(13)
"सरल काम मुझे भी पसंद भी नहीं है। वैसे रेखा तुम्हें बाॅक्सींग ग्लब्स पहनकर वार करने की क्या जरूरत। तुम अगर जी भर सामने वाले को देख भी लो न तो बेचारा ऐसे ही घायल हो जाये।" अभिनव बोला।
"मिस्टर मजनू! काम की बात बोलो। इतनी रात को क्यों फोन किया है। फालतू बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है।" रेखा बोली।
"मेरे लिये तो यही सबसे काम की चीज़ है।" अभिनव बोला।
"क्यों बेमौत मरने को उतावले हुये जा रहे हो।" रेखा ने कहा।
"हाय! इतनी हसीन मौत मिले तो साला कौन कम्बख्त जीना चाहता है।" अभिनव बोला।
"तो फिर ठीक है। मेरे इस आशिक की हसीन मौत कल ही होगी। मिलते है बाॅक्सींग रिंग में।"
"वैट•••वैट•••वेट एक जरूरी बात बोलना रह गया।" अभिनव बोला।
"जल्दी बोलो•••।" रेखा ने कहा।
"आई लव यूं। बायं म्मssssहा।" अभिनव ने फ्लाईंग किस देकर फोन काट दिया।
रेखा की आखों से नींद गायब थी। आज तक उससे कभी किसी ने इस तरह की रोमांटिक बातें नहीं की थी। वह अभिनव को अपने विचारों की विषय वस्तु से हटाने की नाक़ाम कोशिशें लगातार कर रही थी। मगर रह- रहकर अभिनव उसके दिलों-दिमाग़ पर हावी होता जा रहा था।
सुबह-सुबह रेखा अपनी बाॅक्सींग किट अलमारी से निकाल रही थी। यकायक उसकी नज़र अलमारी में एक ओर रखी साड़ी और अन्य भारतीय परिधानों पर पड़ी। मदनमोहन प्रत्येक त्यौहार पर उसे ये कपड़े तोहफे में देते आये थे। मगर रेखा ने इन्हें कभी नहीं पहना। वह तो जींस और टी-शर्ट जैसे कपड़े पहनने की श़ौकीन थी। मगर रेखा आज इन कपड़ों को छूने से स्वयं को रोक नहीं पा रही थी। वह बारी-बारी से साड़ीयों को हटाकर देखती जाती। उसे आज पहली बार भारतीय परिधानों ने आकर्षित किया था। तब ही घर के बाहर रेखा के सहयोगियों की टोली आकर खड़ी हो गयी। वे रेखा को अपने साथ बाॅक्सींग क्लब ले जाने आये थे। आज ही अभिनव और रेखा के बीच बाॅक्सींग का महामुकाबला होने वाला था। रेखा ने स्वयं को संभाला। वह रेडी होकर घर से बाहर आयी। पिता मदनमोहन, मां ममता और भाई अनुज ने बोझिल मन से उसे विदा किया।
आज रविवार का दिन था। बाॅक्सींग क्लब दर्शकों से ढसा-ढस भर चूका था। मदनमोहन और जगतजीत राणा के करीबी व्यावसायिक मित्र गण ये अनोखी प्रतियोगिता देखने आये हुये थे। महिलाओं की एक अन्य तरफ बैठने की व्यवस्था थी। जो पुर्व से ही खचाखच भरी जा चूकी थी। रेखा अब भी विचारों में थी। सहयोगी उसे जरूरी दावं-पेच बता रहे थे। इसमें रेखा के बाॅक्सींग गुरू गोपीचंद भी थे जो रेखा का मनोबल बढ़ा रहे थे। रेखा की नज़रे अभिनव को ढूंढ रही थी। कल रात की बातों के बाद वह अभिनव से नज़रें कैसे मिला पायेगी? यह सोच कर ही आज पहली बार उसकी आंखों में शर्म के भाव उभर आये थे।
"रेखा। इसमें कोई संदेह नहीं कि जीत तुम्हारी ही होगी। लेकिन यहां हजारों की संख्या में उपस्थित दर्शकों का मनोरंजन करना भी तुम्हारी जिम्मेदारी है।" गोपीचंद बोल रहे थे।
"हां रेखा! बहुत अच्छे से मज़ा चखाना उसे। पुरा मज़ा लेने देना सबको। आहिस्ता-आहिस्ता पंच मारना ताकी एक बार में वह मैदान न छोड़ दे।" फातिमा ने कहा।
रेखा तो जैसे गुमसुम थी। अपने गुरू और सहेली की बातें सुनकर भी वह अनसुना कर रही थी। उसे तो बस अभिनव को दखना था जो कहीं भी नहीं दिखाई नहीं दे रहा था।
सभी अभिनव की राह देख रहे थे। मगर वो अब तक नहीं आया था। ग्यारह बजने में कुछ ही मिनीट शेष थे। दर्शकों की नज़र मुख्य द्वार पर थी। वे चाहते थे कि जल्दी से जल्दी अभिनव बाॅक्सींग रिंग में आये ताकि उन्हें रोमांचक मुकाबला देखने को मिले।
