Karn Pishachini - 3 in Hindi Horror Stories by Rahul Haldhar books and stories PDF | कर्ण पिशाचिनी - 3

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कर्ण पिशाचिनी - 3

भाग - 3


गोपालेश्वर की बात बाद में करते हैं । पहले एक और कहानी को पढ़ लेते हैं ।
वर्धमान का सोनपुर गांव , पिछले कुछ दिनों से यहां पर एक रहस्य की उत्पत्ति हुई है ।
यह माघ महीना ( जनवरी - फ़रवरी ) है । जमींदार हरिश्चंद्र की एकमात्र लड़की दीपिका दोपहर का भोजन समाप्त कर , नौकरानी की लड़की माला को साथ लेकर छत पर धूप सेंकने गई थी । सोनपुर एक समृद्ध व धनी गांव है । जमींदार के पास पैसों का भंडार है । उनका बड़ा सा एक घर , जिसके ऊपर बड़ा सा छत हैं । पश्चिम दिशा वाली छत पर बैठकर 13 साल की दीपिका अपने लंबे बालों को सुखाने में व्यस्त थी । माला उसके पास ही बैठकर सूखे कपड़ों को समेट रही थी । अचानक दीपिका ने देखा पश्चिम की तरफ से एक नारियल का बड़ा पत्ता उड़ता हुआ आ रहा है । तेज हवा भी नहीं चल रहा लेकिन यह पत्ता कैसे उड़ रहा है ? सोचते सोचते ही वह पत्ता दीपिका के हाथों के पास आकर रुक गया । डर से चिल्लाते ही वह पत्ता दीपिका के हाथ को छूकर फिर आगे उड़ गया । यह देख पास बैठी माला भी डर से रोने लगी ।
रोने की आवाज सुनकर घर के लोग जब ऊपर आए तो देखा दीपिका कांप रही है और माला उसे पकड़कर तेजी से चिल्लाकर रो रही थी । बेहोश दीपिका को गोद में उठाकर कमरे में सुलाने के कुछ देर बाद ही उसके अंदर तेज बुखार व कुछ परिवर्तन शुरू हो गया ।
इधर जमींदार घर से दूर माधव के आँगन में एक और घटना घटी । माधव का छोटा लड़का आंगन में बकरी के साथ खेल रहा था । न जाने कहां से एक नारियल का पत्ता आंगन में आकर गिरा । कुछ ही देर में वह बकरी छटपटाते हुए लड़के के गोद में ही मर गई । छोटा लड़का वह दृश्य देखकर ही बेहोश हो गया ।
माधव जमींदार घर का खास नौकर है । वह उस वक्त गायों को चारा डाल रहा था , यह खबर सुन बड़ी मां को बताकर वह जल्दी से अपने घर की तरफ भागा । जमींदार हरिश्चंद्र उस समय घर में नहीं थे । वो किसी काम की वजह से पास वाले गांव में गए थे । घर लौटकर सभी समाचार सुनते ही पहले अपनी लड़की को देखने पहुंचे । शाम का वक्त था , बड़े से कमरे में एक ऊंचे पलंग पर उनकी एकमात्र लड़की दीपिका सो रही थी । कमरे के कोने में रखें टेबल के ऊपर एक लालटेन जल रहा है । इतने बड़े कमरे में रोशनी के मुकाबले अंधेरा ही ज्यादा है ।
उस हल्के अंधेरे में उन्होंने देखा कि कई प्रकार की परछाई दीवारों व छत पर चल रहे हैं , नाच रहे हैं । यह देख जमींदार साहब का कलेजा कांप गया । आखिर यह किस अशुभ घटना का संकेत है ?
दीपिका अभी सो रही है , दवाई के कारण उसकी बुखार भी कम हो गई है । जमींदार हरिश्चंद्र सोचते हुए बाहर आकर बैठ गए । कुछ समय बाद माधव को बुलाकर उसके लड़के का हालचाल पूछा । वैद्य जी ने दीपिका को जाँचकर फिर हरिश्चंद्र से बात करने आए ।
हरिश्चंद्र बोले - " वैद्य जी आपको पता चला कि क्या बात है? "
" नहीं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा । वैसे इस ठंडी में एक बड़ा नारियल का पत्ता कैसे उड़ सकता है ? "
" दीपिका आप कैसी है ? "
" बुखार तो अब नहीं है लेकिन वह काफी डरी हुई है । "
" और माधव का लड़का ? "
" उसका हालत भी एक जैसा ही है शरीर ठीक है लेकिन डर इतनी जल्द मन से नहीं जाता । "
वैद्य जी घर लौट गए ।

