City without stories in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | बिना कहानियों वाला शहर

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बिना कहानियों वाला शहर



उस शहर में एक बार कहानी-कविताओं की बाढ़ आ गई.

दूर-पास से,उड़ते-बहते,दौड़ते अनगिनत कहानियां-कविताएं उस तरफ आने लगीं.

और एक खाली पड़े तालाब को भरने लगीं.

लोग आंखें फैलाकर उस नजारे को देखते रहे. वे तरह-तरह की आवाजें करती आ रही थीं.जोशीले गीत.मार्चिंग पास्ट का बैंड. गर्जनाएं.घोषणाएं.नारे.

वे सब बच्चों की कहानियां-कविताएं थीं.उनका जीवन संवारने वाली,उन्हें महानता का पाठ पढ़ाने वाली.

सूत्रों,समीकरणों,वचन पत्रों,घोषणाओं के रूप में.

उस तालाब में तीन दिनों तक खूब शोर मचाती रही,वे कहानियां-कविताएं.

फिर सब शांत हो गया. हवा बही,मिट्‍टी उड़ी और तालाब मिट्‍टी से ढक गया.

कहानियां खत्म.कविताएं खत्म. शहर बिना कहानियों वाला हो गया.

और ऐसा काफी समय तक चलता रहा.

अब कहानियों-कविताओं की जगह कल्पनाओं ने ले ली.हर बच्चा अपनी कल्पना की उड़ान भरता और खुश हो जाता.

शहर में शोर घट गया

मगर फिर उस तालाब वाली जगह पर एक अजीब सा पेड़ उग आया.

लोगों ने उस पेड़ का नाम रख दिया-कहानियों का पेड़.

उस पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आने लगे.

जल्द ही बहुत मशहूर हो गया कहानियों का पेड़.

क्योंकि जब वह देखने वालों से घिर जाता था तो जोर-जोर से पादने लगता था.

पता नहीं क्यों?

स्कूल भाग गया


स्कूल भाग गया.

घाटी में इस खबर से हंगामा हो गया.

दूर-दूर तक यह अकेला स्कूल था, जो सतरह बच्चों को पढ़ाता था.

बिना किसी कॉपी-किताब और मिस या मास्साब. सबको डांटता रहता था-तुम्हारे पंख निकल रहे हैं!

और लो कल रात खुद ही फुर्र हो गया.

उसे घाटी के घूमन ने जाते देखा. वह उसके घर के ऊपर से टाटा-टाटा बाई-बाईकहते हुए गुजरा.

सुबह हुई टोगी और रूमा मिले तो टोगी बोला, ‘‘ मैं जानता था. एक दिन वह चला जाएगा.’’

रूमा ने सिर हिलाकर जवाब दिया, ‘‘ हमें सता-सताकर उसका मन भर गया था. रोज कहता था और बच्चों को ढूंढ कर लाओ.’’

टोगी सिर खुजाते हुए बोला, ‘‘ पता नहीं कहां गया होगा? कैसा होगा?

रूमा बोला, ‘‘ ज्ञान बटारने किसी नयी जगह ! सचमुच बड़ा ज्ञानी था वो.’’

टोगी ने हां मिलाते हुए गहा, ‘‘धरती के नीचे, पानी के अंदर और आकाश के ऊपर तक की बातें बताता था. गणित भी गा-गाकर पढ़ाता था.’’

रूमा ने फैसला लिया, ‘‘ उसे वापस लाना होगा?’’

टोगी: मगर उसका पता-ठिकाना?

रूमा: यही तो उसके पढ़ाए-सिखाए की परीक्षा होगी.

टोगी: यानी हवा की दिशा, नया ज्ञान मिलने की संभावना, नया स्कूल चाहने वालों की धरती. ये सब बातें ध्यान में रखनी होगी.

रूमा: यानी हमें उत्तर-पूर्व दिशा में बढ़ना होगा.

***

फिर टोगी और रूमा अपने स्कूल को ढूंढने और लौटा लाने के लिए निकल पड़े.

सात दिन चलकर, तीन पहाड़ियां और दो नदियां पार कर वे एक नई घाटी में जा पहुंचे.

वहां उनका स्कूल एक नए रूप में खड़ा था. उसे फूलों से सजाया गया था. बीस-बाइस छोटे-छोटे बच्चे आसपास जमा थे.

टोगी को स्कूल पर बड़ा गुस्सा आया. जी चाहा पास जाकर उसे बुरा-भला कहे. लेकिन रोमा ने उसे रोक लिया. उसने अपनी कमर से बांसुरी निकाली और उसे बजाने लगा. स्कूल लहराकर नाचने लगा, साथ-साथ बच्चे भी.

स्कूल जान गया था कि दो विद्यार्थी से ढूंढते हुए यहां तक आ पहुंचे हैं.

लेकिन टोगी और रोमा स्कूल के पास नहीं गए. उससे लौट चलने की फरियाद भी नहीं की.

स्कूल खुश रहे. बच्चे खुश रहें.

वे अपनी घाटी की तरफ लौट चले.

रास्ते में टोगी ने रोमा से कहा, ‘‘ हम नया स्कूल बनाएंगे.’’

रोमा सिर हिलाकर बोला, ‘‘ और उसकी बुनियाद इतनी मजबूत बनाएंगे कि वह कभी हमें छोड़कर न जाने पाए.

***