Fansi ke baad - 1 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | फाँसी के बाद - 1

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फाँसी के बाद - 1

लेखक : इब्ने सफ़ी

अनुवादक : प्रेम प्रकाश

 

उर्दू भाषा के सर्वश्रेष्ठ जासूसी उपन्यासकार इब्ने सफ़ी

इब्ने सफ़ी उपन्यास माला का संपादन करने वाले जाने माने कथाकार नीलाभ लिखतें हैं – कहतें हैं कि जिन दिनों अंग्रेज़ी के जासूसी उपन्यासों की जानी-मानी लेखिका अगाथा क्रिस्टी का डंका बज रहा था, किसी ने उनसे पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में अपने उपन्यासों की बिक्री और अपार लोकप्रियता को देख कर उन्हें कैसा लगता है ? इस पर अगाथा ने जवाब दिया था कि, इस मैदान में मैं अकेली नहीं हूं । दूर हिंदुस्तान में एक और उपन्यासकार है जो हरदिल-अज़ीज है और किताबों की बिक्री में मुझसे उन्नीस नहीं है । वह उपन्यासकार है इब्ने सफ़ी !

इस बात से पाठकों को अंदाज़ा मिल सकता है कि इब्ने सफ़ी का नाम उनके ज़माने में कितना मशहूर होगा ! आज भले ही इब्ने सफ़ी पाकिस्तानी उपन्यासकार कहलाते हैं, लेकिन वे बंटवारे से पहले के ब्रिटीश हिंद में पैदा हुए थे और हिंदुस्तान के साथ उनका ख़ूब नाता रहा था । इब्ने सफ़ी का असली नाम असरार अहमद था और इलाहाबाद जिले के नारा कसबे में २६ जुलाई, १९२८ को उनका जन्म हुआ था । उन्होंने उस ज़माने में आगरा विश्वविध्यालय से बी.ए. की उपाधि हांसिल की थी, जो कि उस वक्त एक उपलब्धि हुआ करती थी । शायद इसी लिए वो हमेशा अपने नाम के पीछे ‘बी.ए.’ लिखा करते थे ।

इब्ने सफ़ी शुरूआती दिनों में इलाहाबाद से जुड़े रहे । वहां से उनकी विविध पत्रिकाएं और जासूसी उपन्यास प्रकाशित होते थे । फ़िर उनका ‘नकहत पब्लिकेशन’ से नाता जुड़ा और उनके जासूसी उपन्यास आते रहें । बाद में जब वे पाकिस्तान चले गए तब भी उनका हिंदुस्तान से रिश्ता जुड़ा रहा । हिंदुस्तान में निकहत पब्लिकेशन से उनके उपन्यास हर महीने हिंदुस्तानी पाठकों तक पहुंचते रहते थे । ये उपन्यास मूलतः उर्दू में छपते थे । उनका बाद में प्रेम प्रकाश द्वारा हिंदी में अनुवाद होता था । इब्ने सफ़ी कर्नल फरीदी, कैप्टन हमीद, इमरान जैसे यादगार के किरदार थे । हिंदी में कर्नल फरीदी कर्नल विनोद हो गये थे और इमरान का नाम राजेश कर दिया गया था । लेकिन कैप्टन हमीद हिंदी में भी कैप्टन हमीद ही रहे ।

फाँसी के बाद इब्ने सफ़ी का आकर्षक उपन्यास है । इसकी कहानी जासूसी का इतना अनोखा वातावरण प्रस्तुत करती है कि पढ़ने वाला अन्त तक इस मायावी वातावरण में खोया रहता है और कहानी समाप्त करने के बाद उसे इब्ने सफ़ी की योग्यताओं और महानता का समर्थन करना पड़ता है । ‘फाँसी के बाद’ इब्ने सफ़ी की उन कृतियों में से है जिनकी कहानियां यादगार की हैसियत रखती हैं । ऐसा दावे के साथ कहा जा सकता है कि पाठक इस कहानी को पढ़ने के लिये विवश होंगे ।

फांसी के बाद

(1)