दीपिका प्रतिदिन रात को अपनी दादी शारदा देवी के पास सोती है । उस दिन भी उनके पास ही सो रही थी । अचानक रात को शारदा देवी की आंख एक ' खटखट ' की आवाज सुनकर खुल गई । आंख खोलकर देखा तो दीपिका लड़खड़ाते हुए दरवाजा खोलकर बाहर जा रही है । उसकी साड़ी का आँचल फर्श पर गिरा हुआ था । उसके बड़े - बड़े बाल चेहरे के सामने थे तथा दोनों हाथ कंधे के पास नीचे लटक रहे थे ।
शारदा देवी डरते हुए बोली - " बिटिया रानी कहां जा रही हो ? "
मानो दीपिका को कुछ भी सुनाई नहीं दिया । शारदा देवी जल्दी बिस्तर से उठकर दौड़ते हुए दीपिका के पास गईं ।
उसके हाथ को पकड़ कर खींचते ही दीपिका ने मुड़कर देखा । उफ्फ! कितनी भयानक नजर है । शारदा देवी डरते हुए उसके हाथ को छोड़कर पीछे हट गई । 13 साल की लड़की के आंखों में मानो किसी 40 साल के आदमी का भयानक दृष्टि हैं । लाल मणि जैसी आँखे लेकिन दीपिका के आँखों की पुतली का रंग काला है यह शारदा देवी जानती हैं । दीपिका घर से निकलकर आँगन के पास वाले गौशाला में चली गई । चारों तरफ वातावरण में एक सनसनाहट की आवाज सुनाई देने लगी । शारदा देवी चिंता व डर के आतंक से वहीं बेहोश हो गईं ।
सुबह जब माधव काम करने आया तो देखा कि बड़ी मां बाहर बेहोश पड़ी हुई हैं । उसने सभी को बुलाना शुरू कर दिया , आवाज को सुन सभी जल्दी से भाग कर आए । उन्होंने सोचा शायद बाहर जाते वक्त बड़ी मां गिरकर बेहोश हो गईं ।
शारदा देवी को कमरे में ले जाकर चेहरे पर पानी छिट्टा मारते ही उन्होंने अपनी आंखों खोली । आंख खुलते ही उन्होंने पूछा ,
" बिटिया रानी कहां पर है? "
हरिश्चंद्र बोले - " वह तो आपके पास ही सो रही है । मां आपको क्या हुआ था ? "
शारदा देवी ने इसका उत्तर नहीं दिया । मुड़कर देखा तो दीपिका पास ही सो रही थी । इसके बाद उन्होंने कहा ,
" रात को थोड़ा बाहर जाने के लिए उठा था , तभी चक्कर आने के कारण मैं वहीं पर गिर पड़ी । तुम सभी जाओ मैं थोड़ा आराम करूंगी । "
सभी के जाने के बाद शारदा देवी सोच रही थी कि क्या उन्होंने रात को सपना देखा था । वह बाहर क्यों गईं थी ? रात का दृश्य याद आते ही उनका शरीर एक बार फिर डर से कांप गया ।
इधर गौशाला से नौकर के आवाज़ को सुनकर सभी उस तरफ गए । वहां पर जाकर उन्होंने देखा कि पिछले सप्ताह जो भूरी गाय का बछड़ा जन्मा था , वह जमीन पर मरा पड़ा हुआ है । किसी ने बछड़े के पेट को फाड़कर अंतड़ियों को बाहर खींचकर निकाला है । ऐसी असंभव घटना इस गांव में पहले कभी नहीं हुई । खबर फैलने में ज्यादा समय नहीं लगा । गांव के कई लोग इसे देखने के लिए आते और दृश्य देख डर से अपनी नजरें घुमा लेते ।
जमींदार हरिश्चंद्र ने यह सब देखकर चिंतामग्न में खो गए । 2 दिन पहले जमींदारी का काम समाप्त करके जब वो लौट रहे थे उस वक्त नदी के किनारे वाले श्मशान में उन्होंने एक तांत्रिक जैसे आदमी को देखा था । कब आए ? कहां से आए ? एक बार परिचय लेना होगा ।

