main to odh chunriya -15 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 15

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मैं तो ओढ चुनरिया - 15

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय पन्द्रह

नियत समय पर सबने मिलकर बेबे को नहलाया । नये भगवा रंग के कपङे पहनाये , उन्हें पालथी मार कर बैठाया और उन्हे कहीं ले गये । मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नानी कहीं चली गयी है तो ये सब इतना रो क्यों रहे हैं । जब उनका मन करेगा , वे लौट आयेंगी जैसे हम फरीदकोट जाते हैं फिर वापिस आ जाते हैं वैसे ही । फिर धीरे धीरे समझ आई कि बेबे अब नहीं आयेगी । वह भगवान के पास चली गयी है । ऊपर आसमान में । मैं कई दिन तक आसमान को देखती रही थी कि कोई सीढी दिखे और नहीं मिलती थी तो उधास होने के साथ साथ परेशान हो जाती । आखिर नानी बेबे ऊपर गयी तो गयी कहाँ से । मौत से यह मेरा पहला आमना सामना था । माँ बिल्कुल उदास हो गयी थी । पूरा दिन या तो गुमसुम बैठी रहती या रोती रहती । अब वह मुझे कहानी भी नहीं सुनाती थी । एक महीना ऐसे ही बीता फिर जिंदगी अपनी रफ्तार पकङने लगी । माँ अब बेबे के हंदे रोज लाने लग पङी थी । एक आसान सा रास्ता पैसे कमाने का और पैसे बचाने का । हंदों की बदौलत अब घर में खाने की कोई कमी नहीं रही थी । माँ भी अब बातचीत करने लगी थी । एक रोज मैंने रात को सोने से पहले माँ से कहा कि मुझे नानी बेबे की कहानी सुननी है ।
मुझे लगा था – माँ सुनते ही मेरे एक दो चांटे तो लगा ही देगी या रोना शुरु कर देगी पर मेरी सोच के विपरीत माँ ने कहानी सुनानी शुरु कर दी – सुन सुनेगी तो । नानी बेबे को उनके माँ बाप ने उनके जन्म से पहले ही बाबा इच्छागिर के डेरे में भेंट चढा दिया था । जब वे पैदा हुई तो माँ बाप अपने कौल के अनुसार उन्हें डेरे में ले आए । बाबा दरियागिर ने उन्हें दस साल की मोहलत दी तो वे बेबे को वापिस ले गये । जब बेबे दस साल की हुई तो उन्हें दोबारा डेरे में ले आये । बाबा ने अपने चेले कुंदन के साथ मंगला की शादी कर दी और माई मंगला कुंदन नाना के साथ डेरे में रहने लगी । वहीं उसकी एक बेटी पैदा हुई और दूसरी की बारी में उन्हें जबरदस्ती रिश्ते के भाई के घर भेजा गया जहाँ तेरी नानी का जन्म हुआ । अभी तेरी नानी एक महीने की हुई थी कि एक दिन कुंदन डेरे के काम से उकाहङा मंडी गया तो वापसी पर बीबी बच्चों से मिलने सतघरे रुक गया । रात में वहाँ कुंदन को साँप ने काट लिया और वह मर गया । बेबे उसकी मौत के लिए खुद को कभी माफ नहीं कर पाई । उसने अपने लंबे बाल कटवा दिये । नया कपङा सारी जिंदगी नहीं पहना । सारी जिदगी चारपाई पर नहीं सोई । एक वक्त खाना खाया । सारी जिंदगी साधु संन्यासियों की जिंदगी जी । दोनों बेटियों की शादी एक ही घर में कर दी और सारा रुपया पैसा जमान जायदाद बङी बेटी और दामाद को सोंप दिया । खुद मांग कर गुजारा किया ।
मैं हैरान परेशान सोचती रही कि बेबे ने सारी जिंदगी इतनी तपस्या करके बिताई । मुझे भी सारी जिंदगी ऐसी ही तपस्या करनी है ।
मेरे पङोस में सब बच्चे पाठशाला जाते थे । वे सब सुबह जाते और शाम के वक्त वापिस आते । आकर अपनी कक्षा के मजेदार किस्से सुनाया करते । एक दिन मैंने उनसे कहा कि मुझे भी उनके साथ पाठशाला जाना है । कौशल्या और सीता दीदी ने कहा - ठीक है , हम लोग साढे आठ बजे पाठशाला जाते हैं । तुम तैयार रहना । तुम्हे भी ले जाएंगे ।
मैं खुश हो गयी – मैं तो रोज सुबह उठते ही नहा लेती हूँ ।
