Bhola's Bholagiri - 10 (20 wonderful stories of Bhola for children) in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | भोला की भोलागिरी - 10 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

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भोला की भोलागिरी - 10 (बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

भोला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कहानी - 16

भोला ने जूते का सूप बनाना सीखा

उस दिन ताऊ बड़े मूड में थे. भोला से सामना हुआ तो बोले, ‘‘ भोला रे, तू स्कूल जाना कब शुरू करेगा? पढ़ेगा लिखेगा नहीं तो यह दुनिया तुझे बुद्धू बनाएगी.’’

ताऊ को मूड में देखकर भोला ने पूछा, ‘‘ जो किसी को बुद्धू बनाए उसे क्या कहेंगे?’’

ताऊ ने कहा, चतुर! या अकलमंद!!

भोला ने आगे पूछा, ‘‘ तो ताऊ तुम्हें किसी ने कभी बुद्धू बनाया?’’

ताऊ ने हंसते हुए कहा, ‘‘ मैं तो कई बार बुद्धू बना हूं! वैसे मेरा बापू यानी तेरा दद्‍दू भी एक बार

‘फुद्‍दू’ बन गया था.

भोला ने भोलेपन से पूछा ‘फुद्‍दू’ क्या होता है?’’

ताऊ बोले, ‘‘ फुद्‍दू होता है पहले दर्जे का बुद्धू! यानी बुद्धू से भी बड़ा बुद्धू! और मेरा बाप खुद को बड़ा होशियार मानता था ना, इसलिए उसे फुद्‍दू बनना पड़ा.’’

भोला: वो कैसे?

ताऊ: तो सुन, बापू ने खुद सुनाई थी यह कहानी.

-एक बार सर्दी की रात दो मुसाफिरों ने हमारे घर की कुंडी खटखटाई और पूछा कि क्या वे रात चबूतरे में गुजार सकते हैं?

कंजूस बाप ने कहा, ‘‘ चारपाई पर सो सकते हो, पर खाना वाना कुछ नहीं मिलेगा.’’

उन्होंने कहा, ‘‘ कोई बात नहीं, हम जूते का शोरबा बना कर सो जाएंगे. ‘‘ बापू हैरान. जूते का शोरबा?’’

फिर उन्होंने बापू से एक पतीला मांगा. बरामदे में ही ईंट जोड़ कर एक चूल्हा जलाया. और उसमें पतीला चढ़ा दिया. जब पानी खौलने लगा, उसमें से एक बोला, ‘‘ बाबूजी थोड़ा नमक और दो मिर्चे तो दे दो.’’

बापू अंदर से नमक मिर्च ले आया. उसे हैरानी हो रही थी, जूते का शोरबा कैसे बनेगा. यह तमाशा देखने दादी भी अंतर से चली आई. थोड़ी देर बाद उनमें से एक बोला, इसमें चार आलू और दो टमाटर पड़ जाते तो जूते का शोरबा इतना स्वादिष्ट बनता कि मजा आ जाता.

तब दादी अंदर से चार आलू और दो टमाटर ले आई. उन्होंने पत्थर से आलू, टमाटर को तोड़कर पतीले में डाल दिया.

थोड़ी देर बाद एक बंदा चम्मच से पतीले में उबलते शोरबे को चखते हुए बोला, ‘‘ बस थोड़ी सी कसर रह गई है, एक मुट्‍ठी मक्की का आटा और चम्मच भर घी इसमें पड़ जाता.’’

यह सुन बापू अंदर जाकर आटा और घी ले आया. उन्होंने वह आटा और घी उसमें डाल दिया और दो मिनट बाद एक बंदा बोला-‘‘ वाह!वाह! जूते का शोरबा तैयार!’’

बापू बोला, ‘‘ तुमने जूते कहां डाले शोरबे में? ये जूते का शोरबा कहां है?’’

वही बंदा बोला, ‘‘ मालिक ये जूते का शोरबा है. हमारे जूते बहुत थक गए हैं चलते-चलते! इसलिए इनकी भूख मिटाने के लिए ये शोरबा बनाया है. पहले इनको खिलाएंगे और जो बच जाएगा, वो हम खाएंगे.’’