टेलीफोन का तार पोल से अलग करने के बाद वह सब इमारत के कम्पाउंड में आ गये ।

पूरी इमारत अंधकार में डूबी हुई थी, इस लिये कि उन्होंने बिजली के तार पहले ही काट दिये थे । यह आने वाले संख्या में दस थे ! एक पिछली चारदीवारी के पास इस प्रकार खड़ा हो गया था कि पूरे कम्पाउंड पर नज़र रख सके । दूसरा नौकरों के क्वार्टरों के निकट खड़ा रहा । तीसरा इमारत के सदर दरवाज़े पर जम गया और शेष सात इमारत के अन्दर दाखिल हो गये – फ़िर चार तो पूरी इमारत में फैल गये और तीन एक कमरे का ताला तोड़ कर अन्दर दाखिल हो गये ।

कमरे में कोई मूल्यवान वस्तु नहीं थी । एक ओर पुराने मगर बड़े-बड़े ट्रंक एक दूसरे पर रखे हुए थे । एक ओर एक पुराना सोफा पड़ा हुआ था और इधर उधर कुछ फटे पुराने कपड़े टंगे हुये नज़र आ रहे थे । एक सोफा उधेड़ने लगा और दूसरा जल्दी जल्दी ट्रंक हटाने लगा । तीसरा सतर्कता के साथ खड़ा रहा । उसके दाहिने हाथ में रिवोल्वर था और बांये हाथ में जलती हुई टॉर्च थी ।

सोफे के अन्दर से सौ सौ के नोटों की गड्डियां बरामद हुई और सबसे निचले वाले ट्रंक से जब लिहाफ़ निकाल कर फाड़ा गया तो उसमें से भी सौ सौ की बहुत सारी नोटें बरामद हुई । उन्होंने दो खली थैलों में नोटें भरीं – फ़िर जो बाकी बचीं उन्हें उन तीनों ने अपने पतलूनों और कोटों की जेबों में ठूंस लीं और फ़िर टॉर्च बुझा कर तीनों कमरे से बाहर निकल आये । उन्हीं के साथ वह चारों भी बाहर निकले थे जो इमारत के अन्दर फैले हुए थे । फ़िर जैसे ही दसों एकत्रित हो कर पिछली चारदीवारी की ओर बढ़ने लगे वैसे ही पीछे से फायरिंग आरंभ हो गई ।

उन दसों में से एक ने अट्टहास लगाया, फ़िर गरज कर बोला ।

“मेरा नाम रनधा है । मैं अपना काम कर चुका और अब वापस जा रहा हूं – इस चेतावनी के साथ कि अगर किसी ने मेरा पीछा किया तो वह अपनी मौत का ख़ुद ज़िम्मेदार होगा ।”

फ़िर फायरिंग करते हुए वह दसों पिछली चारदीवारी के पास आये और बारी बारी दीवार फलांग कर दूसरी ओर कूदने लगे । अचानक एक आदमी की पस्ली में गोली लगी और वह चीख मार कर गिर पड़ा । उसके एक साथी ने फौरन उसे उठा कर पीठ पर लादा और दूसरे साथी की सहायता से दीवार पर चढ़ कर दूसरी ओर कूद गया । जिसने गर्जना की थी और अपना नाम रनधा बताया था वह अभी तक सीना ताने खड़ा था । जब नौवां आदमी दीवार पर चढ़ने लगा तो उसने उससे कहा ।

“तुम सब आगे बढ़ कर मेरी प्रतीक्षा करो । मैं एक का उत्तर दो से दिया करता हूं ।”

नवें आदमी के कूद जाने के बाद वह भी दीवार फलांग कर दूसरी ओर कूद गया । उसके साथी एक ओर भागते चले जा रहे थे, मगर वह वहीं एक जगह आड़ ले कर बैठ गया । रिवोल्वर जेब में रखा और कंधे से टामी गन उतार कर दीवार की ओर देखते लगा ।

कुछ ही क्षण बाद उसे उसी इमारत के कम्पाउंड में आदमियों के चलने की आहट महसूस हुई । फ़िर उसने अनुमान लगाया कि वह लोग पिछली दीवार की ही ओर आ रहें हैं ।

