाओ यहां से, मैं तुमसे और तुम्हारी इन धमकियों से डरता नहीं हूं, रही बात त्रिधा की... तो उसके लिए बहुत लोग हैं, तुम चाहे जो कर लो उसका बुरा नहीं कर सकतीं और न ही मैं तुम्हें ऐसा कुछ करने दूंगा " बातों बातों में हर्षवर्धन वर्षा के एकदम नजदीक आ गया जिससे उसका ध्यान भटक गया और ठीक उसी वक़्त हर्षवर्धन ने एसिड की शीशी उसके हाथ से ली और उसे ( वर्षा ) लेकर मॉल से बाहर निकल आया और अपनी कार में लेकर एक सुनसान जगह पहुंच गया।

हर्षवर्धन ने वर्षा से छीनी हुई एसिड की शीशी उठाई और उसके हैंडबैग पर उड़ेल दी, वह देखती ही रह गई और कुछ बोल न सकी।

" अगली बार ऐसी कोई हरकत करने से पहले सोच लेना जो एसिड अभी हैंडबैग पर गिराया है अगली बार हैंडबैग से बैग शब्द हट जाएगा और तुम जानती हो मैं ऐसा कर सकता हूं और मेरा कुछ बिगड़ेगा भी नहीं.... मेरी त्रिधा से दूर रहना " हर्षवर्धन ने इतना कहा और वर्षा को वहीं छोड़कर चला गया।

उधर त्रिधा अपने हॉस्टल पहुंची और अपने आज के दिन के बारे में सोचने लगी। पहले संध्या का उसे खुद पर ऑर्डर चलाने का अधिकार देना और फिर बक बक करना, प्रभात का डांटना और फिर चुप कराना फिर हर्षवर्धन की आंखों में उसका खो जाना.... सब कुछ एक फिल्म की तरह उसकी आंखों के आगे घूमने लगा और एक बार फिर उसकी भावनाओं के अनुरूप ही माया ने गाना चला दिया -
ऐ यार सुन यारी तेरी मुझे ज़िन्दगी से भी प्यारी है...
ऐ यार सुन यारी तेरी मुझे ज़िन्दगी से भी प्यारी है...
जवाब इच नहीं हमारा कही बड़ी खूब जोड़ी हमारी है...
ऐ यार सुन यारी तेरी मुझे ज़िन्दगी से भी प्यारी है...
तभी त्रिधा को याद आया कि वह अपने लिए एक फोन भी खरीद कर लाई है तो उसने फटाफट फोन निकाला और संध्या से बातें करने के बारे में सोच ही रही थी कि तभी माया कुछ उदास सी होकर उसके पास बैठ गई।

" क्या हुआ माया , उदास क्यों हो ? " त्रिधा ने पूछा। यूं तो उसे माया से कुछ खास लगाव नहीं हो पाया था लेकिन वह माया की भावनाओ को कद्र करती थी कि वह उसे अपनी दोस्त मानती है इसीलिए वह भी अपनी तरफ से अपनी और माया की दोस्ती अच्छी बनाने के लिए कोशिश करती थी।

" कुछ नहीं त्रिधा " माया ने फीकी सी मुस्कुराहट के साथ कहा।

" अपनी दोस्त को भी नहीं बताओगी ? " त्रिधा ने कहा। त्रिधा के मुंह से अपने लिए दोस्त सुनकर शायद माया को कुछ अपनापन महसूस हुआ और वह उसके गले लग गई। बहुत देर तक वह यूं ही उसके गले लगी रही कुछ नहीं बोली, त्रिधा भी समझ रही थी कि इस वक़्त बातों से ज्यादा माया को भावनात्मक सहारे की जरूरत है ठीक उसी तरह, जिस तरह प्रभात और संध्या उसका सहारा बने थे जब वह छह महीने पहले भोपाल में अकेली अाई थी। आज त्रिधा माया के सिर पर हाथ फेर रही थी ठीक वैसे ही जैसे प्रभात उसके सिर पर हाथ फेरता था, उसे हिम्मत देता था। कुछ देर बाद माया थोड़ी संभली और फिर त्रिधा के सामने बैठकर कहने लगी -

" तुमने देखा है न त्रिधा मैं हमेशा हंसती रहती हूं, सबको हंसाती रहती हूं लेकिन मेरे साथ इतना बुरा होगा, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। तुमने देखा होगा मुझे अक्सर फोन पर बातें करते हुए, मैं राजीव से बातें करती थी... राजीव मेरा ब्वॉयफ्रेंड है। हम दोनों एक साथ ही स्कूल में पढ़ते थे और तीन साल से रिलेशनशिप में हैं। यहां एडमिशन भी मैंने उसकी वजह से ही लिया था। मैं तो एक संपन्न परिवार से हूं और मुझे किसी चीज की कमी नहीं है सिवाय आज़ादी के, हमारे घर में सभी बहुत पुराने खयालात के हैं। राजीव पढ़ने में बहुत होशियार है लेकिन उसके घर की स्थिति ऐसी नहीं की वह इतने बड़े कॉलेज में पढ़ सके इसलिए उसका एडमिशन इस कॉलेज में नहीं हो सका और वह दूसरे कॉलेज में है। लेकिन वह भोपाल में ही है मुझे तो बस इसी बात का सुकून था, वीकेंड्स पर हम मिल भी लेते थे लेकिन यहां आने के बाद से ही वह कुछ बदल सा गया था पर मैंने नजरंदाज कर दिया यह सोचकर कि उसे थोड़ा स्पेस चाहिए होगा। अब वो मुझसे बातें तो करता लेकिन उनमें प्यार कम और मेरी अवहेलना ज्यादा होती, मैंने फिर भी नजरंदाज किया और हमेशा उससे अच्छे से ही बात की यह सोचकर कि शायद पढ़ाई का प्रेशर होगा और घर से दूर होने पर घरवालों की चिंता होती होगी। कुछ वक़्त तक सब कुछ ऐसे ही चलता रहा और अब वह मुझसे वीकेंड्स पर भी कम ही मिलता। आज जब तुम संध्या के साथ मॉल गई थी तब संध्या ने मुझसे चलने के लिए कहा था पर मैं राजीव से बात करने के लिए यहीं रुक गई थी। उसका फोन आया और उसने मुझे मिलने के लिए बुला लिया। यह सुनकर मैं बहुत खुश हो गई। मुझे लगा था शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह मुझसे मिलना चाहता है, मुझे नजरंदाज करने के लिए माफी मांगना चाहता है, यही सोचकर मैं उससे मिलने चली गई लेकिन वहां जाकर तो मेरे पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई " इतना कहकर माया रोने लगी।

" ऐसा भी क्या हो गया माया ? " त्रिधा ने आश्चर्य से पूछा।


क्रमशः
© आयुषी सिंह