The Author Neerja Pandey Follow Current Read पिशाच..! - 4 - कुएं की आत्मा️..।। By Neerja Pandey Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21 સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ... ખજાનો - 85 પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ... ભાગવત રહસ્ય - 118 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮ શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ... ગામડા નો શિયાળો કેમ છો મિત્રો મજા માં ને , હું લય ને આવી છું નવી વાર્તા કે ગ... પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 9 અહી અરવિંદ ભાઈ અને પ્રિન્સિપાલ સર પોતાની વાતો કરી રહ્યા .અવન... 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अब पता नहीं ये कुएं की आत्मा कैसी होगी?" यही सब सोचते सोचते पता नही कब उसकी नींद लग गई। वो जब सुबह उठी तो उसे कल रात की घटना एक सपने जैसी लगने लगी लेकिन जब उसकी नजर उस किताब पर पड़ी तो उसे हकीकत का अहसास हुआ। वो तुरंत उठकर अपनी तैयारी करने में जुट गई। उसके बाद उसने अलवर से लक्ष्मणगढ़ के लिए एक कार बुक की और अपने घरेलू पंडित को लेकर वहां के लिए रवाना हो गई। निकलते समय सुनीता ने पूछा की कहां जा रही हो तो भैरवी ने कहा की ऐसे ही मन बहलाने के लिए कहीं घूमने जा रही हूं। उसने सोचा की अभी सुनीता को परेशान करना ठीक नहीं होगा क्योंकि उसके बेटे की तबियत खराब है। लक्ष्मणगढ़ पहुंच कर उसने लोगों से पूछ कर उस कुएं तक पहुंच गई जहां पर विनोद की आत्मा भटक रही थी। सब लोगों ने उसे उस कुएं से दूर रहने की चेतावनी दी। कुएं पर पहुंचते ही पंडित जी ने पूजा की तैयारी शुरू कर दी। पूजा आरंभ होते ही कुएं से अजीब अजीब सी आवाजें आनी लगीं लेकिन पंडित जी पूजा करते गए। कुछ समय बाद कुएं से काली आकृतियां निकलने लगीं। यह सब देखकर भैरवी बुरी तरह दर गई थी। विनोद की आत्मा चिल्ला रही थी "मैं तुम लोगों को नही छोडूंगा। मेरी आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलेगी जब तक मैं उस अभिजीत घोष से अपनी मौत का बदला नहीं ले लूंगा मुझे शांति नहीं मिलेगी।" भैरवी ने कहा "उन्हें तुम्हारी मौत का बहुत पछतावा था।"विनोद ने कहा "मैं ये बात तब तक नहीं मानूंगा जब तक वो खुद नही कह देता।"अब तक भैरवी के पर्स में जहां डायरी रखी थी वहां कम्पन हो रहा था। भैरवी ने कहा "लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। वो अब मर चुके हैं।"विनोद की आवाज जो अब तक बहुत ही कर्कश थी थोड़ी मंद सी हो गई "क्या कहा? अभिजीत मार चुका है? ये कब हुआ?"अब तक वो डायरी जिसमें बहुत तेज कम्पन हो रहा था, एकदम से शांत हो गई और उसके पर्स में से बहुत तेज रोशनी निकलने लगी।भैरवी ने डर के मारे अपना पर्स फेंक दिया जिसमें से शापित किताब गिर गई और भैरवी ने देखा की रोशनी उस किताब से आ रही थी। उस किताब की रोशनी एक आकार लेने लगी और थोड़ी देर बाद वो रोशनी घोष अंकल के आकार में आ गई। उनके चेहरे पर अजीब सा पछतावा था।अब भैरवी के समझ में सारी बात आई। घोष अंकल ने उसके बिस्तर के नीचे उल्टा पैर नही ये किताब रखी थी और अभिजीत जरूर घोष अंकल का ही नाम होगा। उसे उनका पूरा नाम नही पता था। वो बस उन्हें घोष अंकल ही बुलाती थी।घोष अंकल को देखकर काली आकृति भी एक बूढ़े आदमी का आकार लेने लगी। घोष ने विनोद को देखकर कहा "विनोद अब तो मैं यहां आ गया हूं अब तो तुम मुझे माफ कर दोगे।"विनोद ने कहा "तुम मुझे बचा सकते थे। मैं इस इंतजार में घंटों बैठा रहा की तुम किसी को लेकर आओगे लेकिन तुम नहीं आए। मैंने माना की तुमने मुझे गलती से गिरा दिया था लेकिन तुमने मुझे बचाने की कोशिश काहे नहीं की?"घोष ने कहा "मुझे डर था कि तुम सबसे मेरी शिकायत कर दोगे और मुझे बहुत मार पड़ेगी और मुझे ये भी लगा की इतनी ऊंचाई से गिरकर तुम्हारी मृत्यु हो गई होगी। प्लीज मुझे माफ कर दो।" घोष अंकल की आवाज में पछतावा साफ सुना जा सकता था।शायद यही पछतावा विनोद ने भी सुन लिया क्योंकि उसने मुस्कुराते हुए कहा "चलो अब किया भी क्या जा सकता है? मैंने तुम्हें माफ किया।"अब तक उनकी बातों के बीच पंडित जी शांति से अपने मंत्र पढ़े जा रहे थे। उन्होंने खूब तेज आवाज में "स्वाहा" कह कर हवन में आहुति दी और घोष और विनोद दोनो खूब तेज रोशनी में समा कर हमेशा के लिए गायब हो गए। ‹ Previous Chapterपिशाच..! - 3 - शापित किताब › Next Chapter पिशाच..! - 5 - जोंबी का रहस्य.. 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