अगले दिन सुबह माँ ने खुद नहाने से पहले मुझे नहलाया । मेरे बाल सँवारे । पिताजी तैयार होकर रोटी खाने बैठे तो मैं भी उनके साथ बैठ गयी । मैंने एक परांठा खाया । पिताजी काम पर जाने के लिए निकले तो मैं भी उनके साथ बाहर आ गयी । जैसे ही पिताजी गली के मोङ तक गये , कौसल्या और सीता दीदी अपना बस्ता सँभालती हुई आ गयी । मैं दौङ कर उनके पास गयी – जीजी जीजी , देखो मैं तैयार हूँ । मैंने नहा लिया और खाना भी खा लिया । जीजी के साथ तब तक और बच्चे भी आ गये थे । हम सब पाठशाला चले । पाठशाला एक गली छोङ कर ही बनी थी । उसमें बङा सा इमली और एक गूलर का पेङ था । आँगन में जगह जगह गूलर के फल बिखरे पङे थे । सब बच्चों ने पहले झाङू लगाई । फिर पेङ के नीचे ,टाट पट्टी बिछाई । तब तक एक रोबदार महिला आई । बच्चे दौङकर उनके लिए कुर्सी ले आये और वे कुर्सी पर बैठकर हाजिरी लेने लगी । वे एक एक बच्चे का नाम बोलती जाती । जवाब में बच्चे कहते हाजिरजी । जैसे ही सीता दीदी ने कहा हाजिरजी । उन्होंने मुझे देखा । मैं सीता दीदी से बिल्कुल चिपकी खङी थी ।
यहाँ आओ ।
मैं डरकर सीता दीदी से और चिपक गयी । उन्होंने फिर कहा – यहाँ आओ ।
मेरा डर से बुरा हाल हो गया । दीदी मुझे लगभग घसीटते हुए बहनजी के पास ले गयी । बहनजी ये पहली बार पाठशाला आई है ।
कोई बात नहीं । क्या नाम है तुम्हारा बेटी उन्होंने बङे प्यार से पूछा ।
मेरा नाम --- एक मिनट में ही मेरे जहन में पहले के सुने हुए सारे नाम घूम गये ।
जी मेरा नाम कमलेश रानी है ।
कौशल्या ने प्रतिवाद किया – नहीं बहनजी इसका नाम रानी है ।
नहीं मेरा नाम कमलेश रानी है ।
ठीक है . अपने पिताजी का और माताजी का नाम बताओ ।
मैने उनका नाम ठीक ठीक बता दिया ।
बहनजी ने मेरा नाम एक रजिस्टर में लिखा और अंदाज से उम्र लिखी सवा पाँच साल ।
और कहा कि कल से एक स्लेट , स्लेटी और एक तख्ती लेकर आनी है । साथ ही फीस के दस पैसे भी ले आना ।
मैं खुश थी । सारे बच्चों के साथ रहने को मिलनेवाला था । अबसे मैं भी रोज पढने आया करुँगी ।
उधर माँ सुबह से ही मुझे ढूँढने लगी थी । अंदर बाहर ऊपर नीचे सब जगह कई कई बार देख लिया तो बुरी तरह घबरा गयी । गली में पास पङोस में सब जगह पूछा पर मेरा कहीं पता ही नहीं था । गली के मोङ पर एक राशन की दुकान थी राम भजनदास की । उसने बदहवास सब लोगों को इधर उधर घूमते देखा तो पूछा – क्या हुआ भई
एक बच्ची है चार साल की । हल्की नीली फूलों वाली फ्राक पहनी है । तुमने देखी क्या
ऐसी बच्ची सुबह बच्चों के साथ आई थी सलेटी लेने बच्चे आय़े थे तब । उसके बाद सारे बच्चे पाठशाला चले गये ।
बहुत बहुत शुक्रिया भाई
सारे लोग पाठशाला चल पङे । वहाँ बच्चों के साथ मुझे बैठा देखा तो सबकी जान में जान आ गयी । सब मुझे गोद में ले वापिस लाना चाहते थे पर मैं तो यहाँ बच्चों के साथ खुश थी मैंने साथ जाने से इंकार कर दिया ।
इस बीच पिताजी को किसी ने दुकान पर खबर कर दी थी , वे दौङे चले आये । इधर से ये लोग घर पहुँचे , उधर से पिताजी । माँ और पिताजी ने पताशे खरीदे और पाठशाला आकर सारे बच्चों को पताशे खिलाए । बहनजी ने बताया कि उन्होंने मेरा नाम दाखिल कर लिया है तो माँ की हैरानी देखने लायक थी । अभी से अभी तो चार साल की हुई है । बहुत छोटी है । ऊपर से बहनजी ने जब बताया कि इसका नाम कमलेशरानी बताया है तो वही लिखा है ।
माँ ने मेरी ओर देखा था – ये कमलेश रानी नाम कहाँ से सुना तूने । हमारे तो आस पास कोई नहीं इस नाम का । खैर उस दिन में माँ की गोद में सवार हो लौट आई थी । पर मेरा पहला स्कूल वहीं पाठशाला थी जहाँ मुस्लिम लङकियों को उर्दू और हिंदु लङकियों को हिन्दी सिखाई जाती थी । अगले दिन से मैंने नियमित पाठशाला जाना शुरु कर दिया था ।

बाकी कहानी अगली कङी में ...