उसने टामी गन की नाल दीवार की ओर उठा दी । फिर उसे आवाज़ें सुनाई देने लगीं । कम्पाउंड में लोग इस प्रकार की बातें कर रहे थे ।

“फोन करना बेकार है । चलो, चारदीवारी की दूसरी ओर देख लिया जाये ।”

“मेरी भी यही राय है । अभी वह अधिक दूर नहीं गये होंगे । अगर हम लोग पुलिस के चक्कर में पड़े तो पुलिस के आते आते वह न जाने कहां निकल आयेंगे ।”

फिर आवाज़ें बंद हो गई और उसके बाद कम्पाउंड की ओर से दो आदमी पिछली दीवार पर चढ़े और दूसरी ओर कूदने ही जा रहे थे कि तड़ातड़ दो फायर हुये । दोनों गोलियां उन दोनों के सीने पर पड़ी थीं । एक चीख कर कम्पाउंड में गिरा था और दूसरा चीखता हुआ दूसरी ओर गिरा था ।

“रनधा ने बदला ले लिया है । वह कर्ज़ रखने का आदी नहीं है ।” यह कहते हुए उसने अट्टहास लगाया और टामी गन कंधे से लटकते हुए उसी ओर भागा, जिधर इसके साथी भागे थे ।

कुछ दूर जाने के बाद रनधा ने मुख से एज विचित्र प्रकार की आवाज़ निकाली । उत्तर में उसे वैसी ही एक दूसरी आवाज़ सुनाई दी । वह आवाज़ की ओर दौड़ पड़ा । कुछ ही दूर जाने पर उसके साथी मिल गये ।

“ज़ख्मी की क्या दशा है ?” रनधा ने पूछा ।

“दो दिन से अधिक जीवित न रह सकेगा, सरदार !” – एक ने कहा ।

“अच्छा, तुम लोग इसे यहीं रहने दो । मैं इसे अपने साथ ले जाऊँगा और ठीक दो घंटे बाद तुम लोगों से मिलूंगा । थैले भी यहीं छोड़ जाओ ।” – रनधा ने कहा ।

वह लोग थैले वहीँ रख कर एक ओर चल पड़े । जब वह नज़रों से ओझल हो गये तो रनधा ने जेब से पेट्रोल भरी एक शीशी निकाली और उसे अपने ज़ख्मी साथी के कपड़ों पर खाली करके कपड़ों में आग लगा दी और फिर उसकी खोपड़ी पर एक फायर भी कर दिया । उसके बाद दोनों थैले पीठ पर लाद कर इत्मीनान से एक ओर बढ़ता चला गया ।

दो घंटे बाद एक आलीशान इमारत में अपने आठों साथियों सहित बैठा हुआ रनधा शराब पी रहा था । उन्हें देख कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह डाकू हैं ।

***

रात का समय था । रनधा अपने पांच साथियों को लेकर एक इमारत में दाखिल हुआ । हमेशा की तरह उसने इस इमारत में दाखिल होने से पहले बिजली का तार अलग कर दिया था । इस लिये पूरी इमारत में अंधेरा था । तीन को उसने पहरेदारी पर लगाया और दो को साथ लेकर एक कमरे में दाखिल हो गया ।

कमरे में मसहरी पर एक आदमी सो रहा था । रनधा ने टॉर्च का प्रकाश इधर उधर डाला फिर सोने वाले की आंख पर रौशनी डाली । सोने वाला पहले कुलबुलाया । फिर आंखें खोलीं । उसके बाद हडबडा कर उठ बैठा और हकलाने लगा ।

“त्... त्... तुम लोग... क...क... कौन हो ?”

“मैं रनधा हूं !” – रनधा ने बड़े इत्मीनान से कहा ।

“तुम झूठ बोल रहे हो ।” – उस आदमी ने कहा – “रनधा तो जेल में था और उसे फांसी की सज़ा हो गई थी ।”

“ठीक कह रहे हो । मगर तुम्हें लूटने के लिए मैं जेल से बाहर आ गया ।” – रनधा ने कहा । फिर फुफकार कर बोला – “रनधा को झूठा कहने वाला ज़िन्दा नहीं रहता, मगर कुछ कारण वश मैंने तुम्हें ज़िन्दा छोड़ दिया है । लाओ... चाभी निकालो, और यह भी सुन लो कि रनधा को कोई जेल में रख ही नहीं सकता !”

