Snow White in Hindi Children Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | स्नो व्हाइट

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स्नो व्हाइट

जब मैं लगभग ग्यारह साल की रही हूंगी मैं अपनी बड़ी बहन के साथ उनकी घनिष्ट सहेली पूनम के घर गई । मैं उनके यहां बहुत जल्दी ऊब जाती थी इसलिए दीदी के साथ जाने को जल्दी तैयार नहीं होती थी।
जब भी जाना होता दीदी मेरी सिफारिश करती , लालच देती तभी मैं जाती।
आज दीदी फिर जाना चाहती थी । मेरी खातिरदारी शुरू है गई। मेरी मन पसंद दीदी की नई ड्रेस जो मुझे फिट भी नहीं आती थी ,दीदी ने पहना दी । अब मैं तैयार थी उनके साथ जाने को।दोनों बहन पूनम दीदी के घर चल दिए।
वहां जाकर दीदी ,पूनम दीदी के साथ बातों में व्यस्त हो गई। मुझे ऊबता
देख उनकी मम्मी आई और बोली,"चलो बेटा तुम मेरे साथ लॉन में मैं तुम्हें खरगोश दिखाऊंगी। तुम्हें पसन्द है?"
मैं बोली,"हां आंटी मुझे खरगोश बहुत पसंद है।"
मैं खुशी - खुशी आंटी के साथ लॉन में चली गई। वहां आंटी ने उनके छोटे से घर को खोल दिया। दोनों खरगोश इधर उधर उछलने कूदने लगे। मैं उनके पीछे पीछे भागती। उन्हे पकड़ कर गोद में ले सहलाती।
उन्हें स्पर्श करने का अनुभव अवर्णनीय था। इतनी कोमलता मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। उन्हें अपने हाथ से घास खिलाया। इन सब में शाम हो गई। पर मेरा जाने का मन नहीं हो रहा था। बेमन से में घर गई ।
अब मैं दीदी के पीछे पड़ी रहती दीदी पूनम दीदी के घर चलो।
मेरा लगाव बहुत ज्यादा हो गया था ,उन खरगोश के जोड़े से।
छह महीने बाद उस जोड़े ने छोटे छोटे चार बच्चे को जन्म दिया। मैं उन्हे भी जाती और देख कर चलो आती । अब दीदी ना भी जाती तो मैं अकेली स्कूल ले लौटते वक्त चली जाती।
आंटी ने बोल दिया था कि में इनमें से दो को चुन कर छह दिन बाद ले जा सकती हूं । मैं बेहद खुश थी। उनके लिए छोटा सा घर बनवा लिया।उसमे पुवाल भी बिछा दिया । फिर उन खरगोश के बच्चों को भाई के साथ जाकर ले आई।
अब मैं और मेरा छोटा भाई दोनों ने उसकी देख भाल करनी शुरू कर दी। स्कूल से आते ही हम उन्हें घास खाने को लॉन में छोड़ देते । वो घास खा लेते तो फिर उनको घर में बंद कर देते। शाम को पुनः बाहर निकालते उनके साथ खेलते। आस पास के कुछ दोस्त भी आ जाते थे।
बड़ा मज़ा आता। मैंने उनका नाम ' स्नो व्हाइट रखा था।
दोनों खरगोश तेजी से बढ़ रहे थे। अब वे नाम से पुकारने पर आ जाते थे। उन्हें बंद कर के रखने की जरूरत नहीं थी । वो खुद ही पुकारने पर बाहर आते ब्रेड का टुकड़ा , बिस्किट ,गाजर आदि लेकर अपने घर में चले जाते। उनकी गुलाबी चमकती आंखें जैसे ही हमें देखती मानो उनकी चमक दुगुनी हो जाती।
अब वो हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है गए थे। उनके बिना एक पल चैन नहीं आता था। लाई तो उन्हें में थी पर वो पूरे घर की जन बन गए थे।
ऐसे ही वो मनहूस दिन भी आ गया। हम रोज की भांति लॉन में खेल रहे थे। स्नो - व्हाइट भी जम कर उछल कूद मचा थे। पल भर में इस छोर से उस छोर पर चले जाते।
जाने कहां से एक नेवला घात लगा कर बैठा था। जैसे ही व्हाइट गेंदे के पौधे के पास गया ,उसकी गर्दन पकड़ कर वो काल बना नेवला उठा ले गया। पलक झपकते ही सब हो गया। मैं और भाई चिलालते हुए नेवले के पीछे भागे । हमें आता देख वो घबरा कर व्हाइट को छोड़ कर भाग गया। पर वो अपना काम कर गया था। आधे घंटे बाद व्हाइट ने दम तोड़ दिया। पूरे घर में उदासी फ़ैल गई। अब हम स्नो को घर के बाहर निकालना बिल्कुल बंद कर दिए थे। वो उदास रहता खाने पीने की चीज
मुंह के पास ले जाने पर सूंघता फिर छोड़ देता। किसी तरह थोड़ा बहुत खाता।
व्हाइट के गम में एक महीने बाद एक सुबह स्नो भी हमें मृत मिला।
ये घटना मेरे दिल पर इतना असर कर गई की मैंने फिर कभी भी कोई पेट घर में नहीं रक्खा।