hard-earned cash in Hindi Children Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | मेहनत की कमाई

Featured Books
  • ओ मेरे हमसफर - 12

    (रिया अपनी बहन प्रिया को उसका प्रेम—कुणाल—देने के लिए त्याग...

  • Chetak: The King's Shadow - 1

    अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप ध...

  • त्रिशा... - 8

    "अच्छा????" मैनें उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा। "हां तो अब ब...

  • Kurbaan Hua - Chapter 42

    खोई हुई संजना और लवली के खयालसंजना के अचानक गायब हो जाने से...

  • श्री गुरु नानक देव जी - 7

    इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने सैदपुर, जिसे अब ऐमनाबाद कहा...

Categories
Share

मेहनत की कमाई






नवीन के पिता साधारण सरल स्वभाव के व्यक्ति थे।उनका कोई बड़ा व्यापार नहीं था।वह प्रतिदिन एक ठेला किराये पर लेते ।मंडी जाकर ताज़ा सब्ज़ियाँ और फल लाते और उन्हें बेचकर जो शाम को पैसे इकट्ठे होते,उनसे वह
ठेले के ठेकेदार को किराया देकर,बाक़ी बचे पैसों से घर के उपयोग की वस्तुओं के साथ में आटा,दालें चावल साथ लेकर आते थे।


प्रतिदिन उनका नियम था कि नवीन और उसकी छोटी बहिन नीता के लिए वह कुछ अवश्य लाते थे।


कभी नवीन के पिताजी खिलौने लेकर आते तो कभी खाने के लिए फल और मिठाइयाँ लाते थे।दोनों बहिन भाई ख़ुश होकर खाते थे।


नवीन पिता जी की लाई हुई चीजें खाता और आधी फेंक देता,खिलौनों से खेलता और तोड़ देता था।नवीन की मॉं उसकी इस आदत से बहुत परेशान रहतीं ।


नीता पिता जी की लाई हुई चीजों को मॉं को भी देती स्वयं भी ख़ुश होकर खाती थी।नीता अपने खिलौने घर में सजा कर रखती,नवीन को भी खेलने के लिए दे देती।वह उन्हें भी तोड़ देता।


नवीन अपने दोस्तों के साथ खेलने जाता तो उनके खिलौने देखकर ललचाता ।एक दिन पिताजी ठेला लेकर सब्ज़ी बेचने गये तो मूसलाधार बारिश हो रही थी ।बारिश में पिताजी एक गली से दूसरी गली में सब्ज़ी बेचने के लिए आवाज़ लगा कर कोशिश कर रहे थे।


पूरे दिन आवाज़ लगाते रहे एक कालोनी से दूसरी कालोनी में लेकिन उनका ठेला ज्यों का त्यों भरा रहा।कुछ सब्ज़ियाँ ही बिकी जिससे जो पैसे उनके पास आये उन्हें वह ठेकेदार को किराया देकर शाम को घर पर आये।


नवीन ने देखा कि पिता जी आज खाने के लिए कुछ नहीं लाये तो उसे बहुत ग़ुस्सा आया और रोने लगा । मॉं ने उसे समझाया और घर में जो पिछले दिनों का सामान रखा था ,खाना बनाया सबको खिलाया और सब सो गये ।


इसी तरह प्रतिदिन की दिनचर्या थी अगले दिन मौसम साफ़ हुआ तो वह सब्ज़ी बेचने निकले सब सब्ज़ी बिक जाने पर पिताजी दोनों भाई-बहन के लिए खिलौने और मिठाई लेकर शाम को आये।दोनों ने मिठाई खाई और अपना गृहकार्य पूरा करके सो गये।


एक दिन नवीन को अपने सहपाठी मनोज के घर स्कूल का गृहकार्य पूरा करने के लिए जाना हुआ।कार्य पूरा होने पर दोनों खेलने लगे ।नवीन ने देखा मनोज के घर पर तो बहुत से बड़े और महँगे खिलौने हैं।


घर आकर नवीन ने मॉं से कहा—मॉं मुझे भी मनोज के खिलौनों जैसे खिलौने चाहिए ।मॉं ने समझाया बेटा हम वैसे खिलौने नहीं ला सकते हमारी आमदनी उनके पिता के बराबर नहीं है ।मॉं के समझाने पर नवीन की समझ में नहीं आया और प्रतिदिन परेशान करने लगा ।


नवीन का व्यवहार बहुत बदल गया था वह ज़िद करता और पिता की लाई हुई वस्तुएँ फेंक देता दूसरी चीजें लाने की ज़िद करता।


एक दिन पिता जब सब्ज़ी बेचने निकले तो सर्दी बहुत थी ,ठंडी हवा में उनके पास पर्याप्त गर्म कपड़े भी नहीं थे।वह हवा में ही एक गली से दूसरी गली आवाज़ लगाते रहे ।आधी सब्ज़ियाँ बिकी ,सिर में दर्द होने पर वह घर आ गये ।


मॉं ने देखा तो पिता जी को बहुत तेज बुख़ार था।मॉं डाक्टर के ले गई तो बुख़ार और बढ़ गया था वहॉं कुछ दवाइयाँ देकर उन्हें आराम करने की सलाह के साथ कुछ पौष्टिक चीजें खाने को कहा—लेकिन घर में पैसे न होने पर उधार लाकर मॉं ने दवाई लाकर खिलाई।


पिताजी को आराम करते तीन दिन हो गये तो ठेले की बची हुई सब्ज़ी भी ख़राब होने लगी ,पैसे की बहुत ज़रूरत थी ।


मॉं ने निर्णय लिया कि बची हुई सब्ज़ियों को मैं बेचकर आती हूँ ।नवीन को बहुत बुरा लगा,मॉं चली जायेगी तो खाना कौन खिलायेगा ।


नवीन ने ठेला उठाया और सब्ज़ी बेचने के लिए निकल पड़ा ।पूरे दिन ठंड में एक ही जगह ठेला लेकर खड़ा रहा ठंड से पूरे हाथ ठंडे होगये।


पूरे दिन में पॉच रुपये की सब्ज़ी बिकी और कुछ खुले पैसे थे।नवीन ने पॉंच रुपये पिताजी को दिये और कहा—लीजिए यह आज के पैसे है मैं ठंड से परेशान हो गया।


पिताजी ने नवीन की ओर देखे बिना ही पैसे हाथ में लेकर फेंक दिये ।यह देखकर नवीन को बहुत ग़ुस्सा आया,पूरे दिन मेहनत की , ठंड से बुरा हाल हैं और इन्होंने पैसे भी फेंक दिये देखे भी नहीं ।


नवीन ने मॉं को बताया तो मॉं ने समझाया बेटा पैसे बहुत मेहनत से ही कमाये जाते है हमें क़द्र करनी चाहिए किसी की नक़ल नहीं,जितना है उसमें ख़ुश रहना चाहिए ।तुम्हें मेहनत करनेपर पैसे मिले —फेंकने पर दुख हुआ?



अब नवीन को बहुत कुछ समझ आ गया और अपने माता-पिता से लिपट गया ,बोला —मेहनत की कमाई कभी बर्बाद नहीं करूँगा 🥲मुझे माफ़ कर दीजिए पिताजी ।🙏🙏

आशा सारस्वत