Fell out of home fell in love - 2 in Hindi Adventure Stories by Dear Zindagi 2 books and stories PDF | घर से निकाल गया प्यार में गिर गया - 2

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घर से निकाल गया प्यार में गिर गया - 2



एक घंटे बाद वो आ रही थी अपने दोस्तों के साथ। मे उसे देखता ही रह गया। उसके चहरे पर इतनी चमक थी की मे कुछ बोल भी ना पाया।

वो मेरे सामने से ही गुजरी और आगे जाकर अपनी सहेलियों के साथ बेठी हुई थी। में बस उसे देख ही रहा था।

जिंदगी में इतनी खुशी कभी नही मिलीं थीं,,,

वो भी अपना टाईम हुआ और चली गई। मेरा दोस्त थोड़ी देर बाहर आ गया। मने फिर आज उसको बोला मुझे एक लड़की पसंद हैं। और तब मेंरे दोस्त मुझ पर चिल्ला ने लगा। और लड़कियों से दूर रहने की सलाह देने लगा। फिर में भी गुस्सा करने लगा। तो वो कुछ नहीं बोला। मे ने उससे फिर बात ही नही की।

मे फिर घर पे चला गया, वो भी अपने काम पर चला गया , रात को वो आया तब तक मे सो चुका था।

सुबह हु
[06/04, 4:25 pm] Rohin: आख़िर हम लोग वहा से चलने लगें। मेरा दोस्त अपने काम पे चला गया। इस ओर मे भी काम ढूँढने निकल गया। मे जगा जगा काम के लिए घूमने लगा, फिर भी मुझे काम नही मिला, मे थक-हार के साम को घर चला गया।

में घर जाकर नहा-धोकर मे फिर खाना पका ने लगा। तब तक मेरा दोस्त काम से घर आ गया। मेरे दोस्त ने पुछा, " काम मिला?"

मे बोला, " नही मिला ।"

दोस्त बोला, " ठीक हैं, अब काम ढूंढ ने के लिए सुबह जल्दी नीकल जाना। "

मे बोला, " ठीक हैं। "

में सुबह उठकर काम ढूंढ ने चला गया , मे काम ढूंढ रह था, लेकिन काम नही मिला, धीरे-धीरे समय बढ़ता ही गया और काम मिला ही नही।

अब मैं परेशान हो गया था, क्युकी मेरे जो पैसा था, वो ख़र्च हो गये, अब मे क्या करू मुझे काम ही मिल नही रहा था।

में सुबह उठ कर फिर काम के लिए गया , मे एक अंकल ने काम दिया, मुझे बोला, "काम करना है , तो पुरी दीन धुप में करना पडेगा। बोलो मंजूर है?" में बोला, " हाँ, ठीक हैं। मुजे मंजूर है।"

में रात को घर गया, मेरे दोस्त से मेने कहा, "मुझे काम मिल गया है। मेरे दोस्त..."

मेरे दोस्तन पूछा, " अच्छा तुम्हे क्या काम करना है?"

मैंने कहा, "मुझे कलर मारना है।"

दोस्तने पूछा, "कोन सी जगा काम करना हैं और क्या काम हैं?"

तब मेरे दोस्त से बोला, " मेरी लाईन हैं, उसी पर काम करना हैं।"

दोस्त बोला, " अच्छा हैं, तुम कुछ सीख जाआगे।"

मेने भी कहा, " हा में अपने वेल्डिंग करने का काम सीख जाऊँगा।"

दोस्त बोला, "ठीक है, चल अब खाना खा के सो जा। कल फज्र पहला दिन है तो जल्दी जाना होगा न काम पे।"

" हाँ यार, चलो।" - मेने भी उसकी बातों को मान लिया।
तब मुझे काम कुछ नही आता था, मुझे बोला तु एक काम करो कलर काम करो ठीक है, धीरे-धीरे मे काम को देखने लगा काम धीरे-धीरे मे सीख ने लगा ,

मुजे काम धीरे-धीरे सब आने लगा। समय बीतता गया और में उस लडकी को भूल सा गया था। अब में अपनी ज़िंदगी मे यू ही उसे भुलाकर आसन सी जिंदगी जीने लगा था। जैसे कोई तकलीफ़ नही, कोई दुःख नही, कोई परेशानी नही, बस एक आज़ाद जिंदगी। जहा में अकेला और खुश। में कब उस लड़कीको भूल गया पता ही नही चला। या यूं कहो कि भुला भी था या नही ये तक मुजे पता नही था। सायद मेरी व्यस्त जिंदगी ने मुजे किसी भ्रम में डाल दिया था। लेकिन सच है कि मुजे अब मेरे काम के अलावा कुछ दिखता ही नही था। या यू कहो तो में अपने काम के अलावा कुछ देखना ही नही चाहता था ।