इसी बीच दीपिका नींद से जागी । आज शरीर स्वस्थ लग रहा है । उठकर मुंह हाथ धोते वक्त उसे ऐसा लगा कि होंठ के पास कुछ लगा है । हाथ से होंठ पोछते ही वह लाल सूखा चीज उसके हाथ में लग गया । यह मानो सूखा हुआ खून है ।
कुछ दिन बाद ही लगातार उसी तरह गांव में कई सारे गाय व बकरी मरने लगे । शाम होने के बाद गांव के रास्ते पर कोई भी नहीं दिखाई देता । सभी अपने घरों में जाकर कुंडी को अच्छे से बंद कर देते ।
परिस्थिति खराब हो रही है यह देखकर सभी जमींदार साहब के यहां रात को पहरा देने के फैसले के लिए इकट्ठा हुए । जरूर कोई जंगली जानवर गांव में आ गया है । लेकिन रात को पहरा कौन देगा ?
शाम होते ही चारों तरफ का परिवेश बदल जाता है । कोई मानो हवा में धीरे - धीरे बात करता है । सभी पालतू पशु आधी रात को अशांत हो जाते ।
रात को दीपिका के साथ शारदा देवी सोती थी लेकिन उस रात के बाद माला भी उसी कमरे के फर्श पर सोने लगी । प्रतिदिन रात को शारदा देवी जागने की कोशिश करतीं लेकिन रात के 12 बजते ही किसी अनजाने प्रभाव से उन्हें गहरी नींद आ जाती । अगले दिन सुबह उठकर देखती तो दीपिका पास ही शांत होकर सोते हुए मिलती ।
उन्हें सचमुच का डर लगा जब उन्होंने लगातार दो दिन सुबह दीपिका के होठों के पास लाल सूखे खून जैसा कुछ लगा हुआ देखा । इधर दिन पर दिन पशुओं के हत्या की खबर भी शारदा देवी के कानों तक पहुंच रही थी । शारदा देवी जान गईं कि गुरुदेव के शरण के अलावा अब दूसरा कोई उपाय नहीं है ।
जमींदार हरिश्चंद्र ने अपनी मां के आदेश से गुरूदेव को लाने के लिए आदमी भेजा । इसी बीच और एक घटना घटी ।
गुरुदेव आने से पहली वाली रात को माधव बिना डरे अपने घर के बाहर निकला था । उसने देखा कि एक परछाई पास वाले घर के बकरी के बाड़े से निकल रहा है ।
वह अपनी जान की परवाह किए बिना उस परछाई के पीछे पीछे गया । एक समय वह परछाई जमींदार के बड़े घर के अंदर चला गया । माधव इसके बाद अपने घर लौट गया ।
अगले दिन माधव से यह सब सुनकर शारदा देवी और भी चिंतित हो गईं । गुरुदेव के आने के बाद शारदा देवी दीपिका को लेकर उनके पास गए । गुरुदेव दीपिका को तीक्ष्ण नजरों से देखने लगे । शारदा देवी ने देखा कि शांत दीपिका की आंखें फिर से उसी रात की तरह लाल हो रही है , हालांकि फिर से सबकुछ सामान्य हो गया । दीपिका को ले जाने के लिए कहकर शारदा देवी ने गुरुदेव से सब कुछ खुलकर बताया । गुरुदेव ने सब कुछ सुना और फिर सुनकर बोले ,
" कल एक यज्ञ करूंगा , उस वक्त दीपिका बेटी को कमरे के अंदर ही बंद रखना । ध्यान रखना कि कुछ भी हो जाए पर वह कमरे से निकल ना पाए । "
गुरुदेव अभी नए हैं , उम्र यही कोई 34 - 35 होगा । उनका नाम महानंद आचार्य है । वंशानुगत महानंद और उनके दादा , परदादा इस जमींदार परिवार के कुलगुरु हैं ।
पहले हर बार अपने पिताजी दयानंद आचार्य के साथ आते थे लेकिन पहली बार वो अकेले आए हैं । महानंद जी ने आते वक्त पास के श्मशान में एक परिचित चेहरे को देखा था । इतने सालों बाद देखा था लेकिन उन्हें उस आदमी को पहचानने में कोई भूल नहीं हुई । वह कोई और नहीं गोपाल है जो अब गोपालेश्वर बन चुका है ।.....


।। अगला भाग क्रमशः ।।


@rahul