"कहीं अभिनव मैदान छोड़ कर भाग तो नही गया।" एक दर्शक ने कयास लगाये।
"हां यार। आना होता तो अब तक आ गया होता।" पास ही बैठे दुसरे दर्शक ने कहा।
"मरना है क्या उसे! जो यहां पर आयेगा?" एक लड़की ने कहा।
"नहीं यार! मुझे तो पुरा भरोसा है वह यहां अवश्य आयेगा।" एक दर्शक ने कहा।
जगजीत राणा अपनी पत्नी के साथ वहां मौजूद थे। उन्हें भी ज्ञात नहीं था कि अभिनव कहां है। रेफरी के निर्देश पर कॉमेन्ट्री करने वाले सज्ज्न ने माइक से अभिनव का नाम लेकर पुकारा।
"अभिनव राणा जहां कहीं भी हो, तुरंत बाॅक्सींग रिंग में आये। मैच का समय हो चुका है।"
दर्शक एक-दुसरे का मुंह तांक रहे थे। आखिर कहां गया अभिनव? वह तो अपने बात का पक्का था। उसके चैलेंजिंग स्वभाव से हर कोई परिचित था। जब उसे रेखा से बाॅक्सींग मैच लड़ना ही नहीं था तो मना कर देता। कोई जबरदस्ती थोड़े ही कर रहा था। और अगर बाॅक्सींग लड़ने की हां की थी तो उसे यहां आना ही चाहिये था। इस तरह की तमाम अटकले वहां बैठे-बैठे दर्शक लगा रहे थे।
अब तो रेखा भी अधीर हो उठी। उसकी आंखें थक चूकी थी।
"मुझे नहीं लगता रैफरी साहब! कि अभिनव अब आयेगा। समय भी अधिक हो गया है। वह रेखा से डर कर कहीं मुंह छुपा कर बैठा होगा।" गोपीचंद ने कहा।
रेखा को न जाने क्यों अपने सबसे पसंदीदा गोपीचंद की यह बात अच्छी नहीं लगी।
रेफरी और शेष तीनों जज गोपीचंद की बातें से सहमत नज़र आ रहे थे।
"आप सभी जजों से निवेदन है कि रेखा को एक तरफा विजयी घोषित कर दिया जाये।" गोपीचंद ने आगे कहा।
यह सुनते ही दर्शकों में निराशा छा गयी। कुछ दर्शक खड़े होकर नारे बाजी करने लगे।
"रेफरी साहब! सोच क्या रहे है? इससे पहले की और ज्यादा माहौल बिगड़े रेखा को विजयी घोषित कर मैच को यही स्थगित कर दिया जाये।" गोपीचंद ने कहा।
जगजीत राणा स्वयं अचरज में थे कि अभिनव ने ऐसा कदम क्यों उठाया।
"सर मैच समाप्ति की घोषणा करे। ताकी मेन गेट खोला जा सके वर्ना बहुत तोड़ फोड़ मच जायेगी।" क्लब के मैनेजर सुधांशु ने आकर रैफरी से कहा।
"ओके! आप गेट खुलवाईये ताकी दर्शक शांति से बाहर जा सके।" रैफरी आनंद चौहान ने कहा।
मैनेजर सुधांशु ने बाॅक्सींग क्लब का मेन गेट खोलने का आदेश दिया। और जनता से धैर्य बनाये रखने की अपील की।
कल्ब का मुख्य द्वार खुलता है। धुआं ही धुआं नज़र आने लगा। जो लोग बाहर निकलने को आतुर थे वो खासते हुये पुनः अपनी सीट पर बैठ गये। धुएं की पृष्ठभूमि पर एक नौजवान की आकृति उभरने लगी थी। वह धीरे-धीरे क्लब के अंदर दाखिल होने लगा। उपस्थित सभी दर्शकों की आंखें हैरानी से दरवाजे पर जमी थी। रेखा आश्चर्य से दरवाजे की ओर देख रही थी। उसका अमिट विश्वास था की अभिनव अवश्य आयेगा। वह आ चूका था। फिल्मी हिरो के समान उसकी एन्ट्री पर दर्शक अपना गुस्सा भुल गये। उन्होंने जोरदार तालियों के साथ अभिनव का स्वागत किया।
"माफी चाहता हूं दोस्तों! मुझे आने में कुछ विलंब हो गया।" अभिनव ने दमदार आवाज में कहा।
"कुछ नहीं! बहुत विलंब हो गया। तुम हार चूके हो। अब ये मैच नहीं होगा।" गोपीचंद ने तैश में आकर कहा।
"बिना मैच खेले हार-जीत का फैसला नहीं होता गुरूजी। मैच तो होगा। जरूर होगा। क्यों भाई लोग?" अभिनव ने दर्शकों से कहा।
"हां! मैच जरूर होना चाहिये।" दर्शकों ने एक स्वर में कहा।
"आप सभी का शुक्रिया।" अभिनव दहाड़ा।