ये कहकर उन्होंने जूते के मुंह पर एक-एक चम्मच शोरबा डाला और बाकी खुद पीने लगे.

बापू की समझ में नहीं आया कि उन पर चिल्लाए या हंसे.

लेकिन भोला यह सुनकर बहुत हंसा.

कहानी नं. 17

भोला फिर से स्कूल गया

बुआ की जिद के कारण भोला को स्कूल में भर्ती कराना ही पड़ा. वह छठी पास था. तीन साल पहले के सारे साथी नवीं में पढ़ रहे थे. मगर हेडमास्टर उसकी परीक्षा लेने के बाद उसे पांचवीं के लायक ही समझ रहे थे.

खैर प्राइमरी सेक्शन की कुर्सियां छोटी होने और छठी में जगह न होने के कारण भोला को सातवीं कक्षा में ही दाखिला मिल गया.

भोला ने स्कूल पहुंच कर शान से एक पूरा चक्कर लगाया. दोस्तों के साथ-साथ चपरासियों और अध्यापकों से भी मिला. और फिर अपनी कक्षा में आने के बाद उसने देखा कि वह दूसरों से ज़्यादा लंबा-चौड़ा बच्चा है.

अपने भोलेपन के कारण आधे दिन में भी उसकी सबसे दोस्ती हो गई. लेकिन हिंदी की टीचर से एक मुहावरे को लेकर उलझ गया. वो एक कहावत है ना, उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी बड़ी चादर हो.

इस उदाहरण पर उसने पूछ लिया कि अगर चादर खूब बड़ी हो तो? और फिर हेडमास्टर के पास उसकी पेशी हो गई.

हेडमास्टर उस समय खुद एक समस्या में उलझे थे. जिला शिक्षा अधिकारी का पत्र आया था कि स्कूल को गांव जाकर श्रमदान का कोई काम करना होगा और उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पचास बच्चों को लेकर गांव में क्या काम करवा सकते हैं.

भोला के सामने ही वही अध्यापकों और हेडमास्टर में चर्चा होने लगी.

तभी भोला ने सर खुजाते हुए कहा, ‘‘ मास्साब! गांव में तालाब नहीं है. अगर हम सब मिलकर वहां एक तालाब खोदें, जिसमें बरसात का पानी जमा किया जा सके तो...’’

भूगोल के मास्साब ने भोला की बात खत्म होने से पहले ही लपक कर कहा, अरे वाह! क्या गजब का आयडिया है. गांव में वैसे भी पानी की कमी रहती है. ये तालाब बरसात में भर जाएगा और पूरे साल मवेशियों को पानी पिलाने, नहलाने और खेती के काम आएगा.

दूसरे अध्यापकों को भी यह सुझाव बहुत पसंद आया. हिन्दी की अध्यापिका ने भी अपनी शिकायत भूल कर भोला की पीठ थपथपाई.

अगले दिन बुआ ने भोला को बस्ते के बदले फावड़ा लेकर स्कूल जाते देखा. उन्हें बड़ी हैरानी हुई.

ताऊ ने दूर से ही कहा, ‘‘ लो ये तो दूसरे दिन से ही इंजीनियर बन गया.’’


भोला की भोलागिरी

(बच्चों के लिए भोला के 20 अजब-गजब किस्से)

कौन है भोला ?

भीड़ में भी तुम भोला को पहचान लोगे.

उसके उलझे बाल,लहराती चाल,ढीली-ढाली टी-शर्ट, और मुस्कराता चेहरा देखकर.

भोला को गुस्सा कभी नहीं आता है और वह सबके काम आता है.

भोला तुम्हें कहीं मजमा देखते हुए,कुत्ते-बिल्लियों को दूध पिलाते हुए नजर आ जाएगा.

और कभी-कभी ऐसे काम कर जाएगा कि फौरन मुंह से निकल जाएगा-कितने बुद्धू हो तुम!

और जब भोला से दोस्ती हो जाएगी,तो उसकी मासूमियत तुम्हारा दिल जीत लेगी.

तब तुम कहोगे,‘ भोला बुद्धू नहीं है, भोला भला है.’

... और भोला की भोलागिरी की तारीफ भी करोगे.