“मम.... मेरे पास... चाभी... नन... नहीं है !” वह आदमी फिर हकलाया ।

“क्या मरना ही चाहते हो ?” रनधा गरजा ।

उस आदमी ने चुपके से चाभी निकाल कर रनधा को दे दी । रनधा ने अपने एक साथी को चाभी थमा दी । वह आदमी चाभी लिये हुए मसहरी के नीचे घुस गया । उसने मसहरी के नीचे की कालीन हटा दी और एक ज़मीन बंद तिजोरी उसे दिखाई दी । उसने चाभी से तिजोरी खोली । रनधा अपने दूसरे साथी के साथ खड़ा उस मसहरी वाले को देखता रहा । फिर उसने मसहरी के नीचे वाले साथी की आवाज़ सुनी ।

“तिजोरी में केवल ढ़ाई लाख हैं, सरदार, और थोड़े से सोने के बिस्किट हैं ।”

“जो कुछ भी मिला है उसे लेकर बाहर आ जाओ ।” – रनधा ने कहा । फिर मसहरी वाले आदमी से बोला – “और रुपये कहां हैं ?”

“बैंक में ।” – उस आदमी ने कहा ।

“बैंक में तो थोड़े से रुपये हैं ।” – रनधा ने कहा – “यह तो काला रुपया है । तुम पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज न करा सकोगे कि तुम्हारे यहां से कितने रुपये चोरी गये हैं ।”

“मेरे पास अब कुछ नहीं है ।” – उस आदमी ने कहा ।

“क्या तुम रनधा को मूर्ख समजते हो ।” - रनधा ने मुस्कुराकर कहा “तुम्हारे पास जो कुछ है उसे मैं जानता हूँ । अगर वह सब चुपचाप मेरे हवाले कर दोगे तो मैं वादा करता हूँ की उसका एक चोथाई भाग यहीं छोड़ जाऊंगा और यदि तुमने आपत्ति की तो मैं सबसे पहले तुम्हारे परिवार के एक एक आदमी को चुन चुन कर मार डालूँगा । उसके बाद तुम्हारी ज़बान काट कर इसी कमरे मैं बन्ध के दूंगा और फिर इस इमारत मैं आग लगा दूंगा- और यह तो तुम अच्छी तरह जानते हो कि रनधा जो कुछ कहता है वह कर डालता है ।”

“मुझे एक बात बता दो ।” - उस आदमी ने कहा ।

“पूछो- मुझे जल्दी नहीं है-” रनधा ने कहा ।

“तुम्हें यह कैसे मालूम हो जाता है कि रूपये कहाँ रखे हैं ?”

“तुम कारोबारी आदमी हो । जब तुम अपने दांव पेंच किसी को नहीं बताते तो फ़िर भला मैं तुम्हें अपनी बात कैसे बता सकता हूँ ।” – रनधा ने कहा -“हाँ बताओ – और रूपये कहाँ है ।”

उस आदमी ने शीशे वाली इमारत की ओर संकेत किया फिर रनधा के मांगने पर उसकी भी चाभी दे दी ।

उस अल्मारी से भी नोटें निकाली गईं । रनधा ने अनुमान से एक चौथाई नोटें अलग करके शेष तीन चौथाई नोटें तथा सोने के बिस्किट थैलों में भरवाये और जब चलने लगा तो उस आदमी ने कहा ।

“मेरी एक इच्छा है ।”

“कहो ?”

“किसी को यह न मालूम होने पाये कि मेरे घर से तुम्हें कितने रुपये मिले है ।”

“मुझे स्वीकार है ।” – रनधा ने कहा और सारे साथियों सहित थैले लिये हुये इमारत से बहार निकल आया और फ़िर अपने साथियों से अलग हो गया । इस बार भी थैले उसी के पास थे । ठीक दो घन्टे बाद वह नगर के एक आलीशान होटल में अपने साथियों से मिला ।

***