"रेखा। मैं जानता हूं यहां सबसे अधिक मुझे तुम याद कर रही थी।"
रेखा चौंकी। दर्शक कभी रेखा को देखते तो कभी मुंह मोड़कर अभिनव को निहारते।
"दरअसल मैं जानबूझकर देर से आया। मैं जानना चाहता था कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो। और तुम्हारी आंखों की बैचेनी मुझे बता रही है कि रात भर तुम ठीक से सोई भी नहीं।" अभिनव ने कहा।
"ऐसा बिल्कुल नहीं है। मैं तुमसे सिर्फ नफ़रत करती हूं।" रेखा ने कहा।
"शाबास रेखा। अपने दुश्मन को तुमने सही जवाब दिया।" गोपीचंद बोले।
"ठहरीये गुरूजी। इतने उतावले भी मत बनिये। जितना नाचना है हमारी शादी में नाच लेना। अभी मगर शांत रहे।" अभिनव बोला।
सभी हंस पड़े।
"मगर मैं तुमसे सिर्फ प्यार करता हूं रेखा। आज इन सभी के सामने मैं तुमसे अपना प्यार का इज़हार करता हूं। रेखा आई लव यू।"
दर्शकों को रोमांचित करने के लिए यह काफी था। पुनः तालायों की गड़गड़ाहट से इनडोर स्टेडियम गूंड उठा। अभिनव के साथ उसके दोस्त भी थे। धीरज और राकेश अभिनव का होंसला बढ़ा रहे थे।
"अभिनव भैया संघर्ष करो, रेखा भाभी तुम्हारे साथ है।" धीरज ने नारा दैया।
इस नारे ने रेखा के तन बदन में आग लगा दी। वह धीरज को गुस्से से देख रही थी। यह धीरज ही था जो जोर-जोर से नारे लगा रहा था। उसके पीछे-पीछे अन्य लोग भी यह नारा ऊंची आवाज़ में उच्चारित कर रहे थे। नारायण ठाकुर और सुमित्रा भी यह रोमांचक मुकाबला देखने पधारे थे। मदनमोहन ने नारायण ठाकुर की आगवानी की। जगजीत राणा ने नारायण ठाकुर का अभिवादन किया। रेखा ने रिंग में खड़े-खड़े ही नारायण ठाकुर और सुमित्रा को प्रणाम किया। रेखा और नारायण ठाकुर एक ही राजनीति पार्टी के सदस्य थे अतः दोनों की परस्पर अच्छी मित्रता थी। नारायण ठाकुर चाहते थे कि रेखा आगामी मेयर का चुनाव लड़े। इस हेतु वे स्वयं प्रयासरत थे। नारायण ठाकुर की इस कृपा से सभी अभिभूत थे क्योंकि उनके पुत्र विराज के होते हुये वे अन्य को इस पद हेतु राजनीतिक सहयोग देने का प्रयास कर रहे थे। वे स्वंय कभी किसी पद के लोभी नहीं थे। उन्होंने अभी तक किसी चुनाव में कभी कोई पद हेतु टीकीट की मांग नहीं की। उनका मानना था कि यदि योग्य हुये तब स्वतः ही पार्टी उचित पद के प्रत्याशी हेतु खड़ा करेगी। जिसके लिए वे सहमत थे। बीस वर्षों की सक्रीय राजनिति में वे कोई चुनाव नहीं लड़े। अपितु निस्वार्थ भाव से पार्टी और देश सेवा में लगे रहे। उनके इस समर्पण और त्याग से हर कोई अभिभुत था। पार्टी हाईकमान उन्हें प्रदेश राजनिति में महत्वपूर्ण पद सौंपने पर विचार कर रही थी। इसीलिए उनकी गरिमा में बेतहाशा वृद्धि देखी जाने लगी थी।
अभिनव ने अपने पिता जगजीत राणा और मां का आशीर्वाद लिया। उसके बाद उसने मदनमोहन और ममता के भी पैर छुये। तदुपरांत नारायण ठाकुर और सुमित्रा का अभिवादन किया। अनुज और अभिनव को गले मिलता देख रेखा के दिल पर सांप लौट रहे थे। उसे आभास हो गया कि यह सब लोग आपस में मिले हुये है और किसी तरह उसकी शादी करवाना चाहते है।
"अभिनव! बहुत बकवास कर ली आपने। अब रिंग में आ कर अपना चैलेंज पुरा नहीं करोगे।" यह पुरानी वाली रेखा बोल रही थी।
"अफकोर्स डाॅर्लिंज! मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम भी मेरे लिए उतनी ही बेक़रार हो जितना कि मैं।" अभिनव ने प्यार से कहा।
"ओहहह मिस्टर मजनूँ। आज तुम्हारा सारा पागलपन नहीं निकाल दिया न तो मेरा नाम रेखा नहीं।" रेखा आवेश में आकर बोली।